Thursday, September 15, 2022

सोशल मीडिया की वॉयरल कुसंस्कृति मानसिक रूग्णता के संक्रमण से बढ़ता तनाव, अवसाद, आत्महत्या प्रवत्ति

 भूमंडलीकरण के दौर मे दुनिया के सभी प्रगतिशील राष्ट्रों मे आधुनिक तकनीकी एवं सूचना-संचार प्रौद्योगिकी विकास के चलते सभ्यता और संस्कृति के क्षेत्र मे व्यापक परिवर्तन हो रहे हैं। परिणामस्वरूप विभिन्न प्रकार की समस्याऐं भी उत्पन्न हो रही हैं। 

तथाकथित विकास की इस अंधी दौड़ में अशांति अतिवादी सोच, पर्यावरण विनाश और परमाणु युद्ध की संभावनाएँ भी बढ़ गई हैं। एक ओर जहाँ अतिवादी सोच, विचारधाराओं में टकराव, सभ्यताओं के संघर्ष ने धार्मिक असहिष्णुता, राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक विषमताआंे ने राष्ट्रों की पारस्परिक वैमनस्यता को उग्र रूप देकर अराजकता और आतंकवाद जैसी विकराल, भीषण मानवता की विरोधी सोच, अलगाववादी विनाषक शक्तियों को पनपाने, पोषित करने के अवसर भी पैदा कर दिए हैं जिसके कारण तृतीय विष्व युद्ध की आषंका से इन्कार नहीं किया जा सकता। 

वहीं दूसरी ओर वर्तमान समय में विचारधारात्मक द्वन्द्व, धार्मिक उन्माद, सभ्यताओं के संघर्ष की उक्त शंकाओं और जटिल सांस्कृतिक परिस्थितियों ने मानवीय मूल्यों व नैतिक जीवन मे गिरावट अथवा लगातार पतन की नकारात्मकता, उदासीनता और वैचारिक संकीर्णता को फैला दिया है, जो मानसिक रूग्णता के संक्रमण के समान बढ़ती ही जा रही है।

#सोशल मीडिया की वॉयरल कुसंस्कृति मानसिक रूग्णता के संक्रमण से बढ़ता तनाव, अवसाद, आत्महत्या प्रवत्ति#

चुनौतियां एवम संकट:

युवा वर्ग एवम बच्चों को आज के इंटरनेट मोबाइल एप्स के वॉयरल कुसंस्कृति दौर में परिवार में आपसी संवाद सामंजस्य, सामाजिक मेल मिलाप , सांस्कृतिक उत्सव आयोजन सहभागिता, रचनात्मक कार्यों में रुचि लेने,सृजनात्मक गतिविधियों से जुड़ने हेतू सदैव प्रेरित करना अत्यंत आवश्यक है।

आज के तकनीकी सूचना प्रौद्योगिकी संचार माध्यम के सुविधाजनक दौर में इंटरनेट स्पीड यानि द्रुत गति संगणक कंप्यूटर सूचना तंत्र संजाल यत्र तत्र सर्वत्र व्याप्त है। जिसके समाज में लाभ कम हानि ज्यादा होने के परिणाम दिखाई दे रहे हैं। क्योंकि आज हम सूचना प्रौद्योगिकी संचार माध्यमों के सर्वाधिक प्रचलित गतिशील संक्रमण "वायरल " दौर में जी रहे हैं। 


जी हां वायरल यानि संक्रमण बुखार एक अजीब सी बीमारी लत मोबाइल पकड़े रहने की लत "मोबिया "का संक्रमण तेजी से फैल रहा है।

एंड्राइड मोबाइल फोन अपडेटेड वर्जन नवनित चलित दूरभाष संस्करण लेने की प्रतिस्पर्धा , एप्लिकेशन ऐप्स,5- जी , साइबर इफैक्ट वर्चुअल स्पेस रूप में यह सब इसके एकाकीपन के अति स्वार्थीपन यथार्थ के विपरीत दिशा मे पलायनवादी घातक लक्षण हैं।


 इस तकनीकी सूचना मकड़ जाल से जनित मोबाइल आश्रितता व्यसनरूपी बीमारी के रोगी हमेशा चित्र, विचित्र, चलचित्र मोहपाश में स्व सम्मोहन सेल्फी पोज मोड या छद्म प्रदर्शन ,परवश,पर विषयक मृग मरीचिका में ताका झांकी वशीभूत हो सतही पहचान के स्टेटस चेक फोबिया से ग्रसित रहते हैं।


एक तरह से एकाकी जीवन चर्या और कृत्रिम जगत की कल्पनाशीलता भौतिक चकाचौंध में हर कोई फंसता ही चला जा रहा है। कभी कभी जीवंत जागृति के कुछ दो चार पल ही पूरे दिन की गतिविधि में परिलक्षित होते हैं ।

 वस्तुतः पूरा दिन अकर्मण्य ,प्रमाद, आलसीपन में छणिक सुख आभास, कृत्रिम रोमांच , मोबाईल गेम मोहजाल ऑनलाइन होने की त्वरित प्रतिक्रियावाद प्रवृति में सीमित हो जाता है। परिणामस्वरूप बिना सोचे समझे कृत्य करने शॉर्ट टर्म , शॉर्ट कट या फिर शॉर्ट टेंप्रामेंट की कुप्रवृत्ति लोगों में बढ़ती चली जा रही है।


भेड़चाल अंधानुकरण व्याप्त होता जा रहा है।परिणामस्वरूप एक ही पल में अपना निजी हाल कोई भी सनसनी रिपोर्ट समाचार इंटरनेट मोबाईल सोशल मीडिया नेटवर्क के माध्यम से लाखों करोड़ों लोगों तक पहुंचा देते है। इस तरह समुचित ज्ञान के बिना सिर्फ सूचना संजाल व्यापक घातक होता जा रहा है। जिसका असर मन मस्तिष्क पर व्यग्र अशांत और तनाव की विषमता दर्शा रहा है। लोगों में मानसिक रुग्णता बढ़ती जा रही है। परस्पर संबंधों में टूटन, अलगाव तथा आपसी शत्रुता बढ़ती जा रही है। 


वर्तमान तथाकथित विकास की अवधारणा के चलते इस आपाधापी, भोगवादिता, मानसिक संकीर्णता और मानवीय संवेदन हिनता के दौर में इंटरनेट सोशल मीडिया भस्मासुर की भूमिका निभा रहा है।स्वभाव के विपरीत आचरण, नैतिकता विहीन व्यवहार एवम भ्रष्ट लोलूप प्रवत्तियां अपनाना ही समझदारी की परिभाषा बन गई है।

खासकर नई पीढ़ी में सनातन हिन्दू धर्म संस्कृति के प्रति सम्मान और अनुपालन का अभाव, बुनियादी सांस्कृतिक परंपराओं से अलगाव इसी सत्यनाशी सोशल मीडिया के कारण फैलता जा रहा है।

भारतीय अध्यात्म संस्कृति के प्रति जागरूक करने , गीता , रामचरित मानस ,उपनिषद् ,पुराण धार्मिक साहित्य स्वाध्याय आदि एवम आदर्शों को अपनाने एवम महान राष्ट्र भक्तों , बलिदानी वीर शहीद महापुरुषों के जीवन चरित्र से प्रेरणा लेने की दिशा दर्शन तथा कार्यकर्म योजनाओं को अपनाना होगा।


नई पीढ़ी को सुसभ्य संस्कारवान विवेकशील बनाने में  उनके मनोदैहिक व आध्यात्मिक स्वास्थ्य पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान देना होगा।

उनमें मौलिक विचार चिंतन और सृजनात्मक शक्ति अभिव्यति को जाग्रत प्रोत्साहित करेंगे तभी देश का भविष्य सुरक्षित होगा।

हम संकल्प लें कि:

परिवार समाज में पुनः हिंदी में संवाद मौलिक विचार अभिव्यक्ति की प्रतिष्ठा बढ़ाएंगे।

राष्ट्र भक्ति देश प्रेम का अलख हर दिल में जगाएंगे ।

सारे जन्हा से अच्छा हिंदोस्ता हमारा 

विश्व गुरु ! मानवता शिरमोर बनाएंगे।।


डा सुरेंद्र सिंह विरहे

मनोदेहिक आरोग्य आध्यात्मिक स्वास्थ्य विषेशज्ञ

उप निदेशक मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी संस्कृति परिषद् संस्कृति विभाग मध्य प्रदेश शासन भोपाल

शोध समन्वयक

आध्यात्मिक नैतिक मूल्य शिक्षा शोध

धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग मध्य प्रदेश शासन भोपाल

पूर्व शोध अध्येताभा

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् (आई सी पी आर) मानव संसाधन विकास मंत्रालय नई दिल्ली

utkarshfrom1998@gmail.com

9826042177,8989832149

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