Friday, September 30, 2022

स्वयं की परवाह सेल्फ केयर.. खुद से कैसे प्यार करें ये एक कला है ..

स्वयं की परवाह सेल्फ केयर..

खुद से कैसे प्यार करें ये एक कला है ..

वास्तव में हमारे पास केवल एक ही जिन्दगी है वर्तमान की समझ ही स्वयं का अवलोकन है।

 हम अभी जो है सो है और ऐसे में जब हम इसकी अहमियत नहीं समझ पाते तो खुद की खबर लेना मुश्किल बात है क्योंकि हम खुद से शायद ही कभी रूबरू होने की कोशिश करते हो , क्या हम स्वार्थी है ?

आज सिर्फ खुद की फिक्र करें दुनिया की परवाह कल करेंगे। इसलिए हम इस बारे में बात नहीं करेंगे कि हम खुदगर्ज क्यों बनें लेकिन साथ ही अगर किसी दूसरे के लिए भी थोड़ा सोच विचार करेगें तो फिर से अपनी अहमियत खो सकते है |

यकीन मानिए आपके अंदर बहुत सी ऐसी खासियते होती है जिनके बारे में आप जानते है या कभी कभी महसूस भी करते है लेकिन फिर भी आप दुनियाभर की चिताओं या असुरक्षा की भावना के चलते दुनियादारी में उलझे रहते है और उन पर कुछ खास ध्यान नहीं दे पाते इसलिए ऐसा होता है कि थोड़े दिन बाद हम इस बात को लेकर असमंजस  confustion में  होते है कि ‘मेरी जिन्दगी का उद्देश्य क्या है ?

स्वयं की परवाह कल की चिंता यानि गंभीर होना। खुद के प्रति यदि लगाव जगा संके तो जीवन का सही उद्देश्य जल्दी समझ आ सकता है। आखिर क्या है जीवन का उद्देश्य?

जीवन का उद्देश्य – उद्देश्य अगर आप देखें तो बहुत ही सरल simple सा है कंही कोई दुविधा नहीं है आप यंहा है और मनुष्य जाति जो कि सर्वश्रेष्ठ हम कह सकते है के रूप में तो हम अधिक से अधिक क्या कर सकते है ? जाहिर है दुनिया भर में जो सुन्दरता है जो विविधता है उसे खोज सकते है लोगो को प्रेम कर सकते है लोगो के प्रेम का हिस्सा बन सकते है | हमारे आस पास बहुत कुछ ऐसा है जिससे हम अनजान है और काम और जिन्दगी के भागदौड़ में हम यह तक नहीं सोचते कि आखिर कब तक हम भागेंगे और कितना भाग सकते है क्योंकि आप कुछ भी करिए फिर भी कुछ न कुछ ऐसा होगा जो छूटेगा ही सो ऐसा क्यों नहीं करते कि एक परिपूर्णता को प्राप्त करने की कोशिश करें जो आपके अंदर ही है और आप अपने साथ हर वक़्त मौजूद रह सकते है इसलिए आपको कंही भागने की भी जरुरत नहीं पडती है अगर खुद में अपनी खुशियाँ देखते है तो |

खुद से कैसे प्यार करें –

अगर आप नहीं जानते कि खुद से प्यार कैसे करते है और उसमे किस तरह की ख़ुशी है तो एक काम करिए जब भी आपको कभी वक़्त मिले अकेले बैठिये और आंखे बंद कर दुनिया की चिंताओं को पीछे छोड़ते हुए सब कुछ भूलने की कोशिश करिए क्योंकि कभी ऐसा नहीं होता है कि हम अगर कुछ कर नहीं रहे है तो हमारे दिमाग में भी कुछ नहीं चल रहा होता |

जब कभी भी हम शांत भी बैठें होते है तो भी हमारे दिमाग में भविष्य की योजनायें ,बीते दिनों की यादें ,काम और जॉब के बारे में चिंताएं निरंतर चलती रहती है और हम एक दिन में कुछ बदल भी तो नहीं सकते इसलिए एक तरह से योजना बनायें कि आपको किस तरह से खुद के लिए समय निकालना है | और जब आप शांत बैठने की कोशिश के साथ केवल खुद के बारे में ही सोचते है तो कुछ दिनों के अभ्यास के बाद आप अपनी सच्ची ख़ुशी और अपने जीवन के उद्देश्य के बारे में जान सकते है | खुद के साथ वक़्त बिताने के दो बड़े फायदे है एक तो आप अपनी रचनात्मकता को पहचान सकते है और उसे मजबूत improve भी कर सकते है और दूसरा की लोगो की बजाय खुद की परवाह करना आसानी से सीख सकते है |

जब हम खुद से प्यार करने लगते है तो हम जिन्दगी के बहुत कुछ उन छिपे पहलुओं को जीते है जो हमसे जुड़े है भले ही जिन्दगी की राह फिसलन भरी हो और हर दिन नई नई परेशानियों का सामना करना पड़ता हो लेकिन जब आप जिन्दगी के साथ खुद को संतुलन बनाते हुए देखते है तो यह काफी आसान हो जाती है..

स्वयं की परवाह "स्व" की रक्षा , खुद से प्यार ही अध्यात्म जीवन की शुरुआत है। व्यक्ति का अध्यात्म स्वयं के आत्म के अध्ययन से ही आरंभ होता है और जब हम खुद से जुड़ते चले जाते हैं तो अपने दिव्य स्वरूप को खोज पाते हैं। इसलिए अध्यात्म स्वयं की अंतर यात्रा है।

आध्यात्मिक जीवन जीना ही दिव्य जीवन पथ में प्रगति है । जैसा हम सोचेंगे वैसे हम बन जाएंगे। इसलिए कहा गया है कि मन के हारे हार है मन के जीते जीत।

वैसे तो वह सीमा निर्धारित करना कठिन है जहां मन समाप्त होता और दिव्य जीवन आरंभ होता है क्योंकि दोनों एक-दूसरे में प्रक्षिप्त होते हैं और इनके मिले-जुले जीवन का एक लंबा अंतराल होता है । इस अंतराल का एक बड़ा भाग -जहां आध्यात्मिक प्रेरणा धरती या संसार से एकदम मुंह नहीं मोड़ लेती -बनते हुए उच्चतर जीवन की एक प्रक्रिया के रूप में देखा जा सकता है । स्वयं की प्रकृति को समझना ही स्वयं के अस्तित्व की अनुभूति होती है।इसकी एक रूपांतरण की प्रक्रिया है।

जैसे-जैसे मन और प्राण आध्यात्म पुरुष स्व चैतन्य के प्रकाश से प्रदीप्त होने लगते हैं वे देवत्व, गुप्त महत्तर सदवस्तु की किसी चीज को धारण करने या प्रतिबिंबित करने लगते हैं; और इसे तब तक बढ़ते जाना चाहिये जबतक कि अंतराल पार न कर लिया जाये, पूरा जीवन आध्यात्म तत्त्व के पूर्ण प्रकाश और शक्ति में एक न हो जाये । इस तरह कर्म,अकर्म और विकर्म सब का आत्म सत्ता में लय हो जाना आध्यात्म की बुनियादी आवश्यकता है।

निश्चय ही भीतर एक आध्यात्मिक जीवन हों सकता है, हमारे अंदर स्वर्ग का ऐसा राज्य जो किसी बाहरी अभिव्यक्ति, यंत्र-विन्यास या बाहरी सत्ता के सूत्र पर निर्भर नहीं होता । आंतरिक जीवन का परम आध्यात्मिक महत्त्व होता है और बाहरी जीवन का बस उतना ही मूल्य होता है जितना वह भीतरी स्थिति को अभिव्यक्त कर सके । फिर भी, आध्यात्मिक उपलब्धिवाला व्यक्ति जिस तरह भी रहता हो, कर्म करता हो, बर्ताव करता हो वह सत्ता और कर्म के सभी तरीकों में, जैसा गीता में कहा गया है, ''सर्वथा मयि वर्तते" मेरे अंदर रहता और कर्म करता है ।

मनुष्य जिस प्रकार के आंतरिक जीवन की रचना कर सकता है उसे बाहर से ही बनाया जा सकता है और उसका स्वास्थ्य हितकर और पौष्टिक बाहरी स्रोतों पर नियमित निर्भरता रखने से सुरक्षित रहता है, -व्यक्तिगत मन और प्राण का संतुलन बाह्य वास्तविकता के दृढ़ अवलंब से ही सुरक्षित किया जा सकता है क्योंकि जड़ जगत् ही एकमात्र मूलभूत वास्तविकता है । इसलिए ऋषि मुनियों ने अध्यात्म के सूत्र में कहा है कि "यत्र पिंड तत्र ब्रह्मांड" अर्थात जो शरीर में मौजूद है वही बाहर ब्रह्मांड में मौजूद है।

दिव्य जीवन समाधान उत्कर्ष के शोध द्वारा स्वयं की आत्म उत्कर्ष की आध्यात्मिक स्वास्थ्य की उसी दिशा में जीवन के हर पक्ष एवं हर समस्यायों के समाधान के साथ साथ मानवीय चेतना के व्यावहारिक उत्कर्ष के दिव्य सूत्रों के रूप में परम उपयोगी योग आयुर्वेद आध्यात्मिक चिकित्सा एवं मनोदैहिक आरोग्य उपचार - निदान व कॉउंसलिंग -परामर्श- थेरेपी सुविधा उपलब्ध है .. जीवन लक्ष्य प्राप्ति ,जीवन शैली- व्यक्तित्व विकास प्रशिक्षण ,दिव्य उत्कर्ष विद्या कोर्स एवं योग फिटनेस ट्रेनर प्रशिक्षक कोर्सेस वैकल्पिक चिकित्सा थेरेपी कोर्सेस सीखें रोजगार आमदनी पायें जीवन में सफलता पायें साथ ही स्वास्थ्य आनंद व समृद्धि अर्जित करें .. 

दिव्य जीवन समाधान के साथ दिव्य उत्कर्ष विद्या के रूप में खुद से प्यार करने की कला सीखें .. हमारी विशेषताएं नाड़ी परिक्षण pulse diagnosis उपचार , त्रिदोष , सप्तधातु निर्माण सम्पूर्ण आहार जीवन चर्या मार्गदर्शन परामर्श निर्देशन तथा परिणामदायक स्वास्थ्य देखभाल, मनोशारीरिक रोग निदान परामर्श चिकित्सा ,जीवन शैली परिवर्तन, कैंसर चिकित्सा, डायबिटिक, हृदयरोग चिकित्सा,स्वास्थ्य संवर्धन, त्वरित (Insta) प्राकृतिक चिकित्सा, व्यसनमुक्ति चिकित्सा, मानसिक स्वास्थ्य के अंतर्गत तनाव ,अवसाद डिप्रेशन ,चिंता ,फोबिया, डर ,शंका, स्मृति लोप , याददास्त की कमजोरी, निराशाआलस्य ,नकारात्मक सोच, स्ट्रेस मनेजमेंट, जेनेटिक मोटापा चिकित्सा , मेन्टल डिसऑर्डर जैसे रोगों का निदान उपचार संभव है। योग थेरेपी एवं आध्यात्मिक चिकित्सा ,प्राण हीलिंग दिव्य उत्कर्ष विद्या ध्यान पद्धतियों से सम्पूर्ण दिव्य जीवन व स्वास्थ्य समाधान सुविधा उपलब्ध है।

🔸संपर्क🔸

 डा सुरेंद्र सिंह विरहे

मनोदैहिक आरोग्य आध्यात्मिक स्वास्थ्य विषेशज्ञ एवं लाईफ कोच, स्प्रिचुअल योगा थेरेपिस्ट

स्थापना सदस्य

मध्य प्रदेश मैंटल हैल्थ एलाइंस चोइथराम हॉस्पिटल नर्सिंग कॉलेज इंदौर

निदेशक

दिव्य जीवन समाधान उत्कर्ष

Divine Life Solutions Utkarsh

पूर्व अध्येता

भारतीय दार्शनिक अनुसन्धान परिषद् दिल्ली

"Philosophy of Mind And Consciousness Studies"

Ex. Research Scholar

At: Indian Council of Philosophical Research ICPR Delhi

utkarshfrom1998@gmail.com

9826042177,

8989832149

Wednesday, September 28, 2022

Learn The Art of Life Management and Self-Transcendence From Spiritual Health ealth

Learn The Art of Life  Management & Self-Transcendence from Spiritual Health

In the era of current global imbalance and health transition, there is an urgent need of awareness among the people especially youth regarding spiritual health and yogic meditative lifestyle.

Due to material means facility, science, information technology, communication technology richness and indulgent luxury lifestyle, the young generation has become indolent, lazy, prudish, addicted, negative and atheist.

The qualities of courage, bravery, perseverance, perseverance and hard work are getting lost in the youth. As a result, today's youth are getting attracted towards stress, depression, suicidal tendencies, if seriously considered, the root cause of all this is only one, lack of faith in people, seriousness towards religion and lack of spiritual consciousness among youth.

In fact, the understanding about the life of the youth is not deep due to the isolation towards Sanatan culture and lack of spiritual life vision and religious philosophy. The thinking of the new young generation has become immature, short-sighted and superficial.

Only readiness for immediate benefit is seen in them. They see near-instant momentary pleasures and pseudo-selfishness; But his disinterest in moral obligation, sacrifice, austerity and service is clearly visible.

The challenges of the modern global twenty-first century are extremely complex. Contradictions, anomalies, war craze, destructive conspiracies, in these adverse conditions, make your existence, personality, character high ideal, great goal moral values ​​and in accordance with Sanatan Dharma culture, truthful, sattva virtuous, self-respecting, sympathetic, resolute, sensitive, creative and positive believer optimist Faithful and Self Care revolutionary.

Leaving the narrow mindset, indulgent decadent tendencies of culture, let us return to the roots of our basic Sanatan Dharma culture heritage.

Adopt the vision of the divine great Hindu religious philosophy, full of virtuous deeds and coordination, harmony, restraint, resolution, accomplishment, self-excellence, achievement of eternal true chit bliss, by imbibing the humanistic ideology of wisdom-providing Hindutva in your life, protecting the eternal values, patriotic nation By sacrificing your whole life in service, make your life meaningful by becoming Sanatani.

Let us take a pledge that the human beings of Sanatan culture will lead a spiritual life centered on the values, ideals and principles.

To realize the eternal education concept of peace, harmony, harmony, co-existence, national sovereignty and "Vasudhev Kutumbhakam", for this spiritual health awareness and Indian spiritual culture based yoga, spiritual life management will learn divine excellence.


Divine Utkarsh Spiritual Life Management:

Without doubt, spirituality can be called the divine excellence of life management. Because as an art of living a life full of spiritual health, through this you can ensure your life's priority, maturity and foresight.

Knowing one's self, that is, revealing one's dormant divine form, is divine excellence.

A person degrades himself due to corrupt acts of malpractices, malpractices and misdeeds, while internally he has immense power, rational consciousness and amazing courage, bravery, self-power.

With the grace of yoga meditation practice and experienced expert scholar Acharya Guru, attainment of spiritual and spiritual health excellence is possible. By turning towards the spiritual life, one becomes able to manage his entire life efficiently.


Divya Utkarsh Vidya is a very specific austerity based discipline of spiritual life management.

Patience, determination, the ultimate goal of service to humanity and self-excellent achievement with the aim of continuous research has led to the emergence of this divine excellence.

To understand the meaningful co-ordination formula of Karma and Destiny and new fundamental options for life management and problem solving is the specialty of this Spiritual Life Management Divine Utkarsh Vidya.


By mistake, most of the people unconsciously try to connect spirituality with religious beliefs, worship-traditions, temple-mosque or church-gurudwara, in fact it is not so at all. Yes, it is true that superficial knowledge based on religion and religious beliefs, its formal techniques, rituals are helpful in spirituality. 

But deep down in every sectarian teaching the conception of the Supreme God is the insistence on oneness or the worship of one truth.


Therefore, in order to achieve the ultimate goal, the ultimate truth, a person takes recourse to his own religious beliefs, traditional beliefs and beliefs. As a result of which religious confusion, communal bigotry and ritualistic pomp are reflected in him.

In fact, it is only through the fruitful efforts of one's self-adoration, spiritual practice, penance and unwavering faith that the disciplined signs of integrity, virtue and early seeker fast are visible in a person. Therefore spirituality can be called the essence of dharma life;

But despite this, spirituality has nothing to do with the narrowness, fanaticism, beliefs and insistences of any sect.

Spirituality is the solution option for all-round meaningful and complete life vision.

Spirituality is the pursuit of eternal existence and unwavering faith in eternality, the devotion of religion, the constant desire to find the truth.

Therefore, spirituality is such a holy process of transforming life, which ensures the arrangement, progress and planning of all the forces of external and internal life. In him, many new doors of divine divine light open.

That is, the spiritual life management concept of divine excellence paves the way for the welfare of human beings.Inspired by imitation.

Innumerable seekers, ideal young personalities have earned the achievement of self-transcendence on the holy land of India. By realizing the spiritual principle in the form of truth, many have been taught this spiritual life management with divine excellence.

Adevat Vedanta Acharya Shankar, the great saint Gyandev Maharaj, Swami Vivekananda, Sri Aurobindo and many other young spiritual geniuses who inspired the whole world with their spiritual thoughts, created divine consciousness by awakening the spiritual divine light in human life and awakening for self-exaltation. Quote made possible.

Today's new young generation can take inspiration from them and maintain this spiritual life management knowledge tradition.If he, knowing the reality of Sathya Sanatan, adopts Indian spiritual knowledge culture by discharging his roles of living a meaningful life.

Although spirituality is a research-based science, the practice of wonderful sages, saints, saints, ascetics, yogis, to make human life complete, meaningful, best, supreme.

The young generation of the country has to adopt its spiritual cultural heritage. Finding Spiritual Health Through Yoga Meditation

One has to move towards increasing self-power through spiritual consciousness.


By learning the skills of spiritual management, youth of today can make the most successful action plan for future life by making a program outline and guiding Yoga and Vedanta. 

As a result, through spiritual life management, increasing your efficiency, goal setting, mutual adjustment and developing leadership ability, you can make an unprecedented important contribution to the progress of the country by attaining fame, fame, glory, health and prosperity.

Contact:

Dr. Surendra Singh Virhe

Spiritual Health Specialist & Life Coach, Spiritual Yoga Therapist

Deputy Director

Madhya Pradesh Sahitya Akademi Sanskriti Parishad Department Of Culture Government Of Madhya Pradesh

State Research Coordinator

Spiritual Value Education Research Department of Dharmik Nyas Dharmashva Government Of Madhya Pradesh


Establishment Member

Madhya Pradesh Mental Health Alliance Choithram Hospital Nursing College Indore


Director

Divine Life Solution Utkarsh


Former Fellow

Indian Council of Philosophical Research Delhi

"Philosophy of Mind And Consciousness Studies"

Ex. Research Scholar

At: Indian Council of Philosophical Research ICPR Delhi

utkarshfrom1998@gmail.com

9826042177,

8989832149


Tuesday, September 27, 2022

आध्यात्मिक स्वास्थ्य से जीवन प्रबंधन व आत्म उत्कर्ष की कला सीखें...

आध्यात्मिक स्वास्थ्य से जीवन प्रबंधन व आत्म उत्कर्ष की कला सीखें...

वर्तमान वैश्विक असंतुलन एवम स्वास्थ संक्रमण के दौर में लोगों में विशेष रूप से युवाओं में आध्यात्मिक स्वास्थ्य के प्रति चेतना और योग ध्यानमय जीवन शैली को लेकर जागृति की नितांत आवश्यकता है। 

भौतिक सुख साधन सुविधा, विज्ञान,सूचना प्रौद्योगिकी, संचार तकनीकी संपन्नता और भोगवादी विलासिता पूर्ण जीवन चर्या के चलते युवा पीढ़ी अकर्मण्य, आलसी, आडंबरी, प्रमादी, व्यसनी, नकारात्मक और नास्तिक हो गई है।

आजकल युवाओं के अंदर साहस, शौर्य, दृढ़ता, लगन एवं श्रमशीलता के गुण समाप्त होते जा रहे हैं। परिणाम स्वरूप आज का युवा तनाव,अवसाद, आत्महत्या प्रवृत्ति की ओर आकृष्ट हो भटकाव से गुजर रहा है, यदि गंभीरतापूर्वक विचार करें तो इन सबका मूलभूत कारण  है, लोगों में धर्म के प्रति आस्था, जीवन में संंजीदगी का अभाव व युवाओं में आध्यात्मिक चेतना की कमी है।

वास्तव में सनातन संस्कृति के प्रति अलगाव व उदासीनता आध्यात्मिक जीवन दृष्टि और धर्म दर्शन बोध न होने के कारण युवाओं की जिन्दगी के बारे में समझ गहरी नही हो पा रही है। नई युवा पीढ़ी की सोच अपरिपक्व,अदूरदर्शी और सतही हो गयी है।

केवल तात्कालिक लाभ के प्रति ही तत्परता, सक्रियता उनमें दिखाई देती है। उन्हें निकट नजदीकी क्षणिक सुख और छद्म स्वार्थ तो दिखाई देते हैं; परन्तु नैतिक दायित्व, त्याग, तप एवं सेवा में उनकी अरुचि स्पष्ट झलकती है ।

आधुनिक वैश्विक चुनौतीपूर्ण इक्कीसवीं सदी की भीषण समस्याएं अत्यंत जटिल है। विषमता, विसंगतियों, युद्ध उन्मादी, विनाशक षडयंत्रकारी इन प्रतिकूल परिस्थितियों में अपने अस्तित्व, व्यक्तिव, चरित्र को उच्च आदर्श, महान लक्ष्य नैतिक मूल्यों और सनातन धर्म संस्कृति के अनुरुप सत्यानुसंधानी, सत्वगुणी, स्वाभिमानी, सहृदयी, संकल्पी, संवेदनशील, सृजनशील और सकारात्मक आस्तिक आशावादी, आस्थावादी और क्रांतिधर्मी बनाना होगा।

आज समय की मांग है कि हम पाश्चात्य संस्कृति की संकीर्ण मानसिकता,भोगवादी पतनकारी कूप्रवृत्तियों को छोड़कर अपनी मूलभूत सनातन धर्म संस्कृति विरासत की जड़ों की ओर पुनः लौट चलें।

पुरुषार्थ कर्म प्रधानता से ओतप्रोत दिव्य महान हिन्दू धर्म दर्शन की द्रष्टि को अपनाएं और समन्वय सामंजस्य संयम संकल्प सिद्धि , आत्म उत्कर्ष उपलब्धि, शास्वत सत चित आनंद की अनुभूति प्रज्ञा प्रदायक हिंदुत्व विचारधारा को अपने जीवन में आत्मसात कर सनातन मूल्यों की रक्षा,देशभक्ति राष्ट्र सेवा में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर अपने जीवन को सार्थक रूप से सनातनी बन चरितार्थ करें ।

हम संकल्प लें कि सनातन संस्कृति के मानव धर्म आधारित मूल्यों, आदर्शों व सिद्धांतो पर केंद्रित अध्यात्ममय जीवन जिएंगे।

शांति, सामंजस्य ,सदभाव, सहअस्तित्व, राष्टीय संप्रभुता और " वसुधैव कुटुम्बकम्" की सनातन शिक्षा अवधारणा को साकार करेंगे, इस हेतु आध्यात्मिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता एवम भारतीय आध्यात्मिक संस्कृति पर आधारित योग,अध्यात्म जीवन प्रबंधन की दिव्य उत्कर्ष विद्या सीखेंगे।

दिव्य उत्कर्ष अध्यात्म जीवन प्रबंधन :

निः संदेह अध्यात्म को जीवन प्रबन्धन की दिव्य उत्कर्ष विद्या कह सकते हैं। क्योंकि आध्यात्मिक स्वास्थ्य से परिपूर्ण जीवन जीने की कला के रूप में आप इसके माध्यम से अपने जीवन की प्राथमिकता, परिपक्वता एवं दूरदर्शिता को सुनिश्चित कर सकते हैं।

अपने स्व को जानकर अर्थात अपने सुषुप्त दिव्य स्वरूप को उद्घाटित करना ही दिव्य उत्कर्ष विद्या है। 

व्यक्ति कुसंस्कार, कुसंगति और कुकर्मरूपी भ्रष्ट कृत्यों के कारण अपनी अधोगति कर लेता है जबकि उसमें आंतरिक रूप से विराट शक्ति , विवेकशील चेतना और अदभुत साहस शौर्य आत्मबल समाहित रहता है। 

योग ध्यान साधना अभ्यास एवम अनुभवी विशेषज्ञ विद्वान आचार्य गुरु की कृपा से मनोदैहिक आध्यात्मिक स्वास्थ्य उत्कर्ष की प्राप्ति संभव है।आत्म विषय से जुड़कर आध्यात्मिक जीवन की ओर अभिमुख होकर व्यक्ति अपने सम्पूर्ण जीवन का कुशलतापूर्वक प्रबन्धन करने में सक्षम हो जाता है।

दिव्य उत्कर्ष विद्या अध्यात्म जीवन प्रबंधन की अत्यन्त विशिष्ट तप आधारित व्यवहारिक विद्या है।

धैर्यवान, संकल्पित, परम ध्येय मानवता की सेवा, राष्ट्र उत्थान एवम आत्म उत्कर्ष उपलब्धि के उद्देश्य द्वारा सतत अनुसंधान से इस दिव्य उत्कर्ष विद्या का प्रादुर्भव हुआ है।

कर्म एवम नियति के सार्थक समन्वय सूत्र तथा जीवन प्रबंधन एवम समस्या समाधान के नए मौलिक विकल्प सुझाना इस अध्यात्म जीवन प्रबंधन दिव्य उत्कर्ष विद्या की विशेषता है।

भूलवश अधिकतर लोग अनजाने में अध्यात्म को धार्मिक मान्यताओं, पूजा-परम्पराओं, मंदिर-मस्जिद या गिरजाघर-गुरुद्वारे से जोड़ने की कोशिश करते हैं, वास्तव में ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। जी हाँ, यह सच है कि धर्म व धार्मिक मान्यताओं पर आधारित सतही ज्ञान उसकी ओपचारिक तकनीकें, रीति रिवाज अध्यात्म में सहायक हैं। किंतु गहरे रूप में हर सांप्रदायिक शिक्षा में परम ईश्वर की नामरूप अवधारणा एकत्व या एक सत्य की उपासना का ही आग्रह है। 

इसलिए अंतिम लक्ष्य अंतिम सत्य को पाने के लिए व्यक्ति अपने निज धार्मिक मतों, पारंपरिक आस्था व विस्वास का सहारा लेता है।जिसके परिणामस्वरूप उसमें धार्मिक विभ्रम, सांप्रदायिक कट्टरता और कर्मकांडी आडंबर परिलक्षित होता है।

वास्तव में तो ईष्ट आराधना, साधना, तपस्या और अटूट आस्था के स्वयं के फलीभूत प्रयास से ही व्यक्ति में सत्यनिष्ठा ,सदाचार और प्रारंभिक साधक व्रत के अनुशासित लक्षण दिखाई देते हैं। इसलिए अध्यात्म को धर्म जीवन का सार कहा जा सकता है; लेकिन इसके बावजूद किसी भी पंथ की संकीर्णताओं, कट्टरताओं, मान्यताओं एवं आग्रहों से अध्यात्म का कोई लेना देना नहीं है। 

अध्यात्म तो सर्वांगीण सार्थक व सम्पूर्ण जीवन दृष्टि का समाधान विकल्प है। 

शाश्वत सत्ता के शोध और सनातनता के प्रति अटूट आस्था धर्म दर्शन के अनुराग, सत्य को पाने की सतत उत्कंठा को ही आध्यात्मिकता कहते हैं।

अतः आध्यात्मिकता जीवन का रूपान्तरण करने वाली ऐसी पवित्र प्रक्रिया है, जिससे बाहरी और आंतरिक जीवन की सभी शक्तियों की व्यवस्था, प्रगति व सुनियोजन सुनिश्चित होता है।केवल यही नहीं रूपान्तरित हुआ अनुशासित योग ध्यान साधनामय जीवन विराट् से जुड़ने में समर्थ होता है। उसमें दिव्यता अलौकिक आलोक के अनेकों नए द्वार खुलते हैं। 

अर्थात दिव्य उत्कर्ष की अध्यात्म जीवन प्रबंधन अवधारणा मनुष्य के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती है।

भारतवर्ष की पुण्य धरा पर असंख्य साधकों ने,आदर्श युवा व्यक्तित्वों ने आत्म उत्कर्ष की उपलब्धि अर्जित की है। सत्य स्वरूप अध्यात्म तत्त्व की अनुभूति करके अनेकों को इस अध्यात्म जीवन प्रबंधन दिव्य उत्कर्ष विद्या के अनुसरण अनुकरण से प्रेरणा मिली है।

अद्वैत वेदांत आचार्य शंकर, महान संत ज्ञानदेव महाराज, समूचे विश्व को अपने अध्यात्म विचारों से अभिभूत प्रेरित करने वाले स्वामी विवेकानन्द , श्री अरविंद और अन्य कई युवा आध्यात्मिक प्रतिभाओं ने मानव जीवन में आध्यात्मिक दिव्य ज्योति और आत्म उत्कर्ष हेतु जागृति का अलख जगा कर दिव्य चेतना का अवतरण संभव कराया है। 

आज की नई युवा पीढ़ी उनसे प्रेरणा लेकर इस अध्यात्म जीवन प्रबंधन ज्ञान परंपरा को कायम रख सकती है यदि वह सत्य सनातन के यथार्थ को जानते हुए अपनी सार्थक जीवन जीने की भूमिकाओं का निर्वहन कर भारतीय आध्यात्मिक ज्ञान संस्कृति को अंगीकार कर लें। 

यद्यपि अध्यात्म मानवीय जीवन को सम्पूर्ण, सार्थक, सर्वोत्तम, सर्वोच्च बनाने का अद्भुत ऋषि मुनियों साधु संत तपस्वियों योगियों का साधना शोध आधारित विज्ञान है। 

देश की युवा पीढ़ी को अपनी आध्यात्मिक सांस्कृतिक विरासत को अपनाना होगा । योग ध्यान के माध्यम से आध्यात्मिक स्वास्थ्य पाकर अध्यात्म चेतना द्वारा आत्म शक्ति को बढ़ाने की दिशा में अग्रसर होना होगा।

आज के युवा अध्यात्म प्रबन्ध का कौशल सीखकर योग एवं वेदान्त की दिशा दर्शन कार्यक्रम रूपरेखा बनाकर भावी जीवन की सफलतम कार्योजना बना सकते हैं। परिणामस्वरूप अध्यात्म जीवन प्रबंधन के द्वारा अपनी कार्यक्षमता में अभिवृद्धि, लक्ष्य संधान, पारस्परिक समायोजन एवं नेतृत्व क्षमता का विकास कर स्वयं कीर्ति, यश, वैभव, आरोग्य समृद्धि प्राप्त करके देश की प्रगति अभूतपूर्व महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।


🔸संपर्क🔸

 डा सुरेंद्र सिंह विरहे

 मनोदैहिक आरोग्य आध्यात्मिक स्वास्थ्य विषेशज्ञ एवं लाईफ कोच, स्प्रिचुअल योगा थेरेपिस्ट


स्थापना सदस्य

मध्य प्रदेश मैंटल हैल्थ एलाइंस चोइथराम हॉस्पिटल नर्सिंग कॉलेज इंदौर


निदेशक

दिव्य जीवन समाधान उत्कर्ष

Divine Life Solutions Utkarsh

पूर्व अध्येता

भारतीय दार्शनिक अनुसन्धान परिषद् दिल्ली

"Philosophy of Mind And Consciousness Studies"

Ex. Research Scholar

At: Indian Council of Philosophical Research ICPR Delhi

utkarshfrom1998@gmail.com

9826042177,

8989832149











Sunday, September 25, 2022

नवरात्रि नव दुर्गा शक्ति साधना के लिए प्रार्थना स्तुति से दुःख, संकट, पाप और संताप से मुक्ति पाएं...

नवरात्रि नव दुर्गा शक्ति साधना के लिए प्रार्थना स्तुति से दुःख, संकट, पाप और संताप से मुक्ति पाएं...

जीवन में शक्ति की उपासना अति महत्त्वपूर्ण है

मनुष्य का हर कर्म शक्ति पर निर्भर है। सर्वोच व सर्वदा नितांत आत्मिक प्राण शक्ति , सूक्ष्म शरीर में स्थित कुण्डलिनी शक्ति या फिर चाहे स्थूल शरीर में ऊर्जा रूप में प्रवाहित शक्ति ही क्यूं न हो बिना मूल स्रोत शक्ति अर्थात्  मां शक्ति की कृपा के

किसी का भी अस्तित्व ,जीवन, मरण और परम गति मोक्ष संभव नहीं है।

सृष्टि जीवन की कल्पना बिना शिव और शक्ति के नही की जा सकती।

संसार के समस्त आकार तथा सर्वत्र साकार में शिवत्व कल्याणकारी व्याप्ति शक्ति के शुभत्व आशिर्वाद के परिणामस्वरूप ही परिलक्षित होती है।

अर्थात् सत्यम शिवम् सुंदरम की अभिव्यक्ति शक्ति के वरदानों से ही मानव जाति का अभ्युदय हुआ है।

नवरात्रि पर्व मां नवदुर्गा के नौ रूप शक्ति की महिमा अर्चना उपासना और कृपा पाने की प्रार्थना का स्वर्णिम अवसर हम सभी के लिए इस शारदीय नवरात्रि में शक्ति योग साधना के लिए आता है।

आइए मां शक्ति की आराधना हार्दिक व भावपूर्ण रूप से निम्न प्रार्थना से करें:

हे नवदुर्गा कृपा करो माँ, जगती का उपकार करो।

मानव में देवत्व जगाकर, भू पर स्वर्ग साकार करो।।

शैलपुत्री माँ सती-पार्वती, भव बंधन से मुक्त करा दो।

प्यार और सहकार बढ़े माँ, सुविचार की धार बहा दो।।

बृषभ स्थिता, हेमवती माता, दिव्य ज्ञान संचार करो।

मानव में देवत्व जगाकर, भू पर स्वर्ग साकार करो।।

ब्रह्मचारिणी ब्राह्मी माता, तप करने की शक्ति हमें दो।

शिव स्वरूपा गनेश जननी, शिव की अविचल भक्ति हमें दो।।

ज्योतिर्मय हे मातु उमा अब, मन में श्रेष्ठ विचार भरो।

मानव में देवत्व जगाकर, भू पर स्वर्ग साकार करो।।

चंद्रघंटा हे मातु भवानी, हर संकट को दूर भगा दे।

सुख,सौभाग्य, शांति दे माते,हर मानव को श्रेष्ठ बना दे।।

दिव्य विभूतियाँ दे दो अम्बे, अहंकार संहार करो।

मानव में देवत्व जगाकर, भू पर स्वर्ग साकार करो।।

कूष्मांडा हे आदिशक्ति माँ, तूने ही ब्रह्माण्ड बनाया।

अष्टभुजा हे आदिस्वरुपा, तेरी कांति सर्वत्र समाया।।

रोग शोक का अंत करो माँ, अंतस से कुविचार हरो।

मानव में देवत्व जगाकर, भू पर स्वर्ग साकार करो।।  

स्कंदमातापरम सुखदायी, मुक्ति मोक्ष को सहज करा दो।

शुभ्रवर्ण कमलासिनी माते, मूढ़ मति हैं, श्रेष्ठ बना दो।।  

सांसारिक जीवों में माता, नवचेतन का प्रसार करो।

मानव में देवत्व जगाकर, भू पर स्वर्ग साकार करो।।  

कात्यायिनी माता की भक्ति, जो साधक कर पाता है।

धर्म अर्थ और काम मोक्ष की, प्राप्ति सहज हो जाता है।।

चतुर्भुजा हे मातु पराम्बा, भय रोग शोक संताप हरो।

मानव में देवत्व जगाकर, भू पर स्वर्ग साकार करो।।

कालरात्रि हे महाकाली माँ, संत साधू अब भटक रहे हैं।

रुद्रानी चामुंडा चंडी माँ, रक्तबीज फिर पनप रहे है।।

हे शुभंकरी फिर असुर बढ़े हैं, उन सबका संहार करो।

मानव में देवत्व जगाकर, भू पर स्वर्ग साकार करो।।

महागौरी हे मातु अम्बे, पाप हरिणी पुण्य प्रदाता।

शक्ति अमोघ हे वृषारूढ़ा, सद्य: फलदायिनी हे माता।।

चैतन्यमयी हे मातु भवानी, दुष्टों का उपचार करो।

मानव में देवत्व जगाकर, भू पर स्वर्ग साकार करो।।

सिद्धिदात्री जय माँ दुर्गे, साधक में नव प्राण भरो।

सिंहासिनी कमलासिनी देवि, सर्वसिद्धि का दान करो।।

प्राणी मात्र को सुखी करो माँ, श्रद्धा का संचार करो।

मानव में देवत्व जगाकर, भू पर स्वर्ग साकार करो।।

मातृ रूप में हे माँ दुर्गा, हर प्राणी को वरदान दो।  

जीव मात्र हों सुखी निरोगी, सबका ही कल्याण हो।।

हे नवदुर्गा, हे शक्तिस्वरूपा, मानव में श्रेष्ठ विचार भरो।

मानव में देवत्व जगाकर, भू पर स्वर्ग साकार करो।।

मातृ रूप में हे माँ दुर्गा, हर प्राणी को वरदान दो।  

जीव मात्र हों सुखी निरोगी, सबका ही कल्याण हो।।

हे नवदुर्गा, हे शक्तिस्वरूपा, मानव में श्रेष्ठ विचार भरो।

मानव में देवत्व जगाकर, भू पर स्वर्ग साकार करो।।

हे परम शक्ति मां !! कृपा करो।।

भूल, त्रुटि , छल ,कपट , हास ,परिहास, निंदा, अपमान, क्रोध, अहंकार, भ्रष्टाचार,दुराचार,व्यभिचार , दुर्भावना,द्वेष, दुर्गुण आदि के कृत्य कुकर्म के लिए मानव मात्र को क्षमा कर दंड से मुक्त कर दो मां।।

नवरात्रि नवदुर्गा शक्ति साधना के लिए  सभी को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।

जय माता दी।।

🔸संपर्क🔸

 डा सुरेंद्र सिंह विरहे

 मनोदैहिक आरोग्य आध्यात्मिक स्वास्थ्य विषेशज्ञ एवं लाईफ कोच, स्प्रिचुअल योगा थेरेपिस्ट

स्थापना सदस्य

मध्य प्रदेश मैंटल हैल्थ एलाइंस चोइथराम हॉस्पिटल नर्सिंग कॉलेज इंदौर

निदेशक

दिव्य जीवन समाधान उत्कर्ष

Divine Life Solutions Utkarsh

पूर्व अध्येता

भारतीय दार्शनिक अनुसन्धान परिषद् दिल्ली

"Philosophy of Mind And Consciousness Studies"

Ex. Research Scholar

At: Indian Council of Philosophical Research ICPR

Delhi

utkarshfrom1998@gmail.com

9826042177,

8989832149



ध्यान और शून्य अवस्था की अनुभूति से आत्म उत्कर्ष व्यक्तित्व विकास करने की कला सीखें ...

ध्यान और शून्य अवस्था द्वारा आत्म उत्कर्ष व्यक्तित्व विकास करने की कला सीखें ...

ध्यान का नियमित अभ्यास करने से आत्मिक शक्ति बढ़ती है और शून्य की अनुभूति होती है । मन की निर्विचारिता ही शून्य अवस्था है। इसलिए कहा भी जाता है कि : "भीतर जो शून्य हो जाता है, वो सम्राट हो जाता है।" ध्यान के नियमित अभ्यास से मन में शांति और स्थिरता आ जाती है। परिणामस्वरूप आध्यात्मिक सिद्धि के रूप में आनंद तथा शून्य अवस्था की अनुभूति होती है। इसके लिए ध्यान की महत्ता और शून्य के अनुभव को गहराई से जानना समझना जरूरी है।

ध्यान और शून्य अवस्था की अनुभूति से आत्म उत्कर्ष व्यक्तित्व विकास करने की कला सीखें ...

सर्व प्रथम स्वयं का अवलोकन करें कि वास्तव में  हम क्या है पंचतत्व से बनी इस काया की असली पहचान कैसे करें अंग अवयव रूप में यानि आंख? कान? नाक? संपूर्ण शरीर? मन या मस्तिष्क?

 ज्ञानेंद्रिय ,कर्मेंद्रिय और मन की विशिष्टता सदैव से ही खोज का विषय बना हुआ है इसे जानने के लिए योग मार्ग एवं खासकर ध्यान की भूमिका व महत्ता अत्यंत महत्वपूर्ण है। ध्यान आध्यात्मिक रूप से हमारे , शरीर,मन और आत्मा के बीच लयात्मक सम्बन्ध बनाता है। आत्मा का परमात्मा से मिलन योग है लेकिन उसके पहले स्वयं को पाना है तो ध्यान जरूरी है। वहीं एकमात्र विकल्प है। जिसे आत्म साक्षात्कार कहते हैं।

आत्म साक्षात्कार अर्थात् आत्मा को जानना : दैनिक जीवन में ध्यान का नियमित अभ्यास करने से आत्मिक शक्ति बढ़ती है। ध्यान के माध्यम से आत्म विश्वास आत्म निर्भरता बढ़ती है जिससे आत्म बल आत्म शक्ति बढ़ती है।आत्मिक शक्ति से मानसिक शांति की अनुभूति होती है। मानसिक शांति से शरीर स्वस्थ अनुभव करता है। ध्यान के द्वारा ही आत्म उर्जा केंद्रित होती है। उर्जा केंद्रित होने से मन और शरीर में शक्ति रोग प्रतिरोधकता का संचार होता है एवं आत्मिक बल सुदृढ़ होता है।

ध्यान से अर्जित आत्म शक्ति द्वारा दूरदर्शिता लक्ष्य संधान:

ध्यान से जीवन में प्राथमिकताएं सुनिश्चित हो जाती है इसलिए ध्यान से विजन पॉवर बढ़ता है तथा व्यक्ति में निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता है। ध्यान मनोदैहिक आरोग्यता प्रदान करता है ध्यान से सभी तरह के रोग और शोक मिट जाते हैं। आध्यात्मिक स्वास्थ्य स्वरूप ध्यान से व्यक्ति तन, मन और मस्तिष्क पूर्णत: शांति, स्वास्थ्य और प्रसन्नता प्राप्त करता है। अतः ध्यान से कर्म कुशलता की प्राप्त होती है व्यक्ति निर्भय होकर अपने लक्ष्य का संधान करता है।

ध्यान द्वारा शांति से समन्वय सामंजस्य स्थापित कर रिश्तों को मजबूत किया जा सकता है।प्रेम सदभाव कायम कर परस्पर पूरक सह अस्तित्व की भावना, मैत्री, करुणा, अहिंसा, सत्य , और मानवता धर्म का सही पालन किया जा सकता है। 

ध्यान सकारात्मक दृष्टि प्रदान करता है: ध्यान से वास्तविकता को जाना जाता है ध्यान से वर्तमान को देखने और समझने में मदद मिलती है। निष्पक्ष शुद्ध रूप से देखने की क्षमता बढ़ने से विवेक जाग्रत होता है विवेक के जाग्रत होने से होश सजगता बढ़ती है। होश यानि सजगता के बढ़ने से मृत्यु काल में देह के छूटने का बोध रहेगा। देह आसक्ति नही रहती है देह के छूटने के बाद अगला जन्म आपकी मुट्‍ठी में होगा। यही है ध्यान का महत्व ध्यान का विशिष्ट उपहार है।

ध्यान स्व की पहचान कराता है: ध्यान के माध्यम से व्यक्ति स्वयं से जुड़ता है स्वयं की योग्यता नैसर्गिक प्रतिभा और आत्म गरिमा को जान सकता है। ध्यान से आत्मचिंतन,आत्म साक्षात्कार संभव हो जाता है।

ध्यान से निर्मल शुद्ध चेतना की प्राप्ति होती है।ध्यान से व्यक्ति में सत्यनिष्ठा, वैचारिक स्पष्टता, सृजनात्मकता और संवेदनशीलता आती है।

ऋषि मुनियों साधु संतों और योगी तपस्वियों ने योग साधना अभ्यास के महत्व को बतलाया है यम, नियम, आसन, प्राणायम, प्रत्याहार और धारणा को ध्यान तक पहुँचने की सीढ़ी बताया है ध्यान आत्म उत्कर्ष की प्राप्ति सुनिश्चित करता है।


ध्यान के अन्य लाभ :

ध्यान से मानसिक आरोग्य लाभ-बढ़ते मशीनीकरण युग में शोर और प्रदूषण के माहौल के चलते व्यक्ति निरर्थक ही तनाव और मानसिक थकान का अनुभव करता रहता है। मनोदैहिक रोगों से छुटकारा ध्यान से मिलता है क्योंकि ध्यान से तनाव के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है। निरंतर ध्यान करते रहने से जहां मस्तिष्क को नई उर्जा प्राप्त होती है वहीं वह विश्राम में रहकर थकानमुक्त अनुभव करता है। गहरी से गहरी नींद से भी अधिक लाभदायक होता है ध्यान। ध्यान मन मस्तिष्क को निर्भार बना देता है। असीम आनन्द व शांति ध्यान से ही संभव होती है।


ध्यान से शरीर  शोधन होता है: ध्यान से व्यक्ति सुचिता प्राप्त करता है।ध्यान शोधन की प्रक्रिया है। ध्यान से जहां शुरुआत में मन और मस्तिष्क को विश्राम और नई उर्जा मिलती है वहीं शरीर इस ऊर्जा से स्वयं को लाभांवित कर लेता है। ध्यान करने से शरीर की प्रत्येक कोशिका के भीतर प्राण शक्ति का संचार होता है। शरीर में प्राण शक्ति बढ़ने से आप स्वस्थ अनुभव महसूस करते हैं। प्राणिक संबलता से व्यक्ति अपनी आत्मिक शक्ति प्राप्त कर आत्म रूपांतरण संभव कर सकता है।

ध्यान से विभिन्न प्रकार की शारीरिक मानसिक आधी व्याधि रुग्णता को दूर किया जा सकता है।

ध्यान के आध्यात्मिक लाभ-  ध्यान से व्यक्ति स्वयं से आंतरिक रूप से जुड़ जाता है।जो व्यक्ति ध्यान करना शुरू करते हैं, वह शांत होने लगते हैं। यह शांति ही मन और शरीर को मजबूती प्रदान करती है। ध्यान व्यक्ति को होश जाग्रति प्रदान करता है । ध्यान से काम, क्रोध, मद, लोभ और आसक्ति आदि सभी विकार समाप्त हो जाते हैं। निरंतर साक्षी भाव में रहने से जहां सिद्धियों का जन्म होता है वहीं सिद्धियों में नहीं उलझने वाला व्यक्ति समाधी को प्राप्त लेता है। गहरे ध्यान की समाधि की अवस्थाएं लौकिक पारलौकिक अनुभूति से परे सद चित आनंद सहित  परम अवस्था निर्वाण मोक्ष प्रदान करा सकती है।

ध्यान से ही शांति की निर्विचार अवस्था शून्यता संभव है: ध्यान के नियमित अभ्यास से व्यक्ति को कई अनुभव होते हैं। ध्यान की गहनता से शून्यता अचानक घटती है, शून्य अवस्था नितांत निज अनुभूति का विषय है इसे कोई उत्पन्न नहीं कर सकता।

शून्य अवस्था पाने के लिए अपने अभिरुचि के विषय, पसंदिता कार्य, संगीत, चित्रकला, नृत्य,लेखन,गायन,वादन एवम प्राकृतिक स्थल के भ्रमण, एकांतवास आदि आप कर सकते हैं किंतु  सिर्फ ध्यान योग के नियमित अभ्यास प्रयास से आप शून्य अवस्था अनुभूति अनुभव उपलब्धि स्वरूप कर सकते है। आइए जाने ध्यान शून्यता के कुछ प्रमुख उदाहरण:

अक्सर शून्यता को उपलब्ध व्यक्ति की आवाज भी 
     आपको शून्य कर सकती है। इसे आत्मिक संवाद कह सकते हैं।

यदि किसी प्रिय या आदर्श के प्रति तीव्र उत्कंठा हो तो कभी कभी उन्हें  मात्र देख कर भी शून्यता का अनुभव , निर्विचार होने का अनुभव 
      कर सकता है। यह प्रेम में होता है।

यायावर, घुमंतु प्रकृति प्रेमी बनकर किसी प्राकृतिक द्रश्य जैसे समुद्र , हिमशिखर नदी, झरने को पहली बार देख कर भी कोई व्यक्ति कुछ क्षण को चित्त निर्विचार शून्य हो जाता है। 
 
राग स्मृति के कारण अचानक प्रिय या  उसकी याद आ जाये जो शरीर से मुक्त हो गया था, हमारे साथ रहा था। कितना गहरा संबंध था।
     " कि अब कहाँ होगा!"

किंतु यह सब  शून्यता तो दूसरे पर निर्भर हुई। स्वयं शून्य होने के लिए आध्यात्मिक होना अत्यंत आवश्यक है योग मार्ग का अनुसरण कर ध्यान के प्रयोग कर शून्य की अनुभूति कर सकते हैं।

ध्यान और शून्य अवस्था द्वारा आत्म उत्कर्ष व्यक्तित्व विकास करने की कला सीखें ...


🔸संपर्क🔸
 डा सुरेंद्र सिंह विरहे
 मनोदैहिक आरोग्य आध्यात्मिक स्वास्थ्य विषेशज्ञ एवं लाईफ कोच, स्प्रिचुअल योगा थेरेपिस्ट

स्थापना सदस्य
मध्य प्रदेश मैंटल हैल्थ एलाइंस चोइथराम हॉस्पिटल नर्सिंग कॉलेज इंदौर

निदेशक
दिव्य जीवन समाधान उत्कर्ष
Divine Life Solutions Utkarsh

पूर्व अध्येता
भारतीय दार्शनिक अनुसन्धान परिषद् दिल्ली

"Philosophy of Mind And Consciousness Studies"

Ex. Research Scholar
At: Indian Council of Philosophical Research ICPR
Delhi

utkarshfrom1998@gmail.com

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                                                                            मन

Friday, September 23, 2022

मन की बात जानने की दिव्य विधा टेलीपैथी ( दूरानुभूति ) विकसित करें

 मन की बात जानने की दिव्य विधा

 टेलीपैथी ( दूरानुभूति ) विकसित करें

What Is Telepathy & How to Develop Telepathy –

मनुष्य का जीवन असीम संभावनाओं और वरदानों से भरा हुआ है। हर व्यक्ति में अपार अनूठी खूबियां व्यक्तिगत विशेषताएं विद्यमान हैं।

दुर्भाग्यवश भौतिक विज्ञान तकनीकी संपन्नता के भोगवादी युग में मनुष्य यांत्रिक निर्भरता के कारण नैसर्गिक प्रतिभा,अपनी सुषुप्त शक्ति तथा दिव्य गुणों से परिपूर्ण पहचान को भूला बैठा है। जबकि अदभुत स्मृति, कुशाग्र बुद्धि और विवेकशील चेतना शक्तियों से ओतप्रोत मन मस्तिष्क परम ज्ञानी,विद्वान, ऋषि, मुनियों,साधु संतों तपस्वियों, योगी योगिनियों की समृद्ध परंपरा व आध्यात्मिक सांस्कृतिक विरासत हमारी रही है।

इतिहास इन सभी की असंख्य महान गाथाओं और उपलब्धियों से भरा हुआ है। अनेकों चमत्कारिक कारनामों के उदाहरणों और दिव्य सिद्धियों से इन महापुरुषों ने अपने आप को चरितार्थ किया था।

भारतीय दार्शनिक, पौराणिक ग्रंथ ,उपनिषद् पुराण और योग शास्त्र आदि में इन अदभुत विशिष्ट विधाओं योग साधन व सिद्धियों का विस्तृत वर्णन किया गया है। इन्हीं में से एक अति विशिष्ट मानसिक दक्षता को अतिंद्रिय दिव्य परा दुराअनुभूति संप्रेषण टेलीपैथी कहते हैं।

इसी अनुरूप आधुनिक संदर्भ में जब किसी उपकरण की मदद से लोगों के मन की बात जान लेने की कला को ही टेलीपैथी कहते हैं।

कभी कभी बिना यंत्र तंत्र मंत्र के अकस्मात किसी प्रिय, अप्रिय, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, प्रत्याशित या अप्रत्याशित घटना, विषय, रूप, स्वरूप, विचार ,भावदशा से स्मृति कल्पना आधारित विचारशील प्रतीति अनुभव परा दूरदर्शी आभास अनुभूति जगाता है। सामान्यतः इसी छणिक एहसास को टेलीपैथी समझा जाता है।

किसी की याद आने पर अक्सर हम उससे सम्पर्क संवाद स्थापित कर लेते हैं।

जरूरी नहीं कि हम हर बार किसी से त्वरित संपर्क करें। हम दूर बैठे किसी भी व्यक्ति की याद प्यार बात अपनी छठी अतिंद्रीय शक्ति , जागृत कुण्डलिनी शक्ति, सप्त चक्र भेदन अवस्था या आध्यात्मिक योग सिद्धि के माध्यम से अवश्य सुन सकते हैं, देख सकते हैं और उसकी स्थिति को जान सकते हैं। दिव्य दूर दृष्टि , दूर श्रवण, दूर संदेश, दूर संवाद आदि की विशिष्ट दूरानुभूति उपलब्धि को हर मनुष्य योग साधना द्वारा अर्जित कर सकता है।

टेलीपैथी दूरानुभूति :

वैसे टेलीपैथी शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल 1882 में फैड्रिक डब्लू एच मायर्स ने किया था।  जिस व्यक्ति में सत्यनिष्ठ योग साधना फलीभूत हो जाती है उसमे यह छठी ज्ञान इंद्री जाग्रत होती है वह उच्च स्तरीय चक्र जागृति अवस्था में पहुंच चुका होता है ।सूक्ष्म शरीर की अति इन्द्रिय वशीकरण सिद्धि प्राप्त कर लेता है।

वह फिर जान लेता है कि दूसरों के मन में क्या चल रहा है। दूसरे के मन को पढ़ लेने की क्षमता आ जाती है।दार्शनिक योग मनोदैहिक स्वास्थ्य अनुसंधान के अंतर्गत यह परामनोविज्ञान का विषय है जिसमें टेलीपैथी के कई प्रकार बताए जाते हैं। ‘टेली’ शब्द से ही टेलीफोन, टेलीविजन आदि शब्द बने हैं। ये सभी यांत्रिक स्तर पर दूर के संदेश और चित्र को पकड़ने वाले यंत्र हैं। 

मनुष्य के मन मस्तिष्क में भी इस तरह की क्षमता होती है। कोई व्यक्ति जब किसी के मन की बात जान ले या दूर घट रही घटना को पकड़कर उसका वर्णन यथा संभव कर दे तो उसे पारेंद्रिय ज्ञान से संपन्न व्यक्ति कहा जाता है। भारतवर्ष में महाभारतकाल में संजय के पास यह परा दूरदर्शी क्षमता थी। उन्होंने दूर चल रहे युद्ध का वर्णन व्रतांत धृतराष्ट्र को कह सुनाया था।

दूराअनुभूति: टेलीपैथी विकसित करने के मुख्य तीन तरीके हैं

1. ध्यान की नियमितता

2. योग अभ्यास संयम साधना

3. आधुनिक वैज्ञानिक सूचना प्रौद्योगिकी साधन तकनीक के सदुपयोग द्वारा 

ध्यान की नियमितता: जब लगातार ध्यान करते रहने से साधक का मन स्थिर होने लगता है। मन के स्थिर और शांति होने से जब एकाग्रता बढ़ती है तब साक्षीभाव आने लगता है। इस तरह  सूक्ष्मता से संवेदनशीलता की अवस्था  टेलीपैथी के लिए जरूरी होती है। सजगता से केंदित रहने वाला ध्यान करने वाला व्यक्ति अति इन्द्रिय ज्ञान अर्जित कर किसी के भी मन की बात समझ सकता है। कितने ही दूर बैठे व्यक्ति की स्थिति और बातचीत का वर्णन कर सकता है।

योग अभ्यास संयम साधना:योग की सिद्धि अभ्युदय यानि मनोरथों की प्राप्ति संभव बनाती है। योग में चित्त शक्ति मन: शक्ति योग के द्वारा छठी इंद्री इस दूरा अनुभूति शक्ति हो हासिल किया जा सकता है।

योग चेतनायुक्त ज्ञान की स्थिति में संयम होने पर दूसरे के मन का ज्ञान होता है। यदि मन शांत है तो दूसरे के मन का हाल जानने की शक्ति हासिल हो जाएगी। योग में ध्यान के अलावा त्राटक विद्या, प्राण विद्या के माध्यम से भी आप यह विद्या सीख सकते हैं। अष्टांगिक योग साधना के नियमित अभ्यास से व्यक्ति आरोग्यता सहित यश कीर्ति वैभव अर्जित कर लेता है।

3. आधुनिक वैज्ञानिक सूचना प्रौद्योगिकी साधन तकनीक के सदुपयोग द्वारा : आधुनिक वैज्ञानिक सूचना संचार प्रौद्योगिकी साधन तकनीक के सदुपयोग द्वारा विविध माध्यमों व तरीके के अनुसार जब हम ध्यान से देखने और सुनने की क्षमता बढ़ाएंगे तो सामने वाले के मन की आवाज भी सुनाई देगी। इसके लिए नियमित अभ्यास की आवश्यकता है।

इसके अतरिक्त सम्मोहन के माध्यम से भी अपने चेतन मन को सुलाकर अवचेतन मन को जाग्रत किया जा सकता है। मन की चंचलता को योग ध्यान के अभ्यास से वशीभूत किया जा सकता है।

चेतन मन की अवस्था: इसे जाग्रत मन भी मान सकते हैं। चेतन मन में रहकर ही हम दैनिक कामों को निपटाते हैं यानी खुली आंखों से हम काम करते हैं। विज्ञान के अनुसार दिमाग का वह भाग जिसमें होने वाली क्रियाओं की जानकारी हमें होती है उसे ही चेतनशील मन कहते हैं।

अवचेतन मन की अवस्था: यथार्थ से विपरीत कल्पनाशील मन । जो मन सपने देख रहा है वह अवचेतन मन है। इसे अर्धचेतन मन भी कहते हैं। गहरी सुसुप्ति अवस्था में भी यह मन जाग्रत रहता है। विज्ञान के अनुसार जाग्रत दिमाग के परे दिमाग का एक और हिस्सा अवचेतन मन होता है।

 छठी इंद्री दूराअनुभूति मन की बात जानने की दिव्य विधा टेलीपैथी ( दूरानुभूति ) ध्यान योग के द्वारा विकसित करें ।

डा सुरेंद्र सिंह विरहे

मनोदेहिक आरोग्य आध्यात्मिक स्वास्थ्य विषेशज्ञ

उप निदेशक मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी संस्कृति परिषद् संस्कृति विभाग मध्य प्रदेश शासन भोपाल

शोध समन्वयक

आध्यात्मिक नैतिक मूल्य शिक्षा शोध

धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग मध्य प्रदेश शासन भोपाल

स्थापना सदस्य :मध्य प्रदेश मैंटल हैल्थ एलाइंस चोइथराम हॉस्पिटल नर्सिंग कॉलेज इन्दौर

पूर्व अध्येता: भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् मानव संसाधन विकास मंत्रालय दिल्ली

utkarshfrom1998@gmail.com

9826042177,8989832149


Wednesday, September 21, 2022

आकर्षण प्रभाव कला और आत्म सम्मोहन सीखें अपने जीवन को सफल व सुंदर बनाएँ !!!

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 🔸भयभीत बने रहना।परीक्षा, इंटरव्ह्यू, सेमिनार, भाषण का डर ?

 🔸अलगाव होना।अंतरंगता का अभाव। रिश्तों में तनाव एवं प्रेम की कमी ?

 🔸अवसाद से उबर नहीं पाना।डिप्रेशन, स्ट्रेस, टेन्शन, चिंता ?

 🔸 क्लेश,घर में अशांति, जिविका,नौकरी, काम धंधों तथा व्यापार में असफलता ?


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  डा सुरेंद्र सिंह विरहे

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आत्मबल से आप असंभव को संभव बना सकते हैं।जीवन में अभूतपूर्व बड़ी सफलता पा सकते हैं

आत्मबल से आप असंभव को संभव बना सकते हैं। जीवन में अभूतपूर्व बड़ी सफलता पा सकते हैं ...

मनुष्य के अंदर असीमित शक्तियां छिपी हुई हैं। आत्मिक शांति अर्थात आत्मबल की महान उपलब्धियों से इतिहास भरा पड़ा है।

जब व्यक्ति अपने जीवन में संकल्प सिद्धि के लगातार प्रयास एवम नियमित ध्यान योग साधना अभ्यास करता है तो अपने लक्ष्य व ध्येय को अवश्य प्राप्त कर लेता है।

आध्यात्मिकता के लिए योग मार्ग का अनुसरण करता है तो वह मानव से महामानव देव मानव दिव्य मानव बनकर परम शान्ति, सत चित आनंद की अनुभूति अर्जित कर सकता है।

इसके विपरीत यदि कोई व्यक्ति अपना आत्मबल खोने लगता हैं तो धीरे-धीरे हीनभावना का शिकार होने लगता है। प्रतिकूल परिस्थितियों के विकट दुखद अनुभव , अप्रत्याशित दुर्घटना के आघात, कुकर्मों ,बुरे आचरण, कपटी व्यवहार आदि के फलस्वरूप मनुष्य की आत्म शक्ति कमजोर कलुषित हो जाती है।

जीवन में कई ऐसे हालात आते हैं, जब हम खुद को अशक्त पाते हैं और यह दुनिया हमें दुश्मन व खतरनाक होती प्रतीत लगती है। अप्रत्याशित घटनाओं, पूर्वजन्मों के कर्मदंड, इन विषम हालातों पर नियंत्रण, प्रभावों को कम करना और इन सब से जुड़ी बुरी खबरों इनके असर आदि को रोक पाना हमारे बस की बात नहीं है। लेकिन विचलित दशा में भी तनाव, खतरे की आशंका और हालातों पर नियंत्रण न रख पाने की बेबसी के चलते खोए हुए आत्मबल को हम जरूर वापस हासिल कर सकते हैं। 

वास्तव में जीवन के कठिन हालातों से बेबस इंसान चिंता अवसाद डिप्रेशन और बेचैनी का शिकार हो जाता है। दुर्भाग्य है कि आज का असंंवेदना युक्त समाज आपधापी में संलिप्त स्वार्थांध रिश्तेें व्यक्ति के आत्म बल को छीन लेेते हैं। उसमे आत्म हीनता की भावना भर देते है।उसकी मनोदशा बिगाड़ देते हैं।

वास्तव में स्थायी आत्मबल कैसे प्राप्त कर सकते है?

वैसे भी आत्मबल एक असामान्य असाधरण दक्षता है यह बल चरित्र व्यक्तित्व एवम संस्कारों की पृष्ठभूमि से पोषित होता है।

यह बल धन संपत्ति रुपया,दर्जा, रुतबा, स्तर, स्टेटस, पहुंच, ऐशोआराम या और कोई भौतिक चीज नहीं है। रुपये-पैसे के ढेर पर बैठे कई लोग औसत आदमी से कम आत्मबल वाले नजर आते हैं।

 दरअसल आत्मबल आपको आपके अंदर से ही स्व की पहचान करने से, आपके अस्तित्व से ही हासिल होता है। आत्मिक शुद्धता के भाव विचार,सकारत्मकता और सात्विकता से आत्मबल स्थायित्व प्राप्त करता है।

निज आत्मबल को कभी विस्मृत न होने दें अपने स्वाभिमान को बनाएं रखें ।

अक्सर लोग अपनी शक्ति को खोकर ज्यादा खुश भी नजर आते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि अपने बल स्वाभिमान को भुलाकर वह हल्के, ज्यादा लोकप्रिय, स्वीकार्य तथा सुरक्षित हो जाएंगे। 

 सच मानें तो ,लोगों को खुश करने के चक्कर में आप अपनी असली ताकत को भुला देते हैं या फिर भीड़ की राय को मानने लग जाते हैं या फिर किसी ज्यादा ताकतवर को आप अपने ऊपर नियंत्रण करने देते हैं। कई बार ये बातें सही लगती हैं, जैसे भीड़ में सबसे पीछे शांत रहना, स्वीकार्य राय को मान लेना, बच्चों के लिए जीना या फिर जीवन में शांति बनाए रखने के लिए दूसरों को खुद पर हुक्म चलाने की अनुमति देना। पर बारंबार और लंबे समय तक ये छोटे-बड़े फैसले आपकी नजर में खुद की अहमियत खत्म कर देते हैं। और जब अपनी नजरों से ही आपकी अहमियत खत्म हो जाएगी तो फिर नि:शक्त होने की भावना से आप पार कैसे पा सकेंगे? 

सुषुप्त शक्तियों को जागृत करें:

व्यक्ति को अपने अनुकूल अथवा प्रतिकूल हालात की सतत जांच पड़ताल करनी चाहिए। अपनी गरिमा को हस्ती को बनाएं रखें। क्योंकि आप जब खुद को यह समझा लेते हैं कि आपकी गिनती कहीं नहीं होती और यह आपके भाग्य का हिस्सा है तो आप अपने आत्मबल को दम तोड़ने देते हैं। आप किसी धार्मिक या आध्यात्मिक कारण से ऐसा करते हैं तो यह ठीक कदम होगा, लेकिन तब क्या, जब ऐसा कोई उदात्त कारण न हो और आप खुद को हीन मान रहे हों? अपने को विवश कभी न होने दें

अपनी मनोदैहिक आरोग्यता एवं आध्यात्मिक स्वास्थ्य ऊर्जा अर्जित करें।

जब हम लगातार चिंताग्रस्त रहने लगते हैं तो उससे मन की शक्ति कमजोर हो जाती है दिमाग निरंतर अपनी ऊर्जा खोता रहता है। ऐसे में मन पलायन को अपना लेता है वह वास्तविकता को नजरअंदाज कर कल्पनालोक के खतरों में आपको उलझाए रखता है। इस कुटिल शिथिल मन के शिकार व्यक्ति अपनी दुर्दशा के लिए कई तरह के बहाने भी खोज लेते हैं। अपमान सहन कर लेते हैं गाली देने वाले को माफ कर देते हैं, क्योंकि आध्यात्मिक रूप से माफ करना श्रेष्ठकर है। 

वास्तव में गलत आदतों को सहना या स्वीकार कर लेना भी इसी पलायनवादिता का हिस्सा है। पर गौर से देखें तो आत्मबल के इस हनन के शिकार लोग खुद इसके जिम्मेदार होते हैं। खुद ऐसे लोगों के प्रति आकर्षित होते जाते हैं, जिनसे मिलकर खुद को बेचारा महसूस करने लगते हैं। ऐसे लोग आपकी ऊर्जा को निरंतर खत्म करते रहते हैं। ऐसे लोगों से निजात पाने के लिए सबसे पहले आपको खुद यह पता करना होगा कि क्या आप यह स्वेच्छा से कर रहे हैं या नहीं।

अतः इस दयनीय स्थिति से निपटने के लिए अपनी स्वाभाविक मूल प्रवृत्तियों का अनुसरण करें। अपनी अंतरात्मा की आवाज को सुनिए।

अपने व्यक्तित्व विकास और स्वप्न संकल्पों को साकार करने पर ध्यान केंद्रित करें:

गौर करें कि, सिर्फ इंसान ही ऐसा प्राणी है, जो खुद ब खुद परिपक्व मेच्योर नहीं होता। चूजे को बड़े होकर मुर्गा ही बनना है, लेकिन दुनिया तमाम ऐसे लोगों से भरी पड़ी है, जो अब भी बचपने में जी रहे हैं, बेशक वे कितने ही बड़े क्यों न हो जाएं। हमारे लिए परिपक्व मेच्योर होना एक निर्णय है, वयस्क होना एक उपलब्धि है, जो व्यतित्व की बुलंदी यानि आत्मबल को हासिल करने का एक जरिया है। इसे पाने में दशकों लग सकते हैं, लेकिन इसकी शुरुआत तभी होगी, जब आप खुद को पहचानते हैं। 

स्वयं की योग्यता दक्षता को जानना अत्यंत आवश्यक है यह आत्मबल कुछ और नहीं, आप ही का हिस्सा है, जो वास्तविकता से जुड़ा है। आत्मबल ही आपकी असली पहचान है। आपके उसी अनुभव का केंद्र, जो आप खुद तैयार करते हैं। यह स्थिति पाने के लिए आपको अपनी कहानी का लेखक खुद ही बनना होगा। अपनी निज दृष्टि से खुद की सृष्टि रचना होगी।


लक्ष्य केंद्रित करें कीर्ति यश प्राप्ति सुनिश्चित होगी:

एक बार जब आप अपने लक्ष्य को तय कर लेंगे तब आपकी राह खुद ब खुद आसान होने लगेगी। शुरू-शुरू में आपको अटपटा लगेगा, लेकिन आप इसे महसूस करने लगेंगे। फिर धीरे-धीरे आप सहज महसूस करने लगेंगे। ऐसे में हम खुद के लिए ज्यादा इच्छाएं रखने लगेंगे। हम अपने सकारात्मक और सशक्त उत्थान के लिए खुद रास्ते बनाने लगेंगे। 

हमारे देश में धर्म व अधर्म का बड़ा महत्व है। धर्म में वह शामिल है, जो नैसर्गिक है, जैसे खुशी, सत्य, कर्तव्य, चमत्कार, पूजा, प्रोत्साहन, अहिंसा, प्रेम, आत्मसम्मान। वहीं दूसरी तरफ अधर्म में ऐसी पसंद है, जो जीवन का नैसर्गिक रूप से समर्थन नहीं करती, जैसे क्रोध, हिंसा, भय, नियंत्रण, अनैतिक कार्य, पूर्वाग्रह, लत, असहिष्णुता आदि। हमारे लिए स्वधर्म का मार्ग सबसे बेहतर है ! लक्ष्य केंद्रित ध्येय संकल्पित जीवन से यश कीर्ति की प्राप्ति संभव होती है।

अपने जीवन में उच्च प्रेरणा व महत्वाकांक्षा बनाएं अपनी नैसर्गिक प्रतिभा को पहचान कर रचनात्मक कार्यों में रुचि एवं तत्परता का परिचय दें।

याद रखें कि,जीवन की वास्तविकता को पहचाने बिना कुछ भी हासिल नहीं होगा। कुछ क्षणों के लिए धर्म और ईश्वर के किसी भी संदर्भ को किनारे कर दें। सौभाग्य से सचेत नजर पाने के लिए उस खास जागरूकता से जुड़ना होगा, जो जीवन में उत्थान, रचनात्मकता और बौद्धिकता को बढ़ावा देती है। ये गुण ऐसे नहीं हैं, जो किसी भाग्यशाली को अचानक या विरासत में प्राप्त होते हैं। इन गुणों को हासिल करने के लिए रचनात्मकता, बौद्धिकता, प्रेम और करुणा के अलावा कर्मयोगी बनने के मार्ग को अपनाना चाहिए। इस तरह आप आत्मबल से  असंभव को संभव बना सकते हैं। जीवन में अभूतपूर्व बड़ी सफलता पा सकते हैं ...

 -परामर्श- थेरेपी सुविधा उपलब्ध है .. जीवन लक्ष्य प्राप्ति ,जीवन परामर्श पायें जीवन में सफलता पायें साथ ही स्वास्थ्य आनंद व समृद्धि अर्जित करें ..

डा सुरेंद्र सिंह विरहे

मनोदेहिक आरोग्य आध्यात्मिक स्वास्थ्य विषेशज्ञ

संस्थापक निदेशक

दिव्य जीवन समाधान Divine Life Solutions

उप निदेशक मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी संस्कृति परिषद् संस्कृति विभाग मध्य प्रदेश शासन भोपाल

शोध समन्वयक

आध्यात्मिक नैतिक मूल्य शिक्षा शोध

धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग मध्य प्रदेश शासन भोपाल

utkarshfrom1998@gmail.com

9826042177,8989832149





Monday, September 19, 2022

आध्यात्मिक स्वास्थ्य योग विज्ञान द्वारा जीवन में उत्कर्ष की प्राप्ति संभव है

आध्यात्मिक स्वास्थ्य योग विज्ञान द्वारा 

जीवन में उत्कर्ष की प्राप्ति संभव है

स्वास्थ्य एवं जीवन यापन की दृष्टि से श्रेष्ठ उच्च स्तरीय जीवन की अभिलाषा करना सात्विक प्रवत्ति के विवेकशील मनुष्यों का लक्ष्य होता है। 

वास्तव में ऐसे प्रज्ञावान आत्म-साधकों का जीवन प्राणी मात्र के प्रति करुणा, दया और अनुकम्पा, ‘‘सर्व जीव हिताय, सर्व जीव सुखाय’’ की लोकोक्ति को सार्थक करने का होता है। उनके कर्म  और साधना का मूल उद्देष्य आत्मा को निर्मल, शुद्ध, पवित्र बनाना होता है। अर्थात् आत्म-पोषण का होता है। 

आत्मिक शांति पाने की प्रबल कामना बिरले ही लोगों में होती है।भले ही उन्हें कभी-कभी उसके लिए शरीर को कितना ही कष्ट ही क्यों न देना पड़े? उनके जीवन में क्रोध, मान, माया, लोभरुपी कषायों की मन्दता होने से वे अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों में परेशान नहीं होते। उनमें प्रायः मानसिक आवेग नहीं आते जो हमारे शरीर में अन्तःस्रावी ग्रन्थियों को प्रभावित कर रोग का मुख्य कारण होते हैं।

 तितिक्षा सिद्ध ऐसे व्यक्ति सहनशील, सहिष्णु निर्भीक, और धैर्यवान होते है। वाणी में विवेक और मधुरता का सदैव ख्याल रखते हैं। उनका उद्देष्य होता है जीवन में चिरस्थायी आनन्द, शक्ति एवं स्वाधीनता की प्राप्ति कैसे सुनिश्चित की जाए। 

ऐसे साधक व्यक्ति स्वयं के द्वारा स्वयं से अनुशासित होते हैं। उनका जीवन शान्त, सन्तोषी, संयमी, सहज, संतुलित एवं सरल होता है। विचारों में अनेकान्तता, भावों में मैत्री, करूणा, प्रमोद तथा मध्यस्थता अर्थात् सहजता, स्वदोष-दृष्टि, सजगता, सहनशीलता, सहिष्णुता, दया, सरलता, सत्य, विवेक, संयम, नैतिकता आदि गुणों का प्रादुर्भाव सहज परिलक्षित होता है। जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति के जीवन में अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों में प्रायः समभाव, निस्पृहता, अनासक्ति विकसित होती है।तब व्यक्ति निर्भय, तनाव मुक्त बन जाता है। वाणी में सत्य के प्रति निष्ठा, सभी जीवों के प्रति दया, करूणा, मैत्री, परोपकार जैसी भावना और मधुरता प्रतिध्वनित होने लगती है। व्यक्ति का मनोबल और आत्मबल विकसित होने लगता है। व्यक्ति स्वावलम्बी, स्वाधीन बनने लगता है। अर्थात् स्थितप्रज्ञता की ओर अभिमुख हो ऐसा विशिष्ट साधक अभ्युदय यानि मनोरथों को सिद्ध कर लेता है।

वस्तुतः भारत की जीवन पद्धति के मूल में अध्यात्म है| अध्यात्म का अर्थ है आत्मनि "अधि "अर्थात अपने भीतर| मानव शरीर के अंदर की जो भी भाव स्थितियां हैं वह "अध्यात्म" है| 

मानव शरीर में दो प्रकार की भाव स्थितियां होती हैं-काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर लेकिन उसके विपरीत गुणों के रुप में शांति, करुणा, दया, त्याग, प्रेम, सहिष्णुता सहयोग की भावना भी मानव के स्वभाव का दूसरा महत्त्वपूर्ण पहलू है| जब कोई मनुष्य काम, क्रोध, लोभ, मोह, अंहकार से ग्रस्त होकर कोई कार्य करता है तो वह आध्यात्मिक ताप होता है, जिसकी परिणति दु:ख तथा निराशा में होती है, किन्तु जब कभी मनुष्य में करुणा, दया, त्याग की भावना जागृत होती है और उससे प्रेरित होकर जब वह कोई कार्य करता है, तो उससे जो आनंद या प्रसन्नता मिलती है, वह आध्यात्मिक सुख कहलाता है|यह अवस्था आत्मिक शांति की अनुभूति की होती है।

इस तरह भारतीय चिंतकों तथा वैदिक ऋषियों ने मानव जीवन को सुखी और शांतिपूर्ण बनाए रखने के लिए सदैव आध्यात्मिक स्तर पर मनुष्य की चेतना को विकसित करने का अभिनव प्रयास किया है| जीवन में हर मनुष्य आध्यात्मिक ताप से सदैव मुक्त रहे और आध्यात्मिक दृष्टि से अर्थात आंतरिक रुप से मनुष्य सदैव नि:श्रेयस भाव से अपने अभ्युदय के मार्ग पर चले, यही भारतीय संस्कृति और जीवन दर्शन का मूल आधार रहा है| यही कारण है कि भारतीय मनीषा में सदैव मानव के आध्यात्मिक उत्कर्ष को सबसे अधिक महत्व दिया गया है|

अध्यात्म की अभीप्सा जगाना स्वयं के रूपांतरण की शुरुआत होती है।

‘‘अध्यात्म का गंतत्य एवं मंतत्य है, शुद्ध चेतना में अवगाहन तथा सत्य का साक्षात्कार|’’ शुद्ध चेतना में अवगाहन का उद्देश्य है अपने ‘स्व’ में प्रतिष्ठित होना, तभी तो प्राचीन ऋषि कहता है ‘आत्मान विद्धि’ स्वयं को जानो| यह स्वयंं को जानना, जीवन के मूल सत्व में, स्नोत में प्रतिष्ठित होना है| स्वयं के साथ मित्रता करके सत्य का साक्षात्कार किया जा सकता है| हमारे जितने भी धार्मिक ग्रंथ हैं, उन सभी के मूल में व्यक्ति के आध्यात्मिक उत्कर्ष की ही कामना को दर्शाया गया है, चाहे वह श्रीमद् भागवत हो, या रामायण हो या फिर महाभारत का विशाल ग्रंथ ही क्यों न हो| इन ग्रंथों में जितने भी कथानक हैं, उन सभी का अंतिम संदेश यही है कि मानव स्वयं को जाने और फिर जैसा स्वयं के प्रति दूसरों से व्यवहार की कामना करता है, वैसा ही व्यवहार वह दूसरों से करें| यही दिव्य  आध्यात्मिक दृष्टि है| मानव का प्रकृति और सृष्टि के साथ तादात्म्य तथा उसके साथ मित्रतापूर्ण व्यवहार ही अध्यात्म का अभीष्ट है|

उदाहरण के लिए वैदिक ऋषि का आहवान है :

"मित्रस्त्र मा चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीशन्ताम

मित्रस्याहं चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षे"

सम्पूर्ण प्राणीमात्र मुझ से मित्र भाव रखें, तथापि मेरा भी यही कर्तव्य है कि मैं भी सम्पूर्ण सृष्टि तथा प्रकृति के प्रति मित्रता का भाव रखूं| यह भाव सदैव व्यक्ति के चरित्र और व्यवहार में बना रहें, यही आध्यात्म है| इसी भाव को हमारे सभी धर्म ग्रंथों में बड़े ही अच्छे ढंग से विभिन्न आख्यानों और कथाओं के माध्यम से बारंबार समझाने का प्रयत्न किया गया है, जिससे आध्यात्मिक विकार और ताप का शमन हो और चित्त निष्कपट, सरल और विशुद्ध होकर सबके कल्याण के लिए प्रवृत्त हो, यही धर्म है|

 श्रीमद् भागवत में महर्षि वेदव्यास ने यही बात कही है-

धर्म:- प्रोज्झितकतवो त्र परमो निर्मत्सराणां सताम

इसी आध्यात्मिक भाव को कठोपनिषद के ऋषि ने कहा है कि जो व्यक्ति शरीर, मन और बुद्धि से अपने अस्तित्व को जान लेता है और अपने स्व में प्रतिष्ठित हो जाता है तो उसे विशुद्ध आत्मानंद की अनुभूति होती है और वह आनंद शाश्‍वत होता है-

एक वशी सर्वमूतान्तरात्मा, एक रुप बहुदा य : करोति

तमात्म स्थं ये नुपश्यन्ति घारी:, तेषा सुख शाश्‍वंत नेत रेषाम

अर्थात् मानव के के अंत:करण की सभी प्रवृतियां निरंतर साधना एवं अभ्यास से जब विराट के साथ एकाकार होने के लिए प्रयत्न करती हैं, उससे प्रसूत आनंद ही अध्यात्म है|

अतः भारतीय जीवन शैली अपने शुद्ध रूप में मूलतः आध्यात्मिक ही है| उसका प्रत्येक तत्व व पहलू अध्यात्म से भाविक है और सृजित है और उसका लक्ष्य एक ही है सत्य का साक्षात्कार और स्वयं में सत्य का अविष्कार जिसे महापुरुषों ने विद्वानों ने, अपनी-अपनी दृष्टि से परिभाषित किया है और जानने की कोशिश भी की है|अतः आध्यात्मिक स्वास्थ्य विज्ञान तथा योग द्वारा जीवन में उत्कर्ष की प्राप्ति संभव है।

भारतीय वैदिक वाङ्मय तथा संस्कृति इस सनातन आध्यात्मिक चेतना को एक नए दृष्टिबोध के साथ उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी भारत के राष्ट्र निर्माताओं और दार्शनिकों जिनमें स्वामी विवेकानंद, योगी श्री अरविंद, आचार्य श्री राम शर्मा ,महात्मा गांधीजी, विनोबा भावे आदि प्रमुख हैं, ने प्रस्तुत किया है।

डा सुरेंद्र सिंह विरहे

मनोदेहिक आरोग्य आध्यात्मिक स्वास्थ्य विषेशज्ञ

उप निदेशक मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी संस्कृति परिषद् संस्कृति विभाग मध्य प्रदेश शासन भोपाल

शोध समन्वयक

आध्यात्मिक नैतिक मूल्य शिक्षा शोध

धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग मध्य प्रदेश शासन भोपाल

utkarshfrom1998@gmail.com

9826042177,8989832149


Sunday, September 18, 2022

परामर्श लाईफ कोचिंग लेकर अपनी समस्याओं दुःख संताप तनाव रोग आदि से छूटकारा पा सकते हैं!

परामर्श लाईफ कोचिंग लेकर अपनी समस्याओं दुःख संताप तनाव रोग आदि से छूटकारा पा सकते हैं! 

आज की भागम भाग भरी जिंदगी में हर तीसरा इंसान असंतुष्ट, अधीर,असमंजस और अकेलेपन में जी रहा है।

किसी को व्यापार में हानि हो रही है।किसी का कर्ज नहीं चूक पा रहा है।कोई प्यार में असफल हो रहा है।किसी के निजी रिश्तों में तनाव है तो कोई आपसी संबंधों में टुटन व अलगाव का सामना कर रहा है।

 युवा पीढ़ी भविष्य को लेकर चिंतित हैं बेरोजगारी और अवसाद की मार से उनमें आत्महत्या की सोच बढ़ती जा रही है।समाज में व्यसन शराब, नशीले पदार्थों का सेवन तेजी से बढ़ता चला जा रहा है।परिणामस्वरूप सामाजिक बुराइयां ,अपराध , चोरी और भ्रष्टाचार भी पनपने लगे हैं। इन सब विषम परिस्थितियों के चलते नकरात्मकता और उदासीनता का वातावरण फैल रहा है।जिसके कारण मानसिक रोग बढ़ते चले जा रहे हैं।

उपरोक्त सभी विकट समस्याओं, पहलूओं एवं विषयों पर गम्भीरतापूर्वक चिंतन मनन करने की आवश्यकता है।

स्वस्थ, सामंजस्यपूर्ण,संयम,संबल,समाधान, सफलता और सकारात्मकतायुक्त नए विकल्प , नए विचार, नए सुधार,नए प्रयास अपनाने होंगे। इस हेतु विद्वान विशेषज्ञ विषय जानकर अनुभवी महानुभवों से मार्गदर्शन विमर्श परामर्श लेना ही समझदारी होगी।

परामर्श काउंसलिंग की जरूरत न सिर्फ परेशानी में, बल्कि जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए खुद को तैयार करने के दौरान भी पड़ती है। आने वाले समय में इसका दायरा महत्व और भी तेजी से बढेगा।

हम देख रहें हैं कि जीवन में जटिलताएं निरंतर बढ़ती जा रही हैं। इसके अलावा पहले की अपेक्षा समुचित विकल्प बढ़ने से लोगों को असमंजस की स्थिति का पहले से ज्यादा सामना करना पड़ रहा है। ऐसी स्थिति में लोगों की दिनचर्या तो प्रभावित हो ही रही है, इसका प्रतिकूल प्रभाव उनके भविष्य पर पड़ रहा है। इसके अलावा भी कई ऐसी परेशानियां हैं, जो अंदर ही अंदर लोगों को खाए जा रही है और उनका जिक्र लोग घर में या अभिभावकों से नहीं करना चाहते। ऐसे में किसी ऐसे दक्ष एक्सपर्ट की जरूरत महसूस की जाती है, जो न सिर्फ इन समस्याओं से मुक्ति दिला सके, बल्कि आगे की राह भी दिखा सके। जीवन समाधान मनोदैहिक आरोग्य स्वास्थ  विशेषज्ञ आध्यात्मिक योग चिकित्सक परामर्शदाता काउंसलर उनकी जरूरत को काफी हद तक पूरा करने की क्षमता रखते हैं।

 निम्नलिखित क्षेत्रों और विषयों में आप परामर्श लेकर अपनी समस्याओं दुःख संताप तनाव रोग आदि से छूटकारा पा सकते हैं: 

करियर : ऐसे विशेषज्ञ छात्र-छात्राओं के शैक्षणीक एकेडमिक, एग्जाम तथा करियर से जुड़ी समस्याओं का समाधान करते हैं।

विवाह/मैरिज - युवा पीढ़ी पहले की अपेक्षा ज्यादा मुखर हुई है। वे शादी से पहले यह जानने की पूरी कोशिश करती हैं कि भविष्य में उनका पार्टनर से बेहतर तालमेल रहेगा या नहीं। इसके अलावा जीवन के किसी बिन्दु पर यदि दोनों के बीच दो राय है तो वे मैरिज काउंसलर की मदद लेते हैं।

आपसी रिश्तों में तालमेल/ रिलेशनशिप - कोई भी रिश्ता तभी आसानी से निभता है, जब दोनों के बीच समन्वय हो। तालमेल जब गड़बड़ाता है तो रिश्ता दरकने लगता है। ऐसे में उन्हें एक ऐसे दक्ष एक्सपर्ट की जरूरत पड़ती है जो इस खाई को पाट कर रिश्ते को पुनर्जिवित कर सके। यह काम रिलेशनशिप काउंसलर करते हैं।

मनोवैज्ञानिक साइकोलॉजिस्ट योग थेरेपिस्ट स्प्रिचुअल लाइफ कोच/ काउंसलर- अत्यधिक कामकाज या भागमभाग के चलते लोगों की दिनचर्या प्रभावित हो रही है। साथ ही प्रतिस्पर्धा के चलते अपेक्षित परिणाम न मिलने पर लोगों पर अवसाद हावी होता जा रहा है। ऐसे मामलों में मनोदैहिक आरोग्य विशेषज्ञ साइकोलॉजिस्ट काफी मददगार साबित होते हैं।

पुनर्वास केंद्र के योग थेरेपिस्ट/ काउंसलर- जन्म के समय अशक्त, बीमार अथवा किसी दुर्घटना के कारण प्रभावित हुए लोगों नशे की लत से जूझ रहे लोगों मानसिक रोगियों की देखभाल कठिन प्रक्रिया है। यह काम रिहैबिलिटेशन काउंसलर काफी तल्लीनता के साथ करते हैं। वे प्रभावित लोगों को उनकी मनोदशा से बाहर निकालते हैं।


बिहैवियरल काउंसलर- कई बार किसी घटना अथवा परिस्थिति के चलते लोगों को उसका सामना करने में परेशानी होती है। कुछ लोगों के साथ यह जन्मजात दिक्कत होती है। ऐसे में उन्हें बिहैवियरल काउंसलर की जरूरत पड़ती है, ताकि उनके व्यवहार में परिवर्तन आ सके।

चाइल्ड काउंसलर- बच्चों को जानने अथवा उन्हें भली भांति समझने के लिए भी कई तरह की काउंसलिंग की जरूरत पड़ती है। चाइल्ड काउंसलर बच्चों की हरकतों को परख कर उनके बारे में सहज ही अंदाजा लगा लेते हैं कि उनकी आगे चलकर किसमें रुचि होगी। मानसिक ,शारीरिक ,आध्यात्मिक एवं आर्थिक रूप से सेहतमंद बनने के लिए, आप हमसे संपर्क करें -

डा सुरेंद्र सिंह विरहे

मनोदैहिक आरोग्य एवं आध्यात्मिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ

 लाईफ कोच थेरेपिस्ट 

Dr Surendra Singh Virhe 

Ex.Junior Research Fellow (JRF)

(Philosophy of Mind And Counciosnes Studies Ressearcher expert)

at Indian Council of Philosophical Research,

New Delhi

Spiritual Yoga Therapist & Health Wellness Life Coach

Healing Psychosomatic Health Research 

Founder Member Madhya Pradesh Mental Health Alliance Organisation

Indore 9826 042177,8989832149

Divine Life Solutions

 Utkarsh Sansthan


सावधान! नींद डिस्टर्ब हो रही है तो संभल जाएं, हो सकता है ये गंभीर रोग! इन्सोमनिया-नींद न आना

सावधान! नींद डिस्टर्ब हो रही है तो संभल जाएं, हो सकता है ये गंभीर रोग! इन्सोमनिया-नींद न आना

आज सूचना संचार क्रांति व डिजिटल मीडिया उन्नत प्रौद्योगिकी तकनीकी संपन्नता के इस दौर में  वैश्विक आबादी का एक बड़ा भाग मानसिक रुग्णता सहित इन्सोमनिया या अनिद्रा की समस्या से ग्रस्त है। भारत में यह समस्या अत्यधिक गंभीर है। महानगरों के 50 प्रतिशत लोग पूरी नींद नहीं ले पाते। मनोदैहिक स्वास्थ्य अनुसंधानकर्ताओं का दावा है कि अनिद्रा करीब 86 प्रतिशत बीमारियों का कारण है जिनमें अवसाद सबसे प्रमुख है। जानिए क्या है-

अनिद्रा क्या है? इन्सोमनिया या अनिद्रा एक स्लीप डिसआॅर्डर है, जिसमें नींद लगने या उतनी देर तक सोने में समस्या आती है, जितनी देर आप सोना चाहें। पर्याप्त नींद न ले पाने के कारण शरीर शिथिल हो जाता है।शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। अनिंद्रा एक घातक रूग्णता है।

 यह किसी भी उम्र में हो सकती है। यह दो प्रकार का होता है अल्पावधि शार्ट टर्म (तीन सप्ताह तक) या दीर्घावधि लांग टर्म (तीन सप्ताह से अधिक)।

अनिद्रा के चार प्रकार पैटर्न हैं- नींद आने में समस्या, रात में कभी भी नींद खुल जाना और दोबारा न आना, सुबह उठने के बाद फ्रेश अनुभव न करना, दिन में नींद आना, उत्तेजना या चिड़चिड़ापन। 

पर्याप्त नींद क्या है? ‘पर्याप्त नींद’ वह है जब आप अगले दिन तरोताजा और चुस्त अनुभव करते हैं। अधिकतर वयस्कों के लिए यह मात्रा 6-8 घंटे होती है, लेकिन बहुत से लोगों के लिए यह 9-10 घंटे होती है। कुछ के लिए यह मात्रा छह घंटे या उससे भी कम होती है। जो लोग अक्सर नियमित रूप से 6-8 घंटे की नींद लेते हैं उनका स्वास्थ्य बेहतर रहता है। नींद दो प्रकार की होती है गहरी नींद, जिसमें अगर व्यक्ति पांच घंटे भी सो जाता है तो शरीर को आराम मिल जाता है। दूसरी कच्ची नींद, ये भले ही आठ घंटे की हो तो भी शरीर को आराम नहीं मिलता और दिन भर थकान और सुस्ती बनी रहती है जैसे कि व्यक्ति बीमार हो गया हो।

नींद की कमी से स्वास्थय पर बुरा असर : आज कम से कम 60 प्रतिशत लोग सप्ताह में कईं रातें पूरी नींद नहीं ले पाते हैं। कम सोने से जीवनकाल तुलनात्मक रूप से घट जाता है। अनिद्रा के कारण अवसाद, एंग्जाइटी जैसे मानसिक रोगों का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। अनिद्रा के कारण शरीर में भूख का अहसास कराने वाले हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है, जिसके कारण लोग अधिक मात्रा में खाते हैं। अनिद्रा से मेटाबॉलिज्म की दर धीमी होने से भी मोटापा बढ़ता है। अनिद्रा से पाचन समस्या जैसे कब्ज, बदहजमी, एसिडिटी हो सकती हैं। नींद की कमी से याददाश्त भी कमजोर हो जाती है व्यक्ति भूलने लगता है।

जैविक घड़ी अर्थात दिनचर्या में असमानता: सोने और जागने का चक्र हमारे म‍स्तिष्क के द्वारा नियंत्रित होता है, जो प्रतिदिन की दूसरी चीजों को भी नियंत्रित करता है। जैसे शरीर के ताप में परिवर्तन, रक्तचाप और हार्मोन का स्राव। इसमें मेलैटोनिन रसायन प्रमुख भूमिका निभाता है इसे ‘अंधेरे का हार्मोन’ भी कहते हैं। इसकी कमी चौकन्नापन बढ़ाती है और अधिकता उनींदापन बढ़ाती है, जिससे शरीर स्लीप मोड में आ जाता है। जैविक घड़ी का बिगड़ना व्यक्ति को अतिवाद की ओर ले जाती है जिसके कारण व्यक्ति स्वयं को अनावश्यक चुनौती देने लगता है परिणामस्वरूप कोई भी अप्रत्याशित घटना या दुर्घटना घटने की संभावना बढ़ती चली जाती है।

निद्रा आरोग्य और स्वास्थ्य

 आयुर्वेद में निद्रा को आहार एवं ब्रह्मचर्य के समकक्ष जीवन का उपस्तम्भ माना गया है। भाषा की भिन्नता को छोड़ दें तो, निद्रा के महत्व पर आयुर्वेद और आधुनिक वैज्ञानिक शोध के निष्कर्ष समान हैं। 


नींद कब आती है? मन थक जाये, इन्द्रियाँ क्रिया-रहित हो जायें, मन व इंद्रियाँ दुनियादारी के पचड़ों से मुक्त हो जायें तब मनुष्य को निद्रा आती है (च.सू. 21.35): यदा तु मनसि क्लान्ते कर्मात्मानः क्लमान्विताः। विषयेभ्यो निवर्तन्ते तदा स्वपिति मानवः।। उचित समय और मात्रा में नींद व्यक्ति को पुष्टि, साफ रंग, बल, उत्साह, तेज भूख, आलस्य-रहित, एवं धातुसाम्य देती है (सु.चि. 24.88): पुष्टिवर्णबलोत्साहमग्निदीप्तिमतन्द्रि ताम्। करोति धातुसाम्यं च निद्रा काले निषेविता।। नींद के समय शरीर में टूटफूट की मरम्मत होती रहती है। असल में तो सुख-दुःख, दुष्टि-पुष्टि, मोटापा-पतलापन, बल-दुर्बलता, पुंसत्व-नपुसंकता, ज्ञान-अज्ञान, जीवन-मृत्यु सब निद्रा पर ही आधारित होते हैं। पर्याप्त नींद हमें सुख, पुष्टि, बली, ज्ञानी और दीर्घायु बनाती है। किन्तु बहुत कम या बहुत ज्यादा नींद रोग-जनन का कारण बनती है। सूर्योदयकाल/ सूर्यास्तकाल में सोना (मिथ्यायोग), उचित मात्रा से कम नींद (हीनयोग) या उचित मात्रा से अधिक सोना (अतियोग) स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। रात्रि में सही समय पर नींद लेने पर स्वस्थ शरीर और सुखी जीवन तो मिलता ही है, यह सम्पन्नता का आधार भी है (च.सू. 21.36-38): निद्रायत्तं सुखं दुःखं पुष्टिः कार्श्यं बलाबलम्। वृषता क्लीवता ज्ञानमज्ञानं जीवितं न च।। अकालेऽतिप्रसङ्गाच्च न च निद्रा निषेविता। सुखायुषी पराकुर्यात् कालरात्रिरिवापरा।। सैव युक्ता पुनर्युङ्क्ते निद्रा देहं सुखायुषा। पुरुषं योगिनं सिद्ध्या सत्या बुद्धिरिवागता।। लेकिन अपवाद-स्वरूप कुछ परिस्थितियों में दिन में भी सोया जा सकता हैं। संगीतज्ञ, गहन अध्येता, मद्यसेवी, काम से थके हुये लोग, पैदल चलने से कमजोर हुये लोग, अजीर्ण के रोगी, घायल, बूढ़े, बालक, स्त्री, अतिसार एवं दर्द से पीड़ित श्वास रोगी, हिचकी से पीड़ित, उन्माद रोगी, वाहनों में बैठकर थके व जगे हुये लोग, गुस्सा, शोक व भय से दुःखी लोगों द्वारा दिन में सोने से धातुसाम्य, बल की वृद्धि, अंग-पुष्टि, व जीवन में स्थिरता आती है। इसके अलावा ग्रीष्म ऋतु में सूखापन, वात-वृद्धि, छोटी रातें होने से दिन में झपकी मारना या सोना हितकारी होता है (च.सू. 21.39-43): गीताध्ययनमद्यस्रीकर्मभाराध्वकर्शिताः। अजीर्णिनः क्षताः क्षीणा वृद्धा बालास्तथाऽबलाः।। तृष्णातीसारशूलार्ताः श्वासिनो हिक्किनः कृशाः। पतिताभिहितोन्मत्ताः क्लान्ता यानप्रजागरैः।। क्रोधशोकभयक्लान्ता दिवास्वप्नोचिताश्च ये। सर्व एते दिवास्वप्नं सेवेरन् सार्वकालिकम्।। धातुसाम्यं तथा ह्येषां बलं चाप्युपजायते। श्लेष्मा पुष्णाति चाङ्गानि स्थैर्यं भवति चायुषः।। ग्रीष्मे त्वादानरूक्षाणां वर्धमाने च मारुते। रात्रीणां चातिसंक्षेपाद्दिवास्वप्नः प्रशस्यते।। 


गर्मी को छोड़कर अन्य ऋतुओं में स्वस्थ व्यक्ति के सोने से कफ और पित्त बढ़ते हैं। मोटे लोग, प्रतिदिन खूब घी खाने वाले लोग, कफ प्रकृति के लोग, कफज रोगों से ग्रसित लोग या विष पीड़ित लोगों को दिन में नहीं सोना चाहिये, अन्यथा, सिर दर्द, अंगों में भारीपन, अग्निमांद्य और पाचन शक्ति में कमी, जी मिचलाना, त्वचा में चकत्ते, फुंसियाँ, खुजली, आलस्य होना, स्मृति एवं बुद्धि में गड़बड़ी, इन्द्रियों में अक्षमता, स्रोतोवरोध, बुखार जैसी समस्यायें खड़ी हो जाती हैं (च.सू. 21.44-49): ग्रीष्मवर्ज्येषु कालेषु दिवास्वप्नात् प्रकुप्यतः। श्लेष्मपित्ते दिवास्वप्नस्तस्मात्तेषु न शस्यते।। मेदस्विनः स्नेहनित्याः श्लेष्मलाः श्लेष्मरोगिणः। दूषीविषार्ताश्च दिवा न शयीरन् कदाचन।। हलीमकः शिरःशूलं स्तैर्मित्यं गुरुगात्रता। अङ्गमर्दोऽग्निनाशश्च प्रलेपो हृदयस्य च।। शोफारोचकहृल्लासपीनसार्धावभेदकाः। कोठारुः पिडकाः कण्डूस्तन्द्रा कासो गलामयाः।। स्मृतिबुद्धिप्रमोहश्च संरोधः स्रोतसां ज्वरः। इन्द्रियाणामसामर्थ्यं विषवेगप्रवर्तनम्।। भवेन्नृणां दिवास्वप्नस्याहितस्य निषेवणात्। तस्माद्धिताहितं स्वप्नं बुद्ध्वा स्वप्यात् सुखं बुधः।। जिन लोगों को दिन में नींद वर्जित नहीं है, जिन्हें रात में जागना पड़ा हो, वे थोड़े समय बैठकर भी नींद के झपकी ले सकते हैं, ताकि स्लीप-डेफिसिट को कम किया जा सके।


अच्छी नींद लाने वाले उपायों में सबसे उत्तम अभ्यंग या शरीर की मालिश, उबटन, स्नान, दही, दूध व घी के साथ शालि-चावल खाना, मन संतुष्ट रखना, मन-पसन्द सुगंध व शब्दों का उपयोग, शरीर को दबवाना, आंखों का तर्पण, सिर व शरीर में लेप, सुखदायी बिस्तर और सोने का शांत और समुचित स्थान, समय पर सोना आदि हैं (च.सू. 21/ 52-54): अभ्यङ्गोत्सादनं स्नानं ग्राम्यानूपौदका रसाः। शाल्यन्नं सदधि क्षीरं स्नेहो मद्यं मनःसुखम्।। मनसोऽनुगुणा गन्धाः शब्दाः संवाहनानि च। चक्षुषोस्तर्पणं लेपः शिरसो वदनस्य च।। स्वास्तीर्णं शयनं वेश्म सुखं कालस्तथोचितः। आनयन्त्यचिरान्निद्रां प्रनष्टा या निमित्ततः।। किन्तु विरेचन, डर, चिन्ता, गुस्सा, बहुत अधिक धूमपान और व्यायाम, व्रत, रक्तमोक्षण, कष्टकारी बिस्तर, सतोगुण की अधिकता या योगाभ्यास, तमोगुण पर विजय, कार्यो की अधिकता, बुढ़ापा, दर्द, व वात विकारों के बढ़ने से नींद नहीं आती है (च.सू. 21.55-57): कायस्य शिरसश्चैव विरेकश्छर्दनं भयम्। चिन्ता क्रोधस्तथा धूमो व्यायामो रक्तमोक्षणम्।। उपवासोऽसुखा शय्या सत्त्वौदार्यं तमोजयः। निद्राप्रसङ्गमहितं वारयन्ति समुत्थितम्।। एत एव च विज्ञेया निद्रानाशस्य हेतवः। कार्यं कालो विकारश्च प्रकृतिर्वायुरेव च।। 

आख़िर क्यों होती है अनिद्रा की समस्या: अक्सर देखने में आता है कि भावनात्मक समस्याएं जैसे तनाव, एंग्जाइटी और अवसाद के जड़ में अनिद्रा या नींद असंतुलन के सबसे बड़े कारण हैं, लेकिन आपकी दिनचर्या और आपका शारीरिक स्वास्थ्य भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

राहत के लिए ली जाने वाली कुछ दवाइयां भी नींद में बाधा डाल सकती हैं जैसे अवसाद, उच्च रक्तचाप, हाइपरथायरॉइडिज्म के उपचार के लिए ली जाने वाली दवाइयां। गर्भ निरोधक गोलियां और कार्टिकोस्टेरॉयड भी अनिद्रा का कारण बन सकते हैं। 

अत्यधिक कैफीन और अल्कोहल का सेवन अनिद्रा की समस्या को और बढ़ा देता है। देर रात तक मोबाइल इंटरनेट चलाने या टीवी देखने से सोने में समस्या आती है।समय पर ना सो पाने से नींद की समय सारिणी बिगड़ जाती है जिससे नींद आने के सहज क्रम में रुकावट आ जाती है।परिणाम स्वरूप मनोदैहिक स्वास्थ्य पूरी तरह से खराब हो जाता है।

भरपूर नींद पाने या अनिंद्रा से बचने के क्या है उपचार: यदि किसी मनोशारीरिक चिकित्सकीय या भावनात्मक समस्या के कारण आपको नींद नहीं आती तो पहले उसका समुचित उपचार कराएं। जीवन शैली में सकारात्मक सुधार अपनाए एक अनुशासित दिनचर्या का पालन करें। देर रात तक मोबाइल कंप्यूटर लैपटॉप पर कार्य, गेम, इंटरनेट और टीवी देखने की आदत छोड़ दें।उत्तेजक खाद्य पदार्थ, कैफीन और अल्कोहल का सेवन अधिक मात्रा में न करें। पोर्नोग्राफी की गंदी लत से भी छुटकारा पाने की कोशिश करें।किसी मनोदैहिक आरोग्य विशेषज्ञ थेरेपिस्ट लाईफ कोच से परामर्श निदान उपचार अवश्य लें।

याद रखें कि लंबे समय तक नींद की कमी और सोने का अनियमित समय शरीर के जैविक चक्र को प्रभावित करता है, जिसके फलस्वरूप सामान्य व्यक्ति को पार्किंसंस रोग का अधिक खतरा होता है. 

पार्किंसंस केंद्रीय तंत्रिका तंत्र का एक विकार है, जो शारीरिक गतिविधियों को प्रभावित करता है, इसमें पीड़ित व्यक्ति के अंग कांपने लगते हैं.आत्म विश्वास खो जाता है।

उक्त डिसऑर्डर से संबंधित अनेकों शोध के अनुसार, सिरकैडियन रिद्म की गड़बड़ी मोटर (तंत्रिका तंत्र का एक भाग जो गतिविधियों के क्रियातंत्र से संबंधित होता है) और सीखने की क्षमता को प्रभावित करती है. सिरकैडियन रिद्म को आम भाषा में बायोलॉजिकल या बॉडी क्लॉक भी कहा जाता है. जैविक असंतुलन शरीर में घातक रोगों फैलता है।

इंसोमेनिया अनिंद्रा रोग मनोरोगों में प्रारंभिक स्तर का है।

प्रसिद्ध शोधकर्ता अमेरिका की लुईस काट्ज ऑफ मेडिसिन (एलकेएसओएम) संस्थान से संबद्ध डोमेनिको प्रैक्टिको के अनुसार, "कई अध्ययन बताते हैं कि नींद की कमी भी पार्किंसंस रोग का एक दूसरा प्रमुख कारण है, लेकिन बॉडी क्लॉक की बाधाएं पार्किं संस रोग की शुरुआत की पहले ही जानकारी दे देती हैं, जिसके बाद इसे एक प्रमुख जोखिम माना जा सकता है."

अनिंद्रा के कारण शरीर में जैविक असंतुलन दिनचर्या में बदलाव च्बॉडी क्लॉक में गड़बड़ी की वजह से सोचने-समझने, तर्क-वितर्क और निर्णय क्षमता भी प्रभावित होती है. अलग पालियों में काम करने वाले पेशेवरों को तनाव की अधिक शिकायत रहती है। इसी तरह अन्य मानसिक रोग बढ़ते चले जाते हैं।

स्वस्थ निरोगी जीवन के लिए अनुशासित ढंग से जीना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। सार्थक जीवन, लक्ष्य एवम आध्यात्मिक ध्येय के लिए योग अभ्यास ध्यान तथा प्राकृतिक जीवन शैली अपनाना आज के भौतिक भोगवादी युग में सर्वोपरि प्राथमिकता है। "पहला सुख निरोगी काया" मूल मंत्र अपनाकर हम स्वयं स्वस्थ बनें तथा स्वस्थ परिवार, स्वस्थ समाज, स्वस्थ राष्ट्र के दायित्व का निर्वहन करें।

डा सुरेंद्र सिंह विरहे

मनोदैहिक आरोग्य एवं आध्यात्मिक योग थैरेपिस्ट स्वास्थय विशेषज्ञ

संस्थापक 

दिव्य जीवन समाधान 

(शिवम् योग दिव्य उत्कर्ष विद्या )

मनोदैहिक आरोग्य एवं आध्यात्मिक स्वास्थ्य उत्कर्ष 

मानसिक रोग चिकित्सा व अनुसन्धान संस्थान

संपर्क :9826042177 ,8989832149 

ई-मेल :utkarshfrom1998@gmail.com



लव यू जिंदगी Love U Jindagi

 "LOVE YOU❤️ लव यू जिन्दगी "

आखिर जिंदगी क्या है ? हमारी जिंदगी का असली  मकसद क्या है । हम जिंदगी किस लिये जी रहे ? अगर सही मायने में देखा जाये तो जिंदगी ईश्वर का अति विशिष्ट उपहार है। मनुष्य जीवन भाग्य वाले को ही मिलता है। 

जो जिंदगी के प्रति रोमांच और गतिशीलता का भाव रखते हैं उनके लिए एक लम्बी यात्रा है जिंदगी। जिसपर चलने पर सुख दुःख रूपी उतार व चढ़ाव का परिवर्तन की घटना पर मोड़ का अनुभव उन्हें एक राही की तरह होता है । 

जिनके जीवन में संघर्ष की चुनौतियां होती हैं उनके लिए जिंदगी एक जंग है जिसे जीतने के लिये आत्म विश्वास संग पूरे मन से लड़ते हैं। जो अपने जीवन में कर्म निष्ठा कर्म योगी का भाव रखते हैं उनके लिए जिंदगी एक कर्तव्य है।

उपरोक्त जिंदगी के प्रेरक उदाहरणों से प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं, परिवार और दूसरों अन्य समाज देश विश्व के प्रति सभी सार्थक भूमिकाओं का निर्वाह कर्तव्य का पालन करना चाहिये । फिर भी जिन्दगी की कसौटी हर बार सवाल उठाती रहती है कि आखिर जिंदगी क्या है ? कभी सुख तलाशती है, कभी दु:ख से भागती है कभी सुकून खोजती है, जिंदगी क्या है ? दर्शन है, कला है, विज्ञान है, या अज्ञान है, भूत है, भविष्य, वर्तमान है या सर्व विद्यमान है। वस्तु पाने की दौड़ है या प्रतिस्पर्धा की होड़ है । पीछे छूटने का भय है या आगे रहने का मोह है लगता है कभी मुसीबतों का  गठजोड़ है ।

वास्तव में अगर देखे तो जब मनुष्य जन्म लेता है तो उसके पास सांसे तो होती है पर कोई नाम नही होता और जब मनुष्य की मृत्यु होती है तो उसके पास नाम तो होता है पर सांसे नही होती है। इसी सांसे और नाम के बीच की यात्रा को जीवन कहते है । इसलिए न किसी के अभाव में जियो, न किसी प्रभाव में जियों अपनी जिंदगी अपने स्वभाव में जियो अर्थात् जिंदगी को बेहद प्यार करें। दिल से कहें "लव यू जिंदगी"!!

जिंदगी जीने का सही तरीका:आशावादी दृष्टिकोण रखें अगर आप जिंदगी को सही मायने में जीना चाहते है तो अपना दृष्टिकोण आशा से परिपूर्ण रखें । साथ ही इस बात का भी ध्यान रखे की दु:ख के बाद सुख है तो एक खुशहाल जिंदगी जी सकते है।

समय की कद्र करें: यदि आप जिंदगी में कुछ अच्छा हासिल करना चाहते है तो समय की कद्र करना सीखें । यदि आप समय की कद्र करेंगे तो सभी काम समय से पूरा हो जायेगा और सफलता आपके पास रहेगी । जिससे मानसिक शांति और सुकून की प्राप्ति होगी ।

आत्मविश्वास बनाए रखें : एक सफल जिंदगी के लिये खुद पर पूर्ण विश्वास रखें कोई भी काम नामुमकिन नही होता है। आप किसी भी काम को आसानी से कर सकते है । दुनिया में खुद के लिये आपसे बेहतर इंसान नही हो सकता है।

आने वाले कल की चिंता न करें: एक सफल और खुशहाल जिंदगी के लिये कल की चिंता न करें । कल की यानी भविष्य की चिंता करके अपने वर्तमान को खराब न करें । लेकिन अपने कल को बेहतर बनाने के लिये आप प्राथमिकता सुनिश्चित करें तदनुरूप परिपक्वता रूपी समझ अपने में विकसित करें तथा दूरदर्शिता के साथ  योजनायें बना सकते है ।

अपनी कमज़री कमियों को समझें: व्यक्ति अगर अपनी कमियों को कमज़री  को पहचानकर उसे दूर करना सीख जाता है। उस दिन से व्यक्ति एक सफल जिंदगी जीने लगता है। सही मायने में व्यक्ति जब अपनी कमियों को पहचानने लगता है और उसमें सुधार करने लगता है, उसके जीवन का उद्देश्य सफल हो जाता है।  

मनोदैहिक आरोग्य एवं आध्यात्मिक स्वास्थ के प्रति जागरूक रहें: महामारी के संक्रमण के इस दौर में हेल्थ इज वेल्थ यानि कि स्वास्थ्य ही असली धन है। स्वयं, परिवार, समाज व देश को स्वस्थ बनाएं रखने के लिए सदैव तत्पर सजग रहें।

इस तरह जिंदगी के हर एक पहलू को सही अर्थों में जानने ज़िंदगी के प्रति संजीदगी रखते हुए अत्यंत उपयोगी महत्वपूर्ण मार्गदर्शन ऑनलाइन परामर्श व काउंसलिंग के लिए संपर्क करें।

डा सुरेंद्र सिंह विरहे

मनोदैहिक आरोग्य एवं आध्यात्मिक स्वास्थ्य

विशेषज्ञ योग थेरेपिस्ट लाईफ कोच

पूर्व रिसर्च स्कॉलर :भारतीय दार्शनिक अनुसन्धान परिषद दिल्ली)

स्थापना सदस्य : मध्य प्रदेश मेन्टल हैल्थ एलायन्स चौइथराम हॉस्पिटल इंदौर

 9826042177

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परामर्श शुल्क 1000

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Saturday, September 17, 2022

सनातन संस्कृति की आत्मा हिंदू धर्म दर्शन है।

सनातन संस्कृति की आत्मा हिंदू धर्म दर्शन है।

भारतीय संस्कृति या हिंदू धर्म की प्राचीनता व इतिहास गाथा वेदों की उत्पत्ति से सिद्ध हुई है,  वेद की ऋचाएं इस दिव्य संस्कृति की नींव मूल आधार है। 

वेद धार्मिक परंपरा का प्रतिनिधित्व करते हैं और उनका विस्तार उपनिषद उस दर्शन का प्रतिनिधित्व करते हैं जिस पर सनातन परंपरा आधारित है। 

महान ऋषि,मुनियों,संतों की अंतर्दृष्टि और अनुभवों पर धर्म दर्शन आधारित है। दृश्य और द्रष्टा। चेतन तत्व , परम मीमांसा सत्य सनातन की खोज अनवरत जिज्ञासा यह अनिवार्य रूप से हिंदू धर्म दर्शन बोध विषयक जीवन का एक तरीका है, जिसे संस्कृत में सनातन धर्म के रूप में जाना जाता है। 

अत: सनातन का अर्थ है शाश्वत और धर्म का अर्थ है धार्मिकता या धर्म)।जिसे धारण किया जाता है।

वस्तुत: मनुष्य के शरीर में आत्मा की मौलिक अभिव्यक्ति की दशाएं विविध एवम स्तरीय हैं। यह चेतना के स्वरूप पर आधारित होकर निम्नतम,मध्यम व उच्चतम है।  

सनातन धर्म के लिए, आध्यात्मिक, सामाजिक एवं नैतिक रूप से हमारी चेतना का विकास ही एकमात्र महत्वपूर्ण विषय है। नैतिक एवं सामाजिक नियमों एवं विधियों के एक संग्रह की तुलना में चेतना की ऊँचाई एवं गहराई अतुलनीय रूप से अत्यधिक महत्वपूर्ण है।

वास्तव में चेतना का हमारी जीवन-शैली में बहुत महत्व है। मनोविज्ञान की दृष्टि में चेतना मानव में उपस्थित वह तत्त्व है जिसके कारण उस सभी प्रकार की अनुभूतियाँ होती हैं। चेतना के कारण ही हम देखते, सुनते, समझते और अनेक विशयों पर चिंतन करते हैं। इसी के कारण हमें सुख-दु:ख की अनुभूति हातेी है। मानव चेतना की तीन विशेषताएँ हैं। वह ज्ञानात्मक, भावात्मक और क्रियात्मक हातेी है। चेतना ही सभी पदार्थों की जड़-चतेन, शरीर-मन, निर्जीव-सजीव, मस्तिष्क-स्नायु आदि को बनाती है। उनका रूप निरूपित करती है। 

चेतना के विषय में स्पष्ट रूप से कह सकते हैं कि मनुष्य के मस्तिष्क में हाने वाली क्रियाओं अर्थात् कुछ नाड़ियों के स्पंदन का परिणाम ही चेतना है। यह अपने में स्वतन्त्र कोई अन्य तत्व नहीं है। शरीर चेतना के कार्य करने का यंत्र मात्र है, जिसे वह कभी उपयोग में लाती है और कभी नहीं लाती है। परन्तु यदि यंत्र बिगड़ जाए या टूट जाए तो चेतना अपने कामों के लिए अपंग हो जाती है। चेतना के बिना सुना व देखा नहीं जा सकता है। 

यह हमें अनुभव और भावनाओं की पहचान करने की अनुमति देता है। यही चेतना सही है जोकि भौतिक नहीं है लेकिन कुछ आध्यात्मिक है। इस प्रकार चेतना मनोदैहिक से बडकर आत्मिक अनुभूति है।

आत्मा का अनुसंधान सनातन धर्म की एकमात्र परम आवश्यक साधना है । प्रत्येक व्यक्ति के अनुभूति के तल पर आनंद और मूल पवित्रता की मुक्त अवस्था में, आत्मा सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ परिभाषित की गई है। स्वभावत:यह चित्त रूपेण, जब यह किसी विशेष मानव शरीर से जुड़ा होता है, तो यह मन, बुद्धि और अहंकार को जन्म देता है। माया के अस्तित्व के कारण, मूल अज्ञान, आत्मा गलती से शरीर, मन और बुद्धि के साथ अपनी पहचान बना लेता है। इस तरह यह मिथ्या तादात्म्य आत्मा के भौतिक अस्तित्व के बंधन और संसार में परिणामी पीड़ा और पीड़ा का कारण है।

भारतीय संस्कृति के अनुसार इस सांसारिक बंधन से मुक्ति (मोक्ष या मोक्ष) मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य है।

 बुद्धि और अहंकार। माया के अस्तित्व के कारण, मूल अज्ञान, आत्मा गलती से शरीर, मन और बुद्धि के साथ अपनी पहचान बना लेता है। यह मिथ्या तादात्म्य आत्मा के भौतिक अस्तित्व के बंधन और संसार में परिणामी पीड़ा और पीड़ा का कारण है। 

इसलिए भारतीय संस्कृति के अनुसार इस सांसारिक बंधन से मुक्ति (मोक्ष या मोक्ष) मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य परम उत्कर्ष की प्राप्ति करना ऐसी मान्यता है।

मोक्ष (स्वतंत्रता या मोक्ष): जीवन का अंतिम उद्देश्य जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति या ईश्वर के साथ एकता प्राप्त करना है। यह मिलन सच्चे ज्ञान ( ज्ञान), भक्ति ( भक्ति) , या धार्मिक क्रिया ( कर्म) के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। पवित्रता, आत्म-संयम, सत्यता, अहिंसा और विश्वास आत्म-साक्षात्कार के लिए आवश्यक पूर्वापेक्षाएँ हैं। भारतीय संस्कृति आत्मा और ईश्वर के सच्चे ज्ञान की प्राप्ति के लिए एक सच्चे गुरु ( आध्यात्मिक गुरु ) के महत्व पर जोर देती है ।

अस्तित्व की एकता: हिंदू धर्म का मानना ​​​​है कि ब्रह्मांड सार्वभौमिक आत्मा की अभिव्यक्ति है, जिसे उपनिषदों में ब्रह्म के रूप में जाना जाता है। ब्रह्म संसार की सभी चीजें और प्राणी बन गया है। इस प्रकार विश्व की घटनाओं की विविधता के पीछे पूर्ण एकता है। अंतर तभी प्रकट होता है जब ब्रह्मांड को केवल मन और इंद्रियों के माध्यम से देखा जाता है।

 वतुतः, जब आध्यात्मिक अनुभवों के माध्यम से साधक बुद्धिमानों द्वारा मन को पार किया जाता है, तो चेतना की उर्धगमिता के साथ  सार्वभौमिक आत्मा को नामों और रूपों के साथ सभी चीजों और प्राणियों के एकमात्र सार के रूप में देखा जाता है।

विचार की स्वतंत्रता : हिंदू धर्म ईश्वर के साथ एकता प्राप्त करने के कई तरीके प्रदान करता है। हिंदुओं का मानना ​​​​है कि सभी सच्चे धर्म भगवान के लिए अलग-अलग रास्ते हैं। यह सिद्धांत निम्नलिखित श्लोक (ऋग्वेद 1.164.46) में शामिल है : 

"एकम सत विप्रः, बहुधा वदन्ति। "सत्य एक है, ज्ञानी उसे विभिन्न नामों से पुकारते हैं।"

प्रत्येक व्यक्ति में सर्वोच्च ईश्वर की सर्वव्यापीता में अपने विश्वास के कारण, हिंदू धर्म सहिष्णुता और सार्वभौमिक सद्भाव सिखाता है। हिन्दू धर्म नास्तिक को भी तिरस्कार की दृष्टि से नहीं देखता। 

हिंदू धर्म की एक विशेषता इसकी ग्रहणशीलता और सर्वव्यापकता है। यह मानवता का, मानव स्वभाव का, पूरे विश्व का धर्म है। यह किसी अन्य प्रणाली की प्रगति का विरोध नहीं करने की परवाह करता है। इसलिए अन्य सभी धर्मों को अपनी सर्वव्यापी भुजाओं और सदा-विस्तारित तह में सम्मिलित करने में उसे कोई कठिनाई नहीं है।"

शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, किसी व्यक्ति की संभावित दिव्यता, विचार की स्वतंत्रता, ब्रह्मांडीय एकता, शब्द, कर्म और विचार में अहिंसा, जीवन के सभी रूपों के प्रति श्रद्धा, और कर्म का नियम: जैसा आप बोएंगे वैसा ही प्राप्त करेंगे। 

इसलिए प्रत्येक व्यक्ति स्वधर्म पालन एवम स्वानुसाशन के महत्व को जानकर सार्थक जीवन का अनुसरण करें।

सनातन धर्म स्वयं जीवन है, वह पूर्ण एवं विकासशील है, और इसे इसी रूप में जानना एवं देखना चाहिए।

सनातन धर्म, विकासमूलक अध्यात्म तथा योग के क्षेत्र में राष्ट्रीय एवं वैश्विक केंद्र विश्व गुरु भारत बनें ऐसी कर्तव्य  अभिलाषा स्वयं में जगाएं।

हम दिव्य ध्येय के अनुगामी बनें स्वयं की गहनता में ज्ञान और तपस्या की उस शक्ति एवं ज्योति को जागृत करें जो कि हमारे राष्ट्र की आत्मा में नित्य सनातन धर्म के रूप में वास करती है यह दिव्य भारत की सांस्कृतिक पहचान है।



Thursday, September 15, 2022

सम्पूर्ण जीवन काल, उसके कर्म, मनोस्थिति समग्र जीवन प्रबंधन निराकरण समस्या समाधान

 

(स्वास्थ्य पूंजी व आनंद सहित जीवन यापन जीविकोपार्जन समग्र जीवन प्रबंधन निराकरण समस्या समाधान अनुसंधान संस्थान)

विज्ञान मनुष्य के मन, उसके प्रारब्ध और संस्कारों के आधार पर चिकित्सा करता है | सामान्य तह हम जीवन को सिर्फ शारीरिक तल पर ही जानते है | और हमारा सारा केंद्र भी शरीर ही होता है जबकि हमारे जीवन की जडें बहुत गहरी होती है | 

मनुष्य के मन के भीतर उसकी पूर्व जन्मो की भी सारी जानकारी जमा होती है | और मनुष्य मन पर उसके पूर्व जन्म की मनोस्थिति का भी प्रभाव होता है | हम ये नहीं कह सकते की हमारा जीवन पूर्व जन्मो से प्रभावित नहीं होता |

वर्तमान जीवन में घटने वाली तमाम अच्छी बुरी घटनाएं पूर्व जन्म प्रारब्ध से प्रभावित होती है | आध्यात्मिक चिकित्सा व्यक्ति के मूल में जाकर उसके सम्पूर्ण जीवन काल, उसके कर्म, मनोस्थिति के आधार पर उसकी चिकित्सा करती है | आध्यात्मिक चिकित्सा कोई मनोवैज्ञानिक चिकित्सक नहीं कर सकता बल्कि जो व्यक्ति पूर्ण साधना के मार्ग पर चलकर आध्यात्मिक रूप से उन्नत हो वही इंसान आध्यात्मिक चिकित्सा कर सकता है | 

बीमारी के लक्षण शरीर पर आते है लेकिन उसकी उत्पत्ति के स्त्रोत मन की गहराईयों के भीतर दबे होतें है । एक बीमारी का इलाज कराओ दूसरी आ जाती है । रोग रूप बदल लेता है । लेकिन रोग की जड़ से मुक्ति नहीं होती जब तक के रोग के मूल को मन मस्तिक के भीतर से साफ़ न किया जाए ।

हमारा मानव मन जीवन के उतार चढ़ाव अच्छे बुरे अनुभवों से मन के भीतर बहुत सारे रुग्ण भाव दबा लेता है जिसका संज्ञान इंसान को भी नहीं हो पाता । यही रुग्ण भाव मन के बहुत भीतर अपना कार्य करते रहते है जैसे -

- अनावश्यक भय,

- नुक्सान होने का संदेह, - दुर्घटना के विचार,

- दोस्तों व् अन्य व्यक्तियों के प्रति अविश्वास,

- जरुरत से अधिक मूर्ति पूजा, - तमाम छोटे मोटे टोटके करना, - हर विफलता को किस्मत से जोड़ देना,

- धन पर अतिनिर्भरता,

- हीनभावना से ग्रसित होना,

- वहुत ही ज्यादा गुस्सा करना,

- बहुत डरपोक होना,

- ऊँचाई, पानी अथवा पहाड़ खाई से बहुत ज्यादा डरना, - बोलने में अटकना, बड़बड़ाना, - बार बार बुरे (मृत्यु के) स्वप्न देखना,

- नींद का न आना, सामान्य से अधिक भोजन करना,

- पति/पत्नी के प्रति शारीरिक आकर्षण घटना, - बहुत ही ज्यादा भावनात्मक होना,

-किसी भी प्रकार के रोग से लंबे समय तक पीड़ित रहना,

- व्यापार में घाटा होने का भय बना रहना आदि जीवन के ऐसे लक्षण है जो आपके रुग्ण मन की दशा बताते है । व्यक्ति भागमभाग जिंदगी में सब सहता हुआ बस जिता चला जाता है । अतः मन का रोग शरीर पर उतर आता है । और जीवन रुग्ण हो जाता है । मेरा अनुभव है कि लगभग हर भीतरी रोग के पीछे मन की रुग्णता छिपी होती है जिसे आध्यात्मिक चिकित्सा द्वारा रोगमुक्त किया जा सकता है । यदि आप हमेशा आध्यात्मिक शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ रहना चाहते हैं..

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किसी भी धनवान अमीर अशांत व्यग्र सज्जन व्यक्ति विशेष को ध्यान मैडिटेशन सीखना हो घर बैठे या व्यक्तिगत रूप से मानसिक तनाव हो ,जीवन बोझिल लग रहा हो तो सम्पर्क करें ,मेरा 7 दिन का कोर्स है रोज एक घण्टा आपको ध्यान मैडिटेशन करना है और इवनिंग में कॉउंसलिंग का समय रहेगा ,जो भी आपको पूछना है ,जो भी जीवन मे उलझाव है ,आप पूछ सकते हैं । मनोदैहिक आरोग्य एवम आध्यात्मिक स्वास्थ्य पाने की दिव्य जीवन समाधान ध्यान विधियांा युक्तियां निदान में समाहित   होंगी प्रारंभिक परामर्श हेतु 9826042177 नम्बर पे व्हाट्सऐप msg संदेश भेज कर संपर्क करें

डा सुरेंद्र सिंह विरहे

मनोदेहिक आरोग्य आध्यात्मिक स्वास्थ्य विषेशज्ञ

utkarshfrom1998@gmail.com

9826042177,8989832149


Time 5am to 6am everyday 

Fee Rs. 4000 for entire duration.,(Meditation Counseling)

Counsultancy Fee Rs.1000

9826042177@paytm


जीवन महान अवसर बन सकता है आत्मिक शक्ति जागृति प्राप्त करें

 जीवन महान अवसर बन सकता है 

आत्मिक शक्ति जागृति प्राप्त करें !

आओ हम सभी सार्थक जीवन उत्कर्ष की ओर अग्रसर हो आध्यात्मिक और पारमार्थिक गतिविधियाँ अपनाकर जीवन के आने वाले समय को सार्थक बनाकर कोरोनाकाल के सबक से अपने अंदर नए सिरे महत्वपूर्ण बदलाव लाने हेतु तत्पर हो अपने जीवन के उत्तरार्द्ध को सार्थक, उद्देश्यपूर्ण , गुणवत्ता युक्त एवम् अनमोल अवसर के रूप में बनाने में जुट जाएं।

 शेष जीवन को सच्चे अर्थों में सफ़ल और सार्थक बनाया जा सकता हैं, मानों हमने नया जन्म लिया है। मनुष्य रूप में जिस प्रयोजन के लिए यह शरीर मिला है, अर्थात् मानव जन्म का जो परम लक्ष्य है वह अब तक पूर्वार्द्ध में प्रपंचवश मूर्छा घमंड, भोग तृष्णा के कारण पुरा नहीं हो  सका है। 

मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ने के इस दौर में सकारात्मक सोच को अपनाएं। कोरोना महामारी की आपदा विपदा से सबक लेकर स्वयं और परिवार का महत्व, समाज के प्रति परोपकार एवम् राष्ट्र की निःस्वार्थ  सेवा हेतु समर्पित हो अपनी मनुष्यता की दिव्यता, महानता सिद्ध करें । 

*आत्मिक शक्ति से रोग प्रतिरोधक क्षमता इम्यूनिटी में वृद्धि करके जागृति प्राप्त करें

आत्मिक शक्ति से रोग प्रतिरोधक क्षमता इम्यूनिटी में वृद्धि करके कोविड संक्रमण ओमिक्रोन डेल्टा जैसे वायरस से बचाव संभव है।

बेहतर रोग प्रतिरोधक क्षमता से ही हम बीमारी से बच सकते हैं। योग विद्या की मान्यता के अनुसार शरीर खुद एक बेहतर डॉक्टर है। आत्मबल रोग प्रतिरोधक क्षमता और स्वत: ठीक होने की क्षमता को विकसित करने के लिए योग महत्वपूर्ण साधन है।  

 योग का अभ्यास शारीरिक मानसिक, सामाजिक, आध्यात्मिक स्तर को विकसित करता है। इससे रक्त संचार, पाचन, पोषण, श्वसन से संबंधित क्रियाएं सुचारू रूप से चलने लगती हैं।

सूर्य नमस्कार से बढ़ती है क्षमता। सूर्य नमस्कार के अभ्यास से शरीर के सभी प्रमुख अंग जैसे-फेफड़े, किडनी, हृदय, मस्तिष्क, लिवर की कार्यप्रणाली अच्छी हो जाती है, जिससे शरीर में बाहर के संक्रमण से लड़ने की क्षमता जागृत हो जाती है। शुरुआत में इसका पांच राउंड अभ्यास करना चाहिए। बाद में अपनी क्षमता के अनुसार अभ्यास बढ़ाना चाहिए।  योग विद्या के अनुसार मुद्रा के अभ्यास से मन पर नियंत्रण तथा इम्युनिटी विकसित होती है, जिनमें ज्ञान मुद्रा और काकी मुद्रा का अभ्यास होता है।

इम्युनिटी बढ़ाते हैं योग के सभी आसन।

योग के सभी आसन इम्युनिटी बढ़ाते हैं। उनका नियमित अभ्यास करने वालों को कोरोना का डर नहीं रहेगा। 

 इम्युनिटी बढ़ाने के लिए प्राणायाम, भस्तिका, कपालभांति,अनुलोम-विलोम, भ्रामरी, भुजंग,गोमुख आसन, सर्वांग आसन, हलासन, भारद्वाज आसन, पाद आसन, त्रिकोण आसन सहायक हैं, इनका नियमित अभ्यास करना चाहिए।

संतुलित आहार-विहार से भी बढ़ेगी प्रतिरोधक क्षमता।

कोरोना या अन्य संक्रमण से बचाव में किसी भी व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

 संतुलित आहार-विहार से कोई भी व्यक्ति अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा सकता है। इसके लिए सूर्योदय के पहले उठे। नित्यक्रिया के बाद गुनगुने पानी से गरारा करें। यदि सूखी खांसी हो तो सेंधा नामक और गाय का घी मिलाकर पीठ और सीने पर हल्के हाथ से मालिश करें। सुबह गिलाए का काढ़ा बनाकर पिएं। हल्दी, काली मिर्च, सौंफ, अजवायन, मेंथी, धनिया, आंवला, सोंठ प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं। इस आहर विहार से इम्यून सिस्टम मजबूत होता जाएगा।

*_नियमित करे योग हमेशा रहे निरोग*

आध्यात्मिक स्वास्थ्य मनोदैहिक आरोग्य अभिधेय को आत्मसात कर परमार्थ की पुण्य पूँजी संग्रह करने के लिए, अगले जन्म में ऊँची स्थिति पाने के लिए स्वयं भी उत्कंठा जाग्रत करें एवम् अन्य मित्र, सखा, स्नेही परम प्रिय जनों को भी प्रेरित करें। संवेदनशील बनकर और अधिक गम्भीरतापूर्वक दिव्य जीवन की प्रेरणाओं सीखें । परोपकार सेवा गतिविधियों को अपनाकर इस अनमोल मानव जीवन को सार्थक करें। कोरोनाकाल हमारे जीवन में आपदा से बढ़कर महान अवसर सबक दे सकता है..

मानव जीवन के चार पुरुषार्थ यथा धर्म (सदाचार या कर्त्‍तव्‍य), अर्थ(सांसारिक उपलब्धि, मुख्‍य रूप से समृद्ध), काम (सद इच्‍छाओं की पूर्ति), और मोक्ष (मुक्ति)आ को किस प्रकार से प्राप्‍त किया जाए । 

विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी,

मरो, परंतु यों मरो कि याद जो करें सभी।

हुई न यों सुमृत्यु तो वृथा मरे, वृथा जिए,

मरा नहीं वही कि जो जिया न आपके लिए।

वही पशु प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे,

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥

(मैथिलीशरण गुप्त)

उस आदमी का जीना या मरना अर्थहीन है जो अपने स्वार्थ के लिए जीता या मरता है। जिस तरह से पशु का अस्तित्व सिर्फ अपने जीवन यापन के लिए होता है, मनुष्य का जीवन वैसा नहीं होना चाहिए। ऐसा जीवन जीने वाले कब जीते हैं और कब मरते हैं कोई ध्यान ही नहीं देता है। हमें दूसरों के लिए कुछ ऐसे काम करने चाहिए कि मरने के बाद भी लोग हमें याद रखें। साथ में हमें ये भी अहसास होना चाहिए कि हम अमर नहीं हैं। इससे हमारे अंदर से मृत्यु का भय चला जाता है।

डा सुरेन्द्र सिंह विरहे 

मनोदैहिक आरोग्य एवम् आध्यात्मिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ

आध्यात्मिक योग  थेरेपिस्ट लाईफ कोच

उप निदेशक मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी संस्कृति परिषद् भोपाल

शोध समन्वयक

नैतिक मूल्य आध्यात्मिक शिक्षा शोध

धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग मध्य प्रदेश शासन

9826042177,8989832149

आध्यात्मिकता, सनातन संस्कृति सहित शिक्षा के मूल्य उत्कर्ष केंद्र अवधारणा

आध्यात्मिक साहित्य  स्वाध्याय संस्कृति उत्कर्ष केंद्र स्थापना योजना

युवा किशोर बालक देश के भावी कर्णधार हैं| उनके चरित्र बल पर ही देश कि प्रतिष्ठा एवं विकास आधारित है| अतः नैतिकता, राष्ट्रभक्ति आदि मूल्यों की शिक्षा और जीवन के आध्यात्मिक दृष्टिकोण का विकास करने हेतु युवा पीढ़ी में साहित्य अभिरुचि बढ़ाने संस्कृति के प्रति सम्मान जागृत करने सृजनात्मकता बौद्धिक क्षमता संवर्धन,  लेखन वाचन की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए आध्यात्मिक साहित्य  स्वाध्याय संस्कृति उत्कर्ष केंद्र स्थापना योजना को बनाया गया है।

आध्यात्मिकता, सनातन संस्कृति सहित शिक्षा के मूल्य परक नैतिक स्वरूप को सुदृढ करने के लिए आधारभूत संरचना निर्मित करना ही इस योजना का प्रमुख लक्ष्य  है| 

भारतीय संस्कृति, धर्म एवं जीवनादर्शों के अनुरूप बालकों के चरित्र का निर्माण करना उक्त आध्यात्मिक साहित्य  स्वाध्याय संस्कृति उत्कर्ष केंद्र का मुख्य लक्ष्य है|


लक्ष्य:-

प्रदेश के हर जिले में आध्यात्मिक साहित्य स्वाध्याय संस्कृति उत्कर्ष केंद्र की स्थापना करना । 

शहरों में वार्ड एवम् गांवों में ग्राम पंचायत स्तर पर हर सप्ताह युवा साहित्य संवाद समूह गठन करना।

पुस्तक, ग्रंथ , आध्यत्मिक साहित्य, जीवनी , कहानी  कविता पठन वाचन लेखन, नाटक मंचन आदि गतिविधि संचालित कराना उक्त समूह का दायित्व होगा।

हर महिने जिले में युवा रचनाकार आध्यात्मिक साहित्य स्वाध्याय गोष्ठी आयोजित की जाएगी जिसमें  निबंध लेखन, काव्य पाठ , कहानी वाचन जैसे कार्यक्रम जिला युवा साहित्य स्वाध्याय उत्कर्ष केंद्र इकाई/ समिति द्वारा संचालित किए जाएंगे।

हर वर्ष युवा साहित्य रचनाकार , युवा लेखक , युवा कवि पुरस्कार सम्मान महोत्सव का आयोजन प्रदेश की राजधानी में किया जाएगा।

युवा रचनाकार आध्यात्मिक साहित्य लेखकों के लिए

मासिक "आध्यात्मिक साहित्य युवा संवाद" पत्रिका का प्रकाशन करना।

"आध्यात्मिक साहित्य  स्वाध्याय संस्कृति उत्कर्ष केंद्र स्थापना योजना"

योजना विस्तार प्रारंभिक बिंदु:

स्वाध्याय  सत्साहित्य

अध्ययन के लिए हमारे प्राचीन ऋषि – मुनियों का ग्रन्थ बहुत ही उपयोगी है किन्तु सभी संस्कृत में है तथा जिनका अनुवाद हुआ वह भी संस्कृत स्तर का ही है अतः उन्हें हर किसी के लिए समझ पाना थोड़ा कठिन होता है । फिर भी जो कोई भी इन ग्रंथो से स्वाध्याय करना चाहे कर सकता है । इनमें वेद, उपनिषद, गीता, योगवाशिष्ठ, रामायण आदि मुख्य है । जिन्हें इन्हें पढ़ने की सुविधा ना हो वह निम्नलिखित लेखकों के साहित्य का अध्ययन कर सकते है ।

महर्षि दयानंद – इनकी पुस्तके आपको आर्य समाज की किसी भी वेबसाइट पर मुफ्त में डाउनलोड करने अथवा पढ़ने के लिए मिल जाएगी । सत्यार्थ प्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका आदि मुख्य है ।

स्वामी विवेकानंद – स्वामी विवेकानंद की बहुत सारी पुस्तके Internet archive पर उपलब्ध है । आप वहाँ से डाउनलोड कर सकते है ।

स्वामी रामतीर्थ – वेदांत पर इनकी पुस्तके बहुत ही उपयोगी है । यह भी आप Internet archive से प्राप्त कर सकते है ।

महर्षि अरविन्द – महर्षि अरविन्द की पुस्तकों के संदर्भ में हम कुछ निश्चितता से कह नहीं सकते क्योंकि इनकी पुस्तके बहुत कम मिलती है । google search से आपको मिल जाएगी ।

परमहंस योगानंद – इनकी पुस्तकें स्वाध्याय के लिए बहुत ही उपयोगी है । क्योंकि इनकी पुस्तकों में शास्त्रीय बातें कम और जीवन के अनुभव अधिक हुआ करते है । योगी कथामृत, मानव की निरंतर खोज, सफलता का नियम, इसके साथ ही YSS के पाठ बहुत ही उपयोगी है ।

स्वामी शिवानन्द – स्वामी शिवानन्द की सभी पुस्तके आप DSSV की वेबसाइट से डाउनलोड कर सकते है । Practice of Brahmacharya, Kundalini Yoga etc.

पंडित श्री राम शर्मा आचार्य – पंडित श्री राम शर्मा आचार्य की पुस्तके सबसे अच्छी है क्योंकि इन्होने जीवन के हर पहलु पर ३००० से अधिक पुस्तके लिखी है । इनकी पुस्तकों का मुख्य उद्देश्य ही मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास और विचारों का परिवर्तन है । गायत्री परिवार की अखण्डज्योति पत्रिका १९४० से आज भी नवीन साधकों के लिए संजीवनी का कार्य कर रही है ।


पंडित श्री राम शर्मा आचार्य की मुख्य पुस्तके जो मैंने पढ़ी है –


गायत्री महाविज्ञान

सावित्री कुण्डलिनी और तंत्र

जीवन देवता की साधना – आराधना

ब्रह्मचर्य जीवन की एक अनिवार्य आवश्यकता

ध्यान – धारणा और समाधि

साधना से सिद्धि भाग – १ व २

प्राणशक्ति एक दिव्य विभूति

ईश्वर कौन है, कहाँ है, कैसा है ?

और भी बहुत सारी पुस्तके है लेकिन सबका लिखना संभव नहीं ! इसके लिए आप awgp की वेबसाइट देख सकते है । ज्यादातर पुस्तके आपको मुफ्त में पढ़ने को मिल जाएगी और यदि आपके निकट कोई गायत्री मंदिर या पुस्तकालय है तो वहाँ भी आप संपर्क कर सकते है

 डा सुरेंद्र सिंह विरहे

मनोदेहिक आरोग्य आध्यात्मिक स्वास्थ्य विषेशज्ञ

उप निदेशक मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी संस्कृति परिषद् संस्कृति विभाग मध्य प्रदेश शासन भोपाल

शोध समन्वयक

आध्यात्मिक नैतिक मूल्य शिक्षा शोध

धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग मध्य प्रदेश शासन भोपाल

utkarshfrom1998@gmail.com

9826042177,8989832149

गुर्दे की पथरी; नेफ्रोलिथियासिस; पथरी

 गुर्दे की पथरी छोटे-छोटे क्रिस्टलों से बना एक ठोस द्रव्यमान है। एक ही समय में एक या अधिक पथरी गुर्दे या मूत्रवाहिनी में हो सकती है। गुर्दे ...