Tuesday, June 17, 2025

नारियलपानी स्वास्थ्य के लाभ

 #NariyalPani जब बात स्वास्थ्य की आती है, तो हमें सबसे पहले याद आता है — ताजगी, पोषण और प्राकृतिक उपचार। ऐसे में नारियल पानी (Coconut Water) एक ऐसा उपहार है, जो किसी औषधि से कम नहीं। खासकर मरीज़ों के लिए यह एक संजीवनी बूटी जैसा कार्य करता है। आयुर्वेद में इसे "सहज आयुर्वेदिक टॉनिक" कहा गया है। गर्मी हो या बीमारी — नारियल पानी है ताजगी की तैयारी!


🌴 क्या है नारियल पानी?


नारियल पानी हरे नारियल के अंदर पाया जाने वाला पारदर्शी, मीठा और ठंडक देने वाला तरल होता है। यह पूरी तरह प्राकृतिक, कम कैलोरी वाला और भरपूर इलेक्ट्रोलाइट्स, मिनरल्स और विटामिन्स से युक्त होता है।


💡 क्यों है यह मरीज़ों के लिए औषधि?


1. तेज़ बुखार और डिहाइड्रेशन में अमृत समान


बुखार, दस्त या उल्टी के दौरान शरीर में पानी और इलेक्ट्रोलाइट्स की कमी हो जाती है। नारियल पानी इस कमी को तेजी से पूरा करता है और शरीर को ठंडक प्रदान करता है।


2. किडनी रोगियों के लिए लाभकारी


नारियल पानी में पोटैशियम की मात्रा अधिक होती है और सोडियम की कम। यह किडनी को डिटॉक्स करने में मदद करता है और पेशाब के रास्ते विषैले तत्त्वों को बाहर निकालता है।


3. डायबिटीज़ मरीज़ों के लिए सुरक्षित


नारियल पानी में ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है, जिससे यह ब्लड शुगर को अचानक नहीं बढ़ाता। यह मधुमेह पीड़ितों के लिए भी एक सुरक्षित प्राकृतिक पेय है।


4. हृदय रोग में लाभकारी


पोटैशियम से भरपूर नारियल पानी हृदय की धड़कन को संतुलित करता है और ब्लड प्रेशर को नियंत्रण में रखता है। इसमें कोई कोलेस्ट्रॉल नहीं होता।


5. लीवर की सुरक्षा में सहायक


लीवर डिटॉक्स में नारियल पानी अत्यंत सहायक है। यह लीवर को साफ करता है, जिससे पाचन और ऊर्जा निर्माण की प्रक्रिया बेहतर होती है।


6. गैस्ट्रिक व अम्लपित्त रोगियों के लिए वरदान


जिन्हें एसिडिटी, गैस या जलन की शिकायत रहती है, उनके लिए नारियल पानी का नियमित सेवन शीतलता और राहत प्रदान करता है।


7. त्वचा रोग व संक्रमण में प्रभावी


त्वचा पर मुंहासे, रैशेज़, या खुजली की समस्या हो तो नारियल पानी का सेवन और त्वचा पर उसका प्रयोग दोनों लाभदायक हैं।


🧪 आधुनिक विज्ञान क्या कहता है?


इलेक्ट्रोलाइट्स से भरपूर: इसमें पोटैशियम, मैग्नीशियम, कैल्शियम, और सोडियम पाए जाते हैं।


कम कैलोरी: 100ml में लगभग 19 कैलोरी।


बायोएक्टिव एंज़ाइम्स: जो पाचन में सहायक होते हैं।


एंटीऑक्सीडेंट गुण: शरीर में सूजन और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को कम करते हैं।


🕐 कब और कैसे करें सेवन?


सुबह खाली पेट: शरीर को हाइड्रेट करने और टॉक्सिन्स बाहर निकालने के लिए सबसे अच्छा समय।


बुखार/उल्टी-दस्त में: हर 3-4 घंटे में एक गिलास नारियल पानी लेना अत्यंत लाभदायक है।


एक्सरसाइज के बाद: इलेक्ट्रोलाइट बैलेंस के लिए आदर्श विकल्प।


⚠️ सावधानियाँ


किडनी में पोटैशियम की अधिकता वाले मरीज़ इसे सीमित मात्रा में लें।


जिनका ब्लड शुगर बहुत असंतुलित है, वे डॉक्टर से परामर्श करें।


दिन में 1 से 2 नारियल से अधिक सेवन न करें।


🥥 नारियल के अनजाने तथ्य:

🌱 नारियल एक 'ड्रूप' फल है, न कि सामान्य नट। यह आम, जैतून और खुबानी की तरह एक सिंगल-सीडेड फल होता है।


💧 नारियल पानी पूरी तरह से स्टरलाइज़ (Sterile) होता है। इसलिए आपातकालीन परिस्थितियों में इसका उपयोग IV ड्रिप के रूप में भी किया गया है (विशेषकर युद्धकाल में)।


🧬 नारियल के पानी में पाई जाती है मानव प्लाज्मा से मिलती-जुलती संरचना, इसलिए यह शरीर में तेजी से अवशोषित हो जाता है।


🔥 नारियल का तेल प्राकृतिक SPF (सूरज से सुरक्षा) देता है। यह त्वचा को धूप से कुछ हद तक बचाता है (SPF 4 तक)।


💊 नारियल के तेल में लॉरिक एसिड पाया जाता है, जो बैक्टीरिया और वायरस से लड़ने में मदद करता है – यह वही एसिड है जो माँ के दूध में होता है।


🥗 नारियल के गोले (मालाई) से शाकाहारी दूध (Coconut Milk) और दही भी तैयार होती है — जो वेगन डाइट वालों के लिए सुपरफूड मानी जाती है।


🌍 नारियल का पेड़ 'Tree of Life' कहलाता है — इसकी जड़, पत्ते, फल, तना और पानी तक हर चीज़ का कोई न कोई औषधीय या उपयोगी पहलू होता है।


🏝️ नारियल समुद्र के सहारे खुद को फैलाता है। इसका कठोर खोल इसे लम्बे समय तक पानी में तैरने और दूर-दराज के द्वीपों तक पहुँचने में मदद करता है।


🌟 निष्कर्ष


नारियल पानी न केवल स्वादिष्ट और ताजगी देने वाला पेय है, बल्कि यह अनेक रोगों में औषधि के रूप में कार्य करता है। यह शरीर को अंदर से शुद्ध करता है, इम्यून सिस्टम को मज़बूत करता है और रिकवरी की गति को तेज करता है। मरीज़ों के लिए यह एक सस्ता, सुलभ और असरदार विकल्प है जिसे रोज़ाना सेवन में शामिल किया जा सकता है।


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आयुर्वेदिक शतावरी_महिलाओं_के_लिए

 #Shatavari आज की तेज रफ्तार और तनावपूर्ण जीवनशैली ने महिलाओं के स्वास्थ्य को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित किया है। पीसीओएस (PCOS), अनियमित मासिक धर्म, हार्मोनल असंतुलन और प्रजनन समस्याएं हर उम्र की महिलाओं में सामान्य होती जा रही हैं। ऐसे समय में जब दवाओं के दुष्प्रभाव आम हैं, आयुर्वेद एक शांत और सुरक्षित विकल्प प्रस्तुत करता है — शतावरी के रूप में।


शतावरी (Shatavari), आयुर्वेद में महिलाओं की "रानी औषधि" कही जाती है। इसके चमत्कारी गुण न केवल हार्मोन संतुलन को बहाल करते हैं, बल्कि शरीर, मन और आत्मा को समग्र रूप से पोषण भी देते हैं।


🌱 शतावरी क्या है?

शतावरी (Asparagus racemosus) एक झाड़ीदार पौधा है, जिसकी जड़ें औषधीय रूप से अत्यंत उपयोगी मानी जाती हैं। संस्कृत में इसका अर्थ है — "जो सौ पतियों को भी संतुष्ट कर सके", जो इसकी प्रजनन स्वास्थ्य पर प्रभावशीलता को दर्शाता है।


प्राकृतिक गुणधर्म:


स्वाद में मधुर व तिक्त


गुण में गुरु व स्निग्ध


शीतल, बल्य, स्तन्यजनक (दूध बढ़ाने वाली), रसायन


🚺 महिलाओं के लिए क्यों अमृत समान है शतावरी?

1. PCOS (पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम) में कारगर

हार्मोनल संतुलन में मदद करती है


ओवरी में सिस्ट बनने की प्रक्रिया को धीमा करती है


एंटी-एंड्रोजेनिक गुणों से फेशियल हेयर ग्रोथ और मुहांसे में राहत


✅ आयुर्वेद में शतावरी का उपयोग नारीगंधा और लोध्र जैसे अन्य हर्ब्स के साथ पीसीओएस के लिए किया जाता है।


2. अनियमित मासिक धर्म (Irregular Periods)

मासिक धर्म चक्र को नियमित बनाती है


गर्भाशय की मांसपेशियों को पोषण देती है


दर्द और भारी रक्तस्राव में राहत


✔️ शीतल, रक्तशोधक, और वात-पित्त शामक होने के कारण यह मासिक धर्म को संतुलित करने में उपयोगी है।


3. प्रजनन क्षमता (Fertility) बढ़ाने में सहायक

ओव्यूलेशन सुधारती है


गर्भाशय को स्वस्थ रखती है


गर्भधारण की संभावनाओं को बढ़ाती है


👉 शतावरी को आयुर्वेदिक गर्भवृद्धि योग (Fertility boosting formula) में प्रमुख घटक के रूप में प्रयोग किया जाता है।


4. गर्भावस्था में लाभकारी

गर्भधारण के बाद गर्भस्थ पौष्टिक के रूप में काम करती है


शिशु की वृद्धि के लिए आवश्यक पोषण प्रदान करती है


Morning sickness और गर्भाशय संकुचन में राहत


5. स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए

शतावरी स्तन्यजनक (Galactagogue) है


दूध की मात्रा व गुणवत्ता दोनों में सुधार लाती है


✅ WHO द्वारा सुझाए गए नेचुरल Lactation Boosters में शतावरी शीर्ष पर है।


🔬 वैज्ञानिक दृष्टिकोण

आधुनिक विज्ञान ने भी शतावरी के लाभों को प्रमाणित किया है:


लाभ वैज्ञानिक पुष्टि

हार्मोन संतुलन एस्ट्रोजनिक एक्टिविटी सिद्ध

गर्भाशय की ताकत Anti-oxytocic प्रभाव से संकुचन कम

इम्यूनिटी इम्यूनोमॉड्यूलेटरी गुण

एंटीऑक्सीडेंट मुक्त कणों को निष्क्रिय करता है


🌸 शतावरी के अन्य लाभ (Beyond Gynaecology)

तनाव कम करना


कामेच्छा में वृद्धि


रजोनिवृत्ति (Menopause) में राहत


त्वचा और बालों में चमक


कब्ज और एसिडिटी में उपयोगी


🍵 सेवन के रूप

1. शतावरी चूर्ण (Powder)

3–5 ग्राम रोज दूध के साथ


पीसीओएस व मासिक धर्म चक्र के लिए लाभकारी


2. शतावरी गोली / टैबलेट्स

बाजार में आयुर्वेदिक कंपनियों द्वारा उपलब्ध


नियमित सेवन से लंबे समय तक प्रभाव


3. शतावरी कल्प (Shatavari Kalpa)

गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए


स्वादिष्ट, पौष्टिक और ऊर्जा वर्धक


4. काढ़ा (Decoction)

ताजे जड़ों से तैयार किया जाता है


शरीर को ठंडक और शक्ति देता है


⚠️ सावधानियां

ध्यान दें कारण

अधिक मात्रा से बचें हार्मोनल ओवरस्टिमुलेशन हो सकता है

गर्भपात का इतिहास हो डॉक्टर की सलाह आवश्यक

थाइरॉइड / हार्मोन डिसऑर्डर हो सलाह लेकर लें

डिब्बाबंद शतावरी उत्पाद केवल प्रमाणित ब्रांड्स चुनें


👩‍⚕️ किन महिलाओं को इसका उपयोग ज़रूर करना चाहिए?

✅ जिनका मासिक धर्म अनियमित है

✅ जिन्हें बार-बार miscarriage होता है

✅ जो गर्भधारण में कठिनाई अनुभव करती हैं

✅ Menopause से गुजर रहीं महिलाएं

✅ Post-partum कमजोरी झेल रहीं माताएं


📚 आयुर्वेदिक ग्रंथों में क्या कहता है शतावरी के बारे में?

चरक संहिता: “स्त्री रसायन में श्रेष्ठ”


भावप्रकाश निघण्टु: स्तन्यवर्धक, गर्भधारण कारक, शीतल


अष्टांग हृदयम्: संतान हेतु पुष्टिकारक औषधि


🌷 नारी शक्ति के लिए प्रकृति का वरदान

शतावरी केवल औषधि नहीं है, बल्कि यह एक नारी स्वास्थ्य का आधार स्तंभ है। यह न केवल महिलाओं को उनके जीवन के हर चरण में शक्ति प्रदान करती है, बल्कि उन्हें उनके स्त्रीत्व की गरिमा के साथ जीवन जीने की प्रेरणा भी देती है।


📣 निष्कर्ष:

“जहाँ रसायन नहीं काम करते, वहाँ आयुर्वेद का शतावरी रस स्त्री स्वास्थ्य को फिर से जीवन दे सकता है।”


इस बदलते समय में, जहां युवा महिलाएं PCOS से लड़ रही हैं, मातृत्व की राह में संघर्ष कर रही हैं, वहाँ शतावरी एक प्राकृतिक चमत्कार बनकर उभरी है। यह शरीर की जड़ों तक जाकर कार्य करती है और संपूर्ण पुनरुद्धार करती है।


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Monday, June 16, 2025

सांस संबंधी बीमारियों (Respiratory Diseases)

 आज की बदलती जीवनशैली, प्रदूषण और वायरल इंफेक्शन के बढ़ते प्रकोप ने लोगों में सांस संबंधी बीमारियों (Respiratory Diseases) की संख्या बढ़ा दी है। इन रोगों में अस्थमा, खांसी, ब्रोंकाइटिस, बलगम जमा होना, और सांस फूलना आम समस्याएं बन चुकी हैं। जहां आधुनिक चिकित्सा में इनका इलाज दवाओं और इनहेलर्स के माध्यम से किया जाता है, वहीं आयुर्वेद में एक चमत्कारी जड़ी-बूटी है — वासा (Vasa या मालाबार नट), जिसे इन समस्याओं के लिए वरदान माना गया है।


🌿 वासा क्या है?


वासा (Botanical Name: Adhatoda vasica) एक झाड़ीदार पौधा है जो पूरे भारतवर्ष में पाया जाता है। इसे आयुर्वेद में कई नामों से जाना जाता है — वासक, वासक पुष्पी, अड़ूसा आदि। इसका प्रयोग हज़ारों वर्षों से श्वसन तंत्र के रोगों के इलाज में होता आया है।


🔬 वासा का आयुर्वेदिक गुणधर्म:


रस (स्वाद): तिक्त (कड़वा)


गुण: लघु (हल्का), रूक्ष (शुष्क)


वीर्य: शीत (ठंडा)


दोष प्रभाव: कफ-पित्त शामक


🫁 श्वसन रोगों में वासा के चमत्कारी लाभ:


1. खांसी और बलगम में राहत:


वासा में उपस्थित तत्व बलगम को ढीला करने और बाहर निकालने में सहायक होते हैं। यह एक उत्तम एक्सपेक्टोरेंट (बलगम निकालने वाला) है।


2. ब्रोंकाइटिस और अस्थमा:


वासा ब्रोंकाईल ट्यूब्स को खोलने में मदद करता है और अस्थमा के मरीजों को राहत प्रदान करता है। इसका नियमित सेवन सांस फूलने की समस्या को कम करता है।


3. टीबी और पुरानी खांसी में फायदेमंद:


वासा का काढ़ा या अर्क तपेदिक (टीबी) के इलाज में भी उपयोगी पाया गया है। यह फेफड़ों को साफ करता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है।


4. गले की खराश और सूजन में आराम:


वासा के पत्तों का काढ़ा पीने से गले में सूजन, खराश और जलन जैसी समस्याएं कम होती हैं।


🏡 घरेलू नुस्खे (Home Remedies with Vasa):


✅ 1. वासा का काढ़ा:


सामग्री:


वासा के ताजे पत्ते (4–5)


तुलसी के पत्ते (4–5)


अदरक (1 टुकड़ा)


2 कप पानी


विधि:

सभी चीज़ों को पानी में डालकर आधा रह जाने तक उबालें। गुनगुना होने पर छानकर पिएं।


लाभ: खांसी, बलगम, अस्थमा और गले की समस्याओं में लाभकारी।


✅ 2. वासा अर्क और शहद:


वासा अर्क (5–10 ml) में शुद्ध शहद मिलाकर दिन में दो बार लें।


बच्चों को 2.5 ml ही देना चाहिए।


लाभ: बलगम साफ करने, सांस खोलने और गले के लिए फायदेमंद।


✅ 3. वासा का चूर्ण:


सूखे पत्तों को पीसकर चूर्ण बना लें।


1 चम्मच चूर्ण गुनगुने पानी या शहद के साथ दिन में 2 बार लें।


लाभ: अस्थमा और क्रॉनिक कफ में असरदार।


⚠️ सावधानियां:


गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाएं चिकित्सक की सलाह से ही इसका उपयोग करें।


अधिक मात्रा में सेवन से दस्त या पेट दर्द हो सकता है।


🧘 जीवनशैली में बदलाव:


वासा का असर तब और बेहतर होता है जब साथ में आप कुछ जीवनशैली बदलाव भी करें:


धूल/धुएं से बचें


धूम्रपान बंद करें


योग में अनुलोम-विलोम, भ्रामरी प्राणायाम करें


गर्म पानी पिएं और ठंडे पेय से बचें


⚠️ किन बीमारियों में वासा का सेवन नहीं करना चाहिए?

1. अत्यधिक ठंडी प्रकृति वाले व्यक्तियों को:

वासा शीत वीर्य (ठंडी तासीर) वाला होता है। ऐसे में जिन लोगों का शरीर पहले से ही ठंडी प्रकृति का है, उन्हें इसके सेवन से गैस, पाचन कमजोरी या जुकाम की समस्या हो सकती है।


2. डायरिया (दस्त) या अतिसार में:

वासा की तासीर ठंडी होती है और यह रूक्ष (सूखा) गुण वाला है। अतिसार, पतले दस्त या अपच में इसका सेवन करने से समस्या बढ़ सकती है।


3. लो बीपी या शरीर में कमजोरी वाले मरीजों को:

वासा शरीर को ठंडक देता है और कभी-कभी अत्यधिक सेवन से शरीर में थकावट या कमजोरी महसूस हो सकती है, विशेषकर जब ब्लड प्रेशर पहले से ही कम हो।


4. गर्भवती महिलाओं को:

वासा गर्भाशय को संकुचित करने वाले गुण रखता है। इसलिए प्रेगनेंसी के दौरान इसका सेवन डॉक्टर की निगरानी में ही करना चाहिए। यह विशेषकर पहले और तीसरे तिमाही में टालना चाहिए।


5. अत्यधिक शुष्क खांसी (Dry Cough) में सावधानी:

जहाँ यह बलगम वाली खांसी (Wet Cough) में बेहतरीन है, वहीं बिना बलगम की सूखी खांसी में कभी-कभी जलन या सूखापन बढ़ा सकता है।


🌦️ वासा किस मौसम में नहीं लेना चाहिए?

❄️ ज्यादा ठंड के मौसम (Peak Winter) में:

वासा की ठंडी तासीर के कारण ठंड के मौसम में यह जुकाम या शीत प्रकृति की समस्याएँ बढ़ा सकता है।


यदि लेना ही हो, तो तुलसी, अदरक, काली मिर्च के साथ लेना चाहिए।


☀️ गर्मियों में संतुलित मात्रा में लें:

गर्मियों में भी इसका ठंडा प्रभाव कुछ लोगों को अधिक ठंडक दे सकता है जिससे कमजोरी या सुस्ती महसूस हो सकती है।


ऐसे में भी वासा का सेवन हल्दी या शहद के साथ करना अच्छा रहता है।


✅ निष्कर्ष:


वासा एक प्राकृतिक और आयुर्वेदिक औषधि है, जो श्वसन तंत्र को मजबूत करती है और शरीर से कफ दोष को दूर करती है। यह केवल लक्षणों को नहीं, बल्कि रोग की जड़ को ठीक करने का सामर्थ्य रखती है। सही मात्रा, विधि और समय के साथ इसके सेवन से आप सांस की समस्याओं से स्थायी राहत पा सकते हैं।


आयुर्वेद कहता है — “प्राकृतिक जीवन अपनाओ, रोगों से दूर रहो।”


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Sunday, June 15, 2025

सात्विक भोजन खानपान के लाभ

 सात्त्विक आहार (Satvik Diet) योगिक जीवनशैली का एक अहम हिस्सा है। यह शुद्ध, हल्का, और संतुलित भोजन होता है जो शरीर, मन और आत्मा को शुद्ध करने वाला माना जाता है।


आहार (भोजन) का उद्देश्य आयु को बढाना, मस्तिष्क को शुद्ध करना तथा शरीर को शक्ति पहुँचाना है । इसका यही एकमात्र उद्देश्य है । प्राचीन काल में विद्वान् पुरुष ऐसा भोजन चुनते थे, जो स्वास्थ्य तथा आयु को बढ़ाने वाला हो।


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आयुः सत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धनाः।

रस्याः स्निग्धाः स्थिरा हृद्या आहारा सात्त्विकप्रियाः॥(17.8. भगवद्गीता )


जो भोजन सात्त्विक व्यक्तियों को प्रिय होता है, वह आयु बढ़ाने वाला, जीवन को शुद्ध करने वाला तथा बल, स्वास्थ्य, सुख तथा तृप्ति प्रदान करने वाला होता है ।ऐसा भोजन रसमय, स्निग्ध, स्वास्थ्य प्रद तथा हृदय को भाने वाला होता है ।


यह श्लोक सात्विक आहार के महत्व को दर्शाता है। सात्विक आहार वे भोजन हैं जो शरीर, मन और आत्मा के लिए अच्छे होते हैं और जो व्यक्ति को स्वस्थ, शांत और खुश रखते हैं।


योग के साथ साथ आहार का भी बहुत बड़ा महत्त्व है हमारे स्वस्थ और खुशहाल जीवन के लिए इसलिए संतुलित और सात्विक भोजन लेना चाहिए ।


अगर आपका आहार ठीक नहीं होगा तो योग का ज़्यादा से ज़्यादा लाभ नहीं मिल पाएगा । आहार ठीक है तो सब ठीक 

है क्यूंकि आहार हमारे शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है जो दैनिक जीवन के लिए बहुत ज़रूरी है । अगर आप योग करते है और आहार आपका ठीक नहीं है तो आपको जो लाभ मिलना चाहिए वो नहीं मिलेगा इसलिए कहते हैं :- 


जब आहार गलत हो, तो दवा का कोई फायदा नहीं होता। जब आहार सही हो, तो दवा की कोई जरूरत नहीं होती।”


अच्छा खाएं, स्वस्थ रहें 🧘😊

" जैसा आहार वैसा मन"।

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🌿 सात्त्विक आहार के प्रमुख फायदे (लाभ):


1. मन की शांति और एकाग्रता बढ़ती है:-


 • सात्त्विक आहार में हल्का, सुपाच्य और ताजा भोजन होता है जो मानसिक स्थिरता और सकारात्मक सोच लाता है।

 • ध्यान और योग के अभ्यास में सहायता करता है।


2. शरीर को ऊर्जा और शक्ति प्रदान करता है:-


 • यह शरीर को पोषण देने वाले तत्वों से भरपूर होता है (जैसे फल, दूध, घी, हरी सब्जियाँ, अंकुरित अनाज)।


 • थकान कम होती है, और शरीर हल्का और सक्रिय महसूस करता है।


3. पाचन तंत्र को स्वस्थ रखता है:-


 • आसानी से पचने वाला होता है, कब्ज, गैस, और एसिडिटी जैसी समस्याओं से बचाता है।


4. रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) को मजबूत करता है:-

 • ताजे और प्राकृतिक खाद्य पदार्थ शरीर को विटामिन्स और एंटीऑक्सीडेंट्स देते हैं जो बीमारियों से लड़ने में मदद करते हैं।


5. योग और आध्यात्मिक साधना में सहायक:-


 • योगाभ्यासियों और साधकों के लिए यह आहार विशेष लाभकारी माना गया है क्योंकि यह मन को स्थिर और शरीर को स्वच्छ रखता है।


6. कर्म, विचार और व्यवहार को शुद्ध करता है:-


 • जैसा आहार, वैसा विचार — सात्त्विक भोजन से व्यक्ति का स्वभाव शांत, करुणामय और संयमी बनता है।


**** सात्त्विक आहार (Sattvic Aahar) न केवल शरीर को स्वस्थ रखता है, बल्कि मन और आत्मा को भी शांत और शुद्ध करता है। यह आयुर्वेद और योगशास्त्र में अत्यंत प्रशंसित आहार है।*****


 अच्छा खाएं और स्वस्थ व निरोगी रहें 🍛🧘‍♀️😊🌸


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Saturday, June 14, 2025

यूरिक एसिड के लक्षण उपचार

 *यूरिक एसिड क्यों बढ़ता है :-शरीर में प्यूरिन के टूटने के कारण यूरिक एसिड बनता है, जो किड्नी तक खून से पहुँचता है और मूत्र मार्ग से शरीर से बाहर निकल जाता है. किसी वजह से जब ये बाहर नहीं निकलता तब ये शरीर के अंदर इकठ्ठा होने लगता है और एक क्रिस्टल की तरह बन जाता है और जब यूरिक एसिड का स्तरअधिक हो जाता है तब ये परेशानी करने लगता है


*यूरिक एसिड के लक्षण :- इस रोग के बारे में ज्यादातर लोगों को जादा कुछ पता नहीं होता. अक्सर हम शुरुआती लक्षण देख कर बीमारी का आइडिया लगा लेते है, जैसे पैरों के अंगूठे में सूजन पड़ना, जोडों में दर्द और सूजन होना, उठते बैठते वक़्त घुटने में दर्द,जोड़ों में गाँठ की शिकायत होना.


*आइये जाने आयुर्वेद में इसके घरेलु उपचार।*


*1.लौकी:-* अगर लौकी का मौसम हो तो सुबह खाली पेट लौकी (घीया, दूधी) का जूस निकाले एक गिलास इस में 5-5 पत्ते तुलसी और पुदीना के भी डाल ले, अब इसमें थोड़ा सेंधा नमक मिला ले। और इसको नियमित पिए कम से कम 30 से 90 दिन तक।


*2. अर्जुन की छाल :–* रात को सोते समय डेढ़ गिलास साधारण पानी में अर्जुन की छाल का चूर्ण एक चम्मच और दाल चीनी पाउडर आधा चम्मच डाल कर चाय की तरह पकाये और थोड़ा पकने पर छान कर निचोड़ कर पी ले। ये भी 30 से 90 दिन तक करे।


*3. चोबचीनी:-* चोबचीनी का आधा चम्मच सवेरे खाली पेट और रात को सोने के समय पानी से लेने पर कुछ दिनों में यूरिक एसिड खत्म हो जाता है।


*4. पपीता :–* एक कच्चा हरा पपीता अंदाजा एक किलो तक के वजन का ले कर अच्छी तरह धो लें।फिर समेत छिलके उसके छोटे छोटे पीस काट लें।फिर किसी पतीले में डाल कर इस में तीन किलो पानी मिला दें और इस में पांच पैकेट ग्रीन टी (या किसी कपड़े में बांधकर दो बड़े चम्मच) के डाल कर 15 मिनट तक चाय की तरह उबालकर इसे छान लें।पूरा दिन यही पानी पीना है।अंदाजा 5 से 6 गिलास । 14 दिन लगातार पीने से यूरिक एसिड खत्म हो जाता है। 14 दिन लगातार प्रयोग करने के बाद जब टेस्ट वगैरह नार्मल हो जाएं तो बाद में 7 दिन में एक बार प्रयोग करने से यूरिक एसिड की समस्या नहीं होगी।


*5. गुडूच्यादि काढ़ा:-* गुडूच्यादि काढ़ा (ये आपको किसी भी पंसारी या आयुर्वेदिक दवा केंद्र पर मिल जायेगा) दो समय पिए।


*6. पानी:-* दिन में कम से कम 3-5 लीटर पानी का सेवन करें। पानी की पर्याप्‍त मात्रा से शरीर का यूरिक एसिड पेशाब के रास्‍ते से बाहर निकल जाएगा। थोड़ी – थोड़ी देर में पानी को जरूर पीते रहें।


*परहेज। 


1. दही, चावल, अचार, ड्राई फ्रूट्स, दाल, और पालक बंद कर दे।

2. रात को सोते समय दूध या दाल का सेवन अत्यंत हानिकारक हैं।

3. सब से बड़ी बात के खाना खाते समय पानी नहीं पीना, पानी खाने से डेढ़ घंटे पहले या बाद में ही पीना हैं।

4. फ़ास्ट फ़ूड, कोल्ड ड्रिंक्स, पैकेज्ड फ़ूड, अंडा, मांस, मछली, शराब, और धूम्रपान बिलकुल बंद कर दे।

5. इन प्रयोग से आपकी यूरिक एसिड की समस्या, हार्ट की कोई भी समस्या, जोड़ो के दर्द, हाई ब्लड प्रेशर की समस्या में बहुत आराम आएगा।


6. रोग की गंभीरता को देखते हुए ये प्रयोग लम्बा चल सकते हैं। निरंतरता और धैर्यता अपनाये

डा सुरेंद्र सिंह विरहे मनोदैहिक स्वास्थ्य आरोग्य विशेषज्ञ आध्यात्मिक योग थैरेपिस्ट लाइफ कोच डिवाइन लाईफ सॉल्युशंस 

उत्कर्ष मेंटल हैल्थ केयर एंड एंप्लॉयमेंट वेलनेस कंसलटेंसी 

28/6

साऊथ तुकोगंज इंदौर

Wednesday, April 16, 2025

 यात्रा और जीवन के गहरे अर्थ को दर्शाता है। संस्कृत में वाक्य, "यात्राया अर्थः अस्ति, अन्यथा अन्तः क्षणिकः स्यात्," 

 हिंदी अनुवाद, "सफ़र के मायने हैं, अन्यथा अन्त तो क्षणिक है," इस विचार को व्यक्त करता है कि जीवन (या यात्रा) का मूल्य उसके उद्देश्य और अर्थ में निहित है। यदि यात्रा अर्थहीन हो, तो उसका अंत केवल क्षणभंगुर और नश्वर होगा।


 व्याख्या:

यात्रा (सफ़र): यहाँ यात्रा केवल भौतिक यात्रा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन की यात्रा, आध्यात्मिक खोज, या किसी लक्ष्य की ओर बढ़ने का प्रतीक हो सकती है।


अर्थः अस्ति (मायने हैं): जीवन या यात्रा का मूल्य तभी है जब उसका कोई उद्देश्य हो। यह उद्देश्य व्यक्ति के लिए व्यक्तिगत, सामाजिक, या आध्यात्मिक हो सकता है, जैसे आत्म-साक्षात्कार, सेवा, या ज्ञान प्राप्ति।

अन्यथा अन्तः क्षणिकः स्यात् (अन्यथा अन्त तो क्षणिक है): यदि यात्रा का कोई अर्थ नहीं है, तो उसका अंत केवल एक क्षणिक घटना बनकर रह जाता है, जो शून्य और निरर्थक है। यह मृत्यु या किसी कार्य के समापन को संदर्भित कर सकता है, जो बिना उद्देश्य के महत्वहीन हो जाता है।


दार्शनिक संदर्भ:

यह विचार भारतीय दर्शन, विशेष रूप से वेदांत और बौद्ध दर्शन से प्रेरित प्रतीत होता है, जहाँ जीवन की नश्वरता (अनित्यता) और उद्देश्यपूर्ण जीवन (धर्म, कर्म) पर बल दिया जाता है।

भगवद्गीता में भी कहा गया है कि कर्म का उद्देश्य महत्वपूर्ण है, और निष्काम कर्म (बिना फल की इच्छा के कर्म) जीवन को अर्थपूर्ण बनाता है।


बौद्ध दर्शन में "मध्यम मार्ग" और "चतुर्विध आर्य सत्य" जीवन को दुख से मुक्ति और अर्थ प्रदान करने का मार्ग दिखाते हैं।


आधुनिक संदर्भ:

आज के समय में यह उद्धरण हमें प्रेरित करता है कि हम अपने जीवन में उद्देश्य खोजें। चाहे वह करियर, रिश्ते, या आत्म-विकास हो, बिना अर्थ के ये सब क्षणिक सुख दे सकते हैं, लेकिन दीर्घकालिक संतुष्टि नहीं। 


उदाहरण के लिए:


एक व्यक्ति जो केवल भौतिक सुखों के पीछे भागता है, वह अंत में खालीपन महसूस कर सकता है।

वहीं, जो लोग समाज सेवा, रचनात्मकता, या आत्मिक खोज में लगे हैं, वे अपने जीवन को अधिक अर्थपूर्ण पाते हैं।

डिवाइन लाईफ सॉल्युशंस :

यह उद्धरण हमें याद दिलाता है कि जीवन की यात्रा का हर कदम उद्देश्य के साथ उठाया जाना चाहिए। अर्थपूर्ण यात्रा ही जीवन को स्थायी मूल्य देती है, अन्यथा अंत केवल एक क्षणिक पड़ाव बनकर रह जाता है।

जीवन समाधान और स्वास्थय देखभाल परामर्श हेतु संपर्क करें डॉक्टर सुरेंद्र सिंह विरहे मनोदैहिक मानसिक स्वास्थ्य आरोग्य विशेषज्ञ आध्यात्मिक योग चिकित्सक लाईफ कोच डिवाइन लाईफ सॉल्युशंस इंदौर मध्य प्रदेश 

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Friday, February 7, 2025

प्रेम की बेबसी

 प्रेम की तडपन प्रेम की बेबसी 

कितना आसान है किसी पुरुष का एक स्त्री से प्रेम कर लेना, और कुछ वक्त साथ बिताकर उसे भूल भी जाना! पुरुष के लिए स्त्री एक खूबसूरत वस्तु जैसी होती है, जिसे पाने तक ही पुरुष सारा संघर्ष करता है, जी, जान लगाकर उस तक पहुंचने के दिन रात एक कर देता है!

कहा हो से लेकर क्या कर रही?? कितनी देर बाद ऑन लाइन आयी कहा थी अब तक..पुरुष तब तक स्त्री के पीछे भागता है ,जब तक उसे पा नहीं लेता, स्त्री उसे हासिल नहीं हो जाती, पुरुष के लिए स्त्री तभी तक सूरज, धरती, चांद, सितारा होती है,,जब तक वो उसे पा नहीं लेता.. और कहना...ताउम्र यू ही साथ रहूंगा..सारा प्रेम ही तभी तक है जब तक स्त्री की तरफ से स्वीकृति, प्रेम प्राप्त नहीं हो जाता! परंतु, जब स्त्री प्रेम की स्वीकृति देती है! प्रेम को स्वीकार करती है, उस दिन से उसके अंदर एक बीज पनपता है, और वो प्रेम का बीज बढ़ता ही जाता है, धीरे धीरे वो बीज एक पौधे से मजबूत जड़ के साथ बड़ा पेड़ बन जाता है!

फिर इस प्रेम के पेड़ को उस स्त्री के अंदर से निकालना असंभव हो जाता है! और वो स्त्री इसी बढ़ते प्रेम के पेड़ में स्वयं नष्ट होने के कगार पर आ खड़ी होती है! और पुरुष, जिसे वो स्त्री प्रेम स्वीकृति के पहले, सूरज चांद सितारा लगती थी, अब कांटा लगने लगती है, क्योंकि पुरुष उस कुसुम सौंदर्य को प्राप्त कर चुका होता है, पुरुष के भीतर का प्रेम धीरे धीरे समाप्त होने लगता है! फिर पुरुष उस स्त्री से भागने लगता है, उससे दूरी बनाने लगता है, जिस स्त्री को पाने के लिए, बात करने पुरुष रात दिन ठंडी गर्मी नहीं देखता था, अब पुरुष का दिल उस स्त्री से भरने के बाद कहता है, मै बहुत बिजी हूं मेरे पास वक्त नहीं है, समय नहीं मिलामैसेज देखने का,और

उसी समय कही और वही बाते कर रहा..फिर पुरुष अपने प्रेम के लिए दूसरी औरत की तलाश में लग जाता है, इधर स्त्री पुरुष में प्रेम ढूढते ढूढते टूटती जाती है! जीवन का सारा सुख चैन गंवा देती है, अंत में आंखों में आंसुओ की धारा के साथ जीना सीख जाती है, ये एक स्त्री की पीड़ा है, जिसे कुछ पुरुष अपनी सोच के अनुसार सिर्फ गलत कहेंगे,.

प्रेम है ये किसी को उम्र भर की तकलीफ देकर खुद कही और खुदा बनाते है.. अरे क्यों करते शादी सुदा स्त्री से प्रेम.. और वो पागल बन जाती जाने क्यों तलाश करती बाहरी दुनियां मे प्रेम.... 

Tuesday, February 4, 2025

अपामार्ग (लटजीरा) एक जड़ी-बूटी है, और इसके कई औषधीय गुण

 🔹#अपामार्ग को चिरचिटा, लटजीरा, चिरचिरा, चिचड़ा भी बोलते हैं। यह एक बहुत ही साधारण पौधा है। आपने अपने घर के आस-पास, जंगल-झाड़ या अन्य स्थानों पर अपामार्ग का पौधा जरूर देखा होगा, लेकिन शायद इसे नाम से नहीं जानते होंगे। अपामार्ग की पहचान नहीं होने के कारण प्रायः लोग इसे बेकार ही समझते हैं, लेकिन आपका सोचना सही नहीं है। अपामार्ग (लटजीरा) एक जड़ी-बूटी है, और इसके कई औषधीय गुण हैं। कई रोगों के इलाज में अपामार्ग (चिरचिटा) के इस्तेमाल से फायदे मिलते हैं। दांतों के रोग, घाव, पाचनतंत्र विकार सहित अनेक बीमारियों में अपामार्ग के औषधीय गुण से लाभ मिलता है।

      अपामार्ग की मुख्यतः दो प्रजातियां होती हैं, जिनका प्रयोग चिकित्सा में किया जाता है।

●सफेद अपामार्ग

●लाल अपामार्ग 


★सफेद अपामार्ग (चिरचिरा) के फायदे और उपयोग:-

अपामार्ग (लटजीरा) का औषधीय प्रयोग, प्रयोग की मात्रा और विधियां ये हैंः-

●दांत के दर्द में अपामार्ग (चिरचिरा) के फायदे:

अपामार्ग के 2-3 पत्तों के रस में रूई को डुबाकर फोया बना लें। इसे दांतों में लगाने से दांत का दर्द ठीक होता है।

        अपामार्ग की ताजी जड़ से रोजाना दातून करने से दांत के दर्द तो ठीक होते ही हैं, साथ ही दाँतों का हिलना, मसूड़ों की कमजोरी, और मुंह से बदबू आने की परेशानी भी ठीक होती है। इससे दांत अच्छी तरह साफ हो जाते हैं।  

●चर्म रोग में अपामार्ग (चिरचिरा) के औषधीय गुण से फायदा:

चर्म रोग में अपामार्ग (लटजीरा) से औषधीय गुण से लाभ मिलता है। इसके पत्तों को पीसकर लगाने से फोड़े-फुन्सी आदि चर्म रोग और गांठ के रोग ठीक होते हैं।

●मुंह के छाले में अपामार्ग (चिरचिरा) के फायदे:

मुंह में छाले होने पर अपामार्ग (लटजीरा) के गुण फायदेमंद होते हैं। इसके लिए अपामार्ग के पत्तों का काढ़ा बनाकर गरारा करें। इससे मुंह के छाले की परेशानी ठीक होती है।

●बहुत अधिक भूख लगने की बीमारी को भस्मक रोग कहते हैं। इसके उपचार के लिए अपामार्ग के बीजों के 3 ग्राम चूर्ण दिन में दो बार लगभग एक सप्ताह तक सेवन करें। इससे अत्यधित भूख लगने की समस्या ठीक होती है।

       अपामार्ग के 5-10 ग्राम बीजों को पीसकर खीर बना लें। इसे खाने से अधिक भूख लगने की समस्या ठीक होती है।

       अपामार्ग के बीजों को खाने से भी अधिक भूख नहीं लगती है।

       अपामार्ग (लटजीरा) के बीजों को कूटकर महीन चूर्ण बना लें। इसमें बराबर मात्रा में मिश्री मिलाएं। इसे 3-6 ग्राम तक सुबह-शाम जल के साथ सेवन करें। इससे भी लाभ होता है।

●2 ग्राम अपामार्ग की जड़ के रस में 2 चम्मच मधु मिलाएं। इसे 2-2 बूंद आंख में डालने से आंखों के रोग ठीक होते हैं।

आईफ्लू, आंखों के दर्द, आंख से पानी बहने, आंखें लाल होने, और रतौंधी आदि में अपामार्ग का इस्तेमाल करना उत्तम परिणाम देता है। अपामार्ग की जड़ को साफ कर लें। इसमें थोड़ा सेंधा नमक मिलाकर दही के पानी के साथ तांबे के बर्तन में घिसें। इसे काजल की तरह लगाने से आंखों के रोग में लाभ होता है।

●अपामार्ग के 2-3 पत्तों को हाथ से मसलकर रस निकाल लें। इस रस को कटने या छिलने वाले स्थान पर लगाएं। इससे खून बहना रुक जाता है।

     अपामार्ग की जड़ को तिल के तेल में पकाकर छान लें। इसे कटने या छिलने वाले जगह पर लगाएं। इससे आराम मिलता है।

●पुराने घाव हो गया हो तो अपामार्ग के रस के मलहम लगाएं। इससे घाव पकता नहीं है।

अपामार्ग (लटजीरा) की जड़ को तिल के तेल में पकाकर छान लें। इसे घाव पर लगाएं। इससे घाव का दर्द कम हो जाता है। इससे घाव ठीक भी हो जाता है।

लगभग 50 ग्राम अपामार्ग के बीज में चौथाई भाग मधु मिला लें। इसे 50 ग्राम घी में अच्छी तरह पका लें। पकाने के बाद ठंडा करके घाव पर लेप करें। इससे घाव तुरंत ठीक हो जाता है।

जड़ का काढ़ा बनाकर घाव को धोने से भी घाव ठीक होता है।

●अपामार्ग (लटजीरा) पंचांग से काढ़ा बना लें। इसे जल में मिलाकर स्नान करने पर खुजली ठीक हो जाती है। उपाय करने से पहले किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से जरूर मिलें।

●दमा के इलाज के लिए अपामार्ग की जड़ चमत्कारिक रूप से काम करती है। इसके 8-10 सूखे पत्तों को हुक्के में रखकर पीने से श्वसनतंत्र संबंधित विकारों में लाभ होता है।

●लगभग 125 मिग्रा अपामार्ग क्षार में मधु मिलाएं। इसे सुबह और शाम चटाने से बच्चों की श्वास नली और छाती में जमा कफ निकल जाता है। बच्चों की खांसी ठीक होती है। खांसी बार-बार परेशान करती है, और कफ नहीं निकल रहा है या फिर कफ गाढ़ा हो गया है तो अपामार्ग के सेवन से लाभ मिलता है। इस बीमारी में या न्यूमोनिया होने पर 125-250 मिग्रा अपामार्ग क्षार और 125-250 मिग्रा चीनी को 50 मिली गुनगुने जल में मिला लें। इसे सुबह-शाम सेवन करने से 7 दिन में लाभ हो जाता है।

     6 मिली अपामार्ग की जड़ का चूर्ण बना लें। इसमें 7 काली मिर्च के चूर्ण को मिलाएं। सुबह-शाम ताजे जल के साथ सेवन करने से खांसी में लाभ होता है।

     अपामार्ग (लटजीरा) पंचांग का भस्म बनाएं। 500 मिग्रा भस्म में शहद मिलाकर सेवन करने से कुक्कुर खांसी ठीक होती है।

     बलगम वाली खासी को ठीक करने के लिए अपामार्ग की जड़ चमत्कारिक रूप से काम करती है। इसके 8-10 सूखे पत्तों को हुक्के में रखकर पीने से खांसी ठीक हो जाती है।

●अपामार्ग (लटजीरा) के 10-20 पत्ते लें। इन्हें 5-10 नग काली मिर्च और 5-10 ग्राम लहसुन के साथ पीसकर 5 गोली बना लें। बुखार आने से दो घंटे पहले 1-1 गोली लेने से ठंड लगकर आने वाला बुखार खत्म होता है।

●2-3 ग्राम अपामार्ग की जड़ के चूर्ण को दिन में 2-3 बार ठंडे जल के साथ सेवन करें। इससे हैजा ठीक होता है।

अपामार्ग के 4-5 पत्तों का रस निकालें। इसमें थोड़ा जल व मिश्री मिलाकर प्रयोग करने से भी हैजा में लाभ मिलता है।

●20 ग्राम अपामार्ग पंचांग को 400 मिली पानी में मिलाकर आग पर पकाएं। जब पानी एक चौथाई रह जाए तब 500 मिग्रा नौसादर चूर्ण और 1 ग्राम काली मिर्च चूर्ण मिला लें। इसे  दिन में 3 बार सेवन करने से पेट के दर्द में राहत मिलती है। इससे पेट की अन्य बीमारी भी ठीक हो जाती है।

     2 ग्राम अपामार्ग (चिरचिरा) की जड़ के चूर्ण में शहद मिलाकर सेवन करने से पेट के दर्द ठीक होते हैं।

●अपामार्ग की 6 पत्तियों और 5 नग काली मिर्च को जल के साथ पीस लें। इसे छानकर सुबह और शाम सेवन करने से बवासीर में लाभ हो जाता है। इससे खून बहना रुक जाता है।

अपामार्ग के बीजों को कूट-छानकर महीन चूर्ण बना लें। इसमें बराबर मात्रा में मिश्री मिलाएं। इसे 3-6 ग्राम तक सुबह-शाम जल के साथ सेवन करें। इससे बवासीर में फायदा होता है।

10-20 ग्राम अपामार्ग की जड़ के चूर्ण को चावल के धोवन के साथ पीस-छान लें। इसमें दो चम्मच शहद मिलाकर पिलाने से पित्तज या कफज विकारों के कारण होने वाले खूनी बवासीर की बीमारी में लाभ होता है।

●अपामार्ग की 5-10 ग्राम ताजी जड़ को पानी में पीस लें। इसे घोलकर पिलाने से पथरी की बीमारी में बहुत लाभ होता है। यह औषधि किडनी की पथरी को टुकडे-टुकड़े करके शरीर से बाहर निकाल देती है। किडनी में दर्द के लिए यह औषधि बहुत काम करती है।

●रसौली के इलाज में अपामार्ग के फायदे होते हैं। अपामार्ग के लगभग 10 ग्राम ताजे पत्ते एवं 5 ग्राम हरी दूब को पीस लें। इसे 60 मिली जल में मिलाकर छान लें। इसे गाय के 20 मिली दूध में मिलाकर पिलाएँ। इसमें इच्छानुसार मिश्री मिलाकर सुबह सात दिन तक पिलाएं। यह प्रयोग रोग ठीक होने तक नियमित रूप से करें। इससे गर्भाशय में गांठ (रसौली) की बीमारी ठीक हो जाती है।

●सज्जीक्षार, सेंधा नमक, चित्रक, दंती, भूम्यामलकी की जड़, श्वेतार्क लें। इसके साथ ही अपामार्ग (चिरचिरा) बीज का पेस्ट और गोमूत्र लें। इसे तेल में पकाएँ। इसका लेप करने से साइनस जल्द ठीक हो जाता है।

●भोजन उचित तरह से नहीं पचने के कारण भी वजन बढ़ता है। अपामार्ग में दीपन-पाचन गुण होता है। यह भोजन को पचाने में मदद करता है। इससे शरीर के वजन को कम करने में मदद मिलती है। 


★लाल अपामार्ग (चिरचिरा) के फायदे और उपयोग:


◆भूख बढ़ाने में लाल अपामार्ग (चिरचिरा) के औषधीय गुण फायदेमंद होते हैं। लाल अपामार्ग की जड़ या पंचांग का काढ़ा बना लें। 10-30 मिली मात्रा में काढ़ा का सेवन करें। इससे भूख बढ़ती है।  

●1-2 ग्राम अपामार्ग (चिरचिरा) के तने और पत्ते के चूर्ण का सेवन करने से कब्ज की बीमारी ठीक होती है। उपाय करने से पहले किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से जरूर सलाह लें।

●लाल अपामार्ग के पत्ते से बने 10-30 मिली काढ़ा में चीनी मिला लें। इसका सेवन करने से मूत्र रोग जैसे पेशाब में दर्द होना और पेशाब का रुक-रुक कर आने की परेशानी ठीक होती है।

●लाल अपामार्ग की जड़ या पंचांग का काढ़ा बना लें। इसे 10-30 मिली मात्रा में सेवन करने से पेचिश और हैजा रोग में लाभ होता है।

★ अपामार्ग का इस्तेमाल की सही मात्रा :-

रस- 10-20 मिली

जड़ का चूर्ण- 3-6 ग्राम

बीज- 3 ग्राम

क्षार- 1/2-2 ग्राम

   नोट-    अपामार्ग अर्थात चिरचिरा के उपयोग की समस्त जानकारी विभिन्न स्रोतों से ली गयी है, उपयोग से पूर्व किसी जानकार वैद्य/डॉक्टर से परामर्श अवश्य लें। 

   धन्यवाद!

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🔹 महिलाओं की सभी समस्याओं का समाधान है ये अकेला पौधा *खाली पेट 20-30ml पंचांग का स्वरस पीने से लगभग सभी प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं या पांच ग्राम पंचांग चूर्ण या दस ग्राम पंचांग का काढ़ा उबालकर छानकर पिएं 

एक औषधीय वनस्पति है। इसका वैज्ञानिक नाम 'अचिरांथिस अस्पेरा' (ACHYRANTHES ASPERA) है। हिन्दी में इसे 'चिरचिटा', 'लटजीरा', 'चिरचिरा ' आदि नामों से जाना जाता है।इसे लहचिचरा भी कहा जाता है।

सफेद और लाल दोनों प्रकार के अपामार्ग की मंजरियां पत्तों के डण्ठलों के बीच से निकलती हैं। ये लंबे, कर्कश, कंटीली-सी होती है। इनमें ही सूक्ष्म और कांटे-युक्त बीज होते हैं। ये बीज हल्के काले रंग के छोटे चावल के दाने जैसे होते हैं। ये स्वाद में कुछ तीखे होते हैं। इसके फूल छोटे, कुछ लाल हरे या बैंगनी रंग के होते हैं। लाल अपामार्ग की डण्डियां और मञ्जरियां कुछ लाल रंग की होती हैं। इसके पत्तों पर लाल-लाल सूक्ष्म दाग होते हैं।  

ये एक गज़ब का डाइयुरेटिक और डिटाक्सीफायर है

आप इसके इस्तेमाल से 1 महीने के भीतर ही अपना वज़न कम कर सकते हैं। अपामार्ग के पत्ते आपके शरीर से ज़हरीले पदार्थो को बाहर निकालते हैं और आपके शरीर के अन्दर फ़ालतू पानी को भी बाहर निकालते हैं। किडनी तथा लिंफेटिक सिस्टम की विषाक्तता को डिटॉक्स करने के लिए अपामार्ग जबरदस्त औषधि है 


 इसका उपयोग करने से आपका पेट भरा भरा हुआ सा लगता हैं, जिससे आपको भूख नहीं लगती हैं और आपका वज़न बहुत ही जल्दी कम होने लगता हैं। इसके सेवन से आपको बार-बार पेशाब लगने लगता हैं, लेकिन आपको घबराने की जरूरत नहीं हैं। पेशाब के जरिये यह आपके शरीर के अंदरूनी सफाई करके विषैले टोक्सिन्स को बाहर निकालता हैं


पुरूषों के लिए भी ये महा गुणकारी है अपामार्ग चूर्ण 8 ग्राम पानी में पीसकर छानकर 5 ग्राम शहद और 250 मिली दूध के साथ पीने से शीघ्रपतन नहीं होता है

अपामार्ग के 5-8 ग्राम बीजों का चूर्ण बराबर मिश्री के साथ दिन में दो बार खाने से जो बार बार भूख लगती है वो शांत हो जाती है यानी भस्मिक रोग शांत हो जाता है 


इसके बीजों की खीर बनाकर खाने से कई दिन तक भूख नहीं लगती और शरीर कमजोर नहीं होता है। साथ ही मोटापा दूर करने में मददगार होता है।

इसमें लिपोमा और अन्य गांठों को पिघलाने के भी जबरदस्त गुण पाए जाते हैं 

लगभग 5-5 ग्राम की मात्रा में अपामार्ग क्षार, सज्जी क्षार और  जवाक्षार को लेकर पानी में पीसकर सूजन वाली गांठ पर लेप की तरह सेलगाने से सूजन दूर हो जाती है।

इस के रस में रूई को डुबाकर दांतों में लगाने से दांतों का दर्द कम होता है।

इसकी ताजी जड़ से दातून करने से भी दांतों का दर्द ठीक होता है। साथ ही दांतों की सफाई दातों का हिलना, मसूड़ों की कमजोरी और मुंह की बदबू भी दूर होती है।

 

अपामार्ग के पंचांग का काढ़ा लगभग 14 से 28 मिलीलीटर दिन में 3 बार सेवन करने से कुष्ठ (कोढ़) रोग ठीक हो जाता है।


 अपामार्ग का चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथाई भाग की

मात्रा में लेकर पीने से जलोदर (पेट में पानी भरना) की सूजन कम होकर समाप्त हो जाती है।

अपामार्ग की 5-10 ग्राम ताजी जड़ को पानी में पीस लें। इसे घोलकर पिलाने से पथरी की बीमारी में बहुत लाभ होता है। यह औषधि किडनी की पथरी को टुकडे-टुकड़े करके शरीर से बाहर निकाल देती है। किडनी में दर्द के लिए यह औषधि बहुत काम करती है।


*महिलाओं के लिए वरदान है अपामार्ग *

अपामार्ग  पंचांग के रस में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर सेवन करने से मासिक धर्म विकार ठीक होता है।

अपामार्ग की जड़ के रस से रूई को भिगोएं। इसे योनि में रखने से मासिक धर्म की रुकावट खत्म होती है।

अपामार्ग के लगभग 10 ग्राम ताजे पत्ते और 5 ग्राम हरी दूब को पीस लें। इसे 60 मिली जल में मिलाकर छान लें। अब इसे गाय के दूध में मिला लें। इसमें ही 20 मिली या इच्छानुसार मिश्री मिलाकर सुबह सात दिन तक पिलाने से  मासिक धर्म के दौरान अधिक खून बहने की परेशानी में लाभ होता है। इसे रोग ठीक होने तक नियमित रूप से करें।

अपामार्ग पंचांग के रस में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर सेवन करने से मासिक धर्म के दौरान अधिक रक्तस्राव की समस्या ठीक होती है।

सिस्ट और फाइब्रॉयड के इलाज में अपामार्ग के जबरदस्त फायदे होते हैं। अपामार्ग के लगभग 10 ग्राम ताजे पत्ते एवं 5 ग्राम हरी दूब को पीस लें। इसे 60 मिली जल में मिलाकर छान लें। इसे गाय के 20 मिली दूध में मिलाकर पिलाएँ। इसमें इच्छानुसार मिश्री मिलाकर सुबह सात दिन तक पिलाएं। यह प्रयोग रोग ठीक होने तक नियमित रूप से करें। इससे गर्भाशय में गांठ (सिस्ट फाइब्रॉयड  ) की बीमारी ठीक हो जाती है।

 ल्यूकोरिया का इलाज करने के लिए अपामार्ग का प्रमुखता से इस्तेमाल करते हैं। अपामार्ग पंचांग के रस में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर सेवन करने से ल्यूकोरिया ठीक होता है।


इसके अलावा इसके तंत्र में भी बहुत महत्वपूर्ण प्रयोग हैं 

प्रसव पीड़ा प्रारम्भ होने से पहले अपामार्ग के जड़ को एक धागे में बांधकर कमर में बांधने से प्रसव सुखपूर्वक होता है, परंतु प्रसव होते ही उसे तुरंत हटा लेना चाहिए। 


इसे वज्र दन्ती भी कहते हैं। इसकी जड़ से दातून करने से दांतों की जड़ें मजबूत और दाँत मोती की तरह चमकते हैं। पायरिया मसूड़ों दांतों की कमजोरियां और सड़न हटाने में चमत्कारिक रूप से प्रभावी है

Wednesday, December 18, 2024

 स्वस्थ भारत निर्माण संकल्प से विकसित आत्मनिर्भर दिव्य भव्य भारत की बुनियाद बनें।

आइए हम सब आगामी नव वर्ष की शुरुआत पर भारत को स्वस्थ और खुशहाल बनाने का संकल्प लें। 

भारत के स्वास्थ्य विषयक आंकड़े चिंताजनक है खासतौर पर मानसिक स्वास्थ्य के आंकड़े अत्यंत गंभीर व चिंताजनक है ।

स्वास्थ्य में सुधार के लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए जन गण मन में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता स्वस्थ  रहने हेतु प्रेरित करने की नितांत आवश्यकता है।


आज की बेहद व्यस्त जीवनशैली में कई स्वास्थ्य समस्याएं मानसिक और शारीरिक तनाव का कारण बनती हैं। उच्च रक्तचाप, मोटापा, मधुमेह जैसी जीवनशैली से जुड़ी बीमारियाँ और अवसाद जैसे मानसिक विकार काफी बढ़ रहे हैं।

नियमित स्वास्थ्य मूल्यांकन के साथ, इन्हें प्रभावी ढंग से नियंत्रित करना और बाद में शारीरिक, मानसिक और सबसे महत्वपूर्ण वित्तीय तनाव से बचाना आसान होता है।

भारत में स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे

WHO के आँकड़ों के अनुसार:

देश में अनुमानत: 150 मिलियन लोगों को मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की आवश्यकता है।

60 वर्ष से कम आयु के पुरुषों में गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) के कारण मृत्यु 38.0% है

60 वर्ष से कम आयु की महिलाओं में एनसीडी के कारण मृत्यु दर 32.1% है

कैंसर, दीर्घकालिक श्वसन रोग, हृदय रोग, मधुमेह आदि जैसे एनसीडी के लिए मृत्यु दर पुरुषों में प्रति 100,000 पर 781.7 और महिलाओं में 571.0 प्रति 100,000 है।


क्योंकि नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, लगभग 80% मौतें एनसीडी (गैर-संचारी रोग) के कारण होती हैं और भारत में विश्व स्तर पर मधुमेह रोगियों की संख्या सबसे अधिक है।

भारत स्वस्थ और खुशहाल कैसे होगा?

भारत के स्वास्थ्य में सुधार के लिए कुछ कदम हैं:

रोकथाम स्वास्थ्य जांच अप्रत्याशित स्वास्थ्य देखभाल खर्चों से बचने का सबसे आसान तरीका है

समय पर टीकाकरण

स्वस्थ जीवनशैली और स्वास्थ्य एवं स्वच्छता के बुनियादी मानकों को बनाए रखना

भारतीय अर्थव्यवस्था की तीव्र गति के परिणामस्वरूप काम के लंबे घंटों के कारण तनाव, शारीरिक व्यायाम की कमी, अधिकतम नींद और अस्वास्थ्यकर खान-पान की आदतों के कारण जीवनशैली संबंधी स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हुई हैं। ऐसे में योग और ध्यान अद्भुत काम करते हैं।


संगठनों को आवश्यक स्वास्थ्य और कल्याण पहल को प्राथमिकता के आधार पर समझना और लेना चाहिए और एक स्वस्थ कार्य संस्कृति के लिए प्रयास करना चाहिए।


आज के इस भागमभाग भोगवादी उपभोक्ता बाजारवादी कुसंस्कृति के इस दौर में मानसिक स्वास्थ्य के बिगड़ने के लक्षणों पर ध्यान केंद्रित करना अत्यन्त आवश्यक है, जैसे कि तनाव, अवसाद, नींद की कमी, अनावश्यक चिंता, रुचि की हानि और आत्मविश्वास में कमी।


दिव्य जीवन समाधान उत्कर्ष संस्थान स्वस्थ भारत मिशन में विगत दो दशक से सक्रिय भूमिका निभा रहा है इसके साथ ही, यह मनोदैहिक आरोग्य अभियान में अग्रणी भूमिका में है यह अभियान स्वस्थ भारत समर्थन और जागरूकता बढ़ाने का उद्देश्य रखता है।


मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियों के प्रति जागरूक बनें निम्न लिखित लक्षणों के प्रति सचेत रहें:

रात को अच्छी नींद ना आना।

दिनभर अनावश्यक विचार चलते रहना।

बेवजह की चिंता और घबराहट महसूस होना।

मन का उदास रहना

आत्मविश्वास में लगातार गिरावट महसूस करना।

किसी भी काम में मन ना लगना। और छोटे-छोटे काम को कल पर टालना।

हमेशा नकारात्मक पहलू नजर आना।

अच्छा खाना खाने के बावजूद लगातार वजन का कम होना।

अपने पसंदीदा कामों और रतिक्रिया में रुचि खो देना।

अत्यंत छोटी-छोटी बातों पर बहुत गुस्सा करना और झुंझलाहट महसूस होना


स्वास्थ्य परामर्श ,रोग निदान  समस्या समाधान हेतु संपर्क करें:

डा सुरेंद्र सिंह विरहे

मनोदैहिक आरोग्य विशेषज्ञ 

आध्यात्मिक योग थेरेपिस्ट लाईफ कोच


09826042177

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Wednesday, September 11, 2024

कुण्डलिनी जागरण !! सप्त चक्र , सप्त चक्र भेदन !!! आत्म साक्षात्कार की प्राप्ति !!!!

 कुंडलिनी शक्ति!

कुण्डलिनी जागरण !!

सप्त चक्र , सप्त चक्र भेदन !!!

आत्म साक्षात्कार की प्राप्ति !!!!


कुण्डलिनी शक्ति

कुंडलिनी शक्ति भारतीय योग और तंत्र परंपरा में आध्यात्मिक ऊर्जा का एक रूप है, जिसे हमारे शरीर के अंदर सोई हुई शक्ति के रूप में माना जाता है। यह शक्ति "सर्पिणी" के रूप में रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से में स्थित होती है, जिसे "मूलाधार चक्र" कहा जाता है। कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने से व्यक्ति गहरे आध्यात्मिक अनुभव और आत्म-साक्षात्कार की स्थिति में प्रवेश कर सकता है।


कुण्डलिनी जागरण कैसे होता है?

कुंडलिनी जागरण कई आध्यात्मिक प्रथाओं के माध्यम से किया जा सकता है। इनमें योग, प्राणायाम, ध्यान, मंत्र जप, और गुरु कृपा शामिल हैं। कुंडलिनी जागरण का मुख्य उद्देश्य चेतना को उच्च चक्रों तक उठाना है, जो आत्म-साक्षात्कार और आध्यात्मिक विकास की ओर ले जाता है।


कुंडलिनी जागरण के मुख्य उपाय:


योगासन: 

कुछ विशेष आसनों जैसे कि भुजंगासन, पद्मासन, शलभासन कुंडलिनी जागरण में सहायक होते हैं।


प्राणायाम: 

ब्रीदिंग तकनीक जैसे कि कपालभाति, अनुलोम-विलोम और भस्त्रिका कुंडलिनी को जागृत करने में मदद करते हैं।


ध्यान: 

ध्यान के माध्यम से मन को शुद्ध कर व्यक्ति अपनी आंतरिक ऊर्जा को महसूस कर सकता है।


मंत्र जप: "ॐ" या अन्य विशेष मंत्रों का जप करके कुंडलिनी शक्ति को उत्तेजित किया जा सकता है।


गुरु कृपा:

एक योग्य गुरु की कृपा से भी कुंडलिनी जागरण की प्रक्रिया संभव हो सकती है।


सप्त चक्र क्या हैं?

कुंडलिनी योग में शरीर के अंदर सात मुख्य ऊर्जा केंद्र माने जाते हैं, जिन्हें सप्त चक्र कहा जाता है। ये चक्र कुंडलिनी के जागरण के दौरान मुख्य भूमिका निभाते हैं। 

ये सात चक्र निम्नलिखित हैं:


मूलाधार चक्र:

यह चक्र रीढ़ की हड्डी के सबसे निचले हिस्से में स्थित होता है और धरती तत्व से जुड़ा होता है।


स्वाधिष्ठान चक्र: 

यह नाभि के पास स्थित होता है और जल तत्व से संबंधित होता है।


मणिपुर चक्र: 

यह पेट के ऊपरी भाग में स्थित होता है और अग्नि तत्व से जुड़ा होता है।


अनाहत चक्र: 

यह हृदय के पास स्थित होता है और वायु तत्व से संबंधित होता है।


विशुद्धि चक्र: 

यह गले में स्थित होता है और आकाश तत्व से संबंधित होता है।


आज्ञा चक्र:

यह माथे के बीचों-बीच स्थित होता है और इसका संबंध अंतर्ज्ञान और मानसिक शक्ति से होता है।


सहस्रार चक्र: 

यह सिर के ऊपर स्थित होता है और यह आध्यात्मिकता का उच्चतम स्तर माना जाता है।


सप्त चक्र भेदन कैसे होता है?

सप्त चक्र भेदन का अर्थ है कुंडलिनी शक्ति को मूलाधार चक्र से सहस्रार चक्र तक उठाना। इसके लिए कई प्रथाएँ हैं, जिनमें ध्यान, प्राणायाम, आसन, और बंधों (शरीर के अंगों की कसावट) का अभ्यास शामिल है। प्रत्येक चक्र को जागृत करने के लिए कुछ विशेष ध्यान, मुद्राएं और मंत्र होते हैं। जैसे-जैसे कुंडलिनी ऊंचे चक्रों की ओर बढ़ती है, व्यक्ति गहरे आध्यात्मिक अनुभव और आत्म-जागृति की अवस्था में प्रवेश करता है।


आत्म-साक्षात्कार कैसे प्राप्त होता है?

आत्म-साक्षात्कार का अर्थ है स्वयं की सच्ची प्रकृति को जानना और अपने भीतर के दिव्य स्वरूप का अनुभव करना। इसे प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित प्रथाओं का पालन किया जाता है:


स्वयं का अवलोकन: 

ध्यान के माध्यम से व्यक्ति अपने विचारों, भावनाओं और इच्छाओं को देखता है और उनसे अलग हो जाता है।


वैराग्य और भक्ति: 

सांसारिक इच्छाओं से वैराग्य और ईश्वर के प्रति भक्ति आत्म-साक्षात्कार की दिशा में मार्ग प्रशस्त करते हैं।


योग और साधना: 

योगासन, प्राणायाम, और ध्यान की नियमित साधना आत्मा की गहराइयों को समझने में मदद करती है।


गुरु मार्गदर्शन: एक योग्य गुरु की सहायता आत्म-साक्षात्कार के मार्ग में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है।

ज्ञान योग: इस मार्ग में व्यक्ति अपने वास्तविक स्वरूप का बोध प्राप्त करने के लिए वेदांत और शास्त्रों का अध्ययन करता है।

आत्म-साक्षात्कार का अंतिम लक्ष्य यह है कि व्यक्ति को अपनी दिव्यता और विश्व-ब्रह्मांड के साथ अपनी एकता का अनुभव हो, जिससे जीवन का उद्देश्य पूर्णता की ओर अग्रसर हो जाता है।

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