स्वयं की परवाह सेल्फ केयर..
खुद से कैसे प्यार करें ये एक कला है ..
वास्तव में हमारे पास केवल एक ही जिन्दगी है वर्तमान की समझ ही स्वयं का अवलोकन है।
हम अभी जो है सो है और ऐसे में जब हम इसकी अहमियत नहीं समझ पाते तो खुद की खबर लेना मुश्किल बात है क्योंकि हम खुद से शायद ही कभी रूबरू होने की कोशिश करते हो , क्या हम स्वार्थी है ?
आज सिर्फ खुद की फिक्र करें दुनिया की परवाह कल करेंगे। इसलिए हम इस बारे में बात नहीं करेंगे कि हम खुदगर्ज क्यों बनें लेकिन साथ ही अगर किसी दूसरे के लिए भी थोड़ा सोच विचार करेगें तो फिर से अपनी अहमियत खो सकते है |
यकीन मानिए आपके अंदर बहुत सी ऐसी खासियते होती है जिनके बारे में आप जानते है या कभी कभी महसूस भी करते है लेकिन फिर भी आप दुनियाभर की चिताओं या असुरक्षा की भावना के चलते दुनियादारी में उलझे रहते है और उन पर कुछ खास ध्यान नहीं दे पाते इसलिए ऐसा होता है कि थोड़े दिन बाद हम इस बात को लेकर असमंजस confustion में होते है कि ‘मेरी जिन्दगी का उद्देश्य क्या है ?
स्वयं की परवाह कल की चिंता यानि गंभीर होना। खुद के प्रति यदि लगाव जगा संके तो जीवन का सही उद्देश्य जल्दी समझ आ सकता है। आखिर क्या है जीवन का उद्देश्य?
जीवन का उद्देश्य – उद्देश्य अगर आप देखें तो बहुत ही सरल simple सा है कंही कोई दुविधा नहीं है आप यंहा है और मनुष्य जाति जो कि सर्वश्रेष्ठ हम कह सकते है के रूप में तो हम अधिक से अधिक क्या कर सकते है ? जाहिर है दुनिया भर में जो सुन्दरता है जो विविधता है उसे खोज सकते है लोगो को प्रेम कर सकते है लोगो के प्रेम का हिस्सा बन सकते है | हमारे आस पास बहुत कुछ ऐसा है जिससे हम अनजान है और काम और जिन्दगी के भागदौड़ में हम यह तक नहीं सोचते कि आखिर कब तक हम भागेंगे और कितना भाग सकते है क्योंकि आप कुछ भी करिए फिर भी कुछ न कुछ ऐसा होगा जो छूटेगा ही सो ऐसा क्यों नहीं करते कि एक परिपूर्णता को प्राप्त करने की कोशिश करें जो आपके अंदर ही है और आप अपने साथ हर वक़्त मौजूद रह सकते है इसलिए आपको कंही भागने की भी जरुरत नहीं पडती है अगर खुद में अपनी खुशियाँ देखते है तो |
खुद से कैसे प्यार करें –
अगर आप नहीं जानते कि खुद से प्यार कैसे करते है और उसमे किस तरह की ख़ुशी है तो एक काम करिए जब भी आपको कभी वक़्त मिले अकेले बैठिये और आंखे बंद कर दुनिया की चिंताओं को पीछे छोड़ते हुए सब कुछ भूलने की कोशिश करिए क्योंकि कभी ऐसा नहीं होता है कि हम अगर कुछ कर नहीं रहे है तो हमारे दिमाग में भी कुछ नहीं चल रहा होता |
जब कभी भी हम शांत भी बैठें होते है तो भी हमारे दिमाग में भविष्य की योजनायें ,बीते दिनों की यादें ,काम और जॉब के बारे में चिंताएं निरंतर चलती रहती है और हम एक दिन में कुछ बदल भी तो नहीं सकते इसलिए एक तरह से योजना बनायें कि आपको किस तरह से खुद के लिए समय निकालना है | और जब आप शांत बैठने की कोशिश के साथ केवल खुद के बारे में ही सोचते है तो कुछ दिनों के अभ्यास के बाद आप अपनी सच्ची ख़ुशी और अपने जीवन के उद्देश्य के बारे में जान सकते है | खुद के साथ वक़्त बिताने के दो बड़े फायदे है एक तो आप अपनी रचनात्मकता को पहचान सकते है और उसे मजबूत improve भी कर सकते है और दूसरा की लोगो की बजाय खुद की परवाह करना आसानी से सीख सकते है |
जब हम खुद से प्यार करने लगते है तो हम जिन्दगी के बहुत कुछ उन छिपे पहलुओं को जीते है जो हमसे जुड़े है भले ही जिन्दगी की राह फिसलन भरी हो और हर दिन नई नई परेशानियों का सामना करना पड़ता हो लेकिन जब आप जिन्दगी के साथ खुद को संतुलन बनाते हुए देखते है तो यह काफी आसान हो जाती है..
स्वयं की परवाह "स्व" की रक्षा , खुद से प्यार ही अध्यात्म जीवन की शुरुआत है। व्यक्ति का अध्यात्म स्वयं के आत्म के अध्ययन से ही आरंभ होता है और जब हम खुद से जुड़ते चले जाते हैं तो अपने दिव्य स्वरूप को खोज पाते हैं। इसलिए अध्यात्म स्वयं की अंतर यात्रा है।z
आध्यात्मिक जीवन जीना ही दिव्य जीवन पथ में प्रगति है । जैसा हम सोचेंगे वैसे हम बन जाएंगे। इसलिए कहा गया है कि मन के हारे हार है मन के जीते जीत।!
वैसे तो वह सीमा निर्धारित करना कठिन है जहां मन समाप्त होता और दिव्य जीवन आरंभ होता है क्योंकि दोनों एक-दूसरे में प्रक्षिप्त होते हैं और इनके मिले-जुले जीवन का एक लंबा अंतराल होता है । इस अंतराल का एक बड़ा भाग -जहां आध्यात्मिक प्रेरणा धरती या संसार से एकदम मुंह नहीं मोड़ लेती -बनते हुए उच्चतर जीवन की एक प्रक्रिया के रूप में देखा जा सकता है । स्वयं की प्रकृति को समझना ही स्वयं के अस्तित्व की अनुभूति होती है।इसकी एक रूपांतरण की प्रक्रिया है।
जैसे-जैसे मन और प्राण आध्यात्म पुरुष स्व चैतन्य के प्रकाश से प्रदीप्त होने लगते हैं वे देवत्व, गुप्त महत्तर सदवस्तु की किसी चीज को धारण करने या प्रतिबिंबित करने लगते हैं; और इसे तब तक बढ़ते जाना चाहिये जबतक कि अंतराल पार न कर लिया जाये, पूरा जीवन आध्यात्म तत्त्व के पूर्ण प्रकाश और शक्ति में एक न हो जाये । इस तरह कर्म,अकर्म और विकर्म सब का आत्म सत्ता में लय हो जाना आध्यात्म की बुनियादी आवश्यकता है।
निश्चय ही भीतर एक आध्यात्मिक जीवन हों सकता है, हमारे अंदर स्वर्ग का ऐसा राज्य जो किसी बाहरी अभिव्यक्ति, यंत्र-विन्यास या बाहरी सत्ता के सूत्र पर निर्भर नहीं होता । आंतरिक जीवन का परम आध्यात्मिक महत्त्व होता है और बाहरी जीवन का बस उतना ही मूल्य होता है जितना वह भीतरी स्थिति को अभिव्यक्त कर सके । फिर भी, आध्यात्मिक उपलब्धिवाला व्यक्ति जिस तरह भी रहता हो, कर्म करता हो, बर्ताव करता हो वह सत्ता और कर्म के सभी तरीकों में, जैसा गीता में कहा गया है, ''सर्वथा मयि वर्तते" मेरे अंदर रहता और कर्म करता है ।
मनुष्य जिस प्रकार के आंतरिक जीवन की रचना कर सकता है उसे बाहर से ही बनाया जा सकता है और उसका स्वास्थ्य हितकर और पौष्टिक बाहरी स्रोतों पर नियमित निर्भरता रखने से सुरक्षित रहता है, -व्यक्तिगत मन और प्राण का संतुलन बाह्य वास्तविकता के दृढ़ अवलंब से ही सुरक्षित किया जा सकता है क्योंकि जड़ जगत् ही एकमात्र मूलभूत वास्तविकता है । इसलिए ऋषि मुनियों ने अध्यात्म के सूत्र में कहा है कि "यत्र पिंड तत्र ब्रह्मांड" अर्थात जो शरीर में मौजूद है वही बाहर ब्रह्मांड में मौजूद है।
दिव्य जीवन समाधान उत्कर्ष के शोध द्वारा स्वयं की आत्म उत्कर्ष की आध्यात्मिक स्वास्थ्य की उसी दिशा में जीवन के हर पक्ष एवं हर समस्यायों के समाधान के साथ साथ मानवीय चेतना के व्यावहारिक उत्कर्ष के दिव्य सूत्रों के रूप में परम उपयोगी योग आयुर्वेद आध्यात्मिक चिकित्सा एवं मनोदैहिक आरोग्य उपचार - निदान व कॉउंसलिंग -परामर्श- थेरेपी सुविधा उपलब्ध है .. जीवन लक्ष्य प्राप्ति ,जीवन शैली- व्यक्तित्व विकास प्रशिक्षण ,दिव्य उत्कर्ष विद्या कोर्स एवं योग फिटनेस ट्रेनर प्रशिक्षक कोर्सेस वैकल्पिक चिकित्सा थेरेपी कोर्सेस सीखें रोजगार आमदनी पायें जीवन में सफलता पायें साथ ही स्वास्थ्य आनंद व समृद्धि अर्जित करें ..
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🔸संपर्क🔸
डा सुरेंद्र सिंह विरहे
मनोदैहिक आरोग्य आध्यात्मिक स्वास्थ्य विषेशज्ञ एवं लाईफ कोच, स्प्रिचुअल योगा थेरेपिस्ट
स्थापना सदस्य
मध्य प्रदेश मैंटल हैल्थ एलाइंस चोइथराम हॉस्पिटल नर्सिंग कॉलेज इंदौर
निदेशक
दिव्य जीवन समाधान उत्कर्ष
Divine Life Solutions Utkarsh
पूर्व अध्येता
भारतीय दार्शनिक अनुसन्धान परिषद् दिल्ली
"Philosophy of Mind And Consciousness Studies"
Ex. Research Scholar
At: Indian Council of Philosophical Research ICPR Delhi
utkarshfrom1998@gmail.com
9826042177,
8989832149