(स्वास्थ्य पूंजी व आनंद सहित जीवन यापन जीविकोपार्जन समग्र जीवन प्रबंधन निराकरण समस्या समाधान अनुसंधान संस्थान)
विज्ञान मनुष्य के मन, उसके प्रारब्ध और संस्कारों के आधार पर चिकित्सा करता है | सामान्य तह हम जीवन को सिर्फ शारीरिक तल पर ही जानते है | और हमारा सारा केंद्र भी शरीर ही होता है जबकि हमारे जीवन की जडें बहुत गहरी होती है |
मनुष्य के मन के भीतर उसकी पूर्व जन्मो की भी सारी जानकारी जमा होती है | और मनुष्य मन पर उसके पूर्व जन्म की मनोस्थिति का भी प्रभाव होता है | हम ये नहीं कह सकते की हमारा जीवन पूर्व जन्मो से प्रभावित नहीं होता |
वर्तमान जीवन में घटने वाली तमाम अच्छी बुरी घटनाएं पूर्व जन्म प्रारब्ध से प्रभावित होती है | आध्यात्मिक चिकित्सा व्यक्ति के मूल में जाकर उसके सम्पूर्ण जीवन काल, उसके कर्म, मनोस्थिति के आधार पर उसकी चिकित्सा करती है | आध्यात्मिक चिकित्सा कोई मनोवैज्ञानिक चिकित्सक नहीं कर सकता बल्कि जो व्यक्ति पूर्ण साधना के मार्ग पर चलकर आध्यात्मिक रूप से उन्नत हो वही इंसान आध्यात्मिक चिकित्सा कर सकता है |
बीमारी के लक्षण शरीर पर आते है लेकिन उसकी उत्पत्ति के स्त्रोत मन की गहराईयों के भीतर दबे होतें है । एक बीमारी का इलाज कराओ दूसरी आ जाती है । रोग रूप बदल लेता है । लेकिन रोग की जड़ से मुक्ति नहीं होती जब तक के रोग के मूल को मन मस्तिक के भीतर से साफ़ न किया जाए ।
हमारा मानव मन जीवन के उतार चढ़ाव अच्छे बुरे अनुभवों से मन के भीतर बहुत सारे रुग्ण भाव दबा लेता है जिसका संज्ञान इंसान को भी नहीं हो पाता । यही रुग्ण भाव मन के बहुत भीतर अपना कार्य करते रहते है जैसे -
- अनावश्यक भय,
- नुक्सान होने का संदेह, - दुर्घटना के विचार,
- दोस्तों व् अन्य व्यक्तियों के प्रति अविश्वास,
- जरुरत से अधिक मूर्ति पूजा, - तमाम छोटे मोटे टोटके करना, - हर विफलता को किस्मत से जोड़ देना,
- धन पर अतिनिर्भरता,
- हीनभावना से ग्रसित होना,
- वहुत ही ज्यादा गुस्सा करना,
- बहुत डरपोक होना,
- ऊँचाई, पानी अथवा पहाड़ खाई से बहुत ज्यादा डरना, - बोलने में अटकना, बड़बड़ाना, - बार बार बुरे (मृत्यु के) स्वप्न देखना,
- नींद का न आना, सामान्य से अधिक भोजन करना,
- पति/पत्नी के प्रति शारीरिक आकर्षण घटना, - बहुत ही ज्यादा भावनात्मक होना,
-किसी भी प्रकार के रोग से लंबे समय तक पीड़ित रहना,
- व्यापार में घाटा होने का भय बना रहना आदि जीवन के ऐसे लक्षण है जो आपके रुग्ण मन की दशा बताते है । व्यक्ति भागमभाग जिंदगी में सब सहता हुआ बस जिता चला जाता है । अतः मन का रोग शरीर पर उतर आता है । और जीवन रुग्ण हो जाता है । मेरा अनुभव है कि लगभग हर भीतरी रोग के पीछे मन की रुग्णता छिपी होती है जिसे आध्यात्मिक चिकित्सा द्वारा रोगमुक्त किया जा सकता है । यदि आप हमेशा आध्यात्मिक शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ रहना चाहते हैं..
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