आत्मबल से आप असंभव को संभव बना सकते हैं। जीवन में अभूतपूर्व बड़ी सफलता पा सकते हैं ...
मनुष्य के अंदर असीमित शक्तियां छिपी हुई हैं। आत्मिक शांति अर्थात आत्मबल की महान उपलब्धियों से इतिहास भरा पड़ा है।
जब व्यक्ति अपने जीवन में संकल्प सिद्धि के लगातार प्रयास एवम नियमित ध्यान योग साधना अभ्यास करता है तो अपने लक्ष्य व ध्येय को अवश्य प्राप्त कर लेता है।
आध्यात्मिकता के लिए योग मार्ग का अनुसरण करता है तो वह मानव से महामानव देव मानव दिव्य मानव बनकर परम शान्ति, सत चित आनंद की अनुभूति अर्जित कर सकता है।
इसके विपरीत यदि कोई व्यक्ति अपना आत्मबल खोने लगता हैं तो धीरे-धीरे हीनभावना का शिकार होने लगता है। प्रतिकूल परिस्थितियों के विकट दुखद अनुभव , अप्रत्याशित दुर्घटना के आघात, कुकर्मों ,बुरे आचरण, कपटी व्यवहार आदि के फलस्वरूप मनुष्य की आत्म शक्ति कमजोर कलुषित हो जाती है।
जीवन में कई ऐसे हालात आते हैं, जब हम खुद को अशक्त पाते हैं और यह दुनिया हमें दुश्मन व खतरनाक होती प्रतीत लगती है। अप्रत्याशित घटनाओं, पूर्वजन्मों के कर्मदंड, इन विषम हालातों पर नियंत्रण, प्रभावों को कम करना और इन सब से जुड़ी बुरी खबरों इनके असर आदि को रोक पाना हमारे बस की बात नहीं है। लेकिन विचलित दशा में भी तनाव, खतरे की आशंका और हालातों पर नियंत्रण न रख पाने की बेबसी के चलते खोए हुए आत्मबल को हम जरूर वापस हासिल कर सकते हैं।
वास्तव में जीवन के कठिन हालातों से बेबस इंसान चिंता अवसाद डिप्रेशन और बेचैनी का शिकार हो जाता है। दुर्भाग्य है कि आज का असंंवेदना युक्त समाज आपधापी में संलिप्त स्वार्थांध रिश्तेें व्यक्ति के आत्म बल को छीन लेेते हैं। उसमे आत्म हीनता की भावना भर देते है।उसकी मनोदशा बिगाड़ देते हैं।
वास्तव में स्थायी आत्मबल कैसे प्राप्त कर सकते है?
वैसे भी आत्मबल एक असामान्य असाधरण दक्षता है यह बल चरित्र व्यक्तित्व एवम संस्कारों की पृष्ठभूमि से पोषित होता है।
यह बल धन संपत्ति रुपया,दर्जा, रुतबा, स्तर, स्टेटस, पहुंच, ऐशोआराम या और कोई भौतिक चीज नहीं है। रुपये-पैसे के ढेर पर बैठे कई लोग औसत आदमी से कम आत्मबल वाले नजर आते हैं।
दरअसल आत्मबल आपको आपके अंदर से ही स्व की पहचान करने से, आपके अस्तित्व से ही हासिल होता है। आत्मिक शुद्धता के भाव विचार,सकारत्मकता और सात्विकता से आत्मबल स्थायित्व प्राप्त करता है।
निज आत्मबल को कभी विस्मृत न होने दें अपने स्वाभिमान को बनाएं रखें ।
अक्सर लोग अपनी शक्ति को खोकर ज्यादा खुश भी नजर आते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि अपने बल स्वाभिमान को भुलाकर वह हल्के, ज्यादा लोकप्रिय, स्वीकार्य तथा सुरक्षित हो जाएंगे।
सच मानें तो ,लोगों को खुश करने के चक्कर में आप अपनी असली ताकत को भुला देते हैं या फिर भीड़ की राय को मानने लग जाते हैं या फिर किसी ज्यादा ताकतवर को आप अपने ऊपर नियंत्रण करने देते हैं। कई बार ये बातें सही लगती हैं, जैसे भीड़ में सबसे पीछे शांत रहना, स्वीकार्य राय को मान लेना, बच्चों के लिए जीना या फिर जीवन में शांति बनाए रखने के लिए दूसरों को खुद पर हुक्म चलाने की अनुमति देना। पर बारंबार और लंबे समय तक ये छोटे-बड़े फैसले आपकी नजर में खुद की अहमियत खत्म कर देते हैं। और जब अपनी नजरों से ही आपकी अहमियत खत्म हो जाएगी तो फिर नि:शक्त होने की भावना से आप पार कैसे पा सकेंगे?
सुषुप्त शक्तियों को जागृत करें:
व्यक्ति को अपने अनुकूल अथवा प्रतिकूल हालात की सतत जांच पड़ताल करनी चाहिए। अपनी गरिमा को हस्ती को बनाएं रखें। क्योंकि आप जब खुद को यह समझा लेते हैं कि आपकी गिनती कहीं नहीं होती और यह आपके भाग्य का हिस्सा है तो आप अपने आत्मबल को दम तोड़ने देते हैं। आप किसी धार्मिक या आध्यात्मिक कारण से ऐसा करते हैं तो यह ठीक कदम होगा, लेकिन तब क्या, जब ऐसा कोई उदात्त कारण न हो और आप खुद को हीन मान रहे हों? अपने को विवश कभी न होने दें
अपनी मनोदैहिक आरोग्यता एवं आध्यात्मिक स्वास्थ्य ऊर्जा अर्जित करें।
जब हम लगातार चिंताग्रस्त रहने लगते हैं तो उससे मन की शक्ति कमजोर हो जाती है दिमाग निरंतर अपनी ऊर्जा खोता रहता है। ऐसे में मन पलायन को अपना लेता है वह वास्तविकता को नजरअंदाज कर कल्पनालोक के खतरों में आपको उलझाए रखता है। इस कुटिल शिथिल मन के शिकार व्यक्ति अपनी दुर्दशा के लिए कई तरह के बहाने भी खोज लेते हैं। अपमान सहन कर लेते हैं गाली देने वाले को माफ कर देते हैं, क्योंकि आध्यात्मिक रूप से माफ करना श्रेष्ठकर है।
वास्तव में गलत आदतों को सहना या स्वीकार कर लेना भी इसी पलायनवादिता का हिस्सा है। पर गौर से देखें तो आत्मबल के इस हनन के शिकार लोग खुद इसके जिम्मेदार होते हैं। खुद ऐसे लोगों के प्रति आकर्षित होते जाते हैं, जिनसे मिलकर खुद को बेचारा महसूस करने लगते हैं। ऐसे लोग आपकी ऊर्जा को निरंतर खत्म करते रहते हैं। ऐसे लोगों से निजात पाने के लिए सबसे पहले आपको खुद यह पता करना होगा कि क्या आप यह स्वेच्छा से कर रहे हैं या नहीं।
अतः इस दयनीय स्थिति से निपटने के लिए अपनी स्वाभाविक मूल प्रवृत्तियों का अनुसरण करें। अपनी अंतरात्मा की आवाज को सुनिए।
अपने व्यक्तित्व विकास और स्वप्न संकल्पों को साकार करने पर ध्यान केंद्रित करें:
गौर करें कि, सिर्फ इंसान ही ऐसा प्राणी है, जो खुद ब खुद परिपक्व मेच्योर नहीं होता। चूजे को बड़े होकर मुर्गा ही बनना है, लेकिन दुनिया तमाम ऐसे लोगों से भरी पड़ी है, जो अब भी बचपने में जी रहे हैं, बेशक वे कितने ही बड़े क्यों न हो जाएं। हमारे लिए परिपक्व मेच्योर होना एक निर्णय है, वयस्क होना एक उपलब्धि है, जो व्यतित्व की बुलंदी यानि आत्मबल को हासिल करने का एक जरिया है। इसे पाने में दशकों लग सकते हैं, लेकिन इसकी शुरुआत तभी होगी, जब आप खुद को पहचानते हैं।
स्वयं की योग्यता दक्षता को जानना अत्यंत आवश्यक है यह आत्मबल कुछ और नहीं, आप ही का हिस्सा है, जो वास्तविकता से जुड़ा है। आत्मबल ही आपकी असली पहचान है। आपके उसी अनुभव का केंद्र, जो आप खुद तैयार करते हैं। यह स्थिति पाने के लिए आपको अपनी कहानी का लेखक खुद ही बनना होगा। अपनी निज दृष्टि से खुद की सृष्टि रचना होगी।
लक्ष्य केंद्रित करें कीर्ति यश प्राप्ति सुनिश्चित होगी:
एक बार जब आप अपने लक्ष्य को तय कर लेंगे तब आपकी राह खुद ब खुद आसान होने लगेगी। शुरू-शुरू में आपको अटपटा लगेगा, लेकिन आप इसे महसूस करने लगेंगे। फिर धीरे-धीरे आप सहज महसूस करने लगेंगे। ऐसे में हम खुद के लिए ज्यादा इच्छाएं रखने लगेंगे। हम अपने सकारात्मक और सशक्त उत्थान के लिए खुद रास्ते बनाने लगेंगे।
हमारे देश में धर्म व अधर्म का बड़ा महत्व है। धर्म में वह शामिल है, जो नैसर्गिक है, जैसे खुशी, सत्य, कर्तव्य, चमत्कार, पूजा, प्रोत्साहन, अहिंसा, प्रेम, आत्मसम्मान। वहीं दूसरी तरफ अधर्म में ऐसी पसंद है, जो जीवन का नैसर्गिक रूप से समर्थन नहीं करती, जैसे क्रोध, हिंसा, भय, नियंत्रण, अनैतिक कार्य, पूर्वाग्रह, लत, असहिष्णुता आदि। हमारे लिए स्वधर्म का मार्ग सबसे बेहतर है ! लक्ष्य केंद्रित ध्येय संकल्पित जीवन से यश कीर्ति की प्राप्ति संभव होती है।
अपने जीवन में उच्च प्रेरणा व महत्वाकांक्षा बनाएं अपनी नैसर्गिक प्रतिभा को पहचान कर रचनात्मक कार्यों में रुचि एवं तत्परता का परिचय दें।
याद रखें कि,जीवन की वास्तविकता को पहचाने बिना कुछ भी हासिल नहीं होगा। कुछ क्षणों के लिए धर्म और ईश्वर के किसी भी संदर्भ को किनारे कर दें। सौभाग्य से सचेत नजर पाने के लिए उस खास जागरूकता से जुड़ना होगा, जो जीवन में उत्थान, रचनात्मकता और बौद्धिकता को बढ़ावा देती है। ये गुण ऐसे नहीं हैं, जो किसी भाग्यशाली को अचानक या विरासत में प्राप्त होते हैं। इन गुणों को हासिल करने के लिए रचनात्मकता, बौद्धिकता, प्रेम और करुणा के अलावा कर्मयोगी बनने के मार्ग को अपनाना चाहिए। इस तरह आप आत्मबल से असंभव को संभव बना सकते हैं। जीवन में अभूतपूर्व बड़ी सफलता पा सकते हैं ...
-परामर्श- थेरेपी सुविधा उपलब्ध है .. जीवन लक्ष्य प्राप्ति ,जीवन परामर्श पायें जीवन में सफलता पायें साथ ही स्वास्थ्य आनंद व समृद्धि अर्जित करें ..
डा सुरेंद्र सिंह विरहे
मनोदेहिक आरोग्य आध्यात्मिक स्वास्थ्य विषेशज्ञ
संस्थापक निदेशक
दिव्य जीवन समाधान Divine Life Solutions
उप निदेशक मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी संस्कृति परिषद् संस्कृति विभाग मध्य प्रदेश शासन भोपाल
शोध समन्वयक
आध्यात्मिक नैतिक मूल्य शिक्षा शोध
धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग मध्य प्रदेश शासन भोपाल
utkarshfrom1998@gmail.com
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