Sunday, September 18, 2022

सावधान! नींद डिस्टर्ब हो रही है तो संभल जाएं, हो सकता है ये गंभीर रोग! इन्सोमनिया-नींद न आना

सावधान! नींद डिस्टर्ब हो रही है तो संभल जाएं, हो सकता है ये गंभीर रोग! इन्सोमनिया-नींद न आना

आज सूचना संचार क्रांति व डिजिटल मीडिया उन्नत प्रौद्योगिकी तकनीकी संपन्नता के इस दौर में  वैश्विक आबादी का एक बड़ा भाग मानसिक रुग्णता सहित इन्सोमनिया या अनिद्रा की समस्या से ग्रस्त है। भारत में यह समस्या अत्यधिक गंभीर है। महानगरों के 50 प्रतिशत लोग पूरी नींद नहीं ले पाते। मनोदैहिक स्वास्थ्य अनुसंधानकर्ताओं का दावा है कि अनिद्रा करीब 86 प्रतिशत बीमारियों का कारण है जिनमें अवसाद सबसे प्रमुख है। जानिए क्या है-

अनिद्रा क्या है? इन्सोमनिया या अनिद्रा एक स्लीप डिसआॅर्डर है, जिसमें नींद लगने या उतनी देर तक सोने में समस्या आती है, जितनी देर आप सोना चाहें। पर्याप्त नींद न ले पाने के कारण शरीर शिथिल हो जाता है।शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। अनिंद्रा एक घातक रूग्णता है।

 यह किसी भी उम्र में हो सकती है। यह दो प्रकार का होता है अल्पावधि शार्ट टर्म (तीन सप्ताह तक) या दीर्घावधि लांग टर्म (तीन सप्ताह से अधिक)।

अनिद्रा के चार प्रकार पैटर्न हैं- नींद आने में समस्या, रात में कभी भी नींद खुल जाना और दोबारा न आना, सुबह उठने के बाद फ्रेश अनुभव न करना, दिन में नींद आना, उत्तेजना या चिड़चिड़ापन। 

पर्याप्त नींद क्या है? ‘पर्याप्त नींद’ वह है जब आप अगले दिन तरोताजा और चुस्त अनुभव करते हैं। अधिकतर वयस्कों के लिए यह मात्रा 6-8 घंटे होती है, लेकिन बहुत से लोगों के लिए यह 9-10 घंटे होती है। कुछ के लिए यह मात्रा छह घंटे या उससे भी कम होती है। जो लोग अक्सर नियमित रूप से 6-8 घंटे की नींद लेते हैं उनका स्वास्थ्य बेहतर रहता है। नींद दो प्रकार की होती है गहरी नींद, जिसमें अगर व्यक्ति पांच घंटे भी सो जाता है तो शरीर को आराम मिल जाता है। दूसरी कच्ची नींद, ये भले ही आठ घंटे की हो तो भी शरीर को आराम नहीं मिलता और दिन भर थकान और सुस्ती बनी रहती है जैसे कि व्यक्ति बीमार हो गया हो।

नींद की कमी से स्वास्थय पर बुरा असर : आज कम से कम 60 प्रतिशत लोग सप्ताह में कईं रातें पूरी नींद नहीं ले पाते हैं। कम सोने से जीवनकाल तुलनात्मक रूप से घट जाता है। अनिद्रा के कारण अवसाद, एंग्जाइटी जैसे मानसिक रोगों का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। अनिद्रा के कारण शरीर में भूख का अहसास कराने वाले हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है, जिसके कारण लोग अधिक मात्रा में खाते हैं। अनिद्रा से मेटाबॉलिज्म की दर धीमी होने से भी मोटापा बढ़ता है। अनिद्रा से पाचन समस्या जैसे कब्ज, बदहजमी, एसिडिटी हो सकती हैं। नींद की कमी से याददाश्त भी कमजोर हो जाती है व्यक्ति भूलने लगता है।

जैविक घड़ी अर्थात दिनचर्या में असमानता: सोने और जागने का चक्र हमारे म‍स्तिष्क के द्वारा नियंत्रित होता है, जो प्रतिदिन की दूसरी चीजों को भी नियंत्रित करता है। जैसे शरीर के ताप में परिवर्तन, रक्तचाप और हार्मोन का स्राव। इसमें मेलैटोनिन रसायन प्रमुख भूमिका निभाता है इसे ‘अंधेरे का हार्मोन’ भी कहते हैं। इसकी कमी चौकन्नापन बढ़ाती है और अधिकता उनींदापन बढ़ाती है, जिससे शरीर स्लीप मोड में आ जाता है। जैविक घड़ी का बिगड़ना व्यक्ति को अतिवाद की ओर ले जाती है जिसके कारण व्यक्ति स्वयं को अनावश्यक चुनौती देने लगता है परिणामस्वरूप कोई भी अप्रत्याशित घटना या दुर्घटना घटने की संभावना बढ़ती चली जाती है।

निद्रा आरोग्य और स्वास्थ्य

 आयुर्वेद में निद्रा को आहार एवं ब्रह्मचर्य के समकक्ष जीवन का उपस्तम्भ माना गया है। भाषा की भिन्नता को छोड़ दें तो, निद्रा के महत्व पर आयुर्वेद और आधुनिक वैज्ञानिक शोध के निष्कर्ष समान हैं। 


नींद कब आती है? मन थक जाये, इन्द्रियाँ क्रिया-रहित हो जायें, मन व इंद्रियाँ दुनियादारी के पचड़ों से मुक्त हो जायें तब मनुष्य को निद्रा आती है (च.सू. 21.35): यदा तु मनसि क्लान्ते कर्मात्मानः क्लमान्विताः। विषयेभ्यो निवर्तन्ते तदा स्वपिति मानवः।। उचित समय और मात्रा में नींद व्यक्ति को पुष्टि, साफ रंग, बल, उत्साह, तेज भूख, आलस्य-रहित, एवं धातुसाम्य देती है (सु.चि. 24.88): पुष्टिवर्णबलोत्साहमग्निदीप्तिमतन्द्रि ताम्। करोति धातुसाम्यं च निद्रा काले निषेविता।। नींद के समय शरीर में टूटफूट की मरम्मत होती रहती है। असल में तो सुख-दुःख, दुष्टि-पुष्टि, मोटापा-पतलापन, बल-दुर्बलता, पुंसत्व-नपुसंकता, ज्ञान-अज्ञान, जीवन-मृत्यु सब निद्रा पर ही आधारित होते हैं। पर्याप्त नींद हमें सुख, पुष्टि, बली, ज्ञानी और दीर्घायु बनाती है। किन्तु बहुत कम या बहुत ज्यादा नींद रोग-जनन का कारण बनती है। सूर्योदयकाल/ सूर्यास्तकाल में सोना (मिथ्यायोग), उचित मात्रा से कम नींद (हीनयोग) या उचित मात्रा से अधिक सोना (अतियोग) स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। रात्रि में सही समय पर नींद लेने पर स्वस्थ शरीर और सुखी जीवन तो मिलता ही है, यह सम्पन्नता का आधार भी है (च.सू. 21.36-38): निद्रायत्तं सुखं दुःखं पुष्टिः कार्श्यं बलाबलम्। वृषता क्लीवता ज्ञानमज्ञानं जीवितं न च।। अकालेऽतिप्रसङ्गाच्च न च निद्रा निषेविता। सुखायुषी पराकुर्यात् कालरात्रिरिवापरा।। सैव युक्ता पुनर्युङ्क्ते निद्रा देहं सुखायुषा। पुरुषं योगिनं सिद्ध्या सत्या बुद्धिरिवागता।। लेकिन अपवाद-स्वरूप कुछ परिस्थितियों में दिन में भी सोया जा सकता हैं। संगीतज्ञ, गहन अध्येता, मद्यसेवी, काम से थके हुये लोग, पैदल चलने से कमजोर हुये लोग, अजीर्ण के रोगी, घायल, बूढ़े, बालक, स्त्री, अतिसार एवं दर्द से पीड़ित श्वास रोगी, हिचकी से पीड़ित, उन्माद रोगी, वाहनों में बैठकर थके व जगे हुये लोग, गुस्सा, शोक व भय से दुःखी लोगों द्वारा दिन में सोने से धातुसाम्य, बल की वृद्धि, अंग-पुष्टि, व जीवन में स्थिरता आती है। इसके अलावा ग्रीष्म ऋतु में सूखापन, वात-वृद्धि, छोटी रातें होने से दिन में झपकी मारना या सोना हितकारी होता है (च.सू. 21.39-43): गीताध्ययनमद्यस्रीकर्मभाराध्वकर्शिताः। अजीर्णिनः क्षताः क्षीणा वृद्धा बालास्तथाऽबलाः।। तृष्णातीसारशूलार्ताः श्वासिनो हिक्किनः कृशाः। पतिताभिहितोन्मत्ताः क्लान्ता यानप्रजागरैः।। क्रोधशोकभयक्लान्ता दिवास्वप्नोचिताश्च ये। सर्व एते दिवास्वप्नं सेवेरन् सार्वकालिकम्।। धातुसाम्यं तथा ह्येषां बलं चाप्युपजायते। श्लेष्मा पुष्णाति चाङ्गानि स्थैर्यं भवति चायुषः।। ग्रीष्मे त्वादानरूक्षाणां वर्धमाने च मारुते। रात्रीणां चातिसंक्षेपाद्दिवास्वप्नः प्रशस्यते।। 


गर्मी को छोड़कर अन्य ऋतुओं में स्वस्थ व्यक्ति के सोने से कफ और पित्त बढ़ते हैं। मोटे लोग, प्रतिदिन खूब घी खाने वाले लोग, कफ प्रकृति के लोग, कफज रोगों से ग्रसित लोग या विष पीड़ित लोगों को दिन में नहीं सोना चाहिये, अन्यथा, सिर दर्द, अंगों में भारीपन, अग्निमांद्य और पाचन शक्ति में कमी, जी मिचलाना, त्वचा में चकत्ते, फुंसियाँ, खुजली, आलस्य होना, स्मृति एवं बुद्धि में गड़बड़ी, इन्द्रियों में अक्षमता, स्रोतोवरोध, बुखार जैसी समस्यायें खड़ी हो जाती हैं (च.सू. 21.44-49): ग्रीष्मवर्ज्येषु कालेषु दिवास्वप्नात् प्रकुप्यतः। श्लेष्मपित्ते दिवास्वप्नस्तस्मात्तेषु न शस्यते।। मेदस्विनः स्नेहनित्याः श्लेष्मलाः श्लेष्मरोगिणः। दूषीविषार्ताश्च दिवा न शयीरन् कदाचन।। हलीमकः शिरःशूलं स्तैर्मित्यं गुरुगात्रता। अङ्गमर्दोऽग्निनाशश्च प्रलेपो हृदयस्य च।। शोफारोचकहृल्लासपीनसार्धावभेदकाः। कोठारुः पिडकाः कण्डूस्तन्द्रा कासो गलामयाः।। स्मृतिबुद्धिप्रमोहश्च संरोधः स्रोतसां ज्वरः। इन्द्रियाणामसामर्थ्यं विषवेगप्रवर्तनम्।। भवेन्नृणां दिवास्वप्नस्याहितस्य निषेवणात्। तस्माद्धिताहितं स्वप्नं बुद्ध्वा स्वप्यात् सुखं बुधः।। जिन लोगों को दिन में नींद वर्जित नहीं है, जिन्हें रात में जागना पड़ा हो, वे थोड़े समय बैठकर भी नींद के झपकी ले सकते हैं, ताकि स्लीप-डेफिसिट को कम किया जा सके।


अच्छी नींद लाने वाले उपायों में सबसे उत्तम अभ्यंग या शरीर की मालिश, उबटन, स्नान, दही, दूध व घी के साथ शालि-चावल खाना, मन संतुष्ट रखना, मन-पसन्द सुगंध व शब्दों का उपयोग, शरीर को दबवाना, आंखों का तर्पण, सिर व शरीर में लेप, सुखदायी बिस्तर और सोने का शांत और समुचित स्थान, समय पर सोना आदि हैं (च.सू. 21/ 52-54): अभ्यङ्गोत्सादनं स्नानं ग्राम्यानूपौदका रसाः। शाल्यन्नं सदधि क्षीरं स्नेहो मद्यं मनःसुखम्।। मनसोऽनुगुणा गन्धाः शब्दाः संवाहनानि च। चक्षुषोस्तर्पणं लेपः शिरसो वदनस्य च।। स्वास्तीर्णं शयनं वेश्म सुखं कालस्तथोचितः। आनयन्त्यचिरान्निद्रां प्रनष्टा या निमित्ततः।। किन्तु विरेचन, डर, चिन्ता, गुस्सा, बहुत अधिक धूमपान और व्यायाम, व्रत, रक्तमोक्षण, कष्टकारी बिस्तर, सतोगुण की अधिकता या योगाभ्यास, तमोगुण पर विजय, कार्यो की अधिकता, बुढ़ापा, दर्द, व वात विकारों के बढ़ने से नींद नहीं आती है (च.सू. 21.55-57): कायस्य शिरसश्चैव विरेकश्छर्दनं भयम्। चिन्ता क्रोधस्तथा धूमो व्यायामो रक्तमोक्षणम्।। उपवासोऽसुखा शय्या सत्त्वौदार्यं तमोजयः। निद्राप्रसङ्गमहितं वारयन्ति समुत्थितम्।। एत एव च विज्ञेया निद्रानाशस्य हेतवः। कार्यं कालो विकारश्च प्रकृतिर्वायुरेव च।। 

आख़िर क्यों होती है अनिद्रा की समस्या: अक्सर देखने में आता है कि भावनात्मक समस्याएं जैसे तनाव, एंग्जाइटी और अवसाद के जड़ में अनिद्रा या नींद असंतुलन के सबसे बड़े कारण हैं, लेकिन आपकी दिनचर्या और आपका शारीरिक स्वास्थ्य भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

राहत के लिए ली जाने वाली कुछ दवाइयां भी नींद में बाधा डाल सकती हैं जैसे अवसाद, उच्च रक्तचाप, हाइपरथायरॉइडिज्म के उपचार के लिए ली जाने वाली दवाइयां। गर्भ निरोधक गोलियां और कार्टिकोस्टेरॉयड भी अनिद्रा का कारण बन सकते हैं। 

अत्यधिक कैफीन और अल्कोहल का सेवन अनिद्रा की समस्या को और बढ़ा देता है। देर रात तक मोबाइल इंटरनेट चलाने या टीवी देखने से सोने में समस्या आती है।समय पर ना सो पाने से नींद की समय सारिणी बिगड़ जाती है जिससे नींद आने के सहज क्रम में रुकावट आ जाती है।परिणाम स्वरूप मनोदैहिक स्वास्थ्य पूरी तरह से खराब हो जाता है।

भरपूर नींद पाने या अनिंद्रा से बचने के क्या है उपचार: यदि किसी मनोशारीरिक चिकित्सकीय या भावनात्मक समस्या के कारण आपको नींद नहीं आती तो पहले उसका समुचित उपचार कराएं। जीवन शैली में सकारात्मक सुधार अपनाए एक अनुशासित दिनचर्या का पालन करें। देर रात तक मोबाइल कंप्यूटर लैपटॉप पर कार्य, गेम, इंटरनेट और टीवी देखने की आदत छोड़ दें।उत्तेजक खाद्य पदार्थ, कैफीन और अल्कोहल का सेवन अधिक मात्रा में न करें। पोर्नोग्राफी की गंदी लत से भी छुटकारा पाने की कोशिश करें।किसी मनोदैहिक आरोग्य विशेषज्ञ थेरेपिस्ट लाईफ कोच से परामर्श निदान उपचार अवश्य लें।

याद रखें कि लंबे समय तक नींद की कमी और सोने का अनियमित समय शरीर के जैविक चक्र को प्रभावित करता है, जिसके फलस्वरूप सामान्य व्यक्ति को पार्किंसंस रोग का अधिक खतरा होता है. 

पार्किंसंस केंद्रीय तंत्रिका तंत्र का एक विकार है, जो शारीरिक गतिविधियों को प्रभावित करता है, इसमें पीड़ित व्यक्ति के अंग कांपने लगते हैं.आत्म विश्वास खो जाता है।

उक्त डिसऑर्डर से संबंधित अनेकों शोध के अनुसार, सिरकैडियन रिद्म की गड़बड़ी मोटर (तंत्रिका तंत्र का एक भाग जो गतिविधियों के क्रियातंत्र से संबंधित होता है) और सीखने की क्षमता को प्रभावित करती है. सिरकैडियन रिद्म को आम भाषा में बायोलॉजिकल या बॉडी क्लॉक भी कहा जाता है. जैविक असंतुलन शरीर में घातक रोगों फैलता है।

इंसोमेनिया अनिंद्रा रोग मनोरोगों में प्रारंभिक स्तर का है।

प्रसिद्ध शोधकर्ता अमेरिका की लुईस काट्ज ऑफ मेडिसिन (एलकेएसओएम) संस्थान से संबद्ध डोमेनिको प्रैक्टिको के अनुसार, "कई अध्ययन बताते हैं कि नींद की कमी भी पार्किंसंस रोग का एक दूसरा प्रमुख कारण है, लेकिन बॉडी क्लॉक की बाधाएं पार्किं संस रोग की शुरुआत की पहले ही जानकारी दे देती हैं, जिसके बाद इसे एक प्रमुख जोखिम माना जा सकता है."

अनिंद्रा के कारण शरीर में जैविक असंतुलन दिनचर्या में बदलाव च्बॉडी क्लॉक में गड़बड़ी की वजह से सोचने-समझने, तर्क-वितर्क और निर्णय क्षमता भी प्रभावित होती है. अलग पालियों में काम करने वाले पेशेवरों को तनाव की अधिक शिकायत रहती है। इसी तरह अन्य मानसिक रोग बढ़ते चले जाते हैं।

स्वस्थ निरोगी जीवन के लिए अनुशासित ढंग से जीना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। सार्थक जीवन, लक्ष्य एवम आध्यात्मिक ध्येय के लिए योग अभ्यास ध्यान तथा प्राकृतिक जीवन शैली अपनाना आज के भौतिक भोगवादी युग में सर्वोपरि प्राथमिकता है। "पहला सुख निरोगी काया" मूल मंत्र अपनाकर हम स्वयं स्वस्थ बनें तथा स्वस्थ परिवार, स्वस्थ समाज, स्वस्थ राष्ट्र के दायित्व का निर्वहन करें।

डा सुरेंद्र सिंह विरहे

मनोदैहिक आरोग्य एवं आध्यात्मिक योग थैरेपिस्ट स्वास्थय विशेषज्ञ

संस्थापक 

दिव्य जीवन समाधान 

(शिवम् योग दिव्य उत्कर्ष विद्या )

मनोदैहिक आरोग्य एवं आध्यात्मिक स्वास्थ्य उत्कर्ष 

मानसिक रोग चिकित्सा व अनुसन्धान संस्थान

संपर्क :9826042177 ,8989832149 

ई-मेल :utkarshfrom1998@gmail.com



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