Saturday, August 31, 2024

जीवन के बुरे दिन में आत्म संघर्ष की शक्ति पाएं।

 शिवम योग दिव्य उत्कर्ष विद्या 

जीवन के बुरे दिन में आत्म संघर्ष की शक्ति पाएं।


यदि किसी व्यक्ति का बहुत बुरा वक्त चल रहा हो उसे मेहनत करने पर भी न सफलता मिल रही हो न सुकून आर्थिक तंगी हो भयानक रूप से तो इस बुरे वक्त से निकलने का उपाय क्या हो सकता है? आइए विस्तार से जानकारी समाधान जान लीजिए।


प्रिय साधकों!

कठिन समय का सामना करना एक बहुत ही चुनौतीपूर्ण अनुभव हो सकता है। ऐसे में निराशा, हताशा और चिंता महसूस करना स्वाभाविक है। इस परिस्थिति से बाहर निकलने के लिए कुछ महत्वपूर्ण उपाय किए जा सकते हैं:


1.अपने जीवन में सतत धैर्य और संयम बनाए रखें:

बुरे वक्त में सबसे पहले और महत्वपूर्ण चीज़ है धैर्य और संयम। यह समय भी गुजर जाएगा। जब आप शांत मन से समस्याओं का सामना करेंगे, तो आप बेहतर तरीके से सोच पाएंगे और सही निर्णय ले पाएंगे।


2. अपने मनोबल को बढ़ाएँ:

सकारात्मक सोच बनाए रखें। अपने आप पर विश्वास करें और यह याद रखें कि जीवन में हर स्थिति अस्थायी होती है। सकारात्मक विचार और आत्मविश्वास आपको आगे बढ़ने में मदद करेंगे।


3. अपना आत्ममूल्यांकन करें:

खुद का आत्ममूल्यांकन करें और यह देखें कि कहां पर गलतियां हो रही हैं। अगर किसी कारण से सफलता नहीं मिल रही, तो अपने कार्यों और रणनीतियों को दोबारा जांचें और उनमें आवश्यक सुधार करें।


4.जिंदगी में नए कौशल सीखें:

कठिन समय में खुद को विकसित करने का प्रयास करें। नए कौशल सीखें, अपनी योग्यता को बढ़ाएं। इससे आपकी मूल्यवृद्धि होगी और रोजगार के नए अवसर मिल सकते हैं।


5. अपने आसपास समर्थन प्रणाली का उपयोग करें:

अपने परिवार, दोस्तों और करीबी लोगों से समर्थन लें। कभी-कभी समस्याओं को साझा करने से हल्कापन महसूस होता है और आपको नई दृष्टिकोण मिल सकती है।


6. ध्यान और योग करें:

मानसिक तनाव और चिंता को कम करने के लिए ध्यान और योग का अभ्यास करें। यह आपके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाएगा, जिससे आप समस्याओं का सामना करने के लिए अधिक सक्षम होंगे।


7. नई आर्थिक योजनाएं बनाएं:

आर्थिक संकट का सामना करने के लिए एक अच्छी वित्तीय योजना बनाएं। अपने खर्चों को नियंत्रित करें, बजट बनाएं, और जहां तक संभव हो, अनावश्यक खर्चों से बचें। किसी वित्तीय सलाहकार से परामर्श भी लिया जा सकता है।


8.परम सत्ता ईश्वर में आस्था रखें:

आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, यदि आप किसी धर्म या ईश्वर में विश्वास रखते हैं, तो प्रार्थना करें और अपने मन को शांति देने का प्रयास करें। विश्वास से मन को शक्ति मिलती है और कठिनाइयों का सामना करना आसान हो जाता है।


9. अपने जीवन में सकारात्मक आदतें अपनाएं:

रोज़मर्रा की आदतों में सुधार लाएं। नियमित रूप से व्यायाम करें, स्वस्थ भोजन खाएं, और अपने शरीर और मन का ख्याल रखें।

 इससे आप अंदर से मजबूत महसूस करेंगे।


10.नए भावी विकल्पों का विश्लेषण करें:

जीवन में नए विकल्प तलाशें। हो सकता है कि आपकी मौजूदा स्थिति में सुधार के लिए कुछ अन्य रास्ते हों जिन्हें आपने अभी तक नहीं आजमाया हो। नए रोजगार, नई योजनाएं, या नए स्थान पर जाने की संभावना पर विचार करें।


11.कुशल बनकर समय का प्रबंधन करें:

समय का सही प्रबंधन करें। समय का सदुपयोग करने से आप ज्यादा प्रभावी ढंग से कार्य कर पाएंगे और यह भी देख पाएंगे कि कहां पर समय बर्बाद हो रहा है।


12. जीवन कोच विशेषज्ञ सलाह लें:

अगर आप किसी विशेष क्षेत्र में समस्याओं का सामना कर रहे हैं, तो उस क्षेत्र के विशेषज्ञों से सलाह लेना लाभदायक हो सकता है। जैसे कि करियर में समस्याएं हैं तो करियर काउंसलर से बात करें। जीवन कोच से परामर्श लें।


13. सतत सदैव आत्मचिंतन करें:

आत्मचिंतन का मतलब है अपने आप से सवाल पूछना कि इस समय में मैं क्या सीख सकता हूँ और कैसे इस परिस्थिति से बाहर निकल सकता हूँ। आत्मचिंतन आपको एक नई दिशा प्रदान कर सकता है।


14.दूरदर्शिता के साथ लंबी अवधि के लक्ष्यों पर ध्यान दें:

अपनी स्थिति को सुधारने के लिए दीर्घकालिक लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करें। छोटे-छोटे कदम उठाकर, बड़े लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। धैर्य और निरंतर प्रयासों से ही लक्ष्य प्राप्त होते हैं।

याद रखें, हर कठिनाई आपको एक नया सबक सिखाती है और आपको पहले से अधिक मजबूत बनाती है। बुरे वक्त से बाहर निकलने का रास्ता आपकी सोच, धैर्य, और निरंतर प्रयासों में ही छिपा है।

अंत में निष्कर्ष रूप में :

अपने अंदर की सुषुप्त दिव्य शक्ति को जाग्रत करें। अपनी योग्यता क्षमताओं को परिष्कृत करें। अपने गुण और अवगुणों को समझ कर विवेकशील बनें।

स्वयं को बेहतर ढंग से भविष्य के लिए तैयार करें। अपनी ऊर्जा  शक्ति का सही उपयोग करें । समय प्रबन्धन और आत्म अनुशासन को अपने जीवन में सर्वोच्च प्राथमिकता दें।


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Thursday, August 29, 2024

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Wednesday, August 28, 2024

व्यक्ति का दोहरा जीवन होता है - एक सार्वजनिक जीवन तथा दूसरा निजी जीवन!

व्यक्ति का दोहरा जीवन होता है - एक सार्वजनिक जीवन तथा दूसरा निजी जीवन!


जी हां मित्रों। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में दो अलग-अलग पहलू होते हैं—एक सार्वजनिक और एक निजी। इन दोनों जीवनों में अंतर होने के कारण कुछ लोग यह मान सकते हैं कि अधिकांश लोग मानसिक दृष्टि से "दोहरी मानसिकता" या "सीजोफ्रेनिक" होते हैं। हालाँकि, इसे वास्तविक सीजोफ्रेनिया से तुलना करना गलत है, क्योंकि यह मानसिक विकार अलग और विशिष्ट है।


1.जीवन में निजी और सार्वजनिक जीवन का द्वैत होता है:


हर व्यक्ति के जीवन में एक सार्वजनिक पक्ष होता है, जो कि समाज, कार्यस्थल, मित्रों और बाहरी दुनिया के लिए होता है। इस जीवन में व्यक्ति अक्सर सामाजिक मानदंडों और अपेक्षाओं के अनुरूप व्यवहार करता है। दूसरी तरफ, निजी जीवन में वह अपने वास्तविक विचारों, भावनाओं और अनुभवों को व्यक्त करता है, जो अक्सर सार्वजनिक रूप से प्रकट नहीं किए जाते।


2. हर व्यक्ति से जुड़ी सामाजिक अपेक्षाएँ और व्यक्तिगत वास्तविकता:


सामाजिक जीवन में, व्यक्ति को कई भूमिकाएँ निभानी पड़ती हैं, जैसे कि एक माता-पिता, कर्मचारी, मित्र, या नागरिक। इन भूमिकाओं के साथ जुड़े दायित्व और सामाजिक अपेक्षाएँ अक्सर व्यक्ति को उसके वास्तविक विचारों और भावनाओं को छुपाने के लिए मजबूर करती हैं। दूसरी तरफ, निजी जीवन में व्यक्ति स्वतंत्र होता है और अपने वास्तविक व्यक्तित्व को जीता है।


3. मनोरोग के रूप में वास्तविक सीजोफ्रेनिया:


सीजोफ्रेनिया एक गंभीर मानसिक विकार है जिसमें व्यक्ति वास्तविकता और काल्पनिकता के बीच भेद करने में कठिनाई महसूस करता है। इसमें अक्सर भ्रम, मतिभ्रम, अव्यवस्थित सोच और असामान्य व्यवहार शामिल होते हैं। यह एक चिकित्सा स्थिति है, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं में गंभीरता से हस्तक्षेप कर सकती है।


4.व्यक्तित्व में दोहरापन द्वैत और मानसिक स्वास्थ्य:


यद्यपि अधिकांश लोग अपने जीवन के विभिन्न पहलुओं में  दोहरापन द्वैत का अनुभव करते हैं, लेकिन यह मानसिक विकार का संकेत नहीं है। सार्वजनिक और निजी जीवन का अंतर मानव स्वभाव और सामाजिक संरचना का एक सामान्य हिस्सा है। यह केवल एक प्रकार का सामंजस्य है, जो व्यक्ति अपने जीवन में बनाए रखता है।


सामान्य जीवन की परिस्थितियों में अनुकूल प्रतिकूल प्रभाव पड़ता ही है।

हालाँकि, निजी और सार्वजनिक जीवन के बीच का द्वैत एक सामान्य मानव अनुभव है, इसे सीजोफ्रेनिया या मानसिक अस्थिरता से जोड़ना उचित नहीं है। वास्तविक सीजोफ्रेनिया एक चिकित्सा स्थिति है, जिसकी तुलना सामान्य जीवन की जटिलताओं से नहीं की जा सकती।


हर किसी का दोहरा जीवन होने का मतलब यह नहीं कि व्यक्ति मानसिक रूप से अस्थिर है; बल्कि यह मानव स्वभाव की जटिलता और सामाजिक संरचना का हिस्सा है।

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Tuesday, August 27, 2024

जीवन, अंततः मनुष्य को नितांत अकेले करके परम पुरुषार्थ मोक्ष केवल्य,निर्वाण और आत्म उत्कर्ष की प्राप्ति

 जिंदगी में समाधान दिव्य जीवन समाधान डिवाइन लाईफ सॉल्युशंस द्वारा जीवन की नियति को शाश्वत सत्य के रूप में व्याख्या करके इन सूत्रों से परिभाषित किया जा रहा है: 

जीवन, अंततः मनुष्य को नितांत अकेले करके परम पुरुषार्थ मोक्ष केवल्य,निर्वाण और आत्म उत्कर्ष की प्राप्ति की ओर अग्रसर कराता है।


जीवन के अनुभवों को देखते हुए, यह कहा जा सकता है कि अंततः जीवन मनुष्य को अकेले होने के लिए प्रशिक्षित करता है। इसके पीछे कई कारण और मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, और अस्तित्ववादी पहलू हैं, जिनके माध्यम से हम इस प्रश्न को समझ सकते हैं:


1. मृत्यु का अटल सत्य:

जीवन का सबसे बड़ा और अटल सत्य मृत्यु है। हर व्यक्ति को एक दिन इस संसार को छोड़ना होता है, और इस यात्रा में कोई भी व्यक्ति साथ नहीं होता। मृत्यु की अनिवार्यता यह सिखाती है कि चाहे हम कितने भी करीबी रिश्ते बना लें, अंततः हमें अकेले ही इस यात्रा को तय करना है।


2. आत्मनिर्भरता की आवश्यकता:

जीवन की चुनौतियाँ, संघर्ष, और कठिनाइयाँ हमें आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित करती हैं। जब हम जीवन के कठिन समय से गुजरते हैं, तो हमें यह एहसास होता है कि दूसरों पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहा जा सकता। यह आत्मनिर्भरता ही हमें अकेले रहने के लिए तैयार करती है।


3. रिश्तों की अस्थिरता:

समय के साथ, जीवन में आने वाले लोग या तो बदल जाते हैं, दूर हो जाते हैं, या हमारे जीवन से पूरी तरह चले जाते हैं। रिश्तों की यह अस्थिरता और अस्थायी प्रकृति हमें यह समझने के लिए मजबूर करती है कि हमें अपने आप के साथ रहना सीखना चाहिए, क्योंकि बाहरी समर्थन हमेशा के लिए नहीं होता।


4. अंतर्मुखता और आत्म-चिंतन:

जैसे-जैसे व्यक्ति का जीवन में अनुभव बढ़ता है, वह बाहरी दुनिया से अधिक अपने भीतर की ओर ध्यान केंद्रित करने लगता है। आत्म-चिंतन और आत्म-विश्लेषण उसे अपनी स्वयं की पहचान और उद्देश्य को समझने में मदद करता है। यह प्रक्रिया स्वाभाविक रूप से उसे अकेले रहने के लिए तैयार करती है।


5. समानता की कमी:

हर व्यक्ति की अपनी सोच, अनुभव, और दृष्टिकोण होते हैं, जो अक्सर दूसरों से भिन्न होते हैं। यह असमानता कई बार व्यक्ति को अकेला महसूस कराती है, और जीवन उसे यह सिखाता है कि कैसे अपने दृष्टिकोण और विचारधारा के साथ अकेले खड़ा रहा जाए।


6. मानसिक और भावनात्मक विकास:

मानसिक और भावनात्मक विकास के साथ व्यक्ति को यह समझ आने लगता है कि सुख, दुख, और अन्य सभी भावनाएँ उसकी अपनी आंतरिक स्थिति पर निर्भर करती हैं। दूसरों से अपेक्षाएँ कम होती जाती हैं और व्यक्ति खुद के साथ समय बिताना पसंद करने लगता है।


7. दर्शन और आध्यात्मिकता:

जीवन के उत्तरार्ध में व्यक्ति अक्सर दार्शनिक या आध्यात्मिक दृष्टिकोण अपनाता है, जो उसे संसार की क्षणभंगुरता और अकेलेपन की सच्चाई से अवगत कराता है। यह दृष्टिकोण उसे जीवन की अंतिम सच्चाई को समझने और स्वीकार करने में मदद करता है।


इन सभी कारणों से, जीवन अंततः व्यक्ति को अकेले होने के लिए तैयार करता है। यह प्रक्रिया कठिन हो सकती है, लेकिन यह आवश्यक है ताकि व्यक्ति जीवन की अंतिम सच्चाइयों को समझ सके और उनका सामना करने के लिए तैयार हो सके।

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Surendra Singh Virhe 


Monday, August 26, 2024

यथार्थ जीवन को समझना जरूरी है..

 यथार्थ जीवन को समझना जरूरी है..

जिंदगी के समाधान डिवाइन लाईफ सॉल्युशंस द्वारा जिंदगी की वास्तविकता जानने के सूत्र :

जीवन को वैसे ही समझने की अवधारणा, जैसी वह है, दार्शनिक दृष्टिकोणों, मनोविज्ञान और व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर अलग-अलग तरीकों से व्याख्यायित की जा सकती है। यह प्रश्न जीवन के यथार्थवादी दृष्टिकोण और उसकी स्वीकृति पर केंद्रित है। इस दृष्टिकोण को समझने के लिए कुछ प्रमुख बिंदुओं पर विचार किया जा सकता है:


1. यथार्थवादी दृष्टिकोण (Realistic Approach)

यथार्थ को स्वीकारना: जीवन को वैसा ही समझने का मतलब है कि हम जीवन के वास्तविकताओं, समस्याओं और खुशियों को वैसा ही स्वीकारें जैसा वे हैं। इसमें जीवन के सुख-दुःख, सफलता-असफलता और अन्य पहलुओं को बिना किसी पूर्वाग्रह या धारणाओं के देखा जाता है।

मोहभंग से बचना: अगर हम जीवन को वैसा ही समझें जैसा वह है, तो हम किसी भी चीज़ को लेकर अधिकतम अपेक्षाएं नहीं बनाते, जिससे निराशा कम होती है। यह दृष्टिकोण हमें मानसिक संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।


2. जीवन के प्रति संतुलित दृष्टिकोण (Balanced Perspective)

वास्तविकता और उम्मीदों के बीच संतुलन: जीवन को यथार्थ रूप में देखने का मतलब यह नहीं है कि हम उम्मीदें छोड़ दें। उम्मीदें रखना स्वाभाविक है, लेकिन उन्हें यथार्थ की सीमाओं में रखना ज़रूरी है।

संवेदनशीलता का महत्व: जीवन के प्रति एक संवेदनशील दृष्टिकोण रखने से हम दूसरों की भावनाओं और स्थितियों को बेहतर समझ सकते हैं। यह जीवन को एक मानवीय दृष्टिकोण से देखने की शक्ति देता है।


3. आध्यात्मिक और दार्शनिक दृष्टिकोण (Spiritual and Philosophical Approach)

जीवन का सत्य: कई आध्यात्मिक और दार्शनिक परंपराएँ कहती हैं कि जीवन को वैसा ही समझना चाहिए जैसा वह है, क्योंकि यही सत्य है। किसी भी भ्रम या झूठ में जीने के बजाय, सत्य का सामना करना और उसे स्वीकार करना हमें मुक्त करता है।

अप्रमत्त जीवन: कुछ दार्शनिक दृष्टिकोण जैसे अस्तित्ववाद (Existentialism), यह मानते हैं कि जीवन का कोई पूर्व निर्धारित अर्थ नहीं है, बल्कि व्यक्ति को खुद अपना अर्थ खोजना होता है। जीवन को जैसा है वैसा समझने का मतलब है कि हम इसे अपनी समझ और अनुभवों के आधार पर स्वीकारें।


4. व्यक्तिगत विकास और परिपक्वता (Personal Growth and Maturity)

असली अनुभवों से सीखना: जीवन को वैसा ही समझने का मतलब है कि हम अपने अनुभवों से वास्तविकता की सच्चाई को सीखते हैं। यह हमें परिपक्वता और समझदारी की ओर ले जाता है।


मुक्ति और शांति: जब हम जीवन की सच्चाइयों को स्वीकार करते हैं, तो हम आंतरिक शांति और मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं। यह स्वीकृति हमें जीवन में सामंजस्य और मानसिक शांति की दिशा में ले जाती है।


5. आधुनिक समय में व्यावहारिकता (Practicality in Modern Times)

तथ्यात्मक दृष्टिकोण: जीवन के प्रति यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाने से हम कठिनाइयों को बेहतर तरीके से संभाल सकते हैं और ठोस निर्णय ले सकते हैं। यह दृष्टिकोण व्यावहारिकता और तर्क पर आधारित होता है।


सकारात्मकता बनाए रखना: जीवन को यथार्थ रूप में समझने के साथ ही, सकारात्मक दृष्टिकोण रखना भी ज़रूरी है। यह संतुलन हमें न केवल वास्तविकता से जुड़ने में मदद करता है, बल्कि हमें आगे बढ़ने की ऊर्जा भी देता है।


जीवन को वैसा ही समझने का मतलब है कि हम उसे बिना किसी भ्रम, आडंबर या अत्यधिक अपेक्षाओं के स्वीकारें। यह दृष्टिकोण हमें अधिक संतुलित, वास्तविक और शांतिपूर्ण जीवन जीने में मदद करता है।

 हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि हमें जीवन में बदलाव की इच्छा नहीं रखनी चाहिए या अपने सपनों का पीछा नहीं करना चाहिए। यह दृष्टिकोण सिर्फ़ यह सिखाता है कि जीवन की सच्चाइयों को स्वीकारना और उन्हें समझदारी से संभालना महत्वपूर्ण है।

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 Surendra Singh Virhe

Saturday, August 24, 2024

मनोदशा की अभिव्यक्ति की रीडिंग अर्थात माइंड रीडिंग !

 जागृत अवस्था और मनोदशा की अभिव्यक्ति की रीडिंग 

अर्थात माइंड रीडिंग !


माइंड रीडिंग, जिसे "मानसिकता पठन" या "सोच पढ़ना" भी कहा जाता है, का मतलब यह समझना है कि कोई व्यक्ति क्या सोच रहा है या उसकी मानसिक स्थिति क्या है। यह विज्ञान, मनोविज्ञान और परामनोविज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में अध्ययन का विषय है।


हालांकि, यह पूरी तरह से सटीक और प्रत्यक्ष नहीं हो सकता, फिर भी कुछ तरीके हैं जिनसे हम किसी की मनोदशा या मानसिक स्थिति को समझ सकते हैं:


1. शारीरिक संकेत (Body Language):

शारीरिक भाषा जैसे कि चेहरे के हाव-भाव, आँखों की गति, हाथों की गतिविधियां, और शरीर की मुद्रा मानसिक अवस्था को दर्शाती हैं। उदाहरण के लिए, जब कोई व्यक्ति चिंतित होता है, तो उसके हाथ काँप सकते हैं या वह बार-बार अपने चेहरे को छू सकता है।


2. बातचीत की शैली (Speech Patterns):


किसी व्यक्ति की बातचीत की शैली, उसकी आवाज़ का उतार-चढ़ाव, और बोलने का तरीका उसकी मानसिक स्थिति के बारे में संकेत दे सकता है। उदाहरण के लिए, धीमी और कमजोर आवाज़ उदासी या थकान को दर्शा सकती है, जबकि तेज़ और जोर से बोलना उत्तेजना या गुस्से को इंगित कर सकता है।


3. आँखों का संपर्क (Eye Contact):

किसी व्यक्ति की आँखों का संपर्क बनाए रखने या उससे बचने का तरीका भी उसकी मनोदशा को समझने में सहायक हो सकता है। लगातार आँखों का संपर्क आत्मविश्वास का संकेत है, जबकि आँखों का संपर्क न करना शर्मिंदगी, झूठ बोलने, या असुविधा को दर्शा सकता है।


4. व्यवहारिक पैटर्न (Behavioral Patterns):

किसी व्यक्ति का सामान्य व्यवहार और आदतें भी उसकी मानसिक स्थिति को दर्शा सकती हैं। यदि कोई व्यक्ति अचानक से अपने सामान्य व्यवहार से विपरीत तरीके से व्यवहार करने लगे, तो यह उसकी मानसिक स्थिति में बदलाव का संकेत हो सकता है।


5. मनोवैज्ञानिक परीक्षण (Psychological Tests):

मनोवैज्ञानिक परीक्षण, जैसे कि व्यक्तित्व परीक्षण, IQ परीक्षण, या अन्य मानसिकता विश्लेषण उपकरण, मानसिक स्थिति और सोचने के तरीके का गहराई से विश्लेषण कर सकते हैं।


6. प्रेरणा और भावनाओं का विश्लेषण (Motivation and Emotional Analysis):

किसी व्यक्ति की मानसिकता को समझने के लिए उसके उद्देश्यों, इच्छाओं, और भावनाओं का विश्लेषण करना महत्वपूर्ण हो सकता है। यह पता लगाने की कोशिश करें कि वह व्यक्ति क्या चाहता है या उससे क्या डरता है।


7. पारस्परिक संबंध (Interpersonal Relationships):

व्यक्ति के साथ उसके रिश्तों और संपर्कों का विश्लेषण भी उसकी मानसिकता को समझने में सहायक हो सकता है। वह दूसरों के साथ कैसे व्यवहार करता है, इससे उसकी मानसिकता का पता चल सकता है।


8. मनोविज्ञान और न्यूरोसाइंस का अध्ययन (Psychology and Neuroscience):

आधुनिक न्यूरोसाइंस और मनोविज्ञान ने मस्तिष्क की गतिविधियों और मानसिक अवस्थाओं को समझने के लिए उन्नत तकनीकों को विकसित किया है, जैसे कि FMRI, EEG आदि।


इन सब माध्यमों के द्वारा हम किसी व्यक्ति की मानसिक स्थिति को समझ सकते हैं। हालांकि, यह हमेशा सटीक नहीं होता और इसे सही ढंग से समझने के लिए अनुभव और अभ्यास की आवश्यकता होती है।


आपको यदि माइंड रीडिंग में दक्षता प्राप्त करना है तो जिंदगी में समाधान डिवाइन लाईफ सॉल्युशंस के माइंड पावर तकनीक माईंड रीडिंग इंप्रूवमेंट एडवांस कोर्स को ज्वाइन करना चाहिए।


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डा सुरेन्द्र सिंह विरहे 

मनोदैहिक स्वास्थ्य आरोग्य विशेषज्ञ आध्यात्मिक योग चिकित्सक लाईफ कोच डिवाइन लाईफ सॉल्युशंस भोपाल मध्य प्रदेश 

098260 42177 


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Thursday, August 22, 2024

जिंदगी में क्रांतिकारी रूपांतरण,नई युवा सोच!दिव्य समाधान सूत्र काम,क्रोध,लोभ, और मोह की प्रवृत्ति पर रोक

 जिंदगी में क्रांतिकारी रूपांतरण,नई युवा सोच!दिव्य समाधान सूत्र

काम,क्रोध,लोभ, और मोह की प्रवृत्ति पर रोक लगाने के जिंदगी के समाधान डिवाइन लाईफ सॉल्युशंस के निदेशक डा सुरेंद्र सिंह विरहे प्रसिद्ध मनोदैहिक आरोग्य स्वास्थ्य विशेषज्ञ आध्यात्मिक योग चिकित्सक द्वारा शोध आधारित निर्देशित अभ्यास और जीवन शैली में इन प्रयोगों को नियमित करें।


काम, क्रोध, लोभ, और मोह जैसी नकारात्मक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण पाने के लिए विभिन्न आध्यात्मिक और मनोवैज्ञानिक तकनीकों का प्रयोग किया जा सकता है। यहां कुछ प्रभावी उपाय दिए गए हैं:


1. ध्यान (Meditation)

विपश्यना ध्यान: इस ध्यान विधि के माध्यम से आप अपनी मानसिक स्थिति को देख सकते हैं और अपनी भावनाओं पर नियंत्रण पा सकते हैं। यह मन को शांति और स्थिरता प्रदान करता है।

सांस का ध्यान (Breath Awareness): यह एक सरल तकनीक है जिसमें अपनी सांसों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। इससे मन को वर्तमान क्षण में बनाए रखने और नकारात्मक भावनाओं को कम करने में मदद मिलती है।

मंत्र ध्यान: इस तकनीक में आप एक सकारात्मक मंत्र का जप करते हैं, जिससे मन की स्थिरता और शांति बढ़ती है।


2. आत्म-संयम (Self-Discipline)

स्वयं के प्रति जागरूकता: दिनभर की गतिविधियों में जागरूक रहें और नकारात्मक विचारों को तुरंत पहचानने का प्रयास करें।

धैर्य का विकास: किसी भी स्थिति में तुरंत प्रतिक्रिया न दें। थोड़ा समय लें, शांति से सोचें और फिर प्रतिक्रिया दें।

सीमा निर्धारण: अपने जीवन में निश्चित सीमाएं निर्धारित करें, जैसे कि काम की अवधि, भोजन की मात्रा, आदि, जिससे लोभ और मोह पर नियंत्रण पाया जा सके।


3. ज्ञान और विवेक (Knowledge and Wisdom)

शास्त्र अध्ययन: भगवद गीता, उपनिषद, और अन्य धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करें। इनमें निहित ज्ञान आपको मोह, क्रोध, और लोभ से मुक्ति पाने में मदद कर सकता है।

सत्संग: संत-महात्माओं और गुरुजनों के साथ समय बिताना और उनके प्रवचनों को सुनना, आत्मज्ञान को बढ़ाने में सहायक हो सकता है।

स्वयं का आकलन: नियमित रूप से आत्मनिरीक्षण करें और अपनी कमजोरियों को पहचानें। इस पर ध्यान केंद्रित करें कि कैसे इन्हें सुधारा जा सकता है।


4. योग (Yoga)

आसन और प्राणायाम: योग के माध्यम से शरीर और मन में संतुलन बनाया जा सकता है। इससे मानसिक शांति प्राप्त होती है और नकारात्मक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करना आसान हो जाता है।

कर्म योग: निस्वार्थ भाव से कार्य करना, कर्म योग का हिस्सा है। इससे लोभ और मोह पर नियंत्रण पाया जा सकता है।


5. सकारात्मक सोच और आत्म-संवाद (Positive Thinking and Self-Talk)

सकारात्मक दृष्टिकोण: हर स्थिति में सकारात्मकता खोजने का प्रयास करें। इससे क्रोध और मोह पर नियंत्रण पाया जा सकता है।

स्वयं को प्रेरित करें: जब भी नकारात्मक प्रवृत्तियां उभरें, तो खुद से सकारात्मक बातें करें, जैसे "मुझे शांति और धैर्य रखना है," "मैं लालच से मुक्त हूं।"


6. साधना और भक्ति (Spiritual Practice and Devotion)

ईश्वर की भक्ति: नियमित रूप से ईश्वर की आराधना और भक्ति करना नकारात्मक भावनाओं को शांत करने में सहायक हो सकता है।

सेवा का भाव: निःस्वार्थ सेवा करने से मन में लोभ, मोह, और क्रोध की प्रवृत्तियों का ह्रास होता है।


7. संगति का ध्यान (Mindful Association)

सत्संगति: अच्छे और सकारात्मक लोगों के साथ संगति करें, जिससे आपका मन शांत और स्थिर रहेगा।


दुष्ट संगति से बचें: उन लोगों से दूरी बनाएं जो नकारात्मक प्रवृत्तियों को बढ़ावा देते हैं।

इन उपायों का नियमित अभ्यास करने से नकारात्मक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण पाना संभव है। समय के साथ, इन प्रवृत्तियों पर पूरी तरह से रोक लगाना संभव हो सकता है।

स्वस्थ जीवन शैली व्यक्तित्व विकास आरोग्य और आध्यात्मिक मनोदैहिक स्वास्थ्य देखभाल परामर्श हेतु संपर्क करें 

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Wednesday, August 21, 2024

आध्यात्मिक स्वास्थ्य आध्यात्मिकता और व्यक्तिगत विकास

 आध्यात्मिक स्वास्थ्य आध्यात्मिकता

और व्यक्तिगत विकास के बीच क्या संबंध होता है? 

आइए जिंदगी के समाधान डिवाइन लाईफ सॉल्युशंस द्वारा इस महत्वपूर्ण विषय में जानते हैं!

आध्यात्मिक स्वास्थ्य में आपके जीवन में उद्देश्य, अर्थ और मूल्य की उच्च भावना शामिल है। यह आपकी अपनी ज़रूरतों को पूरा करने और अपने प्रामाणिक स्व और अपने आस-पास की दुनिया से जुड़ाव महसूस करने जैसा हो सकता है।


आध्यात्मिकता और व्यक्तिगत विकास के बीच घनिष्ठ संबंध होता है। आध्यात्मिकता और व्यक्तिगत विकास दोनों ही व्यक्ति के आंतरिक और बाह्य जीवन को संतुलित और समृद्ध बनाने में सहायक होते हैं। आइए इसे विस्तार से समझते हैं:

आध्यात्मिकता का अर्थ:

आध्यात्मिकता का संबंध व्यक्ति के आंतरिक जीवन, आत्मा और उसके अस्तित्व की गहरी समझ से होता है। इसमें ध्यान, प्रार्थना, योग, और अन्य आत्मान्वेषण के साधनों के माध्यम से अपने वास्तविक स्वरूप की खोज शामिल है।

यह व्यक्ति को उसके जीवन के उद्देश्य, आत्म-साक्षात्कार, और ब्रह्मांड के साथ उसके संबंध के बारे में जागरूक बनाती है।

व्यक्तिगत विकास का अर्थ:

व्यक्तिगत विकास वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्ति अपने कौशल, ज्ञान, और व्यक्तित्व को सुधारता है। इसका उद्देश्य व्यक्ति के जीवन के हर पहलू में सुधार करना होता है, चाहे वह मानसिक, भावनात्मक, शारीरिक, या सामाजिक हो।

इसमें आत्म-जागरूकता, आत्म-निर्भरता, और जीवन की चुनौतियों का सामना करने की क्षमता बढ़ाने पर जोर दिया जाता है।

दोनों के बीच संबंध:

आत्म-जागरूकता: आध्यात्मिकता व्यक्ति को आत्म-जागरूकता में वृद्धि करने में मदद करती है, जो व्यक्तिगत विकास के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। जब व्यक्ति अपने भीतर की गहरी सच्चाई को समझने लगता है, तो वह अपने विचारों, भावनाओं और क्रियाओं के प्रति अधिक सचेत हो जाता है। यह आत्म-जागरूकता व्यक्तिगत विकास की नींव बनती है।

आत्म-स्वीकृति और आत्म-सुधार: आध्यात्मिकता व्यक्ति को अपने भीतर के अंधेरे पक्षों को स्वीकार करने और उन्हें सुधारने की प्रेरणा देती है। यह स्वीकृति और सुधार की प्रक्रिया व्यक्तिगत विकास के लिए आवश्यक होती है।

संबंधों में सुधार: आध्यात्मिकता व्यक्ति को दूसरों के प्रति करुणा, सहानुभूति, और प्रेम की भावना से प्रेरित करती है। यह व्यक्तिगत विकास में मदद करती है, क्योंकि व्यक्ति अपने संबंधों में सुधार करता है और दूसरों के साथ अधिक सामंजस्यपूर्ण तरीके से जीता है।

मानसिक और भावनात्मक स्थिरता: ध्यान और योग जैसी आध्यात्मिक प्रथाएं मानसिक और भावनात्मक स्थिरता को बढ़ावा देती हैं, जो व्यक्तिगत विकास का एक महत्वपूर्ण पहलू है। जब व्यक्ति मानसिक और भावनात्मक रूप से संतुलित होता है, तो वह जीवन की चुनौतियों का सामना अधिक प्रभावी ढंग से कर सकता है।

जीवन के उद्देश्य की खोज: आध्यात्मिकता व्यक्ति को जीवन के उद्देश्य और अर्थ की खोज में मदद करती है। जब व्यक्ति अपने जीवन का उद्देश्य समझ जाता है, तो वह अपने व्यक्तिगत विकास के लक्ष्यों को अधिक स्पष्ट और प्रेरित होकर प्राप्त कर सकता है।

डा सुरेन्द्र सिंह विरहे मनोदैहिक स्वास्थ्य आरोग्य विशेषज्ञ आध्यात्मिक स्वास्थ्य योग चिकित्सक लाईफ कोच के अनुसार

"आध्यात्मिकता और व्यक्तिगत विकास के बीच का संबंध व्यक्ति के समग्र विकास और उसकी जीवन यात्रा में संतुलन और संतुष्टि लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आध्यात्मिकता व्यक्ति को अपने भीतर की गहराइयों में जाकर अपने वास्तविक स्वरूप की खोज करने में मदद करती है, जो अंततः उसके व्यक्तिगत विकास को प्रेरित करती है। दोनों का संयुक्त प्रयास व्यक्ति को एक संतुलित, संतुष्ट, और पूर्ण जीवन जीने में सहायता करता है।"

अधिक विस्तृत जानकारी मार्गदर्शन और जीवन समाधान हेतु संपर्क करें डिवाइन लाईफ सॉल्युशंस।


Tuesday, August 20, 2024

जिंदगी के समाधान! डिवाइन लाईफ सॉल्युशंस की "स्वयं" को जानने की लाइफ कोचिंग सीखिए।

 खुद में सकारात्मक बदलाव !

जिंदगी के समाधान! डिवाइन लाईफ सॉल्युशंस की "स्वयं" को जानने की लाइफ कोचिंग सीखिए।

अपने मन और दिमाग पर नियंत्रण करके खुद को इतना बदल सकते हैं कि लोग भी आपके जैसा बनना चाहेंगे। 


खुद में सकारात्मक बदलाव लाना एक महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक प्रक्रिया है। इसके लिए मन और दिमाग पर नियंत्रण करना आवश्यक है। यहाँ इस प्रक्रिया को डा सुरेन्द्र सिंह विरहे प्रसिद्ध मनोदैहिक स्वास्थ्य आरोग्य विशेषज्ञ आध्यात्मिक योग चिकित्सक लाईफ कोच द्वारा विस्तार से बताया गया है:


1. आत्म-जागरूकता (Self-awareness)

खुद को जानें: सबसे पहले यह समझें कि आप कौन हैं, आपकी ताकत और कमजोरियाँ क्या हैं। आत्म-मूल्यांकन करें और यह जानने का प्रयास करें कि आपको किन क्षेत्रों में सुधार की आवश्यकता है।

आत्म-स्वीकृति: अपनी कमजोरियों को स्वीकारें। यह आत्म-सुधार की दिशा में पहला कदम है।

2. ध्यान और मेडिटेशन (Meditation and Mindfulness)

मेडिटेशन: ध्यान करने से मन को शांत करने और सोच को केंद्रित करने में मदद मिलती है। यह आपको आपके विचारों और भावनाओं पर नियंत्रण पाने में सहायता करता है।

माइंडफुलनेस: वर्तमान क्षण में जीने की कला है। इससे आप अपने विचारों को भटकने से रोक सकते हैं और नकारात्मक विचारों को सकारात्मक में बदल सकते हैं।

3. सकारात्मक सोच (Positive Thinking)

नकारात्मक सोच को बदलें: जब भी कोई नकारात्मक विचार आए, उसे सकारात्मक रूप में बदलने का प्रयास करें। उदाहरण के लिए, "मैं यह नहीं कर सकता" को "मैं यह कर सकता हूँ" में बदलें।

आभार व्यक्त करें: अपने जीवन में छोटी-छोटी चीजों के लिए आभार व्यक्त करें। यह आपके मन में सकारात्मकता लाता है और जीवन के प्रति एक अच्छा दृष्टिकोण विकसित करता है।

4. लक्ष्य निर्धारण (Goal Setting)

स्पष्ट लक्ष्य बनाएं: जीवन में क्या हासिल करना चाहते हैं, यह स्पष्ट करें और उसे छोटे-छोटे चरणों में विभाजित करें।

लक्ष्यों के प्रति समर्पित रहें: अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ने के लिए दैनिक कार्य करें और अनुशासन बनाए रखें।

5. स्वयं की तुलना न करें (Avoid Comparisons)

खुद को दूसरों से तुलना न करें: हर व्यक्ति का जीवन यात्रा अलग होती है। अपनी यात्रा पर ध्यान केंद्रित करें और अपने आप को पहले से बेहतर बनाने का प्रयास करें।

स्वयं की प्रगति का जश्न मनाएं: छोटी-छोटी उपलब्धियों को पहचानें और उनकी सराहना करें।

6. नियमित शारीरिक गतिविधि (Regular Physical Activity)

व्यायाम करें: शारीरिक स्वास्थ्य को सुधारने के लिए नियमित रूप से व्यायाम करें। यह न केवल आपके शरीर को स्वस्थ रखता है बल्कि मानसिक स्थिति को भी बेहतर बनाता है।

योग और प्राणायाम: इनसे मानसिक शांति प्राप्त होती है और शरीर में ऊर्जा का संचार होता है।

7. स्वस्थ आहार (Healthy Diet)

संतुलित आहार लें: आपकी खान-पान की आदतें आपके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर बड़ा प्रभाव डालती हैं। ताजे फल, सब्जियां, और प्रोटीन युक्त आहार लें।

पानी पिएं: पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं, यह शरीर को हाइड्रेटेड रखता है और मन को स्पष्ट करता है।

8. समय प्रबंधन (Time Management)

समय का सही उपयोग करें: अपने दिनचर्या में ऐसे समय का निर्धारण करें जो आपके लक्ष्यों की पूर्ति में मदद कर सके।

प्राथमिकता तय करें: सबसे महत्वपूर्ण कार्यों को पहले पूरा करें। इससे आपका समय और ऊर्जा सही दिशा में इस्तेमाल होगी।

9. स्वयं को प्रेरित रखें (Self-Motivation)

प्रेरक साहित्य पढ़ें: ऐसे पुस्तकें, लेख, या वीडियो देखें जो आपको प्रेरित करें और आगे बढ़ने की शक्ति दें।

प्रेरणादायक लोगों के साथ रहें: ऐसे लोगों के साथ समय बिताएं जो आपको प्रेरित करते हैं और आपके विकास में सहायक होते हैं।

10. आध्यात्मिकता (Spirituality)

आध्यात्मिक अभ्यास करें: प्रार्थना, ध्यान, या धार्मिक गतिविधियों के माध्यम से अपनी आत्मा से जुड़ें। इससे आपको आंतरिक शांति मिलती है और जीवन के प्रति एक संतुलित दृष्टिकोण विकसित होता है।

खुद में सकारात्मक बदलाव की प्रक्रिया एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। इसके लिए धैर्य, समर्पण और दृढ़ संकल्प की आवश्यकता होती है। जब आप अपनी सोच और दृष्टिकोण में सुधार लाते हैं, तो न केवल आपका जीवन बेहतर होता है, बल्कि आप दूसरों के लिए भी प्रेरणा बन सकते हैं।

अधिक विस्तृत जानकारी मार्गदर्शन और स्वास्थय देखभाल जागरूकता जीवन समाधान परामर्श हेतु संपर्क करें डिवाइन लाईफ सॉल्युशंस भोपाल मध्य प्रदेश 

स्वस्थ जीवन शैली व्यक्तित्व विकास आरोग्य  समृद्धि आनंद पाने के लिए चैनल सब्सक्राइब करें डिवाइन लाईफ सॉल्युशंस यू ट्यूब। 098260 42177 


Friday, August 16, 2024

सफलता के लिए निरंतर प्रयास और स्थिरता अत्यंत महत्वपूर्ण हैं

सफलता के लिए निरंतर प्रयास और स्थिरता अत्यंत महत्वपूर्ण हैं 


सफलता प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयास और स्थिरता अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, और इसका कारण कई पहलुओं से समझा जा सकता है:


1. निरंतरता से कौशल में सुधार:

किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए संबंधित कौशलों में महारत हासिल करना जरूरी है। निरंतर अभ्यास से व्यक्ति अपने कौशल में सुधार करता है, नई तकनीकें सीखता है और अनुभव प्राप्त करता है, जिससे कार्य की गुणवत्ता में बढ़ोतरी होती है।

2. परिश्रम और मेहनत का फल:

सफलता कोई त्वरित प्रक्रिया नहीं है, यह समय और परिश्रम की मांग करती है। निरंतर प्रयास से आप अपने लक्ष्यों के प्रति अधिक मेहनत कर पाते हैं, जिससे अंततः सफलता प्राप्त होती है। यदि आप बीच में ही प्रयास छोड़ देते हैं, तो पहले किए गए प्रयास बेकार हो सकते हैं।


3. विफलताओं से सीखने का अवसर:

निरंतर प्रयास का एक बड़ा लाभ यह है कि आप अपनी विफलताओं से सीखते हैं। जब आप बार-बार प्रयास करते हैं, तो आपको अपनी गलतियों का पता चलता है और आप उन्हें सुधारते हुए आगे बढ़ते हैं। यह सीखने की प्रक्रिया ही आपको सही दिशा में आगे बढ़ने में मदद करती है।


4. लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्धता:

स्थिरता यह सुनिश्चित करती है कि आप अपने लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्ध रहते हैं। स्थिरता के बिना, ध्यान भटकने और असफलता का सामना करने की संभावना अधिक होती है। स्थिरता आपकी प्राथमिकताओं को स्पष्ट रखने और आपको अपने लक्ष्यों की ओर निरंतर बढ़ने में मदद करती है।


5. समय के साथ परिणाम:

किसी भी कार्य में समय के साथ परिणाम प्राप्त होते हैं। सफलता का रास्ता लंबा हो सकता है, लेकिन यदि आप स्थिरता बनाए रखते हैं और नियमित रूप से प्रयास करते हैं, तो आप उन छोटे-छोटे मील के पत्थरों को पार करते हुए अंततः अपने बड़े लक्ष्य तक पहुँच सकते हैं।


6. मानसिक और भावनात्मक स्थिरता:

निरंतर प्रयास और स्थिरता आपके मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को भी सुदृढ़ बनाती है। जब आप एक नियमित रूप से कार्य करते हैं, तो आपका मन और भावनाएँ भी स्थिर रहती हैं। यह स्थिरता आपके आत्मविश्वास और प्रेरणा को बनाए रखने में मदद करती है।


7. अनुशासन और आत्म-नियंत्रण:

निरंतरता और स्थिरता व्यक्ति में अनुशासन और आत्म-नियंत्रण का विकास करती हैं। जब आप नियमित रूप से किसी कार्य को करने का संकल्प लेते हैं, तो आपको अपने समय और ऊर्जा का सही तरीके से उपयोग करना आता है। यह अनुशासन अंततः सफलता के लिए आवश्यक होता है।


8. दीर्घकालिक सफलता:

सफलता को बनाए रखना जितना कठिन है, उतना ही महत्वपूर्ण है। जो व्यक्ति निरंतर प्रयास करते हैं और स्थिर रहते हैं, वे न केवल सफलता प्राप्त करते हैं, बल्कि उसे दीर्घकालिक रूप से बनाए रखने में भी सक्षम होते हैं। यह उन्हें प्रतिस्पर्धा में आगे रखता है और उनका जीवन संतुलित बनाता है।

निरंतर प्रयास और स्थिरता ही सफलता की कुंजी हैं, और इनका पालन करने से आप न केवल अपने लक्ष्य तक पहुँच सकते हैं, बल्कि एक संतुलित और सशक्त जीवन भी जी सकते हैं।

Friday, August 9, 2024

दर्शनशास्त्र का लक्ष्य.. निःश्रेयस की प्राप्ति होती है।

 दर्शनशास्त्र का लक्ष्य ..

निःश्रेयस की प्राप्ति है।

 परमलक्ष्य भौतिक भी हो सकता है, आध्यात्मिक भी। दर्शन केवल मार्ग दिशा बोध ही नहीं करता बल्कि मार्ग के औचित्य, कर्तव्य, शुभ ,अशुभ का भी दिशाबोध   कराता है । दर्शन कोई स्थिर वस्तु नहीं है। इसका स्वरूप गत्यात्मक है। इसकी व्यवहारिक उपयोगिता है। कार्ल मार्क्स ने द्वंदात्मक  भौतिकवाद द्वारा राजनीति के क्षेत्र में दर्शन की उपयोगिता सिद्ध कर दी। ऐतिहासिक क्रांतियां सदैव दार्शनिकों के विचारों से प्रेरित होती थी। स्वार्थ, विश्वास, संघर्ष, हिंसा, प्रतिकार इत्यादि से प्रकंपित विश्व को वसुधेव व कुटुंबकम का पाठ दर्शन ही पढ़ता है। विज्ञान की  खोजों का मानवता के हित में नियोजन की रूपरेखा दर्शन प्रस्तुत करता है ।शांति और अहिंसा का दर्शन नाभिकीय युद्ध से त्राण का ठोस उपाय बताता है । दर्शन ही विश्व में एक नैतिक एवं समतापूर्ण व्यवस्था की संरचना की ओर मानव को प्रेरित करता है। दर्शन का काम केवल संसार को जानना मात्र नहीं है वरन मार्क्स के शब्दों में दर्शन के सम्मुख मुख्य प्रश्न है कि उस संसार को कैसे परिवर्तित किया जाए ? इस तरह दर्शन की उपयोगिता मानव जीवन के प्रत्यक्ष क्षेत्र में दृष्टिगोचर होती है।

दर्शन की उत्पत्ति मानव मन में प्राकृतिक घटनाओं से उत्पन्न आश्चर्य, कोतूहल, आत्म अपूर्णता, बौद्धिक असंतोष इत्यादि कारणों से हुई । दर्शन के आरंभ से  अब तक का कल चार युगों में विभाजित किया जा सकता है प्राचीन काल, मध्यकाल, आधुनिक काल  एवं समकालीन युग  प्राचीन युग का प्रारंभ विश्व के प्रथम दार्शनिक थैलीज से हुआ, जिसने जल को ही जगत का मूल कारण कहा। कालांतर में

हेराकलेट्स ने अग्नि, 

डेमोक्राईट्स ने परमाणु को और पाईथोगोरस ने संख्या को मूल कारण बताया।


सुकारात ,प्लेटो एवं अरस्तू ने दर्शन को विकास के नए क्षितिज तक पहुंचाया इस युग में ज्ञान मीमांसा तत्व मीमांसा  एवं मूल्य मीमांसा की ठोस नीव पड़ गई ।

मध्य युगीन दर्शन एकिनास, अगस्टाइन, स्टोईकस, एरिजेना एवं विलियम् ऑफ ओकम जैसे संत दार्शनिकों के हाथों में विकसित हुआ। यद्यपि इनका चिंतन क्षेत्र धर्म की सीमा न लांघ सका। धार्मिक सुधारो, पुर्नजागरणों जैसे कारणों से बढ़ती हुई वैज्ञानिक खोज प्रवृत्ति से दर्शन में भी आमूल परिवर्तन हुए। देकार्ट ने बुद्धिमान की स्थापना की मध्य युगीन धार्मिक दार्शनिक चिंतन के प्रति विद्रोही स्वर मुखरित किया। स्पिनोजा एवं लाइव नित्यज ने बुद्धिवाद को आगे बढ़ाया। किंतु इसकी प्रतिक्रिया में अनुभव वाद का जन्म हुआ जिसके प्रतिनिधि विचारक लाक ,बर्कले एवं हुयूम हुए।


भारतीय दर्शन की भी अपनी विशिष्टता रही है ।भारत में दर्शन का आरंभ वेदों से होता है इसमें जगत का आदि तत्व कहा गया है ।उपनिषदों में भारतीय दर्शन का प्रारंभिक उत्कर्ष है। इसमें जगत, ब्रह्म, माया, आदि तत्वों का सूक्ष्म में विवेचन है कालांतर में सांख्य , जैन ,बौद्ध ,चार्वाक सहित  छह दर्शनों का अभ्युदय हुआ। भारतीय प्रगल्भ दार्शनिकों ने ज्ञान मीमांसा  एवं तत्व मीमांसा दोनों में अपनी गुढ़ बुद्धि का परिचय दिया। भारतीय दर्शन को चरमोत्कर्ष पर शंकराचार्य ने पहुंचाया। समकालीन दर्शन में अरविंद घोष एवं राधा कृष्णन ने उसे परंपरा को जीवित रखा है।


डा सुरेन्द्र सिंह विरहे 


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Surendra Singh Virhe 


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दर्शन शास्त्र का महत्व प्राचीन काल से ही मान्य है!

 दर्शनशास्त्र का महत्व प्राचीन काल से ही मान्य रहा है!

ग्रीक  में फिलॉस्फर किंग एवं भारत में राज ऋषि का आदर्श सदैव अनुकरणीय  रहा है।


 प्रायः दार्शनिक राजा के सचिव पुरोहित सहायक एवं मार्गदर्शन हुआ करते थे भारतीय महाविद्यालय मूलत दर्शन शिक्षा के ही केंद्र थे दार्शनिक विचार सभ्यता एवं संस्कृति के प्राण तत्व होते हैं जिनकी आधारशिला पर समाज की संरचना होती है।

 नींव की सुदृढ़ता विशाल भवन का अपरिहार्य तत्व है अतः समाज का दार्शनिक पक्ष जितना समुन्नत होगा एवं समृद्ध होगा उसका भौतिक पक्ष उतना ही विकासशील एवं स्थाई होगा दूसरे शब्दों में मानव के आध्यात्मिक एवं भौतिक अर्थात सर्वांगीण विकास के लिए दर्शन की महत्वपूर्ण सार्थकता स्वतः सिद्ध होती है।


वास्तव में दर्शनशास्त्र यथार्थता का सूक्ष्म वैज्ञानिक और तार्किक दृष्टिकोण से अध्ययन करने वाला शास्त्र है। दर्शनशास्त्र का क्षेत्र अध्यात्म वाद से भौतिकवाद तक विस्तृत हो गया है मूलत दर्शन शास्त्र के तीन विभाग है  तत्व मीमांसा, ज्ञान मीमांसा,  एवं मूल्य मीमांसा । 


तत्व  मीमांसा में ब्रह्मांड के मूल तत्व की विवेचना होती है जो विचारधारा इस मूल तत्व को भौतिक कहती है वह भौतिकवाद है जो इसे आध्यात्मिक मानती है वह आध्यात्मवाद  है। और जो इस मूल तत्व को एक मानने वाला मत एक तत्ववाद,दो मानने वाला द्वैतवाद एवं अनेक मानने वाला मत बहु तत्ववाद कहलाया।


तत्व मीमांसा में भौतिक एवं आध्यात्मिक तत्त्वों अर्थात पदार्थ एवं मन के संबंध, ईश्वर एवं आत्मा की सत्ता एवं संबंध आदि की विवेचना होती है ।

सत सृष्टि एवं श्रेष्ठ के स्वरूप संबंध एवं विकास की विवेचना भी तत्व मीमांसा में होती है जिससे  विकासवाद यंत्रवाद, प्रयोजनवाद आदि सिद्धांत प्रकट होते हैं।


ज्ञान मीमांसा में मानवीय ज्ञान के स्वरूप सीमा एवं सामर्थ्य की विवेचना की जाती है। जो सिद्धांत मानव ज्ञान का स्रोत इंद्रिय मात्र मानता है वह इंद्रिय अनुभववाद कहलाता है जबकि बुद्धि को ही ज्ञान का स्रोत मानने वाला मत बुद्धिवाद कहा गया है ।प्रथम मत के पोषक लॉक, बर्कले एवं ह्यूम है जबकि दूसरे मत का विकास डेकार्ट ,स्पिनोजा एवं लाइबनित्ज के मतों में हुआ है। कांत ने दोनों अतिवादी मतों की कमी का अन्वेषण करके समीक्षावाद का प्रणयन किया है जो ज्ञान के निर्माण में अनुभव एवं बुद्धि दोनों की महत्ता स्वीकार करता है।


मूल्य मीमांसा में दर्शन तर्कशास्त्र नीति शास्त्र एवं सौंदर्य शास्त्र की दृष्टि से मूल्यों की विवेचना करता है तथा सत्यम, शिवम, सुंदरम का निरूपण करता है इसके अतिरिक्त भी दर्शन की अनेक शाखाएं हैं जैसे की इतिहास का दर्शन धर्म का दर्शन शिक्षा समाजशास्त्र विज्ञान राजनीति अर्थशास्त्र इत्यादि का दर्शन इस तरह दर्शन अन्य विषयों से भी संबंध है।


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Thursday, August 8, 2024

क्या आप एक शांत और खुशहाल जीवन चाहते हैं?

 क्या आप भी जीवन के प्रपंच , तनाव और भागम भाग से थके हुए हैं? 

क्या आप एक शांत और खुशहाल जीवन चाहते हैं?

दिव्य जीवन समाधान शिवम योग दिव्य उत्कर्ष विद्या ध्यान की शक्ति से आप अपना जीवन बदल सकते हैं।

जीवन के समाधान विकल्प उपलब्ध हैं।


संताप तनाव चुनौतियां - सभी के लिए सामान्य हैं, और ये हमें मानसिक, शारीरिक और मनोविज्ञान के रूप में प्रभावित कर सकते हैं। कई लोग इस दबाव से थकान महसूस करते हैं और एक शांत, खुशहाल जीवन की तलाश में रहते हैं। 


ध्यान (मेडिटेशन) एक ऐसा साधन है जो न केवल तनाव से मुक्ति दिला सकता है, बल्कि आपके जीवन को एक नई दिशा भी दे सकता है। 

### ध्यान की शक्ति ध्यान एक प्राचीन तकनीक है, जो आपके मन को शांत करने, विचार को नियंत्रित करने और आत्म-साक्षात्कार को बढ़ाने में मदद करती है। इसे नियमित रूप से करने से आप: **मानसिक शांति और स्थिरता प्राप्त कर सकते हैं**

 ध्यान मन को स्थिर और शांत करता है। यह आपकी वर्तमान स्थिति को दर्शाता है, जिससे आप गंतव्य में रह सकते हैं। 


# ध्यान की शक्ति का लाभ:  

**मानसिक शांति और स्थिरता**: ध्यान आपके मस्तिष्क की स्थिति को धीमा करके आपको गहन आराम की स्थिति में ले जाता है। इससे आपके विचार की भीड़ शांति होती है, और आप मानसिक शांति का अनुभव करते हैं। इससे निर्णय लेने की क्षमता भी बेहतर होती है। 


डिवाइन लाइफ सॉल्यूशंस दिव्य उत्कर्ष विद्या ध्यान के लाभ :  **आध्यात्मिक विकास**: ध्यान आपको आत्म-ज्ञान और आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाता है। इससे आप अपने अंदर की गहराई को समझ सकते हैं और आत्मा की सच्चाई को जान सकते हैं। इससे आत्मा की शांति और संतुलन प्राप्त करने में मदद मिलती है। 


### ध्यान का अभ्यास कैसे करें: 

 **सही मुद्राएं अपनाएं**: ध्यान के लिए एक आरामदायक स्थिति में बैठें। आप क्रॉस-लेग्ड (पैरों को क्रॉस करके) या कुर्सी पर सीधे बैठ सकते हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि आपकी दिशा सीधी हो और आप आरामदायक महसूस करें। 


### ध्यान की तकनीकें ध्यान की कई विधियां हैं, जो आपकी पसंद और आवश्यकता के अनुसार लागू हो सकती हैं: **अन्यथा ध्यान माइंडफुलनेस मेडिटेशन**: इसमें आप वर्तमान क्षण पर पूरी तरह से ध्यान केंद्रित करते हैं, अपने विचार, भावनात्मक और शारीरिक संवेदनाओं को बिना किसी निर्णय या प्रतिक्रिया के देखना होता है। यह आपके समग्र मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करता है। 


### ध्यान से जीवन में परिवर्तन  **आत्म-साक्षात्कार**: ध्यान आपको अपने अंदर की गहराई को समझने और आत्म-ज्ञान प्राप्त करने में मदद करता है। इससे आप अपनी वास्तविक स्थिति और उद्देश्य को समझ सकते हैं। 


### ध्यान के अभ्यास के लिए सुझाव: 

**स्थिरता बनाए रखें**: ध्यान की आदत को स्थिर बनाए रखने के लिए नियमित समय निर्धारित करें। दिन की शुरुआत या अंत में एक निर्धारित समय पर ध्यान देना एक निर्धारित आदत बन सकता है। 


**साधन का चयन**: ध्यान के लिए आरामदायक स्थान का चयन करें, जहां आप बिना विघ्न के ध्यान केंद्रित कर सकें। यदि आप परिक्रमा करते हैं तो ध्यान के लिए विश्राम संगीत या निर्देशित ध्यान निर्देशित ध्यान दिव्य उत्कर्ष विद्या का उपयोग भी कर सकते हैं।


 **आत्म-स्वकृति**: ध्यान के दौरान अपनी संतुष्टि को बिना किसी निर्णय के स्वीकार करें। यह महत्वपूर्ण है कि आप अपनी आलोचना करें या आत्म-निंदा से बचाव करें और खुद को समय दें। 


**साकारात्मक दृष्टिकोण**: ध्यान के लाभ धीरे-धीरे-धीमे होते हैं। शुरुआत में किसी भी बदलाव का अनुभव न हो तो निराश न हों। गंभीरता बनाए रखें और नियमित अभ्यास जारी रखें। 


 **अभ्यास विविधता**: विभिन्न ध्यान विशेषज्ञों को देखें और देखें कि आपके लिए कौन सी विधि सबसे प्रभावशाली है। जैसे-जैसे आप अभ्यास में विकसित होंगे, आप विभिन्न तकनीकों का संयोजन भी कर सकते हैं।


  **सामूहिक ध्यान**: यदि संभव हो तो ध्यान के समूह में शामिल हों। सामूहिक ध्यान से आपको प्रेरणा मिल सकती है और आप एक साझा अनुभव का लाभ उठा सकते हैं। 


### ध्यान की चुनौतियाँ और उनके समाधान:  **विचारों का विघ्न**: ध्यान करते समय आपके मन में कई विचार आ सकते हैं। इन सिद्धांतों को प्रस्तुत करना और उन्हें बिना ध्यान दिए वापस अपने ध्यान केंद्र पर वापस लाना। अधिक विस्तृत जानकारी मार्गदर्शन और स्वास्थय देखभाल परामर्श और जीवन शैली व्यक्तित्व विकास आरोग्य हेतु संपर्क करें 

 डॉक्टर सुरेंद्र सिंह विरहे 

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जिंदगी में समाधान सूत्र आइए जानते हैं कर्म और भाग्य की पहेली का हल।

 "भाग्य" कर्म जैसी कोई चीज़ होती है या हम अपने परिणाम स्वयं बनाते हैं?

जिंदगी में समाधान सूत्र  आइए जानते हैं कर्म और भाग्य की पहेली का हल।


"भाग्य" और "कर्म" का भारतीय दर्शन और संस्कृति में गहरा महत्व है, और इन दोनों के बीच के संबंध कई युग से चर्चा का विषय है। आइए, इसका विस्तार से संकेत समाधान प्राप्त करते हैं।


भाग्य । "भाग्य" को स्पष्ट रूप से उन घटनाओं और घटनाओं के रूप में देखा जाता है जो हमारे नियंत्रण से बाहर हैं। इसे भाग्य या नियति भी कहा जाता है। कई लोगों का मानना ​​है कि जन्म से ही हमारे जीवन में क्या घटेगा, ये पहले से ही होता है। इस दृष्टिकोण के अनुसार, भाग्य कुछ ऐसा है जिसे हम बदल नहीं सकते; यह हमारे जीवन की प्रमुख घटनाओं की प्रासंगिकता को नियंत्रित करती हैं। 


कर्म क्रिया या विलेख  कर्म का अर्थ है "कर्म" या "कार्य"। यह सिद्धांत कहता है कि हमारे वर्तमान और भविष्य का निर्माण हमारे पिछले कार्यों और वर्तमान कर्मों से होता है।

 "कर्म सिद्धांत" के अनुसार, जो भी हम करते हैं, वह भविष्य में हमारे लिए परिणाम प्रस्तुत करता है। यह एक कारण और प्रभाव का सिद्धांत है: "जैसा बीज बोते हैं, वैसा फल पाओगे।" 


 भाग्य और कर्म का संबंध भाग्य और कर्म के बीच का संबंध जटिल है और इसके कई अलग-अलग अर्थ हैं: 


1. **पूर्व जन्म का कर्म और भाग्य**: हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि हमारा वर्तमान जीवन और इसमें जो भी हमें अनुभव होता है, वह हमारे पिछले जन्मों के कर्मों का फल होता है। इस दृष्टिकोण से, भाग्य भी हमारे अपने कर्मों का परिणाम है, हालाँकि वह हमारे वर्तमान जन्म में नहीं बल्कि पिछले जन्मों में दिये गये कर्मों पर आधारित है।

 

"जैसा बोगे, आदर्श  वैसा फल पाओगे।" अर्थात, आपके कर्म ही आपके भविष्य को निर्धारित करते हैं। अच्छे कर्म करने पर अच्छे नतीजे मिलते हैं, और बुरे कर्म करने पर बुरे नतीजे मिलते हैं। 

इस सिद्धांत को कर्मफल के रूप में जाना जाता है। 

भाग्य और कर्म का संबंध भाग्य और कर्म दोनों एक ही जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, और उदाहरण अक्सर एक-दूसरे के पूरक के रूप में देखा जाता है। 1. **कर्म द्वारा भाग्य का निर्माण**: इसका आशय यह है कि हमारा कर्म ही हमारे भाग्य का निर्माण करता है। उदाहरण के लिए, यदि हम ईमानदारी, परिश्रम और सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ काम करते हैं, तो हम अपने लिए सकारात्मक भाग्य का निर्माण कर सकते हैं। इस दृष्टिकोण के अनुसार, भाग्य केवल एक परिणाम है जो हमारे कर्मों से उत्पन्न होता है। 

यह है, लेकिन उसका सामना हम कैसे करते हैं, यह हमारे कर्मों पर प्रतिबंध है। कुछ महत्वपूर्ण बिंदु: 1. **कर्म ही प्रधान**: अधिकांश भारतीय दर्शन यह मानते हैं कि कर्म ही सबसे महत्वपूर्ण है। हमारा वर्तमान और भविष्य कर्मों से निर्धारित होता है। यहां तक ​​कि यदि भाग्य नामक कोई शक्ति भी है, तो वह भी कर्मों के अधीन है। इस दृष्टिकोण से, हम अपने जीवन के निर्माता होते हैं, और हमारे कर्मों का प्रभाव हमारे भविष्य को आकार देता है। 

कुछ सामग्री हमारे नियंत्रण में नहीं है और उन्हें स्वीकार करना भी महत्वपूर्ण है। यह यथार्थवादी दृष्टिकोण जीवन को अधिक समृद्ध और समृद्ध बनाता है। 

कर्म की प्रधानता और कर्म की प्रधानता  **कर्म की प्रधानता**: कर्म का महत्व यह है कि यह हमें सक्रिय और सामर्थ्यवान बनाता है। यह दृष्टिकोण हमें प्रेरित करता है कि हम अपने प्रयास में कमी न करें, भाग्य के परिणाम जो भी कुछ हो। सही कर्म के मार्गदर्शक से हम अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं और सकारात्मक परिणामों की ओर आगे बढ़ते हैं । दूसरी ओर नकारात्मक प्रभाव भी जीवन पर असर डाल सकते हैं। 


हमें अपने कर्मों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, लेकिन साथ ही जीवन में आने वाली घटनाओं को भाग्य के रूप में स्वीकार करने की तैयारी करनी चाहिए।


 जीवन में संतोष की कुंजी संतोष और शांति पाने के लिए हमें तीन प्रमुख बातों पर ध्यान देना चाहिए: 1. **सकारात्मक कर्म**: हमारा कर्म हमारे भावी जीवन का निर्माण करता है। इसलिए, हमें हमेशा सही और सकारात्मक कर्म करने की कोशिश करनी चाहिए। यह केवल हमारे भविष्य को सुधारता है, बल्कि वर्तमान में भी हमें आत्म-संतोष और मानसिक शांति प्रदान करता है। 

कर्म भाग्य का यह संबंध हमें जीवन को एक व्यापक दृष्टिकोण से देखने में मदद करता है, जहां हम अपने कर्मों के माध्यम से अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं, लेकिन साथ ही भाग्य के संकेत- प्रवेश को स्वीकार करने के लिए भी तैयार रहते हैं।

 कर्म और भाग्य का संयुक्त प्रभाव जीवन में कर्म और भाग्य का मिश्रित प्रभाव होता है। इस संदर्भ में कुछ महत्वपूर्ण बिंदु हैं: 

**सकारात्मक चिंता**: कर्म पर जोर देने से हमें सकारात्मक रणनीति विकसित करने में मदद मिलती है। जब हम अपने जीवन में किसी मजबूती का सामना करते हैं, तो हम उसे भाग्य के रूप में स्वीकार करने की बजाय, अपने को मजबूत बनाने के लिए कर्म करते हैं। यह दृष्टिकोण हमें निरंतर प्रयासरत रहने और जीवन में आशावादी बने रहने की प्रेरणा देता है।

कर्म और भाग्य के साथ जीवन जीने की कला कर्म और भाग्य के बीच संतुलन को बनाए रखना और उसे अपने जीवन में लागू करना एक कला है। इस कला को संकेत और सुझाव के कुछ महत्वपूर्ण आधार निम्नलिखित हैं: 1. **प्रयास और लक्षण**: जीवन में सफल होने के लिए हमें कर्म का मार्ग अपनाना होता है। इसका मतलब यह है कि हमें अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए। लेकिन साथ ही, हमें यह भी कहना होगा कि हर प्रयास का परिणाम हमारे हाथ में नहीं आता। इस स्थिति में, हमें दान का भाव रखना चाहिए। अपने प्रयास को पूर्ण रूप से स्वीकार करने के बाद, परिणामों को स्वीकार करना भी एक महत्वपूर्ण योगदान है।


प्रतीक जीवन को अधिक सार्थक और स्थिर बनाता है। यह हमें केवल व्यक्तिगत विकास की ओर से उजाड़ना नहीं है, बल्कि हमें जीवन की संभावनाओं का सामना करने के लिए मानसिक और सांकेतिक रूप से तैयार करना भी है। ### जीवन के विभिन्न मानक में कर्म और भाग्य का महत्व 1. **व्यवसाय और व्यवसाय**: व्यवसाय या व्यवसाय में, परिश्रम और प्रयास (कर्म) से सफलता प्राप्त होती है। लेकिन कभी-कभी, आर्थिक मंदी, बाजार की स्थिति या अन्य घटित बाहरी कारक हमारे नियंत्रण से बाहर हो जाते हैं, जिन्हें हम भाग्य के रूप में स्वीकार करते हैं। इस तरह के समय में, हमें अपनी योजना में बदलाव करने की आवश्यकता है और परिदृश्य के अनुसार अपने तरीके से अनुकूलित करना चाहिए।

"भाग्य" और "कर्म" के विधान को समझने 

जीवन में कर्म और भाग्य का संतुलित अनुपात जानने के लिए अधिक विस्तृत जानकारी मार्गदर्शन 

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Tuesday, August 6, 2024

युवा शक्ति ।

युवा शक्ति को उग्रवादी उग्रवादियों से बचने के लिए कई उपाय बताए जा सकते हैं। नीचे कुछ मुख्य चरण दिए गए हैं:

1. शिक्षा और जागरूकता:

मूल्य आधारित शिक्षा: स्कूल और स्कूल में नैतिक शिक्षा और सामाजिक मूल्यों पर ध्यान केंद्रित करना।

जागरूकता कार्यक्रम: हिंसा के दुष्परिणामों के बारे में युवाओं को जागरूक करना।

2. प्रेरित सहयोग में संलग्न होना:

खेल-कूद और सांस्कृतिक आकर्षण: बच्चों को खेल, संगीत, नृत्य आदि में शामिल करना जिससे उनकी ऊर्जा सकारात्मक दिशा में बनी रहे।

नर्सिंग सेवा: युवाओं को समाज सेवा और छात्र सेवा में शामिल करना।

3. रोजगार एवं कौशल विकास:

विकास कौशल कार्यक्रम: युवाओं को रोजगार प्राप्त करने योग्य कौशल सिखाना।

रोजगार के अवसर: रोजगार के अवसर प्रदान करना जिससे वे आत्मनिर्भर बन सकें।

4. सकारात्मक रोल मॉडल:

रोल मॉडल से प्रेरणा: समाज के सफल और सकारात्मक व्यक्तित्व से युवाओं को प्रेरित करना।

टूरशिप: युवा प्रतिभाओं को टूरशिप कार्यक्रम में सही मार्गदर्शन प्रदान किया जाता है।

5. मानसिक स्वास्थ्य सहायता:

मनोवैज्ञानिक और चिकित्सक: मानसिक तनाव और चिकित्सकों के लिए चिकित्सक और चिकित्सक चिकित्सक उपलब्ध हैं।

सपोर्ट ग्रुप: युवाओं के लिए सहारा ग्रुप बनाना जहां वे अपने साथियों को शेयर कर सहायक बनाते हैं।

6. परिवार और समाज का समर्थन:

परिवार का समर्थन: परिवार के सदस्यों का सकारात्मक सहयोग और समर्थन।

समुदाय का सहयोग: समुदाय में सकारात्मक वातावरण का निर्माण करना।

7. सकारात्मक मीडिया:

सकारात्मक पुस्तकें: मीडिया में सकारात्मक और मनोवैज्ञानिक परामर्श को बढ़ावा देना।

हिंसक सामग्री का नियंत्रण: हिंसक फिल्में, खेल और शो का प्रभाव कम करना।

8. संवाद और विचार-विमर्श:

खुली बातचीत: युवाओं से नियमित बातचीत करना और उनके अनुभवों को साझा करना।

विचार-विमर्श सत्र: विचार एवं विचारधारा पर चर्चा सत्र का आयोजन किया गया।

इन सभी मोगों में वृद्ध युवाओं को उग्र उग्रता से जोड़ा जा सकता है और उन्हें एक समृद्ध और समृद्ध भविष्य की ओर ले जाया जा सकता है।

9. समय प्रबंधन और लक्ष्य प्रतिष्ठा:

समय प्रबंधन के कौशल: युवाओं को समय का प्रबंधन सिखाना ताकि वे अपने लक्ष्य की दिशा में प्रभावी ढंग से काम कर सकें।

लक्ष्य: स्पष्ट और व्यावहारिक लक्ष्य निर्धारित करने में मदद करना ताकि वे अपने लक्ष्य को एक दिशा में खोज सकें।

10. स्वास्थ्य और फिटनेस:

स्वस्थ्य: स्वस्थ्य स्वास्थ्य और नियमित व्यायाम के महत्व को समझाना।

योग और ध्यान: योग और ध्यान जैसे मानसिक शांति प्रदान करने वाले अभ्यासों को प्रदान करें।

11. अपराध से बचाव के उपाय:

कानूनी शिक्षा: बच्चों को कानूनी जागरूकता प्रदान करना ताकि वे कानून का पालन कर सकें और अपराध से दूर रह सकें।

पुलिस और समुदाय का सहयोग: पुलिस और समुदाय के बीच सहयोग से युवाओं में सुरक्षा और सहयोग की भावना विकसित होती है।

12. सामाजिक अर्थशास्त्र पर अर्थशास्त्र:

सामाजिक चर्चा पर चर्चा: युवाओं को सामाजिक सलाहकारों पर चर्चा करना और उनका समाधान निकालना।

सामाजिक न्याय: सामाजिक न्याय के प्रति जागरूकता पैदा करना और समाज में कल्याण के प्रति जागरूकता फैलाना।

13. संरचना एवं नवीनता:

कला, विज्ञान और साहित्य को बढ़ावा देना।

नवीनता: युवाओं को नवाचार और उद्यमिता की ओर प्रेरित करना।

14. सकारात्मक सामाजिक नेटवर्किंग:

सोशल मीडिया का सही उपयोग: सोशल मीडिया का सकारात्मक उपयोग करना और हिंसक या नकारात्मक सामग्री से बचना।

नेटवर्किंग इवेंट्स: नेटवर्किंग पॉजिटिव इवेंट्स का आयोजन जिसमें युवा सही लोग शामिल होते हैं।

15. नैतिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा:

नैतिक शिक्षा: आध्यात्मिक और आध्यात्मिकता पर आधारित शिक्षा प्रदान करना।

धार्मिक और सांस्कृतिक शिक्षा: धार्मिक और सांस्कृतिक अलगाव का ज्ञान जिससे सहिष्णुता और सहानुभूति विकसित हो।

इन सभी अभियानों के संयुक्त प्रभाव से युवाओं को एक सकारात्मक और जीवंत जीवन जीने में मदद मिल सकती है। इससे न केवल वे हिंसक उग्रता से बच सकते हैं, बल्कि समाज के विकास में भी सक्रिय योगदान दे सकते हैं।

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स्मरण शक्ति (मेमोरी) बढ़ाने के क्या तरीके और उपाय

 स्मरण शक्ति (मेमोरी) बढ़ाने के क्या तरीके और उपाय है जिंदगी के समाधान डिवाइन लाईफ सॉल्युशंस द्वारा विस्तार से जान लीजिए।


स्मरण शक्ति को बढ़ाने के लिए कई उपाय और तरीके हैं जिन्हें अपनाकर आप अपनी मेमोरी को बेहतर बना सकते हैं:


स्वस्थ आहार:


ओमेगा-3 फैटी एसिड: मछली, अलसी के बीज, और अखरोट में पाया जाता है।

विटामिन E और C: फल और सब्जियों जैसे संतरे, ब्रोकोली, और अखरोट में होते हैं।

एंटीऑक्सीडेंट्स: बैरीज़, हरी चाय, और डार्क चॉकलेट में मौजूद होते हैं।

शारीरिक व्यायाम:


नियमित व्यायाम, जैसे कि कार्डियो और ताकतवर व्यायाम, रक्त संचार को बढ़ाता है और दिमागी स्वास्थ्य में सुधार करता है।

मानसिक व्यायाम:


पज़ल्स और ब्रेन गेम्स: क्रॉसवर्ड, सुडोकू, और अन्य मानसिक चुनौतीपूर्ण खेल।

नई चीजें सीखना: नई भाषा सीखना, नई कला या संगीत वाद्य यंत्र सीखना।

अच्छी नींद:


हर रात 7-9 घंटे की नींद लेना महत्वपूर्ण है, जो दिमागी विश्राम और स्मरण शक्ति को बढ़ावा देता है।

ध्यान और योग:


ध्यान (मेडिटेशन) और योग से मानसिक स्पष्टता और फोकस में सुधार होता है।

सामाजिक सक्रियता:


परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताना और सामाजिक गतिविधियों में भाग लेना मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है।

संगठन और योजना:


अपनी दिनचर्या को व्यवस्थित करें, नोट्स लें और समय प्रबंधन की तकनीकों का पालन करें।

सकारात्मक सोच:


तनाव और चिंता से बचना, और सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना मानसिक स्वास्थ्य में सुधार करता है।

समान्य ज्ञान और रुचियों में वृद्धि:


नई चीजें पढ़ें और विभिन्न विषयों पर ज्ञान बढ़ाएं।

इन तरीकों को नियमित रूप से अपनाकर आप अपनी स्मरण शक्ति को मजबूत कर सकते हैं।

अधिक विस्तृत जानकारी मार्गदर्शन और स्वास्थय देखभाल परामर्श हेतु संपर्क करें डॉक्टर सुरेंद्र सिंह विरहे 

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सार सूत्र: स्मरण शक्ति बढ़ाने के 

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प्रकृति के साथ तादात्म की सह अस्तित्व अनुभूति रूपांतरण साधना।

प्रकृति के साथ तादात्म: समृद्धि और परिवर्तन की कला

प्रकृति के साथ तादात्म की सह अस्तित्व अनुभूति रूपांतरण साधना।

जिंदगी में समाधान डिवाइन लाईफ सॉल्युशंस द्वारा असली समृद्धि वैभव यश कीर्ति ऐश्वर्य को पाने की कला जानिए।

सीखिए! मूल प्रकृति से सृष्टि सामंजस्य की उपलब्धि दिव्य अभ्युदय मनोकामना सिद्धि।

प्रकृति में स्थित पुरुष ही प्रकृतिजन्य गुणों का भोक्ता बनता है और गुणों का सङ्ग ही उसके ऊँच-नीच योनियों में जन्म लेने का कारण बनता है।

वास्तव में पुरुष प्रकृति(शरीर) में स्थित है ही नहीं। परन्तु जब वह प्रकृति(शरीर)के साथ तादात्म्य करके शरीर को मैं और मेरा मान लेता है? तब वह प्रकृति में स्थित कहा जाता है।

ऐसा प्रकृतिस्थ पुरुष ही (गुणों के द्वारा रचित अनुकूल प्रतिकूल परिस्थिति को सुखदायी दुःखदायी मानकर) अनुकूल परिस्थिति के आने पर सुखी होता है और प्रतिकूल परिस्थिति के आने पर दुःखी होता है।

यही पुरुष का प्रकृति जन्य गुणों का भोक्ता बनना है। जैसे मोटर दुर्घटना में मोटर और चालक -- दोनों का हाथ रहता है।

क्रिया के होने में तो केवल मोटर की ही प्रधानता रहती है? पर दुर्घटना का फल (दण्ड) मोटर से अपना सम्बन्ध जोड़नेवाले चालक(कर्ता) को ही भोगना पड़ता है।


ऐसे ही सांसारिक कार्यों को करने में प्रकृति और पुरुष -- दोनों का हाथ रहता है।


क्रियाओं के होने में तो केवल शरीर की ही प्रधानता रहती है? पर सुख दुःख रूप फल शरीर से अपना सम्बन्ध जोड़नेवाले पुरुष(कर्ता) को ही भोगना पड़ता है।

अगर वह शरीर के साथ अपना सम्बन्ध न जोड़े और सम्पूर्ण क्रियाओं को प्रकृति के द्वारा ही होती हुई माने (गीता 13। 29)? तो वह उन क्रियाओं का फल भोगने वाला नहीं बनेगा।

प्रकृति के साथ तादात्म की सह अस्तित्व अनुभूति रूपांतरण साधना - इस साधना के द्वारा व्यक्ति ब्रम्हाण्ड की ऊर्जा से सामंजस्य स्थापित करके जो भी अपने जीवन में सिद्धि समाधान या तत्काल परिणाम फल प्राप्त करना चाहते है, अपने अचेतन मन के द्वारा ब्रह्मांड में प्रार्थना भेजने का कार्य करते है, और फिर अभ्युदय रूप में मनवाँछित अभिलाषा वस्तु उन्हें प्राप्त हो जाती है।

यह साधना आपके जीवन में दिव्य अद्भुत चमत्कार करती है।

प्रकृति के साथ तादात्म की सह अस्तित्व अनुभूति रूपांतरण अनुभूति कराना ही इस विशेष साधना विधि का लक्ष्य है।

इसके माध्यम से कोई भी मनोकामना अथवा वस्तु की इच्छा करने मात्र से समस्त सृष्टि वह वस्तु मनुष्य को उपलब्धि रूप में दिलाने के लिए संलग्न हो जाती है।

जिन योनियों में सुख की बहुलता होती है? उनको सत्य योनि कहते हैं और जिन योनियों में दुःख की बहुलता होती है? उनको असत्य योनि कहते हैं।


पुरुष का सत् असत् योनियों में जन्म लेने का कारण गुणों का सङ्ग ही है।

सत्त्व? रज और तम -- ये तीनों गुण प्रकृति से उत्पन्न होते हैं। इन तीनों गुणों से ही सम्पूर्ण पदार्थों और क्रियाओं की उत्पत्ति होती है।

प्रकृतिस्थ पुरुष जब इन गुणों के साथ अपना सम्बन्ध मान लेता है? तब ये उसके ऊँच नीच योनियों में जन्म लेने का कारण बन जाते हैं।


प्रकृति में स्थित होने से ही पुरुष प्रकृतिजन्य गुणों का भोक्ता बनता है और यह गुणों का सङ्ग? आसक्ति? प्रियता ही पुरुष को ऊँच नीच योनियों में ले जाने का कारण बनती है।


अगर यह प्रकृतिस्थ न हो? प्रकृति(शरीर) में अहंता ममता न करे? अपने स्वरूप में स्थित रहे? तो यह पुरुष सुख दुःखका भोक्ता कभी नहीं बनता? प्रत्युत सुख दुःख में सम हो जाता है? स्वस्थ हो जाता है (गीता 14। 24)

अतः यह प्रकृति में भी स्थित हो सकता है और अपने स्वरूप में भी। अन्तर इतना ही है कि प्रकृति में स्थित होने में तो यह परतन्त्र है और स्वरूप में स्थित होने में यह स्वाभाविक स्वतन्त्र है।


बन्धन में पड़ना इसका अस्वाभाविक है और मुक्त होना इसका स्वाभाविक है।


इसलिये बन्धन इसको सुहाता नहीं है और मुक्त होना इसको सुहाता है।


जहाँ प्रकृति और पुरुष -- दोनों का भेद (विवेक) है? वहाँ ही प्रकृति के साथ तादात्म्य करने का? सम्बन्ध जोड़ने का अज्ञान है।


इस अज्ञान से ही यह पुरुष स्वयं प्रकृति के साथ तादात्म्य कर लेता है।


तादात्म्य कर लेने से यह पुरुष अपने को प्रकृतिस्थ अर्थात् प्रकृति(शरीर) में स्थित मान लेता है।


प्रकृतिस्थ होनेसे शरीर में मैं और मेरापन हो जाता है। यही गुणों का सङ्ग है।


इस गुणसङ्ग से पुरुष बँध जाता है (गीता 14। 5)। गुणों के द्वारा बँध जाने से ही पुरुष की गुणों के अनुसार गति होती है।


इस त्रिगुणा प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने की ही यह दिव्य विद्या है।


प्रकृति के साथ तादात्म की सह अस्तित्व अनुभूति द्वारा मनुष्य में स्वाभाविक रूपांतरण घटित होता है।


यह दिव्य परिवर्तन के अनुभव को कराना ही साधना, योगिक समाधान कोर्स पाठ्यक्रम का लक्ष्य और दिव्य उद्देश्य है।


इसमें बहुत अद्भुत, सरल, बहुउपयोगी विधि द्वारा साधक को शिक्षित प्रशिक्षित किया जाता है।


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डा सुरेन्द्र सिंह विरहे मनोदैहिक स्वास्थ्य आरोग्य विशेषज्ञ आध्यात्मिक योग चिकित्सक लाईफ कोच डिवाइन लाईफ सॉल्युशंस भोपाल मध्य प्रदेश भारत मोबाइल 9826042177

Monday, August 5, 2024

आयुर्वेद में ऐसी बहुत सी औषधियां हैं जो हर पुरुष को स्वस्थ और तंदुरुस्त बनाती हैं।

 जिंदगी के समाधान डिवाइन लाईफ सॉल्युशंस द्वारा आपके जीवन में फिर से युवा जोश और शक्ति स्फूर्ति जगाने, ऊर्जा बल प्रदान करने की आर्युवेदिक औषधियों के खजाने को प्रस्तुत कर रहा है। आइए अपनी जिंदगी में स्वास्थ्य समाधान के श्रेष्ठ उपाय उपचार अपनाए जिंदगी में हमेशा स्वस्थ और आनंदित रहें।


आयुर्वेद में ऐसी बहुत सी ओषधियां दवा है जो हर पुरुष को स्वस्थ और तंदुरुस्त बनाए रखती है।


आयुर्वेद में कई औषधियाँ हैं जो पुरुषों के समग्र स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती के लिए लाभकारी हैं। इनमें से कुछ प्रमुख औषधियां निम्नलिखित हैं:

 1. **अश्वगंधा (विथानिया सोम्नीफेरा)**: यह एक प्रमुख औषधि है जो ऊर्जा बढ़ाने, तनाव को कम करने और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में सहायक है। 


2. **शिलाजीत (शिलाजीत)**: यह एक प्राकृतिक रसायन है जो ऊर्जा को बढ़ाने, शक्ति और सहनशक्ति में सुधार करने, और पुरुषोत्पादन स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में मदद करता है। शिलाजीत में 85 से अधिक खनिज तत्व पाए जाते हैं, जो शरीर के लक्ष्यों को पोषण प्रदान करते हैं।


3. **सफेद मूसली (क्लोरोफाइटम बोरिविलियनम)**: यह एक प्राकृतिक शक्ति बढ़ाने वाला टॉनिक है जो यौन स्वास्थ्य और शक्ति को बनाए रखने में सहायक है। सफेद मूसली का सेवन शारीरिक कमजोरी, थकान और यौन दुर्बलता को दूर करने में मदद करता है। इसमें पुरुषों की मर्दाना क्षमता और वीर्य की गुणवत्ता में भी सुधार किया गया है। 


4. **त्रिफला (त्रिफला)**: यह एक पारंपरिक आयुर्वेदिक फार्मूला है जो पाचन को रोगमुक्त करता है, विषैले पदार्थ को बाहर निकालता है, और प्रतिरक्षा को बढ़ाने में मदद करता है। त्रिफला तीन पत्ते - हरीतकी (टर्मिनलिया चेबुला), विभीतकी (टर्मिनलिया बेलिरिका), और अमलकी (एम्ब्लिका ऑफिसिनालिस) - का मिश्रण है, जो समग्र स्वास्थ्य के लिए हैं। यह आयोडीन की सफाई में मदद करता है, पाचन तंत्र को स्वस्थ रखता है, और नियमित मल त्याग को मंजूरी देता है।


5. **गोक्षुरा (ट्राइबुलस टेरेस्ट्रिस)**: यह एक स्वास्थ्यवर्धक औषधि है जो यौन स्वास्थ्य को मजबूत बनाती है और टेस्टोस्टेरोन के स्तर को बढ़ाने में सहायक होती है। गोक्षुरा के उपयोग से ताकत बढ़ाने और शारीरिक सहनशक्ति को भी संतुलित किया जा सकता है। यह यौन ऊर्जा और शक्ति को बढ़ाने के साथ-साथ मूत्राशय और गुर्दे के स्वास्थ्य में भी सुधार लाता है। इसके अतिरिक्त, यह शरीर में ऊर्जा के स्तर को बनाए रखने और थकान को कम करने में मदद करता है। 


6. **ब्राह्मी (बाकोपा मोनिएरी)**: यह मानसिक स्वास्थ्य, स्मरण शक्ति और अभ्यास को सहायक बनाता है। ब्राह्मी के उपयोग से तनाव और चिंता को कम करना, मस्तिष्क की कमजोरी और मानसिक स्पष्टता को कम करना शामिल है। यह नर्वस सिस्टम को मजबूत बनाता है और नींद की गुणवत्ता को ठीक करने में मदद करता है। ब्राह्मी का नियमित सेवन ध्यान, एकाग्रता और स्मरण शक्ति को बढ़ाने में सहायक होता है। 


7.*गिलोय (टिनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया)**: यह प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने, शरीर को डिटॉक्सिफाई करने और विभिन्न बीमारियों से बचाने में मदद करता है।


8. **अमलकी (एम्ब्लिका ऑफिसिनालिस)**: इसे आमला भी कहा जाता है। यह विटामिन सी का समृद्ध स्रोत है और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने, पाचन तंत्र को मजबूत करने और त्वचा को स्वस्थ बनाए रखने में सहायक है। आंवले का सेवन बालों की वृद्धि में भी मदद करता है और इसे नियमित रूप से लेने से शरीर की संपूर्ण ऊर्जा में वृद्धि होती है। यह गुणधर्म से परिपूर्ण होता है और समुच्चय को मुक्त बैठक से होने वाले नुकसान से प्रमाणित होता है। 


9. **वृक्षम्ल (गार्सिनिया इंडिका)**: यह दवा के वजन को नियंत्रित करने, समानता को बढ़ावा देने और ऊर्जा स्तर को बढ़ाने में सहायक होती है। वृक्षामल का सेवन, भूख कम करने और वसा को बेचने में मदद मिलती है। यह शरीर के वजन को नियंत्रित रखने में सहायक होता है और गैम्फ से बचाव में मदद करता है। इसके नियमित सेवन से पाचन तंत्र भी मजबूत होता है और शरीर को आवश्यक पोषक तत्व मिलते हैं।


10. **यष्टिमधु (ग्लाइसीराइजा ग्लबरा)**: यह पाचन स्वास्थ्य को लाभ पहुंचाता है, गले की समस्याओं से राहत देता है, और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में सहायक होता है। यष्टिमधु का उपयोग अल्सर, गैस्ट्रिटिस और मूत्र-खांसी के उपचार में किया जाता है। यह शरीर की प्रतिरक्षा को विभिन्न संक्रमणों से बचाता है। इसके सेवन से श्वसन तंत्र भी मजबूत होता है और गले की सूजन को कम करने में मदद मिलती है। 

उपरोक्त जड़ी बूटियों और औषधियों का सेवन वैद्य आयुर्वेद डॉक्टर की सलाह और मार्गदर्शन उचित परामर्श से ही करें!

अधिक विस्तृत जानकारी मार्गदर्शन और स्वास्थय देखभाल परामर्श और जीवन शैली व्यक्तित्व विकास आरोग्य हेतु संपर्क करें डॉक्टर सुरेंद्र सिंह विरहे 

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 Surendra Singh Virhe 


गहन आत्मीय प्रेम संबंध विकसित करने के लिए

आपाधापी से ओतप्रोत जीवन शैली में आपसी संबंधों के  में तनाव बढ़ रहा है। मित्रवत रिश्ते में मन मुटाव रिश्ता में तनाव तेजी से बढ़ रहा है।

विश्वास और परंपरा ख़त्म हो रही है। परिवार टूट रहे हैं। ऐसे विषम सिद्धांत और संकेत गंभीर सामाजिक समाज में एकजुटता को मजबूत बनाने और फिर से संबंधों में जान फूंकने के लिए ठोस विश्वास के गंभीर आत्मीय संदेश प्रयास पहले करने की आज नितांत आवश्यकता है।

मनोदैहिक स्वास्थ्य स्वास्थ्य विशेषज्ञ आध्यात्मिक योग चिकित्सक जीवन कोच होने के गुण मेरी समझ और दृष्टि से 

गहन आत्मीय प्रेम संबंध विकसित करने के लिए निम्नलिखित प्रमुख तत्वों पर ध्यान देना आवश्यक है:


संचार (संचार):


खुली और ईमानदार बातचीत।

एक-दूसरे की भावनाएं, राय और विपक्ष को बधाई और टिप्पणियां।

अपने विचारों और भावनाओं को स्पष्ट रूप से बातचीत करें।


दायित्व (प्रतिबद्धता):


एक-दूसरे के प्रति वफादार और समर्पित रहें।

समय-समय पर अपने संबंधों को देशभक्तिपूर्ण बनाने और उसे बनाए रखने का प्रयास करें।

किसी भी समस्या का समाधान ढूंढने का प्रयास करें।


सम्मान:


एक-दूसरे की व्यक्तिगत प्रतिभूतियों और स्वतंत्रता का सम्मान करें।

एक-दूसरे की नापसंदगी, भावनाएं और दृष्टिकोण का आदर करें।

किसी भी परिस्थिति में नैतिकता भाषा या व्यवहार से असंबद्धता।


समय देना (गुणवत्ता समय):


एक-दूसरे के साथवस्तुपूर्ण समय सीमां।

साझा रुचियाँ और साझेदारी में भाग लें।

नियमित रूप से डेट्स प्लान करें और एक-दूसरे के साथ कुछ खास पल साझां करें।


भावनात्मक समर्थन (Emotional Support):


कठिन समय में एक-दूसरे का सहारा।

अपने मित्र के साझीदार को विश्वास दिलाएं और उनका समर्थन करें।

कठिन अंडकोष में धैर्य और समझदारी से काम लें।


विश्वास (भरोसा):


एक-दूसरे पर विश्वास बनाए रखें।

किसी भी संदेह या अनिश्चितता को फ्रैंक से बातचीत करके हल करें।

विश्वासपात्र या झूठ से निराश।


स्वस्थ सीमाएँ (स्वस्थ सीमाएँ):


अपने व्यक्तिगत जीवन और व्यक्तिगत वस्तुओं का सम्मान करें।

एक-दूसरे के साथ दीर्घकालिक संबंध बनाए रखें, जहां दोनों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं का भी ध्यान रखा जाए।


माफ़ी और सुलह (माफ़ी और सुलह):


उदाहरण को माफ़ करना सीखना और आगे बढ़ना।

एक-दूसरे के साथ सामंजस्य स्थापित करके समस्या का समाधान करें।


पारस्परिक प्रशंसा (आपसी प्रशंसा):


एक-दूसरे के सकारात्मक गुणधर्म का निर्धारण करें।

नियमित रूप से अपने मित्र की प्रशंसा करें और उन्हें खाँस महसूस कराएं।


शारीरिक स्नेह (शारीरिक स्नेह):


शारीरिक स्नेह और साथी का महत्वपूर्ण योगदान।

गला घोंटना, हाथ हिलाना, और अन्य छोटे-छोटे स्नेह के प्रदर्शन से अपने प्रेम को स्पष्ट करें।

इन आवश्यक समेकित उपकरणों को समझकर और अपने दैनिक जीवन में लागू करके, आप एक गहरा और आत्मीय प्रेम संबंध विकसित कर सकते हैं। पारस्परिक संवाद सहयोगी व्यवहार और विश्वास के साथ समाज परिवार और राष्ट्र में पुनर्रचनात्मक रूप से मित्रवत संबंध संवाद बनाया जा सकता है। अविश्वास को दूर करके सकारात्मक सोच के साथ पुनः प्रेम विश्वास के संबंध स्थापित करें। नई पीढ़ी को नैतिक नैतिकता की शिक्षा का प्रस्ताव। और शाश्वत मानवता नैतिकता की आध्यात्मिक नैतिकता की सनातन समन्वय संस्कृति से एक दूसरे को जोड़ा।

धन्यवाद 

डा सुरेंद्र सिंह विरहे 

मनोदैहिक स्वास्थ्य आरोग्य विशेषज्ञ आध्यात्मिक योग चिकित्सक लीफ कोच डिवाइन लाइफ सोल्युशंस भोपाल मध्य प्रदेश 098260 42177 


 सुरेन्द्र सिंह विरहे 


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प्रेम पाने के लिए शारीरिक आकर्षण तो आम है लेकिन मानसिक, बौद्धिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक संबंध दुर्लभ हैं.

आजकल युवा पीढ़ी में...

प्रेम पाने के लिए शारीरिक आकर्षण तो आम है लेकिन मानसिक,  बौद्धिक,  भावनात्मक  और  आध्यात्मिक संबंध दुर्लभ हैं..क्यों होता हैं ?

शारीरिक आकर्षण अक्सर पहली चीज होती है जो किसी को किसी के प्रति आकर्षित करती है क्योंकि यह सबसे सतही और स्पष्ट होता है। लेकिन मानसिक, बौद्धिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक संबंध अधिक गहरे और जटिल होते हैं। इन संबंधों को विकसित होने में समय, समझ, और साझा अनुभवों की आवश्यकता होती है।

इसके कुछ कारण हो सकते हैं:

समय और प्रयास: गहरे संबंध बनाने के लिए समय और प्रयास की आवश्यकता होती है। अक्सर लोग इसके लिए समय और प्रयास करने के बजाय सतही संबंधों पर संतुष्ट हो जाते हैं।


समझ और संवाद: मानसिक और बौद्धिक संबंध बनाने के लिए आपसी समझ और संवाद आवश्यक है। यह तभी संभव होता है जब दोनों पक्ष खुले दिल से और ईमानदारी से अपनी भावनाओं और विचारों को साझा करें।


साझा मूल्य और रुचियाँ: भावनात्मक और आध्यात्मिक संबंध उन लोगों के बीच पनपते हैं जिनके जीवन के मूल्य और रुचियाँ मेल खाते हैं। ऐसे लोगों को ढूंढ़ना और उनके साथ संबंध विकसित करना हमेशा आसान नहीं होता।


असुरक्षाएँ और भय: गहरे संबंध बनाने में असुरक्षाएँ और भय भी बाधा बन सकते हैं। लोग अक्सर अपनी कमजोरियों और वास्तविक भावनाओं को छिपाने की कोशिश करते हैं, जिससे गहरे संबंध बनाना मुश्किल हो जाता है।


इसलिए, गहरे और अर्थपूर्ण संबंधों को विकसित करने के लिए धैर्य, ईमानदारी, और समर्पण की आवश्यकता होती है।

इसी तरह के अति विशेष महत्व के विषयों पर ज्ञानवर्धक जानकारी वीडियो देखने के लिए चैनल सब्सक्राइब करें 


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Saturday, August 3, 2024

जीवन के पैमाने और लक्ष्य

 जीवन में किसी भी लक्ष्य को तय करने पर व्यक्ति अपनी प्राथमिकताओं को आसानी से पहचान सकता हैं. इसकी मदद से वह सफलता की राह पर बगैर भटके हुए आसानी से अपनी मंजिल को पा सकता है. जिन लोगों के लक्ष्य तय होते हैं, वे दूसरे लोगों के मुकाबले कहीं ज्यादा जल्दी और आसानी से मनचाही सफलता प्राप्त कर लेते हैं।

जीवन के पैमाने और लक्ष्य को स्पष्ट करने के लिए एक सुविचारित और सुसंगत दृष्टिकोण की आवश्यकता है। निम्नलिखित चरणों के माध्यम से आप अपने जीवन के लक्ष्यों और लक्ष्यों को स्पष्ट कर सकते हैं

आत्मविश्लेषण करें:अपने गुण अवगुण जानें।

आपसी संबंधों और विश्वासों की पहचान करें: 

जीवन के विभिन्न सिद्धांतों को पहचानना: अपने जीवन में अपनी योग्यता बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास करें।

प्रत्येक क्षेत्र में लक्ष्य निर्धारित करें: छोटे छोटे लक्ष्य पूरे करें।


उद्देश्य और लक्ष्य के बीच अंतर पहचान करें।

स्पष्ट उद्देश्य निर्धारित करें:अपने

लघु और लघु व्यवसाय लक्ष्य:


कार्य योजना तैयार करें: प्रारंभिक कदम लेना सीखें। गलतियों से डरें नहीं।

मील के पत्थर स्थापित करें:

समय प्रबंधन:समय पर हर कार्य करें।


नियमित आकलन:: एक प्रयास हमेशा करें।

सुधार और नया सुधार: अपने जीवन में बदलाव के लिए मूल्यांकन करें।


प्रेरणास्रोत:अपने जीवन में प्रेरणा खोजें।


जीवन के विभिन्न संतुलन में संतुलन: व

स्वास्थ्य एवं आत्म-देखभाल:अपने श


लक्ष्य को अद्यतन करें: समय-समय पर जांच करें।

नई चुनौतियाँ और अवसर: नई

आत्म-उत्कर्ष के लिए 

आत्म-विश्वास बनाए रखें:अपना आप पर विश्वास करें।

संघर्ष और असफलताओं से सीखें:संघर्षों से डरें नहीं। सफलता पाने के लिए मुख्य प्रेरक नियम मार्गदर्शन की

इन सभी बातों का स्मरण करें पालन करें।


याद रखिए जीवन का लक्ष्य आनंद और शांति पाना है। जीवन सफल करने की जो सबसे पहली सीढ़ी है, वह हमारे अंदर है। हम जिस शांति की बात करते हैं, वह सबके हृदय में है। हमारा हृदय अंदर से प्रेरित करता है कि अपने जीवन को सफल बनाएँ।

अधिक विस्तृत जानकारी मार्गदर्शन और स्वास्थय देखभाल जागरूकता जीवन शैली व्यक्तित्व विकास करना सीखने के लिए सम्पर्क करें डॉक्टर सुरेंद्र सिंह बिरहे 

मनोदैहिक स्वास्थ्य आरोग्य विशेषज्ञ आध्यात्मिक योग थैरेपिस्ट योग चिकित्सक लाईफ कोच डिवाइन लाईफ सॉल्युशंस भोपाल मध्य प्रदेश व्हाट्स ऐप नंबर 9826042177

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कुण्डलिनी जागरण !! सप्त चक्र , सप्त चक्र भेदन !!! आत्म साक्षात्कार की प्राप्ति !!!!

 कुंडलिनी शक्ति! कुण्डलिनी जागरण !! सप्त चक्र , सप्त चक्र भेदन !!! आत्म साक्षात्कार की प्राप्ति !!!! कुण्डलिनी शक्ति कुंडलिनी शक्ति भारतीय य...