मन की बात जानने की दिव्य विधा
टेलीपैथी ( दूरानुभूति ) विकसित करें
What Is Telepathy & How to Develop Telepathy –
मनुष्य का जीवन असीम संभावनाओं और वरदानों से भरा हुआ है। हर व्यक्ति में अपार अनूठी खूबियां व्यक्तिगत विशेषताएं विद्यमान हैं।
दुर्भाग्यवश भौतिक विज्ञान तकनीकी संपन्नता के भोगवादी युग में मनुष्य यांत्रिक निर्भरता के कारण नैसर्गिक प्रतिभा,अपनी सुषुप्त शक्ति तथा दिव्य गुणों से परिपूर्ण पहचान को भूला बैठा है। जबकि अदभुत स्मृति, कुशाग्र बुद्धि और विवेकशील चेतना शक्तियों से ओतप्रोत मन मस्तिष्क परम ज्ञानी,विद्वान, ऋषि, मुनियों,साधु संतों तपस्वियों, योगी योगिनियों की समृद्ध परंपरा व आध्यात्मिक सांस्कृतिक विरासत हमारी रही है।
इतिहास इन सभी की असंख्य महान गाथाओं और उपलब्धियों से भरा हुआ है। अनेकों चमत्कारिक कारनामों के उदाहरणों और दिव्य सिद्धियों से इन महापुरुषों ने अपने आप को चरितार्थ किया था।
भारतीय दार्शनिक, पौराणिक ग्रंथ ,उपनिषद् पुराण और योग शास्त्र आदि में इन अदभुत विशिष्ट विधाओं योग साधन व सिद्धियों का विस्तृत वर्णन किया गया है। इन्हीं में से एक अति विशिष्ट मानसिक दक्षता को अतिंद्रिय दिव्य परा दुराअनुभूति संप्रेषण टेलीपैथी कहते हैं।
इसी अनुरूप आधुनिक संदर्भ में जब किसी उपकरण की मदद से लोगों के मन की बात जान लेने की कला को ही टेलीपैथी कहते हैं।
कभी कभी बिना यंत्र तंत्र मंत्र के अकस्मात किसी प्रिय, अप्रिय, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, प्रत्याशित या अप्रत्याशित घटना, विषय, रूप, स्वरूप, विचार ,भावदशा से स्मृति कल्पना आधारित विचारशील प्रतीति अनुभव परा दूरदर्शी आभास अनुभूति जगाता है। सामान्यतः इसी छणिक एहसास को टेलीपैथी समझा जाता है।
किसी की याद आने पर अक्सर हम उससे सम्पर्क संवाद स्थापित कर लेते हैं।
जरूरी नहीं कि हम हर बार किसी से त्वरित संपर्क करें। हम दूर बैठे किसी भी व्यक्ति की याद प्यार बात अपनी छठी अतिंद्रीय शक्ति , जागृत कुण्डलिनी शक्ति, सप्त चक्र भेदन अवस्था या आध्यात्मिक योग सिद्धि के माध्यम से अवश्य सुन सकते हैं, देख सकते हैं और उसकी स्थिति को जान सकते हैं। दिव्य दूर दृष्टि , दूर श्रवण, दूर संदेश, दूर संवाद आदि की विशिष्ट दूरानुभूति उपलब्धि को हर मनुष्य योग साधना द्वारा अर्जित कर सकता है।
टेलीपैथी दूरानुभूति :
वैसे टेलीपैथी शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल 1882 में फैड्रिक डब्लू एच मायर्स ने किया था। जिस व्यक्ति में सत्यनिष्ठ योग साधना फलीभूत हो जाती है उसमे यह छठी ज्ञान इंद्री जाग्रत होती है वह उच्च स्तरीय चक्र जागृति अवस्था में पहुंच चुका होता है ।सूक्ष्म शरीर की अति इन्द्रिय वशीकरण सिद्धि प्राप्त कर लेता है।
वह फिर जान लेता है कि दूसरों के मन में क्या चल रहा है। दूसरे के मन को पढ़ लेने की क्षमता आ जाती है।दार्शनिक योग मनोदैहिक स्वास्थ्य अनुसंधान के अंतर्गत यह परामनोविज्ञान का विषय है जिसमें टेलीपैथी के कई प्रकार बताए जाते हैं। ‘टेली’ शब्द से ही टेलीफोन, टेलीविजन आदि शब्द बने हैं। ये सभी यांत्रिक स्तर पर दूर के संदेश और चित्र को पकड़ने वाले यंत्र हैं।
मनुष्य के मन मस्तिष्क में भी इस तरह की क्षमता होती है। कोई व्यक्ति जब किसी के मन की बात जान ले या दूर घट रही घटना को पकड़कर उसका वर्णन यथा संभव कर दे तो उसे पारेंद्रिय ज्ञान से संपन्न व्यक्ति कहा जाता है। भारतवर्ष में महाभारतकाल में संजय के पास यह परा दूरदर्शी क्षमता थी। उन्होंने दूर चल रहे युद्ध का वर्णन व्रतांत धृतराष्ट्र को कह सुनाया था।
दूराअनुभूति: टेलीपैथी विकसित करने के मुख्य तीन तरीके हैं
1. ध्यान की नियमितता
2. योग अभ्यास संयम साधना
3. आधुनिक वैज्ञानिक सूचना प्रौद्योगिकी साधन तकनीक के सदुपयोग द्वारा
ध्यान की नियमितता: जब लगातार ध्यान करते रहने से साधक का मन स्थिर होने लगता है। मन के स्थिर और शांति होने से जब एकाग्रता बढ़ती है तब साक्षीभाव आने लगता है। इस तरह सूक्ष्मता से संवेदनशीलता की अवस्था टेलीपैथी के लिए जरूरी होती है। सजगता से केंदित रहने वाला ध्यान करने वाला व्यक्ति अति इन्द्रिय ज्ञान अर्जित कर किसी के भी मन की बात समझ सकता है। कितने ही दूर बैठे व्यक्ति की स्थिति और बातचीत का वर्णन कर सकता है।
योग अभ्यास संयम साधना:योग की सिद्धि अभ्युदय यानि मनोरथों की प्राप्ति संभव बनाती है। योग में चित्त शक्ति मन: शक्ति योग के द्वारा छठी इंद्री इस दूरा अनुभूति शक्ति हो हासिल किया जा सकता है।
योग चेतनायुक्त ज्ञान की स्थिति में संयम होने पर दूसरे के मन का ज्ञान होता है। यदि मन शांत है तो दूसरे के मन का हाल जानने की शक्ति हासिल हो जाएगी। योग में ध्यान के अलावा त्राटक विद्या, प्राण विद्या के माध्यम से भी आप यह विद्या सीख सकते हैं। अष्टांगिक योग साधना के नियमित अभ्यास से व्यक्ति आरोग्यता सहित यश कीर्ति वैभव अर्जित कर लेता है।
3. आधुनिक वैज्ञानिक सूचना प्रौद्योगिकी साधन तकनीक के सदुपयोग द्वारा : आधुनिक वैज्ञानिक सूचना संचार प्रौद्योगिकी साधन तकनीक के सदुपयोग द्वारा विविध माध्यमों व तरीके के अनुसार जब हम ध्यान से देखने और सुनने की क्षमता बढ़ाएंगे तो सामने वाले के मन की आवाज भी सुनाई देगी। इसके लिए नियमित अभ्यास की आवश्यकता है।
इसके अतरिक्त सम्मोहन के माध्यम से भी अपने चेतन मन को सुलाकर अवचेतन मन को जाग्रत किया जा सकता है। मन की चंचलता को योग ध्यान के अभ्यास से वशीभूत किया जा सकता है।
चेतन मन की अवस्था: इसे जाग्रत मन भी मान सकते हैं। चेतन मन में रहकर ही हम दैनिक कामों को निपटाते हैं यानी खुली आंखों से हम काम करते हैं। विज्ञान के अनुसार दिमाग का वह भाग जिसमें होने वाली क्रियाओं की जानकारी हमें होती है उसे ही चेतनशील मन कहते हैं।
अवचेतन मन की अवस्था: यथार्थ से विपरीत कल्पनाशील मन । जो मन सपने देख रहा है वह अवचेतन मन है। इसे अर्धचेतन मन भी कहते हैं। गहरी सुसुप्ति अवस्था में भी यह मन जाग्रत रहता है। विज्ञान के अनुसार जाग्रत दिमाग के परे दिमाग का एक और हिस्सा अवचेतन मन होता है।
छठी इंद्री दूराअनुभूति मन की बात जानने की दिव्य विधा टेलीपैथी ( दूरानुभूति ) ध्यान योग के द्वारा विकसित करें ।
डा सुरेंद्र सिंह विरहे
मनोदेहिक आरोग्य आध्यात्मिक स्वास्थ्य विषेशज्ञ
उप निदेशक मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी संस्कृति परिषद् संस्कृति विभाग मध्य प्रदेश शासन भोपाल
शोध समन्वयक
आध्यात्मिक नैतिक मूल्य शिक्षा शोध
धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग मध्य प्रदेश शासन भोपाल
स्थापना सदस्य :मध्य प्रदेश मैंटल हैल्थ एलाइंस चोइथराम हॉस्पिटल नर्सिंग कॉलेज इन्दौर
पूर्व अध्येता: भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् मानव संसाधन विकास मंत्रालय दिल्ली
utkarshfrom1998@gmail.com
9826042177,8989832149
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