Saturday, October 8, 2022

आध्यात्मिक पर्यटन केन्द्र मध्य प्रदेश में स्तिथ महाकाल की नगरी उज्जैन "नव निर्मित भव्य दिव्य महाकाल लोक"

आध्यात्मिक  पर्यटन  केन्द्र मध्य प्रदेश में स्तिथ महाकाल की नगरी उज्जैन "नव निर्मित भव्य दिव्य श्री महाकाल लोक"

महाकाल के प्रमुख रहस्यलोक: 

उज्जैन के दक्षिण में शिप्रा नदी से थोड़ा दूर उज्जैन का खास आकर्षण यहां का महाकाल मंदिर है। यहां का ज्योतिर्लिग पुराणों में वर्णित द्वादश ज्योतिर्लिगों में से एक है। उज्जैन के प्रसिद्ध महाकाल वन में स्थित महाकाल की महिमा प्राचीन काल से ही दूर-दूर तक फैली हुई है। महाकाल का यह मंदिर न जाने कितनी बार बना और टूटा। आज का महाकाल का यह मंदिर आज से डेढ़ सौ वर्ष पूर्व राणोजी सिंधिया के मुनीम रामचंद्र बाबा शेण बी ने बनवाया था। इसके निर्माण में मंदिर के पुराने अवशेषों का भी उपयोग हुआ। रामचंद्र बाबा से भी कुछ वर्ष पहले जयपुर के महाराजा जयसिंह ने द्वारकाधीश यानी गोपाल मंदिर यहां बनवाया था। यहां श्रीकृष्ण की चांदी की प्रतिमा है। यहां तक कि मंदिर के दरवाजे भी चांदी के बने हुए हैं। कहा जाता है कि मंदिर का मुख्य द्वार वही है जिसे सिंधिया ने गजनी से लूट में हासिल किया था। इसके पहले यह द्वार सोमनाथ की लूट के दौरान यहां से गजनी पहुंचा था।

यहां द्वारकाधीश की प्रतिमा होने से इसे द्वारकाधीश मंदिर भी कहा जाता है। मंदिर की रचना और परिक्रमा परिसर अत्यंत रमणीय है। यहां दर्शनार्थियों की हमेशा भीड़ लगी रहती है, लेकिन जितनी भीड़ महाकालेश्वर मंदिर में होती है उतनी यहां और किसी मंदिर में नहीं होती। घंटों तक लोग कतारबद्ध खड़े रहते हैं। सिंहस्थ पर्व और महाशिवरात्रि के दौरान तो पूरा-पूरा दिन इंतजार करना पड़ता है।

चिता भस्म से पूजन भस्म आरती विश्व प्रसिद्ध:

महाकालेश्वर का वर्तमान मंदिर तीन भागों में बंटा है। सबसे नीचे तलघर में महाकालेश्वर (मुख्य ज्योतिर्लिग), उसके ऊपर ओंकारेश्वर और सबसे ऊपर नाग चंदेश्वर मंदिर है। नाग चंदेश्वर मंदिर साल में सिर्फ एक बार खुलता है, नागपंचमी के अवसर पर। महाकालेश्वर की यह स्वयंभू मूर्ति विशाल और नागवेष्टित है। शिवजी के समक्ष नंदीगण की पाषाण प्रतिमा है। शिवजी की मूर्ति के गर्भगृह के द्वार का मुख दक्षिण की ओर है। तंत्र में दक्षिण मूर्ति की आराधना का विशेष महत्व है। पश्चिम की ओर गणेश और उत्तर की ओर पार्वती की मूर्ति है। शंकर जी का पूरा परिवार यहीं है।

महाकालेश्वर की दिन में तीन बार पूजा, श्रृंगार तथा भोग आदि से अर्चना होती है। ब्रह्म मुहू‌र्र्त में चार बजे महाकालेश्वर का पूजन चिता भस्म से किया जाता है। यह भस्म किसी मृतक की चिता से लाया जाता है। पूजन का यह कार्य स्वयं महंत करते हैं। इसके बाद पहली सरकारी पूजा सुबह आठ बजे होती है। फिर मध्याह्न और संध्या को पूजा की जाती है। प्रात: और संध्या वाली पूजा में कहीं ज्यादा भीड़ होती है। 

नव निर्मित श्री महाकाल लोक :

 मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित महाकाल परिसर का विस्तार 20 हेक्टेयर में किया जा रहा है। विस्तार के बाद महाकाल मंदिर परिसर उत्तर प्रदेश के काशी विश्वनाथ कॉरिडोर से चार गुना बड़ा होगा जाएगा। काशी विश्वनाथ कॉरीडोर 5 हेक्टेयर में फैला है। महाकाल कॉरिडोर पौराणिक सरोवर रुद्रसागर के किनारे विकसित किया जा रहा है। यहां भगवान शिव, देवी सती और दूसरे धार्मिक किस्सों से जुड़ी करीब 200 मूर्तियां और भित्त चित्र बनाए गए हैं। श्रद्धालु हर एक भित्ति चित्र की कथा इस पर स्कैन कर सुन सकेंगे। सप्त ऋषि, नवग्रह मंडल, त्रिपुरासुर वध, कमल ताल में विराजित शिव, 108 स्तम्भों में शिव के आनंद तांडव का अंकन, शिव स्तम्भ, भव्य प्रवेश द्वार पर विराजित नंदी की विशाल प्रतिमाएं मौजूद हैं। महाकाल कॉरिडोर में देश का पहला नाइट गार्डन भी बनाया गया है।

इसके पहले से ही मध्य प्रदेश में स्तिथ महाकाल की नगरी उज्जैन में कई महत्वपूर्ण मंदिर दर्शनीय स्थल है जहां पर अत्यधिक संख्या में श्रद्धालु आते रहें हैं।

 मंदिरों के अलावा नगर से थोड़ी दूर एक गुफा है। यह अपने भीतर रहस्यों की एक पूरी दुनिया ही समेटे हुए है। दूसरी तरफ बौद्ध स्तूपों के लिए प्रसिद्ध सांची है, जहां कलिंग युद्ध के बाद मर्माहत सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी।

क्या है कुंभ मेले की पौराणिक प्रासंगिकता:

एक कथा है पुराणों में कि जब देवताओं और राक्षसों ने मिलकर समुद्र का मंथन किया तब उसमें से कई अमूल्य चीजें प्राप्त हुई। इनमें एक अमृत कलश भी था। देवता बिलकुल नहीं चाहते थे कि इस अमृत का थोड़ा सा भी हिस्सा वे राक्षसों के साथ बांटें। देवराज इंद्र के संकेत देने पर उनका पुत्र जयंत अमृत कलश लेकर भाग निकला। राक्षस उसके पीछे-पीछे भागे। कलश पर कब्जे के लिए बारह दिनों तक हुए संघर्ष के दौरान अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी के चार स्थानों पर छलक पड़ीं। ये स्थान हैं- हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन । कलश से छलकी अमृत बूंदों को इन स्थानों पर स्थित पवित्र नदियों ने अंगीकार कर लिया। उज्जैन के किनारे बहने वाली शिप्रा भी इन नदियों में से एक थी।

महाकाल नगरी उज्जैन की पहचान सिर्फ सिंहस्थ पर्व नहीं है। अवंतिका, विशाला, अमरावती, सुवर्णश्रृंगा, कुशस्थली और कनकश्रृंगा ग्रंथों और इतिहास के पन्नों में चमकती यह प्राचीन नगरी वही है जहां राजा हरिश्चंद्र ने मोक्ष की सिद्धि की थी।

उज्जैन  में ही सप्तर्षियों ने मुक्ति प्राप्त की थी। यह स्थान भगवान कृष्ण की पाठशाला संदीपनी आश्रम के नाम से जाना जाता है। उज्जैनी भर्तृहरि की योग भूमि थी। जहां कालिदास ने ‘अभिज्ञान शाकुंतलम’ और मेघदूत जैसे महाकाव्य रचे। विक्रमादित्य ने अपना न्याय क्षेत्र बनाया। बाणभट्ट, संदीपन, शंकराचार्य, वल्लभाचार्य जैसे संत विद्वानों ने साधना की और न जाने कितनी महान आत्माओं की उज्जैनी कर्म और तपस्थली बनी। ऐसी भूमि पर कदम रखते ही कौन खुद को धन्य महसूस नहीं करेगा। 

उज्जैन आवागमन साधन: मध्य प्रदेश में बसे उज्जैन के लिए निकटतम हवाई अड्डा इंदौर है, जो उज्जैन से पचपन किलोमीटर की दूरी पर है। इंदौर में रेलवे स्टेशन भी है जो दिल्ली, मुंबई, बनारस, भोपाल, अहमदाबाद, बिलासपुर और जयपुर जैसे महत्वपूर्ण स्थानों से सीधा जुड़ा है। इंदौर से उज्जैन बस या ट्रेन के जरिये आसानी से 45 मिनट में पहुंचा जा सकता है।


डा सुरेंद्र सिंह विरहे

शोध समन्वयक

आध्यात्मिक नैतिक मूल्य शिक्षा शोध

धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग मध्य प्रदेश शासन

9826042177




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