Sunday, September 25, 2022

ध्यान और शून्य अवस्था की अनुभूति से आत्म उत्कर्ष व्यक्तित्व विकास करने की कला सीखें ...

ध्यान और शून्य अवस्था द्वारा आत्म उत्कर्ष व्यक्तित्व विकास करने की कला सीखें ...

ध्यान का नियमित अभ्यास करने से आत्मिक शक्ति बढ़ती है और शून्य की अनुभूति होती है । मन की निर्विचारिता ही शून्य अवस्था है। इसलिए कहा भी जाता है कि : "भीतर जो शून्य हो जाता है, वो सम्राट हो जाता है।" ध्यान के नियमित अभ्यास से मन में शांति और स्थिरता आ जाती है। परिणामस्वरूप आध्यात्मिक सिद्धि के रूप में आनंद तथा शून्य अवस्था की अनुभूति होती है। इसके लिए ध्यान की महत्ता और शून्य के अनुभव को गहराई से जानना समझना जरूरी है।

ध्यान और शून्य अवस्था की अनुभूति से आत्म उत्कर्ष व्यक्तित्व विकास करने की कला सीखें ...

सर्व प्रथम स्वयं का अवलोकन करें कि वास्तव में  हम क्या है पंचतत्व से बनी इस काया की असली पहचान कैसे करें अंग अवयव रूप में यानि आंख? कान? नाक? संपूर्ण शरीर? मन या मस्तिष्क?

 ज्ञानेंद्रिय ,कर्मेंद्रिय और मन की विशिष्टता सदैव से ही खोज का विषय बना हुआ है इसे जानने के लिए योग मार्ग एवं खासकर ध्यान की भूमिका व महत्ता अत्यंत महत्वपूर्ण है। ध्यान आध्यात्मिक रूप से हमारे , शरीर,मन और आत्मा के बीच लयात्मक सम्बन्ध बनाता है। आत्मा का परमात्मा से मिलन योग है लेकिन उसके पहले स्वयं को पाना है तो ध्यान जरूरी है। वहीं एकमात्र विकल्प है। जिसे आत्म साक्षात्कार कहते हैं।

आत्म साक्षात्कार अर्थात् आत्मा को जानना : दैनिक जीवन में ध्यान का नियमित अभ्यास करने से आत्मिक शक्ति बढ़ती है। ध्यान के माध्यम से आत्म विश्वास आत्म निर्भरता बढ़ती है जिससे आत्म बल आत्म शक्ति बढ़ती है।आत्मिक शक्ति से मानसिक शांति की अनुभूति होती है। मानसिक शांति से शरीर स्वस्थ अनुभव करता है। ध्यान के द्वारा ही आत्म उर्जा केंद्रित होती है। उर्जा केंद्रित होने से मन और शरीर में शक्ति रोग प्रतिरोधकता का संचार होता है एवं आत्मिक बल सुदृढ़ होता है।

ध्यान से अर्जित आत्म शक्ति द्वारा दूरदर्शिता लक्ष्य संधान:

ध्यान से जीवन में प्राथमिकताएं सुनिश्चित हो जाती है इसलिए ध्यान से विजन पॉवर बढ़ता है तथा व्यक्ति में निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता है। ध्यान मनोदैहिक आरोग्यता प्रदान करता है ध्यान से सभी तरह के रोग और शोक मिट जाते हैं। आध्यात्मिक स्वास्थ्य स्वरूप ध्यान से व्यक्ति तन, मन और मस्तिष्क पूर्णत: शांति, स्वास्थ्य और प्रसन्नता प्राप्त करता है। अतः ध्यान से कर्म कुशलता की प्राप्त होती है व्यक्ति निर्भय होकर अपने लक्ष्य का संधान करता है।

ध्यान द्वारा शांति से समन्वय सामंजस्य स्थापित कर रिश्तों को मजबूत किया जा सकता है।प्रेम सदभाव कायम कर परस्पर पूरक सह अस्तित्व की भावना, मैत्री, करुणा, अहिंसा, सत्य , और मानवता धर्म का सही पालन किया जा सकता है। 

ध्यान सकारात्मक दृष्टि प्रदान करता है: ध्यान से वास्तविकता को जाना जाता है ध्यान से वर्तमान को देखने और समझने में मदद मिलती है। निष्पक्ष शुद्ध रूप से देखने की क्षमता बढ़ने से विवेक जाग्रत होता है विवेक के जाग्रत होने से होश सजगता बढ़ती है। होश यानि सजगता के बढ़ने से मृत्यु काल में देह के छूटने का बोध रहेगा। देह आसक्ति नही रहती है देह के छूटने के बाद अगला जन्म आपकी मुट्‍ठी में होगा। यही है ध्यान का महत्व ध्यान का विशिष्ट उपहार है।

ध्यान स्व की पहचान कराता है: ध्यान के माध्यम से व्यक्ति स्वयं से जुड़ता है स्वयं की योग्यता नैसर्गिक प्रतिभा और आत्म गरिमा को जान सकता है। ध्यान से आत्मचिंतन,आत्म साक्षात्कार संभव हो जाता है।

ध्यान से निर्मल शुद्ध चेतना की प्राप्ति होती है।ध्यान से व्यक्ति में सत्यनिष्ठा, वैचारिक स्पष्टता, सृजनात्मकता और संवेदनशीलता आती है।

ऋषि मुनियों साधु संतों और योगी तपस्वियों ने योग साधना अभ्यास के महत्व को बतलाया है यम, नियम, आसन, प्राणायम, प्रत्याहार और धारणा को ध्यान तक पहुँचने की सीढ़ी बताया है ध्यान आत्म उत्कर्ष की प्राप्ति सुनिश्चित करता है।


ध्यान के अन्य लाभ :

ध्यान से मानसिक आरोग्य लाभ-बढ़ते मशीनीकरण युग में शोर और प्रदूषण के माहौल के चलते व्यक्ति निरर्थक ही तनाव और मानसिक थकान का अनुभव करता रहता है। मनोदैहिक रोगों से छुटकारा ध्यान से मिलता है क्योंकि ध्यान से तनाव के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है। निरंतर ध्यान करते रहने से जहां मस्तिष्क को नई उर्जा प्राप्त होती है वहीं वह विश्राम में रहकर थकानमुक्त अनुभव करता है। गहरी से गहरी नींद से भी अधिक लाभदायक होता है ध्यान। ध्यान मन मस्तिष्क को निर्भार बना देता है। असीम आनन्द व शांति ध्यान से ही संभव होती है।


ध्यान से शरीर  शोधन होता है: ध्यान से व्यक्ति सुचिता प्राप्त करता है।ध्यान शोधन की प्रक्रिया है। ध्यान से जहां शुरुआत में मन और मस्तिष्क को विश्राम और नई उर्जा मिलती है वहीं शरीर इस ऊर्जा से स्वयं को लाभांवित कर लेता है। ध्यान करने से शरीर की प्रत्येक कोशिका के भीतर प्राण शक्ति का संचार होता है। शरीर में प्राण शक्ति बढ़ने से आप स्वस्थ अनुभव महसूस करते हैं। प्राणिक संबलता से व्यक्ति अपनी आत्मिक शक्ति प्राप्त कर आत्म रूपांतरण संभव कर सकता है।

ध्यान से विभिन्न प्रकार की शारीरिक मानसिक आधी व्याधि रुग्णता को दूर किया जा सकता है।

ध्यान के आध्यात्मिक लाभ-  ध्यान से व्यक्ति स्वयं से आंतरिक रूप से जुड़ जाता है।जो व्यक्ति ध्यान करना शुरू करते हैं, वह शांत होने लगते हैं। यह शांति ही मन और शरीर को मजबूती प्रदान करती है। ध्यान व्यक्ति को होश जाग्रति प्रदान करता है । ध्यान से काम, क्रोध, मद, लोभ और आसक्ति आदि सभी विकार समाप्त हो जाते हैं। निरंतर साक्षी भाव में रहने से जहां सिद्धियों का जन्म होता है वहीं सिद्धियों में नहीं उलझने वाला व्यक्ति समाधी को प्राप्त लेता है। गहरे ध्यान की समाधि की अवस्थाएं लौकिक पारलौकिक अनुभूति से परे सद चित आनंद सहित  परम अवस्था निर्वाण मोक्ष प्रदान करा सकती है।

ध्यान से ही शांति की निर्विचार अवस्था शून्यता संभव है: ध्यान के नियमित अभ्यास से व्यक्ति को कई अनुभव होते हैं। ध्यान की गहनता से शून्यता अचानक घटती है, शून्य अवस्था नितांत निज अनुभूति का विषय है इसे कोई उत्पन्न नहीं कर सकता।

शून्य अवस्था पाने के लिए अपने अभिरुचि के विषय, पसंदिता कार्य, संगीत, चित्रकला, नृत्य,लेखन,गायन,वादन एवम प्राकृतिक स्थल के भ्रमण, एकांतवास आदि आप कर सकते हैं किंतु  सिर्फ ध्यान योग के नियमित अभ्यास प्रयास से आप शून्य अवस्था अनुभूति अनुभव उपलब्धि स्वरूप कर सकते है। आइए जाने ध्यान शून्यता के कुछ प्रमुख उदाहरण:

अक्सर शून्यता को उपलब्ध व्यक्ति की आवाज भी 
     आपको शून्य कर सकती है। इसे आत्मिक संवाद कह सकते हैं।

यदि किसी प्रिय या आदर्श के प्रति तीव्र उत्कंठा हो तो कभी कभी उन्हें  मात्र देख कर भी शून्यता का अनुभव , निर्विचार होने का अनुभव 
      कर सकता है। यह प्रेम में होता है।

यायावर, घुमंतु प्रकृति प्रेमी बनकर किसी प्राकृतिक द्रश्य जैसे समुद्र , हिमशिखर नदी, झरने को पहली बार देख कर भी कोई व्यक्ति कुछ क्षण को चित्त निर्विचार शून्य हो जाता है। 
 
राग स्मृति के कारण अचानक प्रिय या  उसकी याद आ जाये जो शरीर से मुक्त हो गया था, हमारे साथ रहा था। कितना गहरा संबंध था।
     " कि अब कहाँ होगा!"

किंतु यह सब  शून्यता तो दूसरे पर निर्भर हुई। स्वयं शून्य होने के लिए आध्यात्मिक होना अत्यंत आवश्यक है योग मार्ग का अनुसरण कर ध्यान के प्रयोग कर शून्य की अनुभूति कर सकते हैं।

ध्यान और शून्य अवस्था द्वारा आत्म उत्कर्ष व्यक्तित्व विकास करने की कला सीखें ...


🔸संपर्क🔸
 डा सुरेंद्र सिंह विरहे
 मनोदैहिक आरोग्य आध्यात्मिक स्वास्थ्य विषेशज्ञ एवं लाईफ कोच, स्प्रिचुअल योगा थेरेपिस्ट

स्थापना सदस्य
मध्य प्रदेश मैंटल हैल्थ एलाइंस चोइथराम हॉस्पिटल नर्सिंग कॉलेज इंदौर

निदेशक
दिव्य जीवन समाधान उत्कर्ष
Divine Life Solutions Utkarsh

पूर्व अध्येता
भारतीय दार्शनिक अनुसन्धान परिषद् दिल्ली

"Philosophy of Mind And Consciousness Studies"

Ex. Research Scholar
At: Indian Council of Philosophical Research ICPR
Delhi

utkarshfrom1998@gmail.com

9826042177,
8989832149
                     
         
                                                                            मन

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