अगर सोशल मीडिया नही होता तो जीवन कैसा होता?
सोशल मीडिया नही होता तो जीवन अत्यंत सुखद अनुभव और आत्मीय आनंद अनुभूतियों से ओतप्रोत दिव्य होता। किसी की भी जिंदगी यूं उलझी बिखरी हुई न होती।किसी की भी पहचान नकली वर्चुअल वर्ल्ड में नही फसी होती।
सहज सरल स्वाभाविक रूप जीना आसान होता परिणाम स्वरूप लोगों के जीवन में प्रकृति के सौंदर्य और आपसी रिश्तों के प्रति लगाव बना रहता।
झूठी शान दिखावा भौतिक सुख सुविधा की दौड़ की जगह सुकून शांति सौहार्द और पारस्परिक संबंधों में अपनापन बरकरार रहता l लेकीन दुर्भाग्यवश मनुष्य ने अपनी अति की प्रवत्ति के चलते विज्ञान को वरदान बनाने के बजाय अभिशाप बना दिया है।
आज सूचना प्रौद्योगिकी संचार माध्यम नई कंप्यूटर मोबाइल इंटरनेट की तकनीकी मौलिक ज्ञान से दूर कर रही है केवल सूचनाओं का संजाल फैलता चला जा रहा है। व्यक्ति पूरी तरह से सिलिकॉन के वशीभूत होकर अपने आप को इस आत्मघातक तकनीकी में उलझाकर इसका गुलाम होता चला जा रहा है।
वास्तव में आज सूचना प्रौद्योगिकी संचार माध्यम नित नई डिजिटल वर्चुअल दुनिया इंसानी जीवन पर नियंत्रण काबिज किए जा रही है।
आज हम सिर्फ एक डेटा या नंबर बनकर रह गए हैं । हमारी नैसर्गिक प्रतिभा योग्यता सक्षमता इस साइबर वर्चुअल वर्ल्ड में खोती चली जा रही है।
बचपन की मासूमियत चंचलता खत्म होती जा रही है मोबाइल इंटरनेट गेम की लत , मकड़जाल रूपी ऐप चलाना, 24 घंटे ऑनलाइन रहना, लाइव वीडियो बनाने की, उल जुलूल ,फुहड़ ,अश्लील ,भद्दी गालियां देते हुए गंदी मजाकिया रील, टिक टॉक बनाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट करना आज बच्चों महिलाओं और युवा किशोर बच्चों में फैशन सा बन गया है ।
जैसे तैसे इन वीडियो संदेश पोस्ट पर लाइक पाने की होड़ मची हुई रहती है।कुछ भी तथ्यहीन, नाटकीय, अन नैचुरल, झूठे बर्ताव,भांड प्रदर्शन को तेजी से इंटरनेट पर सोशल मीडिया में वायरल कराने की विकृत मानसिकता समाज में व्यसन की तरह फैलती ही जा रही है।
किसी आकस्मिक घटना,दुर्घटना के समय मदद करने के बजाय लोग हताहत घायल हुए पीड़ित व्यक्ति का वीडियो बनाने लग जाते हैं । इस सोशल मीडिया वायरल संक्रमण के कारण लोगों में संवेदनशीलता कम होती जा रही है।
उपरोक्त वस्तुस्थति का चित्रण नकारात्मक लग रहा होगा लेकिन आज समाज की यही सच्चाई है।
हिंसा ,भ्रष्टाचार, असंवेदनशीलता के लगातार पनपने और नैतिक मूल्यों के लगातार पतन से लोगों में चारित्रिक पतन भी देखने को मिल रहा है। रिश्ते परिवार बिखर रहें हैं।
परिणाम स्वरूप लोगों में तनाव अवसाद बढ़ता ही चला जा रहा है। लोग मानसिक रूप से बीमार होने लगे हैं। अलगाव ,एकाकीपन और अनिंद्रा रोग भी तेजी से बढ़ता जा रहा है। युवाओं में जिंदादिली के बजाय आत्महत्या प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है।
आधुनिक विज्ञान सूचना प्रौद्योगिकी संचार तकनीकी के मानवीय जीवन पर प्रभाव और इससे जुड़े सरोकार को भी गंभीरता से समझने की आज आवश्यकता है।
5 जी स्पीड इंटरनेट के दुष्परिणाम को भी व्यक्तिगत ,पारिवारिक, पर्यावरणीय, सामाजिक सांस्कृतिक और राष्ट्रीय स्तर पर सरकार को जानना समझना चाहिए। सोशल मीडिया के नियंत्रण के लिए, इससे होने वाली हानि क्षति को लेकर भी नीति कार्यक्रम बनाना चाहिए।
🔸संपर्क🔸
डा सुरेंद्र सिंह विरहे
उप निदेशक
मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी संस्कृति परिषद् भोपाल
शोध समन्वयक
धार्मिक न्यास धर्मस्व विभाग मध्य प्रदेश शासन
मनोदैहिक आरोग्य आध्यात्मिक स्वास्थ्य विषेशज्ञ एवं लाईफ कोच, स्प्रिचुअल योगा थेरेपिस्ट
स्थापना सदस्य
मध्य प्रदेश मैंटल हैल्थ एलाइंस चोइथराम हॉस्पिटल नर्सिंग कॉलेज इंदौर
निदेशक
दिव्य जीवन समाधान उत्कर्ष
Divine Life Solutions Utkarsh
पूर्व अध्येता
भारतीय दार्शनिक अनुसन्धान परिषद् दिल्ली
"Philosophy of Mind And Consciousness Studies"
Ex. Research Scholar
At: Indian Council of Philosophical Research ICPR Delhi
utkarshfrom1998@gmail.com
9826042177,
8989832149
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