प्रेम की तडपन प्रेम की बेबसी
कितना आसान है किसी पुरुष का एक स्त्री से प्रेम कर लेना, और कुछ वक्त साथ बिताकर उसे भूल भी जाना! पुरुष के लिए स्त्री एक खूबसूरत वस्तु जैसी होती है, जिसे पाने तक ही पुरुष सारा संघर्ष करता है, जी, जान लगाकर उस तक पहुंचने के दिन रात एक कर देता है!
कहा हो से लेकर क्या कर रही?? कितनी देर बाद ऑन लाइन आयी कहा थी अब तक..पुरुष तब तक स्त्री के पीछे भागता है ,जब तक उसे पा नहीं लेता, स्त्री उसे हासिल नहीं हो जाती, पुरुष के लिए स्त्री तभी तक सूरज, धरती, चांद, सितारा होती है,,जब तक वो उसे पा नहीं लेता.. और कहना...ताउम्र यू ही साथ रहूंगा..सारा प्रेम ही तभी तक है जब तक स्त्री की तरफ से स्वीकृति, प्रेम प्राप्त नहीं हो जाता! परंतु, जब स्त्री प्रेम की स्वीकृति देती है! प्रेम को स्वीकार करती है, उस दिन से उसके अंदर एक बीज पनपता है, और वो प्रेम का बीज बढ़ता ही जाता है, धीरे धीरे वो बीज एक पौधे से मजबूत जड़ के साथ बड़ा पेड़ बन जाता है!
फिर इस प्रेम के पेड़ को उस स्त्री के अंदर से निकालना असंभव हो जाता है! और वो स्त्री इसी बढ़ते प्रेम के पेड़ में स्वयं नष्ट होने के कगार पर आ खड़ी होती है! और पुरुष, जिसे वो स्त्री प्रेम स्वीकृति के पहले, सूरज चांद सितारा लगती थी, अब कांटा लगने लगती है, क्योंकि पुरुष उस कुसुम सौंदर्य को प्राप्त कर चुका होता है, पुरुष के भीतर का प्रेम धीरे धीरे समाप्त होने लगता है! फिर पुरुष उस स्त्री से भागने लगता है, उससे दूरी बनाने लगता है, जिस स्त्री को पाने के लिए, बात करने पुरुष रात दिन ठंडी गर्मी नहीं देखता था, अब पुरुष का दिल उस स्त्री से भरने के बाद कहता है, मै बहुत बिजी हूं मेरे पास वक्त नहीं है, समय नहीं मिलामैसेज देखने का,और
उसी समय कही और वही बाते कर रहा..फिर पुरुष अपने प्रेम के लिए दूसरी औरत की तलाश में लग जाता है, इधर स्त्री पुरुष में प्रेम ढूढते ढूढते टूटती जाती है! जीवन का सारा सुख चैन गंवा देती है, अंत में आंखों में आंसुओ की धारा के साथ जीना सीख जाती है, ये एक स्त्री की पीड़ा है, जिसे कुछ पुरुष अपनी सोच के अनुसार सिर्फ गलत कहेंगे,.
प्रेम है ये किसी को उम्र भर की तकलीफ देकर खुद कही और खुदा बनाते है.. अरे क्यों करते शादी सुदा स्त्री से प्रेम.. और वो पागल बन जाती जाने क्यों तलाश करती बाहरी दुनियां मे प्रेम....
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