Tuesday, October 25, 2022

सूर्य ग्रहण से सावधान ? ग्रहण से क्या सीखें

  

सूर्य ग्रहण से सावधान ?

सूर्य ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाएं, बच्चे, बुजुर्ग और पीड़ित लोगों को विशेष रूप से सावधानी बरतनी चाहिए. सूर्य ग्रहण के समय राहु-केतु और सूर्य का प्रभाव अधिक हो जाता है, इसलिए गर्भ में पल रहे बच्चों की कुंडली में इन ग्रहों से संबंधित दोष आ सकते है.


सूर्य ग्रहण से मानव जीवन को तीन प्रमुख सीखें 

 

 *_पहली -_* *इस सृष्टि में सब कुछ परिवर्तनशील है। इस भू मण्डल पर शाश्वत जैसा कुछ भी नहीं। समस्त चराचर जगत को प्रकाशित करने वाले सूर्य देव की किरणों को भी कुछ समय के लिए ही सही मगर पृथ्वी तक पहुँचने में असमर्थता हो जाती है अथवा पृथ्वी से सूर्य किरणों का ह्रास हो जाता है।*


        *_दूसरी -_*  *जीवन में सदैव अवरोध आते रहेंगे। यात्रा जितनी लंबी होगी अथवा लक्ष्य जितना श्रेष्ठ होगा अवरोध भी उतने ही उत्पन्न होंगे। बस उन क्षणों में धैर्य का परिचय देते हुए ये विचार करें कि जब सुख ही शाश्वत नहीं रहा तो दुख की क्या औकात है..? समय बुरा हो सकता है मगर जीवन कदापि नहीं। ये वक्त भी गुजर जायेगा, बस इतना ध्यान रहे।*


  *_तीसरी -_*  *एक महत्वपूर्ण बात और वो ये कि जिस प्रकार सूर्य ग्रहण लगने पर भी मूल रूप से भगवान सूर्य नारायण में कोई परिवर्तन नहीं आता। दूर से देखने पर लगेगा कि सूर्य पर अंधेरा छा गया है जबकि यथार्थ में सूर्य की स्थिति सम बनी रहती है। ऐसे ही जीवन के सुख - दुख, मान - अपमान, अनुकूलता - प्रतिकूलता एवं यश - अपयश में आत्मा भी निर्लेप ही रहती है।*


         *जीवन में बाहरी स्थितियाँ अवश्य परिवर्तनशील हैं मगर आत्मा सदैव इन सब से परे अपनी आनंद अवस्था में ही रहती है। बस हमारी दृष्टि बदल जाए और ये भीतर का शाश्वत आनंद हमारे जीवन में भी छलक पड़े।*

🙏🏾🪴🌺🪴


Friday, October 21, 2022

जिन्दगी में अध्यात्म क्यों जरूरी है

जिन्दगी में अध्यात्म क्यों जरूरी है ..

जो कुछ भी आपको शांतिपूर्ण, हर्षित और संतुष्ट महसूस कराता है वह आध्यात्मिकता है। दयालुता और भलाई के सभी कार्य जिनका आप पूरे दिन सामना करते हैं। मानसिक या भावनात्मक जुड़ाव के गहन स्तर पर आधारित संबंध होना। भौतिक मूल्यों या खोज से संबंधित नहीं है। गहरी भावनाओं और विश्वासों के साथ करना, जिसमें एक व्यक्ति की शांति की भावना, उद्देश्य, दूसरों से संबंध और जीवन के अर्थ के बारे में विश्वास शामिल हैं। ऐसी गतिविधियाँ जो खुद को और जिनके साथ हम बातचीत करते हैं, दोनों को नवीनीकृत, उत्थान, आराम, स्वस्थ और प्रेरित करती हैं।

क्या आप किसी भी प्रकार की स्वास्थ्य समस्या का सामना कर रहे हैं ? यदि आप किसी भी रोग से पीड़ित हैं या आपके परिवार के किसी सदस्य,मित्र का शारीरिक,मानसिक तथा आध्यात्मिक स्वास्थ्य ठीक नहीं है वे अगर रोग, विकार, अवसाद, निर्भरता, व्यसन, लत, अनिश्चितता, तनाव, डर कमजोरी आदि से पीड़ित,दुःखी,एवं परेशान हैं तो हमसे संपर्क करें। हम आध्यात्मिक योग चिकित्सा तथा वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों द्वारा पारंपरिक योगिक उपायों, आयुर्वेद औषधि के साथ उपचार - इलाज- योग थेरेपी - आध्यात्मिक हीलिंग आदि से संपूर्ण स्वास्थ्य समाधान एवं निदान प्रदान करते है .. 

आध्यात्मिक स्वास्थ्य ...अपने स्वरूप में स्थित हो जाना ही आध्यात्मिक स्वास्थ्य है। यह बहुत उच्च स्थिति है। अपने स्वरूप में स्थित होना सरल बात नहीं है। इसके लिए पहले अपने स्वरूप को पहचानना होगा और उसका अनुभव करना होगा। अपने भीतर से जुड़ना होगा।

आध्यात्मिक शिक्षा, मनोदैहिक विकार उपचार, अवसाद और सार्वजनिक स्वास्थ्य अनुसंधान, ब्रह्मांडीय - सुपर चेतना थेरेपी, दिव्य ऊर्जा अनुभव शिक्षण, आत्मा शोधन अभ्यास मार्गदर्शन, तंत्र योग, मानसिक स्वास्थ्य हीलिंग, आयुर्वेद वैकल्पिक चिकित्सा, जीवन कोचिंग, परामर्श, जागरूकता अभियान, इंटरनेट गेमिंग की लत चिकित्सा, ऑनलाइन परामर्श, जीवन समस्या समाधान परामर्श, व्यक्तित्व विकास , सर्वांगीण प्रगति समृद्धि कीर्ति यश धन वैभव प्राप्ति जीवन में उत्कर्ष उपलब्धि हेतु सम्पूर्ण दिव्य समाधान सुनिश्चित करें

वर्तमान जीवन : आज सामान्यतया व्यक्ति परिवार से, धन-दौलत से, जमीन-जायदाद से, रिश्ते-नातों से जुड़ता है। गहराई में देखा जाए तो वह अपने से बाहर दिखाई देने वाले शरीर से जुड़ता है।


 यह जुड़ना वास्तविक जुड़ना नहीं है, क्योंकि यह सब तो एक दिन छूट ही जाना है। स्वरूप को पहचानने के लिए बाहर का सब कुछ जाना हुआ, याद किया हुआ, पाया हुआ, बाहर ही छोड़कर शांत भाव से स्थिर हो जाना होता है। जब तक बाहर का छूटेगा नहीं, तब तक भीतर का आत्मदर्शन मिलेगा नहीं। यह स्थिति निर्विचार की अवस्था है। इसे ध्यान की अवस्था भी कहा गया है। यह स्थिति आध्यात्मिक स्वास्थ्य की अवस्था है।


इस अवस्था में दृष्टा अपने ही स्वरूप में स्थित हो जाता है। जब साधक एक बार अपने स्वरूप का दर्शन कर लेता है, तब उसके भीतरी मन के मलों का नाश होने लगता है। काम, क्रोध, लोभ और मोह उसे सताते नहीं हैं। चिंता, चिंतन में बदल जाती है। तनाव, शांति में। सुख-दुख, आनन्द में। निराशा, प्रसन्नता में। घृणा, प्रेम में तब्दील हो जाता है। हिंसा, करुणा में। झूठ, सत्य में। कामवासना, ब्रह्मचर्य में। चोरी का भाव अस्तेय में। इच्छाएं संतुष्टि में। वाणी का तीखापन कोमलता में। आहार मिताहार हो जाता है। सबके साथ मित्रता व प्रेम का भाव आ जाता है, फिर न कोई शोक होता है, न रोग होता है। अवगुणों, मलिनताओं, दुखों का स्वत: ही नाश होने लगता है। ऐसे व्यक्ति के लिए फिर भी कुछ अशुभ नहीं होता, क्योंकि वह आत्मदर्शन कर चुका होता है। शरीर को स्वस्थ रखने का उसका थोड़ा प्रयास भी सार्थक सिद्ध होता है। ऐसे में योग की साधना पूर्ण स्वास्थ्य प्रदान करने वाली सिद्ध होती है।


स्वस्थ कौन? स्वस्थ का अर्थ होता है, स्व में स्थित हो जाना। अर्थात् स्वयं पर स्वयं का नियंत्रण, अनुशासन अथवा पूर्ण स्वावलम्बन। अपने स्वभाव में रहना। अनुकूलता और प्रतिकूलता दोनों परिस्थितियों में समभाव बनाएं रखना, सन्तुलित रहना, राग और द्वेष से परे हो जाना। ऐसी अवस्था में शरीर निरोग, मन निर्मल, विचार पवित्र और आत्मा शुद्ध हो जाती है। स्व का मतलब आत्मा होता है। अतः आध्यात्मिक दृष्टि में आत्म स्वभाव में रहने वाला ही स्व में स्थित अर्थात् स्वस्थ होता है।

यदि आप हमेशा आध्यात्मिक शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ रहना चाहते हैं..


 🔸संपर्क करें🔸

 डा सुरेंद्र सिंह विरहे

 मनोदैहिक आरोग्य आध्यात्मिक स्वास्थ्य विषेशज्ञ एवं लाईफ कोच, स्प्रिचुअल योगा थेरेपिस्ट


उप निदेशक

मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी संस्कृति परिषद्


शोध समन्वयक

आध्यात्मिक नैतिक मूल्य शिक्षा शोध


धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग मध्य प्रदेश शासन 


स्थापना सदस्य

मध्य प्रदेश मैंटल हैल्थ एलाइंस चोइथराम हॉस्पिटल नर्सिंग कॉलेज इंदौर


निदेशक

दिव्य जीवन समाधान उत्कर्ष

Divine Life Solutions Utkarsh


पूर्व अध्येता

भारतीय दार्शनिक अनुसन्धान परिषद् दिल्ली


"Philosophy of Mind And Consciousness Studies"


Ex. Research Scholar

At: Indian Council of Philosophical Research ICPR

Delhi


utkarshfrom1998@gmail.com


9826042177,

8989832149

Wednesday, October 19, 2022

डिप्रेशन या अवसाद कैसे बच सकते है?

 

डिप्रेशन

डिप्रेशन या अवसाद क्या है?
डिप्रेशन एक गंभीर घातक बीमारी है, जिसमें आपका शरीर, मन की दशा और विचार शामिल होते है। ये आपके खाना खाने और नींद लेने के तौर तरीकों पर असर डालता है। यहां तक कि आप अपने बारे में क्या महसूस करते है और दूसरी बातों के बारे में क्या सोचते है, इस पर भी डिप्रेशन असर डालता है।

डिप्रेशन उदासी से कहीं ज़्यादा गहरा मामला होता है। 
डिप्रेशन (अवसाद) का कोई एक कारण नहीं होता। कई बार ये बीमारी पारिवारिक होती है, लेकिन येउन्हें भी होता है, जिनके परिवार में कोई भी डिप्रेशन का शिकार ना हुआ हो।

ज़िंदगी में तनाव भरे बदलाव जैसे तलाक, नौकरी गंवाना, अपने करीबी इंसान को खो देना, और कोई गंभीर बीमारी का शिकार हो जाने के कारण भी डिप्रेशन या अवसाद होता है। कुछ लोग मानते है कि बूढ़े लोगों में डिप्रेशन (अवसाद) सामान्य बात है, लेकिन ऐसा नहीं है।

डिप्रेशन के लक्षण क्या हैं?

  • हमेशा दुखी व खाली महसूस करना।

  • अपनी पसंदीदा चीज़ों में दिलचस्पी खो देना

  • चिड़चिड़ापन महसूस करना

  • बहुत रोना

  • खुद को अपराधी, बेकार और बिना काम का समझना

  • एक चीज़ पर ध्यान लगाने में, या निर्णय लेने में कठिनाई

  • बहुत सोना या बिल्कुल ना सोना

  • बहुत खाना या बिलकुल ना खाना।

  • खुदकुशी या मृत्यु के ख़्याल आना

  • शराब या ड्रग लेना


डिप्रेशन का सामना कैसे करें ?
ऊपर दिए लक्षण अगर दो हफ्ते से ज़्यादा समय तक दिखाई दें, तो किसी प्रोफेशनल की मदद लें। डिप्रेशन कई बीमारियों के कारण भी हो सकता है, जैसे डायबिटीज़ , हृदयरोग, अल्ज़ाइमर, हार्टअटैक, कैंसर और स्ट्रोक। कुछ दवाईयों से डिप्रेशन हो सकता है, यहां तक कि कुछ मानसिक बीमारियां और ड्रग्स लेने की आदत से भी डिप्रेशन हो सकता है। इलाज से आपको डिप्रेशन से निकलने में मदद मिलेगी।
 
डिप्रेशन का इलाज कैसे करें?
अगर आपके मस्तिष्क के रसायन (केमिकल्स) संतुलित नहीं है, तो इससे डिप्रेशन हो सकता है। कुछ लोगों में इलाज का असर होता है लेकिन कुछ लोगों को सलाह मश्विरे से मदद मिलती है। कुछ लोगों को दवा और सलाह मश्विरे के मेल जोल से फायदा पहुंचता है। अगर आपको सलाह मश्विरे और दवाई, दोनों से ही फायदा ना पहुंचे, तो तब तक कोशिश करते रहें, जब तक कि डिप्रेशन से निकलने का सही रास्ता ना मिल जाए।  ज़्यादांतर लोग कुछ हफ्तों में ठीक महसूस करने लगते है।

समाधान:
अवसाद से निकलने के लिए व्यक्ति को अपनी दिनचर्या में व्यायाम, योग एवं ध्यान को अवश्य जगह देनी चाहिए। यह अवसाद के रोगी के मस्तिष्क को शान्त करते हैं तथा उनमें हार्मोनल असंतुलन को ठीक करते हैं। -व्यक्ति को सुबह उठकर सैर पर जाना चाहिए उसके बाद योगासन और प्राणायाम करना चाहिए। -अवसाद के रोगी को ध्यान या मेडिटेशन करना चाहिए।
🔸संपर्क🔸
 डा सुरेंद्र सिंह विरहे
 मनोदैहिक आरोग्य आध्यात्मिक स्वास्थ्य विषेशज्ञ एवं लाईफ कोच, स्प्रिचुअल योगा थेरेपिस्ट

स्थापना सदस्य
मध्य प्रदेश मैंटल हैल्थ एलाइंस चोइथराम हॉस्पिटल नर्सिंग कॉलेज इंदौर

निदेशक
दिव्य जीवन समाधान उत्कर्ष
Divine Life Solutions Utkarsh

पूर्व अध्येता
भारतीय दार्शनिक अनुसन्धान परिषद् दिल्ली

"Philosophy of Mind And Consciousness Studies"

Ex. Research Scholar
At: Indian Council of Philosophical Research ICPR
Delhi

utkarshfrom1998@gmail.com

9826042177,
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Saturday, October 8, 2022

आध्यात्मिक पर्यटन केन्द्र मध्य प्रदेश में स्तिथ महाकाल की नगरी उज्जैन "नव निर्मित भव्य दिव्य महाकाल लोक"

आध्यात्मिक  पर्यटन  केन्द्र मध्य प्रदेश में स्तिथ महाकाल की नगरी उज्जैन "नव निर्मित भव्य दिव्य श्री महाकाल लोक"

महाकाल के प्रमुख रहस्यलोक: 

उज्जैन के दक्षिण में शिप्रा नदी से थोड़ा दूर उज्जैन का खास आकर्षण यहां का महाकाल मंदिर है। यहां का ज्योतिर्लिग पुराणों में वर्णित द्वादश ज्योतिर्लिगों में से एक है। उज्जैन के प्रसिद्ध महाकाल वन में स्थित महाकाल की महिमा प्राचीन काल से ही दूर-दूर तक फैली हुई है। महाकाल का यह मंदिर न जाने कितनी बार बना और टूटा। आज का महाकाल का यह मंदिर आज से डेढ़ सौ वर्ष पूर्व राणोजी सिंधिया के मुनीम रामचंद्र बाबा शेण बी ने बनवाया था। इसके निर्माण में मंदिर के पुराने अवशेषों का भी उपयोग हुआ। रामचंद्र बाबा से भी कुछ वर्ष पहले जयपुर के महाराजा जयसिंह ने द्वारकाधीश यानी गोपाल मंदिर यहां बनवाया था। यहां श्रीकृष्ण की चांदी की प्रतिमा है। यहां तक कि मंदिर के दरवाजे भी चांदी के बने हुए हैं। कहा जाता है कि मंदिर का मुख्य द्वार वही है जिसे सिंधिया ने गजनी से लूट में हासिल किया था। इसके पहले यह द्वार सोमनाथ की लूट के दौरान यहां से गजनी पहुंचा था।

यहां द्वारकाधीश की प्रतिमा होने से इसे द्वारकाधीश मंदिर भी कहा जाता है। मंदिर की रचना और परिक्रमा परिसर अत्यंत रमणीय है। यहां दर्शनार्थियों की हमेशा भीड़ लगी रहती है, लेकिन जितनी भीड़ महाकालेश्वर मंदिर में होती है उतनी यहां और किसी मंदिर में नहीं होती। घंटों तक लोग कतारबद्ध खड़े रहते हैं। सिंहस्थ पर्व और महाशिवरात्रि के दौरान तो पूरा-पूरा दिन इंतजार करना पड़ता है।

चिता भस्म से पूजन भस्म आरती विश्व प्रसिद्ध:

महाकालेश्वर का वर्तमान मंदिर तीन भागों में बंटा है। सबसे नीचे तलघर में महाकालेश्वर (मुख्य ज्योतिर्लिग), उसके ऊपर ओंकारेश्वर और सबसे ऊपर नाग चंदेश्वर मंदिर है। नाग चंदेश्वर मंदिर साल में सिर्फ एक बार खुलता है, नागपंचमी के अवसर पर। महाकालेश्वर की यह स्वयंभू मूर्ति विशाल और नागवेष्टित है। शिवजी के समक्ष नंदीगण की पाषाण प्रतिमा है। शिवजी की मूर्ति के गर्भगृह के द्वार का मुख दक्षिण की ओर है। तंत्र में दक्षिण मूर्ति की आराधना का विशेष महत्व है। पश्चिम की ओर गणेश और उत्तर की ओर पार्वती की मूर्ति है। शंकर जी का पूरा परिवार यहीं है।

महाकालेश्वर की दिन में तीन बार पूजा, श्रृंगार तथा भोग आदि से अर्चना होती है। ब्रह्म मुहू‌र्र्त में चार बजे महाकालेश्वर का पूजन चिता भस्म से किया जाता है। यह भस्म किसी मृतक की चिता से लाया जाता है। पूजन का यह कार्य स्वयं महंत करते हैं। इसके बाद पहली सरकारी पूजा सुबह आठ बजे होती है। फिर मध्याह्न और संध्या को पूजा की जाती है। प्रात: और संध्या वाली पूजा में कहीं ज्यादा भीड़ होती है। 

नव निर्मित श्री महाकाल लोक :

 मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित महाकाल परिसर का विस्तार 20 हेक्टेयर में किया जा रहा है। विस्तार के बाद महाकाल मंदिर परिसर उत्तर प्रदेश के काशी विश्वनाथ कॉरिडोर से चार गुना बड़ा होगा जाएगा। काशी विश्वनाथ कॉरीडोर 5 हेक्टेयर में फैला है। महाकाल कॉरिडोर पौराणिक सरोवर रुद्रसागर के किनारे विकसित किया जा रहा है। यहां भगवान शिव, देवी सती और दूसरे धार्मिक किस्सों से जुड़ी करीब 200 मूर्तियां और भित्त चित्र बनाए गए हैं। श्रद्धालु हर एक भित्ति चित्र की कथा इस पर स्कैन कर सुन सकेंगे। सप्त ऋषि, नवग्रह मंडल, त्रिपुरासुर वध, कमल ताल में विराजित शिव, 108 स्तम्भों में शिव के आनंद तांडव का अंकन, शिव स्तम्भ, भव्य प्रवेश द्वार पर विराजित नंदी की विशाल प्रतिमाएं मौजूद हैं। महाकाल कॉरिडोर में देश का पहला नाइट गार्डन भी बनाया गया है।

इसके पहले से ही मध्य प्रदेश में स्तिथ महाकाल की नगरी उज्जैन में कई महत्वपूर्ण मंदिर दर्शनीय स्थल है जहां पर अत्यधिक संख्या में श्रद्धालु आते रहें हैं।

 मंदिरों के अलावा नगर से थोड़ी दूर एक गुफा है। यह अपने भीतर रहस्यों की एक पूरी दुनिया ही समेटे हुए है। दूसरी तरफ बौद्ध स्तूपों के लिए प्रसिद्ध सांची है, जहां कलिंग युद्ध के बाद मर्माहत सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी।

क्या है कुंभ मेले की पौराणिक प्रासंगिकता:

एक कथा है पुराणों में कि जब देवताओं और राक्षसों ने मिलकर समुद्र का मंथन किया तब उसमें से कई अमूल्य चीजें प्राप्त हुई। इनमें एक अमृत कलश भी था। देवता बिलकुल नहीं चाहते थे कि इस अमृत का थोड़ा सा भी हिस्सा वे राक्षसों के साथ बांटें। देवराज इंद्र के संकेत देने पर उनका पुत्र जयंत अमृत कलश लेकर भाग निकला। राक्षस उसके पीछे-पीछे भागे। कलश पर कब्जे के लिए बारह दिनों तक हुए संघर्ष के दौरान अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी के चार स्थानों पर छलक पड़ीं। ये स्थान हैं- हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन । कलश से छलकी अमृत बूंदों को इन स्थानों पर स्थित पवित्र नदियों ने अंगीकार कर लिया। उज्जैन के किनारे बहने वाली शिप्रा भी इन नदियों में से एक थी।

महाकाल नगरी उज्जैन की पहचान सिर्फ सिंहस्थ पर्व नहीं है। अवंतिका, विशाला, अमरावती, सुवर्णश्रृंगा, कुशस्थली और कनकश्रृंगा ग्रंथों और इतिहास के पन्नों में चमकती यह प्राचीन नगरी वही है जहां राजा हरिश्चंद्र ने मोक्ष की सिद्धि की थी।

उज्जैन  में ही सप्तर्षियों ने मुक्ति प्राप्त की थी। यह स्थान भगवान कृष्ण की पाठशाला संदीपनी आश्रम के नाम से जाना जाता है। उज्जैनी भर्तृहरि की योग भूमि थी। जहां कालिदास ने ‘अभिज्ञान शाकुंतलम’ और मेघदूत जैसे महाकाव्य रचे। विक्रमादित्य ने अपना न्याय क्षेत्र बनाया। बाणभट्ट, संदीपन, शंकराचार्य, वल्लभाचार्य जैसे संत विद्वानों ने साधना की और न जाने कितनी महान आत्माओं की उज्जैनी कर्म और तपस्थली बनी। ऐसी भूमि पर कदम रखते ही कौन खुद को धन्य महसूस नहीं करेगा। 

उज्जैन आवागमन साधन: मध्य प्रदेश में बसे उज्जैन के लिए निकटतम हवाई अड्डा इंदौर है, जो उज्जैन से पचपन किलोमीटर की दूरी पर है। इंदौर में रेलवे स्टेशन भी है जो दिल्ली, मुंबई, बनारस, भोपाल, अहमदाबाद, बिलासपुर और जयपुर जैसे महत्वपूर्ण स्थानों से सीधा जुड़ा है। इंदौर से उज्जैन बस या ट्रेन के जरिये आसानी से 45 मिनट में पहुंचा जा सकता है।


डा सुरेंद्र सिंह विरहे

शोध समन्वयक

आध्यात्मिक नैतिक मूल्य शिक्षा शोध

धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग मध्य प्रदेश शासन

9826042177




Thursday, October 6, 2022

सनातन धर्म हिंदु राष्ट्र निर्माण आध्यात्मिक युवा नेतृत्व अभियान

वर्तमान धर्म चक्र परिवर्तन के दौर में धर्म रक्षा, धर्म संरक्षण, धर्म शिक्षण प्रशिक्षण की नितांत आवश्यकता है। सनातन धर्म को देश की चेतना के केंद्र में लाने के लिए, उसे भारतवर्ष का अग्रणी एवं उच्चतम आदर्श बनाने के लिए इस उद्देश्य हेतु मूल भारतीय संस्कृति पर आधारित, राष्ट्रीय एवं वैश्विक दृष्टिकोण के प्रतिनिधि दलों एवं व्यक्तियों को साथ आ कर,हमें महान भारत का पुनर्निर्माण करना चाहिए ताकि भारत पूर्वकाल की महानता से भी अधिक महान हो। अपनी ऊर्जा, शक्ति और साधनों को एकत्रित करके सामाजिक, सांस्कृतिक, बौधिक एवं आध्यात्म आदि केंद्रित समूहों का निर्माण करना चाहिए उन्हें कार्यान्वित करने की योजना की आवश्यकता है।

भारतवर्ष में पुनः अपनी महानता का बोध जागृत किया जा सकता है अपनी आध्यात्मिकता के महानता के बोध के द्वारा। इसी महानता का बोध सकल राष्ट्रप्रेम का मुख्य पोषक है।

दुर्भाग्यवश हम षडयंत्र शिकार हो कर जिन गहनताओं एवं ऊँचाइयों को हम पीढ़ी दर पीढ़ी खो चुके हैं, इनकी पुनः प्राप्ति करें; हमारे पूर्वकाल, धरोहर एवं संस्कृति का अधिक गहनता से आत्मसात् करें, तथा उसे वर्तमान में पुनः जीवंत करें। हमें उसे एक शक्ति का स्वरूप देना है ताकि वह हमारे भविष्य का निर्माण कर सके। यह तब होगा जब हम भारतवासी, हमारे स्वयं की गहनता में ज्ञान और तपस्या की उस शक्ति एवं ज्योति को जागृत करें जो कि हमारे राष्ट्र की आत्मा में नित्य सनातन धर्म के रूप में वास करती है।

यह उद्देश्य विलक्षण एवं निरंतर व्यक्तिगत प्रतिबद्धता एवं प्रयास की माँग करेगा। हमें एक युवा केंद्रित कार्ययोजना की‌ तथा उसे शीघ्र एवं प्रभावी ढंग से क्रियान्वित करने की आवश्यकता है। 

युवाओं के लिए सनातन विषयों एवं विचारों पर आधारित कार्यशालाएँ, उच्च पाठशाला से लेकर विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के लिए, युवा वृत्तिक एवं व्यवसायियों एवं अध्यापकों के लिए अध्ययन गोष्ठी एवं कार्यशालाओं का आयोजन। अध्यापकों के लिए विशेष कार्यशालाएँ – विभिन्न संदर्भों में विद्यार्थियों को सनातन धर्म का बोध कैसे कराया जाए, अध्यापक इस कार्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होंगे। जो अध्यापक इस कार्य का उत्तरदायित्व लेने हेतु तैयार हों, उनके लिए एक प्रखर पाठ्यक्रम सरलता से तैयार किया का सकता है।

देश के युवाओं को सनातन संस्कृति धर्म आध्यात्म की ओर अभिमुख करने की प्रारम्भिक प्रथम चरण की योजना प्रस्तावित है ।कृपया उचित मार्गदर्शन सहयोग प्रदान करें।

उत्कर्ष  विकास संस्थान द्वारा  12 जनवरी 2023 स्वामी विवेकानंद जयंती के उपलक्ष्य में अखिल भारतीय स्तर पर सनातन धर्म हिंदु राष्ट्र निर्माण आध्यात्मिक युवा नेतृत्व अभियान के शुभारंभ किया जाएगा ।

स्वामी विवेकानन्द जी के युवा शक्ति आह्वान शिकागो  धर्म संसद  सम्मेलन में दिए गए भाषण सनातन हिन्दू धर्म संस्कृति एवम् भारतवर्ष की महानता राष्ट्र चेतना स्वाभिमान को पुनः जाग्रत करने आध्यात्मिक संस्कृति शिक्षा संस्कार मूल्यों को युवा शक्ति मे नेतृत्व शक्ति के साथ प्ररेणा आत्म विश्वास  जगाने के उद्देश्य से यह अभियान शुरू किया जाएगा ।

युवा दिवस पर  होने वाले इस अभियान  में अखिल भारतीय स्तर पर स्कूलों और कॉलेजों के करीब 12  करोड़  से अधिक विद्यार्थी युवाओं को जोड़ने की योजना है इस हेतु ऑनलाइन पंजीयन का लक्ष्य रखा गया है। 

उत्कर्ष संस्थान आयोजन समिति ने निर्धारित किया है कि 

हर प्रदेश में जिला स्तर पर अध्यात्म के युवा योद्धा," आध्यात्मिक विश्व गुरु" संकल्प अभियान आयोजन समितियों का गठन किया जाएगा  योजना का विस्तृत कार्यक्रम विवरण  उपलब्ध है।

शीघ्र ही अभियान योजना की तैयारियों के लिए बहुमाध्यमिक प्रारूप – चलचित्र (cinema), ऑनलाइन (online), यूट्यूब (YouTube) आदि माध्यमों का धर्म के प्रसार एवं संचार के लिए व्यापक प्रयोग करना होगा इस हेतु ऑनलाइन गूगल मिट के माध्यम से महाकाल सेना,  गीता ज्ञानी, कर्म योगी , सनातन ज्ञान योगी एव भक्ति योगी ,आदर्श श्री राम डिजिटल सेना, स्वयंसेवक कार्यकर्ताओं की मीटिंग होगी तत पश्चात सम्पर्क संवाद कर सहयोगी दल गठित किए जायेंगे ।

इसी तरह अगले चरण में सोशल मीडिया के द्वारा केंद्रित एवं अनुशासित प्रसार, संप्रेषण के लिए अत्यंत आवश्यक होगा। अगर हमें युवा पीढ़ी को जागृत करना है, तो हमें सोशल मीडिया की भाषा में महारत प्राप्त करनी होगी। तथापि, जो लोग सोशल मीडिया का संचालन करेंगे उनका अवश्य ही तत्परतापूर्वक चयन, प्रशिक्षण एवं सहयोग करना होगा। ऑनलाइन अध्ययन गोष्ठियाँ, संक्षिप्त बातचीत, विषय केंद्रित साक्षात्कार, टेड-एक्स (Ted-X) की तरह विषय केंद्रित व्याख्यान आदि का निरंतर प्रसार देशभर में होना चाहिए।

युवा हमारे कार्य के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। भारत एक युवा देश है, हमारी पचास प्रतिशत जनसंख्या पैंतीस वर्ष की आयु से कम है। युवाओं को मार्गदर्शन एवं निर्देशन की आवश्यकता है। यह विशेष रूप से असुरक्षित एवं प्रभाव्य हैं, किसी भी विश्वसनीय आख्यान से प्रभावित हो सकते हैं। सनातन आख्यान निश्चय ही उन तक प्रभावी रूप से पहुँचना चाहिए। क्योंकी युवा पीढ़ी “युवा” भाषा को प्रतिक्रिया देती है, युवा दार्शनिक अथवा शैक्षिक भाषा को कोई प्रतिक्रिया नहीं देंगे; ना ही वह किसी उपदेशक अथवा अध्यापक को कोई प्रतिक्रिया देंगे। वह उन प्रखर युवाओं को प्रतिक्रिया देंगे जो कि उनकी भाषा में बात करते हैं तथा उनके मुद्दों को संबोधित करते हैं। 

क्या हम सनातन धर्म के सत्यों और अवधारणाओं को समकालीन उत्तर आधुनिक भाषा में प्रस्तुत कर सकते हैं जो की गम्भीर विचारधारा ना हो और जो कर्मकाण्ड से पूर्णतः मुक्त हो? 

हमें सनातन क्रांति धर्मी प्राणशक्ति का आह्वान करना है, जिसमें हमारी जीवन शक्ति एवं भावना शक्ति वास करती है। सनातन धर्म एवं मानव चेतना के क्षेत्र में प्रगतिशील अनुसंधान एवं अध्ययन, विचार एवं ज्ञान का सतत विकास करना होगा।

सनातन धर्म, मानव चित्त एवं विकासमूलक अध्यात्म और समकालीन राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय संदर्भों में जन जाग्रति एवं योगसाधनाओं के क्षेत्र में विश्व स्तर के शोध को प्रोत्साहित करना ही सनातन धर्म हिंदु राष्ट्र निर्माण आध्यात्मिक युवा नेतृत्व अभियान का ध्येय है।

डा सुरेंद्र सिंह विरहे

शोध समन्वयक

आध्यात्मिक नैतिक मूल्य शिक्षा शोध

धर्मिक न्यास धर्मस्व विभाग

मध्य प्रदेश शासन

उप निदेशक मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी संस्कृति परिषद् संस्कृति विभाग मध्य प्रदेश शासन

सचिव

उत्कर्ष... संस्थान

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Sunday, October 2, 2022

Vijaya Dashami Dussehra festival is the glorious festival of assimilating the heritage of Indian Sanatan Hindu culture

Vijaya Dashami Dussehra festival is the glorious festival of assimilating the heritage of Indian Sanatan Hindu culture

Indian spiritual culture holds special importance all over the world for its Teej festival.

Dussehra is not only a festival but is also considered a proud symbol of the heritage of eternal truth and values of Sanatan Hindu Dharma.

Many mythological, religious beliefs and stories are also associated with this festival of Vijaya Dashami, Dussehra.

This festival is celebrated every year on the tenth day of Shukla Paksha of Ashwin month as Dussehra / Vijayadashami, which holds a prominent place in the major festivals of Hindu religion.


It is a festival of bravery. Dussehra is celebrated in the form of victory celebration of the victory of Maryada Purushottam Lord Shri Ram in the form of victory of Dharma over unrighteousness, because on this day Lord Shri Ram killed the ungodly Lankapati King Ravana.


This festival is the tenth day of Shardiya Navratri worship, celebrated for the worship of Goddess Jagadamba Devi Durga, in which all the fasting people break the fast. That is, they complete their sadhana austerity.

This festival is celebrated on the tenth day of the month of Ashwin with great enthusiasm and full religious devotion in every corner of the country. 

Because this festival is very important in the form of courage, bravery, sadhna, worship of power and worship of Dharma Raksha Shastra. It is a symbol of immense joy, gaiety and victory.

Traditionally, ten heads of Ravana in Dussehra are considered to be indicative of evils i.e. ten sins.

There is lust, anger, greed, attachment, violence, laziness, falsehood, ego, item and theft.

In fact, we want salvation in some form or the other from all these evils and character sins. In this way, every year we burn the effigy of Ravana by making it the biggest with ten heads in the hope that with this effigy all our evils will also be absorbed in the fire and we may win the victory of religion over them. 

On the day of Vijaya Dashami, Lord Rama killed the demon Ravana and freed Mother Sita from her captivity. According to mythological beliefs, the Ram-Ravan war took place during Navratri. Ravana died during the period of Ashtami-Navmi and his cremation took place on the tenth day. Whose festival started being celebrated on the day of Dashami.

Therefore, for this reason this festival is also known as Vijayadashami. On the day of Dussehra, effigies of Ravana, Kumbhakarna and Meghnath are also burnt at places.

According to the Shakti Granth Devi Bhagwat, on this day Mother Durga defeated the demon Mahishasur and liberated the deities from their oppression atrocities. It is said that before killing Ravana, Lord Shri Ram worshiped Mother Durga by invoking the supreme power. 

Then Mother Durga, pleased with his worship, gave him the boon of victory. That is why the devotees worshiping Shakti worship Maa Durga in Dussehra. Some people fast and fast. Devotees who worship by establishing the idol of Durga do idol-immersion program with music and music. 

By offering Havan Yagya, Maha Prasadi Bhog distribution is organized, by doing this the sadhna of Mother Shakti is fully fruitful.


Gentle seekers always protect the devotees from demonic powers, because since time immemorial there are two types of human community in this world - one with divine nature and the other with demonic tendencies.

Those with demonic tendencies are worshipers of negative evil forces, in such wicked human beings there is neither outer inner purification, nor best conduct nor truthful speech. In this type of ungodly society, by doing adultery, corrupt practices keep spreading evils.


Undoubtedly, the prestige of any nation is determined by the conduct of its people. In our texts, the concept of a superior nation has been conceived from the Arya Vidhan.

According to the Indian Sanatan culture, Arya means the conduct of the best men. The characteristic of Arya Vidhan is the human society with the characteristics of equality, social justice, goodwill etc.

Therefore, Lord Shri Ram established the Arya Vidhan there by giving the kingdom to Vibhishana after the victory of Lanka, giving the kingdom of Kishkindha to Sugriva after the slaughter of Bali.

Similarly, when Arjuna bowed down before the war to the injustice and corruption of the unrighteous, then Anand Kand Lord Shri Krishna has termed it as non-Aryan conduct.

Therefore, from a spiritual point of view, we must conquer our ten senses to eliminate the bad qualities within us. According to Shri Gita Ji, "Indriyani Dashaikam Cha".

In this way we can eliminate the evil and tamo guna within us.

In conclusion, this Vijaya Dashami Dussehra festival is a glorious festival to assimilate the heritage of Indian Sanatan Hindu culture.

Let us all take a pledge together that this

On Vijay Dashami festival, we will awaken our spiritual powers through yoga practice. So that by destroying the demonic powers, we can also destroy the vices within us.


Dr.Surendra Singh Virhe

Spiritual Health Specialist & Life Coach, Spiritual Yoga Therapist


Deputy Director
Madhya Pradesh Sahitya Akademi Sanskriti Parishad Bhopal


Research Coordinator
Spiritual Moral Values Education Research


Religious Trust and Endowment Department, Government of Madhya Pradesh Bhopal


Director

Divine Life Solution Utkarsh


Former Fellow

Indian Council of Philosophical Research Delhi


"Philosophy of Mind And Consciousness Studies"


Ex. Research Scholar

At: Indian Council of Philosophical Research ICPR Delhi

utkarshfrom1998@gmail.com

9826042177


विजया दशमी दशहरा पर्व भारतीय सनातन हिंदू संस्कृति की विरासत को आत्मसात् करने का गौरवशाली पर्व है

विजया दशमी दशहरा पर्व भारतीय सनातन हिंदू संस्कृति की विरासत को आत्मसात् करने का गौरवशाली पर्व है..

अति प्राचीन काल से ही भारतीय सनातन हिन्दू संस्कृति वीरता और शौर्य की उपासक रही है। भारतीय संस्कृति कि ऐतिहासिक गाथा इतनी गौरवशाली व अनूठी है कि देश के अलावा संपूर्ण विश्व में भी इसकी जय जयकार रूपी गूँज सुनाई देती है| इसी विशिष्टता के कारण ही तो पुरी दुनिया ने भारत को विश्व गुरु माना है।

भारतीय आध्यात्मिक संस्कृति अपने तीज त्यौहार के लिए पूरी दुनिया में विशिष्ठ महत्व रखती है।इसी विशेष परम्परा के प्रमुख पर्वो में से एक पर्व है दशहरा जिसे विजयादशमी के नाम से अत्यंत हर्ष उल्लाहास के साथ मनाया जाता है।

दशहरा सिर्फ एक त्योहार ही नही बल्कि सनातन हिन्दू धर्म की शाश्वत सत्य व मूल्यों की विरासत का गौरवशाली प्रतीक भी माना जाता है।

विजया दशमी, दशहरे के इस त्योहार के साथ कई पौराणिक, धार्मिक मान्यताएँ व कहानियाँ भी जुड़ी हुई है।

हर वर्ष आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दशहरा / विजयदशमी के रूप में यह पर्व मनाया जाता है जो हिन्दू धर्म के बड़े त्योहारों में एक प्रमुख स्थान रखता है।

यह शौर्य पराक्रम का पर्व है। अधर्म पर धर्म की जीत के रूप में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की जीत के रूप में विजय उत्सव रूप में दशहरा मनाया जाता है, क्योंकि इसी दिन भगवान् श्री राम ने अधर्मी लंकापति नरेश रावण का वध किया था।

मां शक्ति के दिव्य स्वरुप दर्शन कृपा आशीष प्रार्थना सहित यह पर्व जगदम्बा देवी दुर्गा मां की आराधना के लिए मनाये जाने वाले शारदीय नवरात्रि उपासना का दसवां दिन होता है जिसमे सभी व्रती उपवास खोलते है।अर्थात अपना साधना तप पूर्ण करते हैं।

इस पर्व को आश्विन माह की दशमी को देश के कोने-कोने में अति उत्साह और पूर्ण धार्मिक निष्ठा के साथ बड़े ही उल्लास से मनाया जाता है| क्योंकि यह त्योहार साहस, शौर्य, साधना, शक्ति की पूजा एवम धर्म रक्षा शस्त्र पूजन के रूप में अत्यंत महत्वपूर्ण है। अपार हर्ष, उल्लास और विजय का प्रतीक है।

पारम्परिक रूप से दशहरें में रावण के दस सिर बुराइयों यानि दस पापों के सूचक माने जाते है।

काम, क्रोध, लोभ, मोह, हिंसा, आलस्य, झूठ, अहंकार, मद और चोरी है।

वास्तव में इन सभी बुराइयों और चारित्रिक पापों से हम किसी ना किसी रूप में मुक्ति चाहते है| इस तरह हर साल इसी आशा में रावण का पुतला दस सिर सहित बड़े से बड़ा बना कर जलाते है कि हमारी सारी बुराइयाँ भी इस पुतले के साथ ही अग्नि में स्वाह हो जाये और हम उन पर धर्म की विजय हासिल कर लें।

विजया दशमी के दिन ही भगवान राम ने राक्षस रावण का वध कर माता सीता को उसकी कैद से छुड़ाया था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार राम-रावण युद्ध नवरात्रों में हुआ था। रावण की मृत्यु अष्टमी-नवमी के संधिकाल में हुई थी और उसका दाह संस्कार दशमी तिथि को हुआ। जिसका उत्सव दशमी के दिन मनाया जाने लगा।

अतः इसी कारण इस त्यौहार को विजयदशमी के नाम भी से जाना जाता है। दशहरे के दिन जगह-जगह रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ के भी पुतले जलाए जाते हैं।

शक्ति ग्रंथ देवी भागवत के अनुसार इस दिन मां दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस को परास्त कर उनके दमन अत्याचारों से देवताओं को मुक्ति दिलाई थी इसलिए दशमी के दिन जगह-जगह देवी दुर्गा की मूर्तियों की विशेष पूजा की जाती है। कहते हैं रावण को मारने से पूर्व प्रभु श्रीराम नेे परम शक्ति आह्वान कर मां दुर्गा की आराधना की थी।

तब मां दुर्गा ने उनकी पूजा से प्रसन्न होकर उन्हें विजय का वरदान दिया था। इसलिए शक्ति उपासक भक्तगण दशहरे में मां दुर्गा की पूजा करते हैं। कुछ लोग व्रत एवं उपवास करते हैं। दुर्गा की मूर्ति की स्थापना कर पूजा करने वाले भक्त मूर्ति-विसर्जन का कार्यक्रम संगीत और गाजे-बाजे के साथ करते हैं। हवन यज्ञ आहुति देकर महा प्रसादी भोग वितरण आयोजन करते हैं ऐसा करने से मां शक्ति की साधना पूर्णत फलित होती है। 

आसुरी शक्तियों से सज्जन साधक भक्तगणों की सदैव रक्षा करती हैं क्योंकि आदिकाल से ही इस लोक में मनुष्य समुदाय दो प्रकार का है- एक दैवीय प्रकृति वाला और दूसरा आसुरी प्रवृत्ति वाला। 

आसुरी प्रवृत्ति वाले नकारात्मक बुरी शक्तियों के उपासक होते हैं इस तरह के दुष्ट मनुष्यों में न तो बाहर भीतर की शुद्धि होती है, न श्रेष्ठ आचरण और न ही सत्य भाषण। इस प्रकार के अधर्मी समाज में व्यभिचार,भ्रष्ट आचरण कर बुराइयों को फैलाते रहते हैं।

निः संदेह किसी भी राष्ट्र की प्रतिष्ठा वहां के लोगों के आचरण से होती है। हमारे ग्रन्थों में श्रेष्ठ राष्ट्र की कल्पना आर्य विधान से की गई है। 

भारतीय सनातन संस्कृति के अनुसार आर्य का अर्थ है- श्रेष्ठ पुरुषों का आचरण। समानता, सामाजिक न्याय, सद्भावना आदि लक्षणों से युक्त मानवीय समाज ही आर्य विधान की विशेषता है। 

इसलिए भगवान श्रीराम ने लंका विजय के उपरान्त विभीषण को राज्य देकर, बाली वध के उपरान्त सुग्रीव को किष्किन्धा का राज्य देकर वहां आर्य विधान स्थापित किया। 

इसी तरह अर्जुन जब अधर्मियों के अन्याय, भ्रष्टाचार के समक्ष युद्ध से पूर्व झुक गए तो आनन्द कन्द भगवान श्री कृष्ण ने इसे अनार्य आचरण की संज्ञा दी है।

अतः आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो हमें अपने भीतर दुर्गुणों को समाप्त करने के लिए अपनी दस इंद्रियों पर विजय प्राप्त करना आवश्यक है। श्री गीता जी के अनुसार, ‘‘इन्द्रियाणी दशैकं च’’ 

इस प्रकार हम अपने भीतर बुराई व तमोगुण को समाप्त कर सकते हैं। 

निष्कर्ष रूपेण यह विजया दशमी दशहरा पर्व भारतीय सनातन हिंदू संस्कृति की विरासत को आत्मसात् करने का गौरवशाली पर्व है।

आइए हम सब मिलकर एक संकल्प लें कि इस

विजय दशमी पर्व पर हम योग साधना द्वारा अपनी आध्यात्मिक शक्तियों को जागृत करेगें। जिससे आसुरी शक्तियां का नाश कर हम अपने अंदर के भी विकारों का क्षय कर सके। 

डा सुरेंद्र सिंह विरहे

मनोदैहिक आरोग्य आध्यात्मिक स्वास्थ्य विषेशज्ञ एवं लाईफ कोच, स्प्रिचुअल योगा थेरेपिस्ट

उप निदेशक

मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी संस्कृति परिषद् भोपाल


शोध समन्वयक

आध्यात्मिक नैतिक मूल्य शिक्षा शोध

धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग मध्य प्रदेश शासन भोपाल 


स्थापना सदस्य

मध्य प्रदेश मैंटल हैल्थ एलाइंस चोइथराम हॉस्पिटल नर्सिंग कॉलेज इंदौर


निदेशक

दिव्य जीवन समाधान उत्कर्ष

Divine Life Solutions Utkarsh


पूर्व अध्येता

भारतीय दार्शनिक अनुसन्धान परिषद् दिल्ली

"Philosophy of Mind And Consciousness Studies"


Ex. Research Scholar

At: Indian Council of Philosophical Research ICPR Delhi

utkarshfrom1998@gmail.com

9826042177,

8989832149



गुर्दे की पथरी; नेफ्रोलिथियासिस; पथरी

 गुर्दे की पथरी छोटे-छोटे क्रिस्टलों से बना एक ठोस द्रव्यमान है। एक ही समय में एक या अधिक पथरी गुर्दे या मूत्रवाहिनी में हो सकती है। गुर्दे ...