आध्यात्मिक स्वास्थ्य से जीवन प्रबंधन व आत्म उत्कर्ष की कला सीखें...
वर्तमान वैश्विक असंतुलन एवम स्वास्थ संक्रमण के दौर में लोगों में विशेष रूप से युवाओं में आध्यात्मिक स्वास्थ्य के प्रति चेतना और योग ध्यानमय जीवन शैली को लेकर जागृति की नितांत आवश्यकता है।
भौतिक सुख साधन सुविधा, विज्ञान,सूचना प्रौद्योगिकी, संचार तकनीकी संपन्नता और भोगवादी विलासिता पूर्ण जीवन चर्या के चलते युवा पीढ़ी अकर्मण्य, आलसी, आडंबरी, प्रमादी, व्यसनी, नकारात्मक और नास्तिक हो गई है।
आजकल युवाओं के अंदर साहस, शौर्य, दृढ़ता, लगन एवं श्रमशीलता के गुण समाप्त होते जा रहे हैं। परिणाम स्वरूप आज का युवा तनाव,अवसाद, आत्महत्या प्रवृत्ति की ओर आकृष्ट हो भटकाव से गुजर रहा है, यदि गंभीरतापूर्वक विचार करें तो इन सबका मूलभूत कारण है, लोगों में धर्म के प्रति आस्था, जीवन में संंजीदगी का अभाव व युवाओं में आध्यात्मिक चेतना की कमी है।
वास्तव में सनातन संस्कृति के प्रति अलगाव व उदासीनता आध्यात्मिक जीवन दृष्टि और धर्म दर्शन बोध न होने के कारण युवाओं की जिन्दगी के बारे में समझ गहरी नही हो पा रही है। नई युवा पीढ़ी की सोच अपरिपक्व,अदूरदर्शी और सतही हो गयी है।
केवल तात्कालिक लाभ के प्रति ही तत्परता, सक्रियता उनमें दिखाई देती है। उन्हें निकट नजदीकी क्षणिक सुख और छद्म स्वार्थ तो दिखाई देते हैं; परन्तु नैतिक दायित्व, त्याग, तप एवं सेवा में उनकी अरुचि स्पष्ट झलकती है ।
आधुनिक वैश्विक चुनौतीपूर्ण इक्कीसवीं सदी की भीषण समस्याएं अत्यंत जटिल है। विषमता, विसंगतियों, युद्ध उन्मादी, विनाशक षडयंत्रकारी इन प्रतिकूल परिस्थितियों में अपने अस्तित्व, व्यक्तिव, चरित्र को उच्च आदर्श, महान लक्ष्य नैतिक मूल्यों और सनातन धर्म संस्कृति के अनुरुप सत्यानुसंधानी, सत्वगुणी, स्वाभिमानी, सहृदयी, संकल्पी, संवेदनशील, सृजनशील और सकारात्मक आस्तिक आशावादी, आस्थावादी और क्रांतिधर्मी बनाना होगा।
आज समय की मांग है कि हम पाश्चात्य संस्कृति की संकीर्ण मानसिकता,भोगवादी पतनकारी कूप्रवृत्तियों को छोड़कर अपनी मूलभूत सनातन धर्म संस्कृति विरासत की जड़ों की ओर पुनः लौट चलें।
पुरुषार्थ कर्म प्रधानता से ओतप्रोत दिव्य महान हिन्दू धर्म दर्शन की द्रष्टि को अपनाएं और समन्वय सामंजस्य संयम संकल्प सिद्धि , आत्म उत्कर्ष उपलब्धि, शास्वत सत चित आनंद की अनुभूति प्रज्ञा प्रदायक हिंदुत्व विचारधारा को अपने जीवन में आत्मसात कर सनातन मूल्यों की रक्षा,देशभक्ति राष्ट्र सेवा में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर अपने जीवन को सार्थक रूप से सनातनी बन चरितार्थ करें ।
हम संकल्प लें कि सनातन संस्कृति के मानव धर्म आधारित मूल्यों, आदर्शों व सिद्धांतो पर केंद्रित अध्यात्ममय जीवन जिएंगे।
शांति, सामंजस्य ,सदभाव, सहअस्तित्व, राष्टीय संप्रभुता और " वसुधैव कुटुम्बकम्" की सनातन शिक्षा अवधारणा को साकार करेंगे, इस हेतु आध्यात्मिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता एवम भारतीय आध्यात्मिक संस्कृति पर आधारित योग,अध्यात्म जीवन प्रबंधन की दिव्य उत्कर्ष विद्या सीखेंगे।
दिव्य उत्कर्ष अध्यात्म जीवन प्रबंधन :
निः संदेह अध्यात्म को जीवन प्रबन्धन की दिव्य उत्कर्ष विद्या कह सकते हैं। क्योंकि आध्यात्मिक स्वास्थ्य से परिपूर्ण जीवन जीने की कला के रूप में आप इसके माध्यम से अपने जीवन की प्राथमिकता, परिपक्वता एवं दूरदर्शिता को सुनिश्चित कर सकते हैं।
अपने स्व को जानकर अर्थात अपने सुषुप्त दिव्य स्वरूप को उद्घाटित करना ही दिव्य उत्कर्ष विद्या है।
व्यक्ति कुसंस्कार, कुसंगति और कुकर्मरूपी भ्रष्ट कृत्यों के कारण अपनी अधोगति कर लेता है जबकि उसमें आंतरिक रूप से विराट शक्ति , विवेकशील चेतना और अदभुत साहस शौर्य आत्मबल समाहित रहता है।
योग ध्यान साधना अभ्यास एवम अनुभवी विशेषज्ञ विद्वान आचार्य गुरु की कृपा से मनोदैहिक आध्यात्मिक स्वास्थ्य उत्कर्ष की प्राप्ति संभव है।आत्म विषय से जुड़कर आध्यात्मिक जीवन की ओर अभिमुख होकर व्यक्ति अपने सम्पूर्ण जीवन का कुशलतापूर्वक प्रबन्धन करने में सक्षम हो जाता है।
दिव्य उत्कर्ष विद्या अध्यात्म जीवन प्रबंधन की अत्यन्त विशिष्ट तप आधारित व्यवहारिक विद्या है।
धैर्यवान, संकल्पित, परम ध्येय मानवता की सेवा, राष्ट्र उत्थान एवम आत्म उत्कर्ष उपलब्धि के उद्देश्य द्वारा सतत अनुसंधान से इस दिव्य उत्कर्ष विद्या का प्रादुर्भव हुआ है।
कर्म एवम नियति के सार्थक समन्वय सूत्र तथा जीवन प्रबंधन एवम समस्या समाधान के नए मौलिक विकल्प सुझाना इस अध्यात्म जीवन प्रबंधन दिव्य उत्कर्ष विद्या की विशेषता है।
भूलवश अधिकतर लोग अनजाने में अध्यात्म को धार्मिक मान्यताओं, पूजा-परम्पराओं, मंदिर-मस्जिद या गिरजाघर-गुरुद्वारे से जोड़ने की कोशिश करते हैं, वास्तव में ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। जी हाँ, यह सच है कि धर्म व धार्मिक मान्यताओं पर आधारित सतही ज्ञान उसकी ओपचारिक तकनीकें, रीति रिवाज अध्यात्म में सहायक हैं। किंतु गहरे रूप में हर सांप्रदायिक शिक्षा में परम ईश्वर की नामरूप अवधारणा एकत्व या एक सत्य की उपासना का ही आग्रह है।
इसलिए अंतिम लक्ष्य अंतिम सत्य को पाने के लिए व्यक्ति अपने निज धार्मिक मतों, पारंपरिक आस्था व विस्वास का सहारा लेता है।जिसके परिणामस्वरूप उसमें धार्मिक विभ्रम, सांप्रदायिक कट्टरता और कर्मकांडी आडंबर परिलक्षित होता है।
वास्तव में तो ईष्ट आराधना, साधना, तपस्या और अटूट आस्था के स्वयं के फलीभूत प्रयास से ही व्यक्ति में सत्यनिष्ठा ,सदाचार और प्रारंभिक साधक व्रत के अनुशासित लक्षण दिखाई देते हैं। इसलिए अध्यात्म को धर्म जीवन का सार कहा जा सकता है; लेकिन इसके बावजूद किसी भी पंथ की संकीर्णताओं, कट्टरताओं, मान्यताओं एवं आग्रहों से अध्यात्म का कोई लेना देना नहीं है।
अध्यात्म तो सर्वांगीण सार्थक व सम्पूर्ण जीवन दृष्टि का समाधान विकल्प है।
शाश्वत सत्ता के शोध और सनातनता के प्रति अटूट आस्था धर्म दर्शन के अनुराग, सत्य को पाने की सतत उत्कंठा को ही आध्यात्मिकता कहते हैं।
अतः आध्यात्मिकता जीवन का रूपान्तरण करने वाली ऐसी पवित्र प्रक्रिया है, जिससे बाहरी और आंतरिक जीवन की सभी शक्तियों की व्यवस्था, प्रगति व सुनियोजन सुनिश्चित होता है।केवल यही नहीं रूपान्तरित हुआ अनुशासित योग ध्यान साधनामय जीवन विराट् से जुड़ने में समर्थ होता है। उसमें दिव्यता अलौकिक आलोक के अनेकों नए द्वार खुलते हैं।
अर्थात दिव्य उत्कर्ष की अध्यात्म जीवन प्रबंधन अवधारणा मनुष्य के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती है।
भारतवर्ष की पुण्य धरा पर असंख्य साधकों ने,आदर्श युवा व्यक्तित्वों ने आत्म उत्कर्ष की उपलब्धि अर्जित की है। सत्य स्वरूप अध्यात्म तत्त्व की अनुभूति करके अनेकों को इस अध्यात्म जीवन प्रबंधन दिव्य उत्कर्ष विद्या के अनुसरण अनुकरण से प्रेरणा मिली है।
अद्वैत वेदांत आचार्य शंकर, महान संत ज्ञानदेव महाराज, समूचे विश्व को अपने अध्यात्म विचारों से अभिभूत प्रेरित करने वाले स्वामी विवेकानन्द , श्री अरविंद और अन्य कई युवा आध्यात्मिक प्रतिभाओं ने मानव जीवन में आध्यात्मिक दिव्य ज्योति और आत्म उत्कर्ष हेतु जागृति का अलख जगा कर दिव्य चेतना का अवतरण संभव कराया है।
आज की नई युवा पीढ़ी उनसे प्रेरणा लेकर इस अध्यात्म जीवन प्रबंधन ज्ञान परंपरा को कायम रख सकती है यदि वह सत्य सनातन के यथार्थ को जानते हुए अपनी सार्थक जीवन जीने की भूमिकाओं का निर्वहन कर भारतीय आध्यात्मिक ज्ञान संस्कृति को अंगीकार कर लें।
यद्यपि अध्यात्म मानवीय जीवन को सम्पूर्ण, सार्थक, सर्वोत्तम, सर्वोच्च बनाने का अद्भुत ऋषि मुनियों साधु संत तपस्वियों योगियों का साधना शोध आधारित विज्ञान है।
देश की युवा पीढ़ी को अपनी आध्यात्मिक सांस्कृतिक विरासत को अपनाना होगा । योग ध्यान के माध्यम से आध्यात्मिक स्वास्थ्य पाकर अध्यात्म चेतना द्वारा आत्म शक्ति को बढ़ाने की दिशा में अग्रसर होना होगा।
आज के युवा अध्यात्म प्रबन्ध का कौशल सीखकर योग एवं वेदान्त की दिशा दर्शन कार्यक्रम रूपरेखा बनाकर भावी जीवन की सफलतम कार्योजना बना सकते हैं। परिणामस्वरूप अध्यात्म जीवन प्रबंधन के द्वारा अपनी कार्यक्षमता में अभिवृद्धि, लक्ष्य संधान, पारस्परिक समायोजन एवं नेतृत्व क्षमता का विकास कर स्वयं कीर्ति, यश, वैभव, आरोग्य समृद्धि प्राप्त करके देश की प्रगति अभूतपूर्व महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
🔸संपर्क🔸
डा सुरेंद्र सिंह विरहे
मनोदैहिक आरोग्य आध्यात्मिक स्वास्थ्य विषेशज्ञ एवं लाईफ कोच, स्प्रिचुअल योगा थेरेपिस्ट
स्थापना सदस्य
मध्य प्रदेश मैंटल हैल्थ एलाइंस चोइथराम हॉस्पिटल नर्सिंग कॉलेज इंदौर
निदेशक
दिव्य जीवन समाधान उत्कर्ष
Divine Life Solutions Utkarsh
पूर्व अध्येता
भारतीय दार्शनिक अनुसन्धान परिषद् दिल्ली
"Philosophy of Mind And Consciousness Studies"
Ex. Research Scholar
At: Indian Council of Philosophical Research ICPR Delhi
utkarshfrom1998@gmail.com
9826042177,
8989832149
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