Sunday, October 2, 2022

विजया दशमी दशहरा पर्व भारतीय सनातन हिंदू संस्कृति की विरासत को आत्मसात् करने का गौरवशाली पर्व है

विजया दशमी दशहरा पर्व भारतीय सनातन हिंदू संस्कृति की विरासत को आत्मसात् करने का गौरवशाली पर्व है..

अति प्राचीन काल से ही भारतीय सनातन हिन्दू संस्कृति वीरता और शौर्य की उपासक रही है। भारतीय संस्कृति कि ऐतिहासिक गाथा इतनी गौरवशाली व अनूठी है कि देश के अलावा संपूर्ण विश्व में भी इसकी जय जयकार रूपी गूँज सुनाई देती है| इसी विशिष्टता के कारण ही तो पुरी दुनिया ने भारत को विश्व गुरु माना है।

भारतीय आध्यात्मिक संस्कृति अपने तीज त्यौहार के लिए पूरी दुनिया में विशिष्ठ महत्व रखती है।इसी विशेष परम्परा के प्रमुख पर्वो में से एक पर्व है दशहरा जिसे विजयादशमी के नाम से अत्यंत हर्ष उल्लाहास के साथ मनाया जाता है।

दशहरा सिर्फ एक त्योहार ही नही बल्कि सनातन हिन्दू धर्म की शाश्वत सत्य व मूल्यों की विरासत का गौरवशाली प्रतीक भी माना जाता है।

विजया दशमी, दशहरे के इस त्योहार के साथ कई पौराणिक, धार्मिक मान्यताएँ व कहानियाँ भी जुड़ी हुई है।

हर वर्ष आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दशहरा / विजयदशमी के रूप में यह पर्व मनाया जाता है जो हिन्दू धर्म के बड़े त्योहारों में एक प्रमुख स्थान रखता है।

यह शौर्य पराक्रम का पर्व है। अधर्म पर धर्म की जीत के रूप में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की जीत के रूप में विजय उत्सव रूप में दशहरा मनाया जाता है, क्योंकि इसी दिन भगवान् श्री राम ने अधर्मी लंकापति नरेश रावण का वध किया था।

मां शक्ति के दिव्य स्वरुप दर्शन कृपा आशीष प्रार्थना सहित यह पर्व जगदम्बा देवी दुर्गा मां की आराधना के लिए मनाये जाने वाले शारदीय नवरात्रि उपासना का दसवां दिन होता है जिसमे सभी व्रती उपवास खोलते है।अर्थात अपना साधना तप पूर्ण करते हैं।

इस पर्व को आश्विन माह की दशमी को देश के कोने-कोने में अति उत्साह और पूर्ण धार्मिक निष्ठा के साथ बड़े ही उल्लास से मनाया जाता है| क्योंकि यह त्योहार साहस, शौर्य, साधना, शक्ति की पूजा एवम धर्म रक्षा शस्त्र पूजन के रूप में अत्यंत महत्वपूर्ण है। अपार हर्ष, उल्लास और विजय का प्रतीक है।

पारम्परिक रूप से दशहरें में रावण के दस सिर बुराइयों यानि दस पापों के सूचक माने जाते है।

काम, क्रोध, लोभ, मोह, हिंसा, आलस्य, झूठ, अहंकार, मद और चोरी है।

वास्तव में इन सभी बुराइयों और चारित्रिक पापों से हम किसी ना किसी रूप में मुक्ति चाहते है| इस तरह हर साल इसी आशा में रावण का पुतला दस सिर सहित बड़े से बड़ा बना कर जलाते है कि हमारी सारी बुराइयाँ भी इस पुतले के साथ ही अग्नि में स्वाह हो जाये और हम उन पर धर्म की विजय हासिल कर लें।

विजया दशमी के दिन ही भगवान राम ने राक्षस रावण का वध कर माता सीता को उसकी कैद से छुड़ाया था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार राम-रावण युद्ध नवरात्रों में हुआ था। रावण की मृत्यु अष्टमी-नवमी के संधिकाल में हुई थी और उसका दाह संस्कार दशमी तिथि को हुआ। जिसका उत्सव दशमी के दिन मनाया जाने लगा।

अतः इसी कारण इस त्यौहार को विजयदशमी के नाम भी से जाना जाता है। दशहरे के दिन जगह-जगह रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ के भी पुतले जलाए जाते हैं।

शक्ति ग्रंथ देवी भागवत के अनुसार इस दिन मां दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस को परास्त कर उनके दमन अत्याचारों से देवताओं को मुक्ति दिलाई थी इसलिए दशमी के दिन जगह-जगह देवी दुर्गा की मूर्तियों की विशेष पूजा की जाती है। कहते हैं रावण को मारने से पूर्व प्रभु श्रीराम नेे परम शक्ति आह्वान कर मां दुर्गा की आराधना की थी।

तब मां दुर्गा ने उनकी पूजा से प्रसन्न होकर उन्हें विजय का वरदान दिया था। इसलिए शक्ति उपासक भक्तगण दशहरे में मां दुर्गा की पूजा करते हैं। कुछ लोग व्रत एवं उपवास करते हैं। दुर्गा की मूर्ति की स्थापना कर पूजा करने वाले भक्त मूर्ति-विसर्जन का कार्यक्रम संगीत और गाजे-बाजे के साथ करते हैं। हवन यज्ञ आहुति देकर महा प्रसादी भोग वितरण आयोजन करते हैं ऐसा करने से मां शक्ति की साधना पूर्णत फलित होती है। 

आसुरी शक्तियों से सज्जन साधक भक्तगणों की सदैव रक्षा करती हैं क्योंकि आदिकाल से ही इस लोक में मनुष्य समुदाय दो प्रकार का है- एक दैवीय प्रकृति वाला और दूसरा आसुरी प्रवृत्ति वाला। 

आसुरी प्रवृत्ति वाले नकारात्मक बुरी शक्तियों के उपासक होते हैं इस तरह के दुष्ट मनुष्यों में न तो बाहर भीतर की शुद्धि होती है, न श्रेष्ठ आचरण और न ही सत्य भाषण। इस प्रकार के अधर्मी समाज में व्यभिचार,भ्रष्ट आचरण कर बुराइयों को फैलाते रहते हैं।

निः संदेह किसी भी राष्ट्र की प्रतिष्ठा वहां के लोगों के आचरण से होती है। हमारे ग्रन्थों में श्रेष्ठ राष्ट्र की कल्पना आर्य विधान से की गई है। 

भारतीय सनातन संस्कृति के अनुसार आर्य का अर्थ है- श्रेष्ठ पुरुषों का आचरण। समानता, सामाजिक न्याय, सद्भावना आदि लक्षणों से युक्त मानवीय समाज ही आर्य विधान की विशेषता है। 

इसलिए भगवान श्रीराम ने लंका विजय के उपरान्त विभीषण को राज्य देकर, बाली वध के उपरान्त सुग्रीव को किष्किन्धा का राज्य देकर वहां आर्य विधान स्थापित किया। 

इसी तरह अर्जुन जब अधर्मियों के अन्याय, भ्रष्टाचार के समक्ष युद्ध से पूर्व झुक गए तो आनन्द कन्द भगवान श्री कृष्ण ने इसे अनार्य आचरण की संज्ञा दी है।

अतः आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो हमें अपने भीतर दुर्गुणों को समाप्त करने के लिए अपनी दस इंद्रियों पर विजय प्राप्त करना आवश्यक है। श्री गीता जी के अनुसार, ‘‘इन्द्रियाणी दशैकं च’’ 

इस प्रकार हम अपने भीतर बुराई व तमोगुण को समाप्त कर सकते हैं। 

निष्कर्ष रूपेण यह विजया दशमी दशहरा पर्व भारतीय सनातन हिंदू संस्कृति की विरासत को आत्मसात् करने का गौरवशाली पर्व है।

आइए हम सब मिलकर एक संकल्प लें कि इस

विजय दशमी पर्व पर हम योग साधना द्वारा अपनी आध्यात्मिक शक्तियों को जागृत करेगें। जिससे आसुरी शक्तियां का नाश कर हम अपने अंदर के भी विकारों का क्षय कर सके। 

डा सुरेंद्र सिंह विरहे

मनोदैहिक आरोग्य आध्यात्मिक स्वास्थ्य विषेशज्ञ एवं लाईफ कोच, स्प्रिचुअल योगा थेरेपिस्ट

उप निदेशक

मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी संस्कृति परिषद् भोपाल


शोध समन्वयक

आध्यात्मिक नैतिक मूल्य शिक्षा शोध

धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग मध्य प्रदेश शासन भोपाल 


स्थापना सदस्य

मध्य प्रदेश मैंटल हैल्थ एलाइंस चोइथराम हॉस्पिटल नर्सिंग कॉलेज इंदौर


निदेशक

दिव्य जीवन समाधान उत्कर्ष

Divine Life Solutions Utkarsh


पूर्व अध्येता

भारतीय दार्शनिक अनुसन्धान परिषद् दिल्ली

"Philosophy of Mind And Consciousness Studies"


Ex. Research Scholar

At: Indian Council of Philosophical Research ICPR Delhi

utkarshfrom1998@gmail.com

9826042177,

8989832149



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