Wednesday, September 11, 2024

कुण्डलिनी जागरण !! सप्त चक्र , सप्त चक्र भेदन !!! आत्म साक्षात्कार की प्राप्ति !!!!

 कुंडलिनी शक्ति!

कुण्डलिनी जागरण !!

सप्त चक्र , सप्त चक्र भेदन !!!

आत्म साक्षात्कार की प्राप्ति !!!!


कुण्डलिनी शक्ति

कुंडलिनी शक्ति भारतीय योग और तंत्र परंपरा में आध्यात्मिक ऊर्जा का एक रूप है, जिसे हमारे शरीर के अंदर सोई हुई शक्ति के रूप में माना जाता है। यह शक्ति "सर्पिणी" के रूप में रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से में स्थित होती है, जिसे "मूलाधार चक्र" कहा जाता है। कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने से व्यक्ति गहरे आध्यात्मिक अनुभव और आत्म-साक्षात्कार की स्थिति में प्रवेश कर सकता है।


कुण्डलिनी जागरण कैसे होता है?

कुंडलिनी जागरण कई आध्यात्मिक प्रथाओं के माध्यम से किया जा सकता है। इनमें योग, प्राणायाम, ध्यान, मंत्र जप, और गुरु कृपा शामिल हैं। कुंडलिनी जागरण का मुख्य उद्देश्य चेतना को उच्च चक्रों तक उठाना है, जो आत्म-साक्षात्कार और आध्यात्मिक विकास की ओर ले जाता है।


कुंडलिनी जागरण के मुख्य उपाय:


योगासन: 

कुछ विशेष आसनों जैसे कि भुजंगासन, पद्मासन, शलभासन कुंडलिनी जागरण में सहायक होते हैं।


प्राणायाम: 

ब्रीदिंग तकनीक जैसे कि कपालभाति, अनुलोम-विलोम और भस्त्रिका कुंडलिनी को जागृत करने में मदद करते हैं।


ध्यान: 

ध्यान के माध्यम से मन को शुद्ध कर व्यक्ति अपनी आंतरिक ऊर्जा को महसूस कर सकता है।


मंत्र जप: "ॐ" या अन्य विशेष मंत्रों का जप करके कुंडलिनी शक्ति को उत्तेजित किया जा सकता है।


गुरु कृपा:

एक योग्य गुरु की कृपा से भी कुंडलिनी जागरण की प्रक्रिया संभव हो सकती है।


सप्त चक्र क्या हैं?

कुंडलिनी योग में शरीर के अंदर सात मुख्य ऊर्जा केंद्र माने जाते हैं, जिन्हें सप्त चक्र कहा जाता है। ये चक्र कुंडलिनी के जागरण के दौरान मुख्य भूमिका निभाते हैं। 

ये सात चक्र निम्नलिखित हैं:


मूलाधार चक्र:

यह चक्र रीढ़ की हड्डी के सबसे निचले हिस्से में स्थित होता है और धरती तत्व से जुड़ा होता है।


स्वाधिष्ठान चक्र: 

यह नाभि के पास स्थित होता है और जल तत्व से संबंधित होता है।


मणिपुर चक्र: 

यह पेट के ऊपरी भाग में स्थित होता है और अग्नि तत्व से जुड़ा होता है।


अनाहत चक्र: 

यह हृदय के पास स्थित होता है और वायु तत्व से संबंधित होता है।


विशुद्धि चक्र: 

यह गले में स्थित होता है और आकाश तत्व से संबंधित होता है।


आज्ञा चक्र:

यह माथे के बीचों-बीच स्थित होता है और इसका संबंध अंतर्ज्ञान और मानसिक शक्ति से होता है।


सहस्रार चक्र: 

यह सिर के ऊपर स्थित होता है और यह आध्यात्मिकता का उच्चतम स्तर माना जाता है।


सप्त चक्र भेदन कैसे होता है?

सप्त चक्र भेदन का अर्थ है कुंडलिनी शक्ति को मूलाधार चक्र से सहस्रार चक्र तक उठाना। इसके लिए कई प्रथाएँ हैं, जिनमें ध्यान, प्राणायाम, आसन, और बंधों (शरीर के अंगों की कसावट) का अभ्यास शामिल है। प्रत्येक चक्र को जागृत करने के लिए कुछ विशेष ध्यान, मुद्राएं और मंत्र होते हैं। जैसे-जैसे कुंडलिनी ऊंचे चक्रों की ओर बढ़ती है, व्यक्ति गहरे आध्यात्मिक अनुभव और आत्म-जागृति की अवस्था में प्रवेश करता है।


आत्म-साक्षात्कार कैसे प्राप्त होता है?

आत्म-साक्षात्कार का अर्थ है स्वयं की सच्ची प्रकृति को जानना और अपने भीतर के दिव्य स्वरूप का अनुभव करना। इसे प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित प्रथाओं का पालन किया जाता है:


स्वयं का अवलोकन: 

ध्यान के माध्यम से व्यक्ति अपने विचारों, भावनाओं और इच्छाओं को देखता है और उनसे अलग हो जाता है।


वैराग्य और भक्ति: 

सांसारिक इच्छाओं से वैराग्य और ईश्वर के प्रति भक्ति आत्म-साक्षात्कार की दिशा में मार्ग प्रशस्त करते हैं।


योग और साधना: 

योगासन, प्राणायाम, और ध्यान की नियमित साधना आत्मा की गहराइयों को समझने में मदद करती है।


गुरु मार्गदर्शन: एक योग्य गुरु की सहायता आत्म-साक्षात्कार के मार्ग में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है।

ज्ञान योग: इस मार्ग में व्यक्ति अपने वास्तविक स्वरूप का बोध प्राप्त करने के लिए वेदांत और शास्त्रों का अध्ययन करता है।

आत्म-साक्षात्कार का अंतिम लक्ष्य यह है कि व्यक्ति को अपनी दिव्यता और विश्व-ब्रह्मांड के साथ अपनी एकता का अनुभव हो, जिससे जीवन का उद्देश्य पूर्णता की ओर अग्रसर हो जाता है।

Friday, September 6, 2024

कुंडलिनी जागरण के शारीरिक मानसिक आध्यात्मिक स्वास्थ्य लाभ

 कुंडलिनी शक्ति जागरण !

कुंडलिनी जागरण के शारीरिक मानसिक आध्यात्मिक स्वास्थ्य लाभ 


कुंडलिनी शक्ति जागरण एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है जो योग और ध्यान के माध्यम से की जाती है। कुंडलिनी ऊर्जा को शरीर में एक सुप्त अवस्था में माना जाता है, जो हमारी रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से में, मूलाधार चक्र में स्थित होती है। जब यह शक्ति जागृत होती है, तो यह एक सर्प की तरह ऊपर की ओर चढ़ती है और शरीर के सात मुख्य चक्रों (ऊर्जा केंद्रों) से गुजरती है। कुंडलिनी जागरण का मुख्य उद्देश्य आत्म-साक्षात्कार और उच्चतर चेतना प्राप्त करना है।


कुंडलिनी जागरण के शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक लाभ:

1. शारीरिक लाभ:

ऊर्जा का संचार: कुंडलिनी जागरण से शरीर में प्रचुर मात्रा में ऊर्जा का संचार होता है, जिससे थकान, सुस्ती, और आलस्य कम होता है।


स्वास्थ्य में सुधार: कुंडलिनी जागरण के साथ शरीर का संतुलन और ऊर्जा का प्रवाह सही हो जाता है, जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और स्वास्थ्य में सुधार होता है।


मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र का सशक्तिकरण: कुंडलिनी जागरण से मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र को सशक्त बनाया जा सकता है, जिससे स्मरण शक्ति और एकाग्रता बढ़ती है।

आंतरिक अंगों का पुनर्निर्माण: कुंडलिनी ऊर्जा शरीर के आंतरिक अंगों और प्रणालियों को सशक्त बनाती है, जिससे पाचन तंत्र, श्वसन तंत्र और हृदय प्रणाली को मजबूती मिलती है।


2. मानसिक लाभ:

मानसिक स्पष्टता: कुंडलिनी जागरण से मानसिक स्पष्टता आती है, जिससे व्यक्ति जटिल विचारों को सुलझा सकता है और विचारों में एकाग्रता आती है।


तनाव और चिंता से मुक्ति: कुंडलिनी जागरण के दौरान ध्यान और योग से मानसिक शांति और स्थिरता मिलती है, जिससे तनाव और चिंता दूर होती है।


भावनात्मक संतुलन: कुंडलिनी जागरण से व्यक्ति की भावनाओं पर नियंत्रण बढ़ता है, जिससे क्रोध, दुःख, और असंतोष जैसी नकारात्मक भावनाओं का नाश होता है और भावनात्मक संतुलन प्राप्त होता है।


रचनात्मकता का विकास: कुंडलिनी जागरण से मस्तिष्क के रचनात्मक हिस्से को सक्रिय किया जा सकता है, जिससे व्यक्ति में नवाचार और कला की भावना का विकास होता है।


3. आध्यात्मिक लाभ:

आत्म-साक्षात्कार: कुंडलिनी जागरण का सबसे प्रमुख लाभ आत्म-साक्षात्कार है, जहाँ व्यक्ति अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानता है और "मैं" की भावना से ऊपर उठता है।

चेतना का विस्तार: जागृत कुंडलिनी से व्यक्ति की चेतना उच्चतर स्तर पर पहुँचती है, जिससे वह ब्रह्मांडीय ज्ञान, सत्य, और आध्यात्मिक अनुभवों का अनुभव करता है।


आध्यात्मिक मार्गदर्शन: कुंडलिनी जागरण से व्यक्ति को अदृश्य मार्गदर्शकों और ऊर्जा की उपस्थिति का अनुभव हो सकता है, जो उसे आत्मिक विकास की दिशा में प्रेरित करती है।


सात चक्रों का शुद्धिकरण: कुंडलिनी जागरण के दौरान शरीर के सात चक्रों को जागृत और शुद्ध किया जाता है, जिससे व्यक्ति शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से सशक्त होता है।


सहज ज्ञान: कुंडलिनी जागरण से व्यक्ति के भीतर सहज ज्ञान और अंतर्ज्ञान का विकास होता है, जिससे उसे जीवन के विभिन्न पहलुओं में गहरी समझ प्राप्त होती है।

कुंडलिनी जागरण की प्रक्रिया:


योग और प्राणायाम: कुंडलिनी जागरण में प्रमुख रूप से योग और प्राणायाम का अभ्यास किया जाता है। खासकर "कपालभाति", "भस्त्रिका", और "नाड़ी शोधन" जैसे प्राणायाम कुंडलिनी जागरण के लिए उपयोगी होते हैं।


ध्यान और मंत्र जप: ध्यान और मंत्र जप कुंडलिनी जागरण का एक अनिवार्य हिस्सा है। "ओम" जैसे बीज मंत्रों का उच्चारण कुंडलिनी ऊर्जा को जागृत करने में सहायक होता है।


चक्र ध्यान: ध्यान के माध्यम से व्यक्ति को अपने शरीर के सात चक्रों पर ध्यान केंद्रित करना होता है। इससे कुंडलिनी ऊर्जा को ऊपर उठने में मदद मिलती है।


संभावित चुनौतियाँ:

कुंडलिनी जागरण की प्रक्रिया बेहद शक्तिशाली होती है, इसलिए इसे एक प्रशिक्षित और अनुभवी योग गुरु के मार्गदर्शन में किया जाना चाहिए।

इस प्रक्रिया के दौरान कुछ मानसिक और शारीरिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जैसे ऊर्जा की अधिकता, भावनात्मक उथल-पुथल, या शारीरिक असुविधा।

कुंडलिनी जागरण का सही और संयमित अभ्यास व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक रूप से एक उच्चतर स्तर पर पहुँचाता है, जिससे वह जीवन में संतुलन और शांति प्राप्त कर सकता है।

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डॉक्टर सुरेंद्र सिंह विरहे 

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Sunday, September 1, 2024

हमारे जीवन की सबसे बड़ी चुनौती !

हमारे जीवन की सबसे बड़ी चुनौती !

जिंदगी में समाधान डिवाइन लाईफ सॉल्युशंस द्वारा 

जिंदगी की चुनौतियों को स्वीकार करने और उनका सही समाधान करने की युक्तियां और मार्गदर्शन प्रस्तुत किया गया है । आइए जानते हैं अपने जीवन में विजयी होने के लिए कृत संकल्पित होकर अपने सपनों को साकार करें।


मनुष्य के जीवन की सबसे बड़ी चुनौती जिंदगी को सही मायने में समझना और उसे संतुलित रूप से जीना है। यह चुनौती कई स्तरों पर होती है, जिसमें बाहरी और आंतरिक संघर्ष दोनों शामिल होते हैं।


सबसे पहले स्वयं की पहचान और आत्मज्ञान होना अत्यंत महत्वपूर्ण है:


मनुष्य के लिए सबसे बड़ी चुनौती अपने आप को पहचानना है। यह समझना कि हम कौन हैं, हमारे उद्देश्य क्या हैं, और हमें किस दिशा में जाना चाहिए, एक जटिल प्रक्रिया है। आत्म-ज्ञान प्राप्त करना जीवनभर की यात्रा होती है और इस प्रक्रिया में व्यक्ति को कई बार आत्म-संशय, असुरक्षा, और भ्रम का सामना करना पड़ता है।


जीवन में हमेशा संतुलन बनाए रखना:


जीवन में संतुलन बनाए रखना एक और महत्वपूर्ण चुनौती है। यह संतुलन व्यक्तिगत जीवन, पेशेवर जीवन, सामाजिक संबंधों और आध्यात्मिकता के बीच होता है। अक्सर लोग किसी एक क्षेत्र में इतना उलझ जाते हैं कि दूसरे क्षेत्रों की उपेक्षा हो जाती है, जिससे जीवन में असंतुलन पैदा हो जाता है।


परिवर्तन के साथ तालमेल सहज स्वीकार भाव:

समय के साथ, दुनिया में, समाज में, और स्वयं के भीतर परिवर्तन होते रहते हैं। इन परिवर्तनों के साथ तालमेल बैठाना और उन्हें सकारात्मक रूप में स्वीकार करना एक बड़ी चुनौती है। कई बार लोग परिवर्तन का विरोध करते हैं, जिससे वे तनाव और निराशा का अनुभव करते हैं।


अप्रत्याशित और अनिश्चितता का सामना:


जीवन में बहुत सी चीजें अनिश्चित होती हैं, जैसे भविष्य में क्या होगा, यह कोई नहीं जानता। इस अनिश्चितता के बावजूद, जीवन को पूरी तरह जीने की कला में माहिर होना एक कठिन चुनौती है। यह विश्वास बनाए रखना कि चाहे जो भी हो, हम सही रास्ते पर हैं, बहुत ही कठिन हो सकता है।


जिंदगी के संघर्ष और दुःख को स्वीकारना:


जीवन में दुःख, संघर्ष, और पीड़ा का सामना हर किसी को करना पड़ता है। इन परिस्थितियों को स्वीकार करना और उनसे सीख लेकर आगे बढ़ना एक बड़ी चुनौती होती है। बहुत से लोग इनसे भागने का प्रयास करते हैं, लेकिन यह जीवन का हिस्सा है और इसे समझकर ही व्यक्ति आगे बढ़ सकता है।


आपसी संबंधों को बनाए रखना:


रिश्ते और संबंध जीवन का अहम हिस्सा होते हैं, लेकिन इन्हें सही रूप में बनाए रखना भी एक चुनौती है। हर व्यक्ति की अलग-अलग अपेक्षाएं, स्वभाव, और प्राथमिकताएं होती हैं। इन भिन्नताओं के बावजूद, एक-दूसरे के साथ समझदारी और सम्मान के साथ संबंध बनाए रखना जीवन की कठिन चुनौतियों में से एक है।


आत्म संतोष और कृतज्ञता:


मनुष्य की प्रवृत्ति हमेशा अधिक पाने की होती है। लेकिन जीवन में संतोष और कृतज्ञता का भाव बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है। अधिक पाने की चाहत अक्सर व्यक्ति को असंतुष्ट और बेचैन कर देती है, जबकि कृतज्ञता से मन की शांति और संतोष की भावना विकसित होती है।


अटल शाश्वत मृत्यु का सामना:


अंततः, जीवन की सबसे बड़ी और अंतिम चुनौती मृत्यु का सामना करना होता है। यह सच है कि हर किसी को एक दिन इस संसार से विदा लेना है, लेकिन इस सच्चाई को स्वीकार करना और उसके अनुसार जीवन जीना एक गहन और चुनौतीपूर्ण कार्य है।

इन सब चुनौतियों का सामना करने के लिए मनुष्य को धैर्य, साहस, और सकारात्मक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। जीवन की इन चुनौतियों को समझकर और उन्हें स्वीकार करके ही व्यक्ति एक पूर्ण और संतुलित जीवन जी सकता है।

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Saturday, August 31, 2024

जीवन के बुरे दिन में आत्म संघर्ष की शक्ति पाएं।

 शिवम योग दिव्य उत्कर्ष विद्या 

जीवन के बुरे दिन में आत्म संघर्ष की शक्ति पाएं।


यदि किसी व्यक्ति का बहुत बुरा वक्त चल रहा हो उसे मेहनत करने पर भी न सफलता मिल रही हो न सुकून आर्थिक तंगी हो भयानक रूप से तो इस बुरे वक्त से निकलने का उपाय क्या हो सकता है? आइए विस्तार से जानकारी समाधान जान लीजिए।


प्रिय साधकों!

कठिन समय का सामना करना एक बहुत ही चुनौतीपूर्ण अनुभव हो सकता है। ऐसे में निराशा, हताशा और चिंता महसूस करना स्वाभाविक है। इस परिस्थिति से बाहर निकलने के लिए कुछ महत्वपूर्ण उपाय किए जा सकते हैं:


1.अपने जीवन में सतत धैर्य और संयम बनाए रखें:

बुरे वक्त में सबसे पहले और महत्वपूर्ण चीज़ है धैर्य और संयम। यह समय भी गुजर जाएगा। जब आप शांत मन से समस्याओं का सामना करेंगे, तो आप बेहतर तरीके से सोच पाएंगे और सही निर्णय ले पाएंगे।


2. अपने मनोबल को बढ़ाएँ:

सकारात्मक सोच बनाए रखें। अपने आप पर विश्वास करें और यह याद रखें कि जीवन में हर स्थिति अस्थायी होती है। सकारात्मक विचार और आत्मविश्वास आपको आगे बढ़ने में मदद करेंगे।


3. अपना आत्ममूल्यांकन करें:

खुद का आत्ममूल्यांकन करें और यह देखें कि कहां पर गलतियां हो रही हैं। अगर किसी कारण से सफलता नहीं मिल रही, तो अपने कार्यों और रणनीतियों को दोबारा जांचें और उनमें आवश्यक सुधार करें।


4.जिंदगी में नए कौशल सीखें:

कठिन समय में खुद को विकसित करने का प्रयास करें। नए कौशल सीखें, अपनी योग्यता को बढ़ाएं। इससे आपकी मूल्यवृद्धि होगी और रोजगार के नए अवसर मिल सकते हैं।


5. अपने आसपास समर्थन प्रणाली का उपयोग करें:

अपने परिवार, दोस्तों और करीबी लोगों से समर्थन लें। कभी-कभी समस्याओं को साझा करने से हल्कापन महसूस होता है और आपको नई दृष्टिकोण मिल सकती है।


6. ध्यान और योग करें:

मानसिक तनाव और चिंता को कम करने के लिए ध्यान और योग का अभ्यास करें। यह आपके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाएगा, जिससे आप समस्याओं का सामना करने के लिए अधिक सक्षम होंगे।


7. नई आर्थिक योजनाएं बनाएं:

आर्थिक संकट का सामना करने के लिए एक अच्छी वित्तीय योजना बनाएं। अपने खर्चों को नियंत्रित करें, बजट बनाएं, और जहां तक संभव हो, अनावश्यक खर्चों से बचें। किसी वित्तीय सलाहकार से परामर्श भी लिया जा सकता है।


8.परम सत्ता ईश्वर में आस्था रखें:

आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, यदि आप किसी धर्म या ईश्वर में विश्वास रखते हैं, तो प्रार्थना करें और अपने मन को शांति देने का प्रयास करें। विश्वास से मन को शक्ति मिलती है और कठिनाइयों का सामना करना आसान हो जाता है।


9. अपने जीवन में सकारात्मक आदतें अपनाएं:

रोज़मर्रा की आदतों में सुधार लाएं। नियमित रूप से व्यायाम करें, स्वस्थ भोजन खाएं, और अपने शरीर और मन का ख्याल रखें।

 इससे आप अंदर से मजबूत महसूस करेंगे।


10.नए भावी विकल्पों का विश्लेषण करें:

जीवन में नए विकल्प तलाशें। हो सकता है कि आपकी मौजूदा स्थिति में सुधार के लिए कुछ अन्य रास्ते हों जिन्हें आपने अभी तक नहीं आजमाया हो। नए रोजगार, नई योजनाएं, या नए स्थान पर जाने की संभावना पर विचार करें।


11.कुशल बनकर समय का प्रबंधन करें:

समय का सही प्रबंधन करें। समय का सदुपयोग करने से आप ज्यादा प्रभावी ढंग से कार्य कर पाएंगे और यह भी देख पाएंगे कि कहां पर समय बर्बाद हो रहा है।


12. जीवन कोच विशेषज्ञ सलाह लें:

अगर आप किसी विशेष क्षेत्र में समस्याओं का सामना कर रहे हैं, तो उस क्षेत्र के विशेषज्ञों से सलाह लेना लाभदायक हो सकता है। जैसे कि करियर में समस्याएं हैं तो करियर काउंसलर से बात करें। जीवन कोच से परामर्श लें।


13. सतत सदैव आत्मचिंतन करें:

आत्मचिंतन का मतलब है अपने आप से सवाल पूछना कि इस समय में मैं क्या सीख सकता हूँ और कैसे इस परिस्थिति से बाहर निकल सकता हूँ। आत्मचिंतन आपको एक नई दिशा प्रदान कर सकता है।


14.दूरदर्शिता के साथ लंबी अवधि के लक्ष्यों पर ध्यान दें:

अपनी स्थिति को सुधारने के लिए दीर्घकालिक लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करें। छोटे-छोटे कदम उठाकर, बड़े लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। धैर्य और निरंतर प्रयासों से ही लक्ष्य प्राप्त होते हैं।

याद रखें, हर कठिनाई आपको एक नया सबक सिखाती है और आपको पहले से अधिक मजबूत बनाती है। बुरे वक्त से बाहर निकलने का रास्ता आपकी सोच, धैर्य, और निरंतर प्रयासों में ही छिपा है।

अंत में निष्कर्ष रूप में :

अपने अंदर की सुषुप्त दिव्य शक्ति को जाग्रत करें। अपनी योग्यता क्षमताओं को परिष्कृत करें। अपने गुण और अवगुणों को समझ कर विवेकशील बनें।

स्वयं को बेहतर ढंग से भविष्य के लिए तैयार करें। अपनी ऊर्जा  शक्ति का सही उपयोग करें । समय प्रबन्धन और आत्म अनुशासन को अपने जीवन में सर्वोच्च प्राथमिकता दें।


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Thursday, August 29, 2024

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Wednesday, August 28, 2024

व्यक्ति का दोहरा जीवन होता है - एक सार्वजनिक जीवन तथा दूसरा निजी जीवन!

व्यक्ति का दोहरा जीवन होता है - एक सार्वजनिक जीवन तथा दूसरा निजी जीवन!


जी हां मित्रों। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में दो अलग-अलग पहलू होते हैं—एक सार्वजनिक और एक निजी। इन दोनों जीवनों में अंतर होने के कारण कुछ लोग यह मान सकते हैं कि अधिकांश लोग मानसिक दृष्टि से "दोहरी मानसिकता" या "सीजोफ्रेनिक" होते हैं। हालाँकि, इसे वास्तविक सीजोफ्रेनिया से तुलना करना गलत है, क्योंकि यह मानसिक विकार अलग और विशिष्ट है।


1.जीवन में निजी और सार्वजनिक जीवन का द्वैत होता है:


हर व्यक्ति के जीवन में एक सार्वजनिक पक्ष होता है, जो कि समाज, कार्यस्थल, मित्रों और बाहरी दुनिया के लिए होता है। इस जीवन में व्यक्ति अक्सर सामाजिक मानदंडों और अपेक्षाओं के अनुरूप व्यवहार करता है। दूसरी तरफ, निजी जीवन में वह अपने वास्तविक विचारों, भावनाओं और अनुभवों को व्यक्त करता है, जो अक्सर सार्वजनिक रूप से प्रकट नहीं किए जाते।


2. हर व्यक्ति से जुड़ी सामाजिक अपेक्षाएँ और व्यक्तिगत वास्तविकता:


सामाजिक जीवन में, व्यक्ति को कई भूमिकाएँ निभानी पड़ती हैं, जैसे कि एक माता-पिता, कर्मचारी, मित्र, या नागरिक। इन भूमिकाओं के साथ जुड़े दायित्व और सामाजिक अपेक्षाएँ अक्सर व्यक्ति को उसके वास्तविक विचारों और भावनाओं को छुपाने के लिए मजबूर करती हैं। दूसरी तरफ, निजी जीवन में व्यक्ति स्वतंत्र होता है और अपने वास्तविक व्यक्तित्व को जीता है।


3. मनोरोग के रूप में वास्तविक सीजोफ्रेनिया:


सीजोफ्रेनिया एक गंभीर मानसिक विकार है जिसमें व्यक्ति वास्तविकता और काल्पनिकता के बीच भेद करने में कठिनाई महसूस करता है। इसमें अक्सर भ्रम, मतिभ्रम, अव्यवस्थित सोच और असामान्य व्यवहार शामिल होते हैं। यह एक चिकित्सा स्थिति है, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं में गंभीरता से हस्तक्षेप कर सकती है।


4.व्यक्तित्व में दोहरापन द्वैत और मानसिक स्वास्थ्य:


यद्यपि अधिकांश लोग अपने जीवन के विभिन्न पहलुओं में  दोहरापन द्वैत का अनुभव करते हैं, लेकिन यह मानसिक विकार का संकेत नहीं है। सार्वजनिक और निजी जीवन का अंतर मानव स्वभाव और सामाजिक संरचना का एक सामान्य हिस्सा है। यह केवल एक प्रकार का सामंजस्य है, जो व्यक्ति अपने जीवन में बनाए रखता है।


सामान्य जीवन की परिस्थितियों में अनुकूल प्रतिकूल प्रभाव पड़ता ही है।

हालाँकि, निजी और सार्वजनिक जीवन के बीच का द्वैत एक सामान्य मानव अनुभव है, इसे सीजोफ्रेनिया या मानसिक अस्थिरता से जोड़ना उचित नहीं है। वास्तविक सीजोफ्रेनिया एक चिकित्सा स्थिति है, जिसकी तुलना सामान्य जीवन की जटिलताओं से नहीं की जा सकती।


हर किसी का दोहरा जीवन होने का मतलब यह नहीं कि व्यक्ति मानसिक रूप से अस्थिर है; बल्कि यह मानव स्वभाव की जटिलता और सामाजिक संरचना का हिस्सा है।

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डा सुरेन्द्र सिंह विरहे 

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Tuesday, August 27, 2024

जीवन, अंततः मनुष्य को नितांत अकेले करके परम पुरुषार्थ मोक्ष केवल्य,निर्वाण और आत्म उत्कर्ष की प्राप्ति

 जिंदगी में समाधान दिव्य जीवन समाधान डिवाइन लाईफ सॉल्युशंस द्वारा जीवन की नियति को शाश्वत सत्य के रूप में व्याख्या करके इन सूत्रों से परिभाषित किया जा रहा है: 

जीवन, अंततः मनुष्य को नितांत अकेले करके परम पुरुषार्थ मोक्ष केवल्य,निर्वाण और आत्म उत्कर्ष की प्राप्ति की ओर अग्रसर कराता है।


जीवन के अनुभवों को देखते हुए, यह कहा जा सकता है कि अंततः जीवन मनुष्य को अकेले होने के लिए प्रशिक्षित करता है। इसके पीछे कई कारण और मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, और अस्तित्ववादी पहलू हैं, जिनके माध्यम से हम इस प्रश्न को समझ सकते हैं:


1. मृत्यु का अटल सत्य:

जीवन का सबसे बड़ा और अटल सत्य मृत्यु है। हर व्यक्ति को एक दिन इस संसार को छोड़ना होता है, और इस यात्रा में कोई भी व्यक्ति साथ नहीं होता। मृत्यु की अनिवार्यता यह सिखाती है कि चाहे हम कितने भी करीबी रिश्ते बना लें, अंततः हमें अकेले ही इस यात्रा को तय करना है।


2. आत्मनिर्भरता की आवश्यकता:

जीवन की चुनौतियाँ, संघर्ष, और कठिनाइयाँ हमें आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित करती हैं। जब हम जीवन के कठिन समय से गुजरते हैं, तो हमें यह एहसास होता है कि दूसरों पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहा जा सकता। यह आत्मनिर्भरता ही हमें अकेले रहने के लिए तैयार करती है।


3. रिश्तों की अस्थिरता:

समय के साथ, जीवन में आने वाले लोग या तो बदल जाते हैं, दूर हो जाते हैं, या हमारे जीवन से पूरी तरह चले जाते हैं। रिश्तों की यह अस्थिरता और अस्थायी प्रकृति हमें यह समझने के लिए मजबूर करती है कि हमें अपने आप के साथ रहना सीखना चाहिए, क्योंकि बाहरी समर्थन हमेशा के लिए नहीं होता।


4. अंतर्मुखता और आत्म-चिंतन:

जैसे-जैसे व्यक्ति का जीवन में अनुभव बढ़ता है, वह बाहरी दुनिया से अधिक अपने भीतर की ओर ध्यान केंद्रित करने लगता है। आत्म-चिंतन और आत्म-विश्लेषण उसे अपनी स्वयं की पहचान और उद्देश्य को समझने में मदद करता है। यह प्रक्रिया स्वाभाविक रूप से उसे अकेले रहने के लिए तैयार करती है।


5. समानता की कमी:

हर व्यक्ति की अपनी सोच, अनुभव, और दृष्टिकोण होते हैं, जो अक्सर दूसरों से भिन्न होते हैं। यह असमानता कई बार व्यक्ति को अकेला महसूस कराती है, और जीवन उसे यह सिखाता है कि कैसे अपने दृष्टिकोण और विचारधारा के साथ अकेले खड़ा रहा जाए।


6. मानसिक और भावनात्मक विकास:

मानसिक और भावनात्मक विकास के साथ व्यक्ति को यह समझ आने लगता है कि सुख, दुख, और अन्य सभी भावनाएँ उसकी अपनी आंतरिक स्थिति पर निर्भर करती हैं। दूसरों से अपेक्षाएँ कम होती जाती हैं और व्यक्ति खुद के साथ समय बिताना पसंद करने लगता है।


7. दर्शन और आध्यात्मिकता:

जीवन के उत्तरार्ध में व्यक्ति अक्सर दार्शनिक या आध्यात्मिक दृष्टिकोण अपनाता है, जो उसे संसार की क्षणभंगुरता और अकेलेपन की सच्चाई से अवगत कराता है। यह दृष्टिकोण उसे जीवन की अंतिम सच्चाई को समझने और स्वीकार करने में मदद करता है।


इन सभी कारणों से, जीवन अंततः व्यक्ति को अकेले होने के लिए तैयार करता है। यह प्रक्रिया कठिन हो सकती है, लेकिन यह आवश्यक है ताकि व्यक्ति जीवन की अंतिम सच्चाइयों को समझ सके और उनका सामना करने के लिए तैयार हो सके।

अधिक विस्तृत जानकारी मार्गदर्शन और जीवन समाधान आध्यात्मिक मानसिक स्वास्थ्य देखभाल परामर्श हेतु संपर्क करें 

डा सुरेंद्र सिंह विरहे 

मनोदैहिक स्वास्थ्य आरोग्य विशेषज्ञ आध्यात्मिक योग चिकित्सक लाईफ कोच डिवाइन लाईफ सॉल्युशंस भोपाल मध्य प्रदेश 

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Surendra Singh Virhe 


Monday, August 26, 2024

यथार्थ जीवन को समझना जरूरी है..

 यथार्थ जीवन को समझना जरूरी है..

जिंदगी के समाधान डिवाइन लाईफ सॉल्युशंस द्वारा जिंदगी की वास्तविकता जानने के सूत्र :

जीवन को वैसे ही समझने की अवधारणा, जैसी वह है, दार्शनिक दृष्टिकोणों, मनोविज्ञान और व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर अलग-अलग तरीकों से व्याख्यायित की जा सकती है। यह प्रश्न जीवन के यथार्थवादी दृष्टिकोण और उसकी स्वीकृति पर केंद्रित है। इस दृष्टिकोण को समझने के लिए कुछ प्रमुख बिंदुओं पर विचार किया जा सकता है:


1. यथार्थवादी दृष्टिकोण (Realistic Approach)

यथार्थ को स्वीकारना: जीवन को वैसा ही समझने का मतलब है कि हम जीवन के वास्तविकताओं, समस्याओं और खुशियों को वैसा ही स्वीकारें जैसा वे हैं। इसमें जीवन के सुख-दुःख, सफलता-असफलता और अन्य पहलुओं को बिना किसी पूर्वाग्रह या धारणाओं के देखा जाता है।

मोहभंग से बचना: अगर हम जीवन को वैसा ही समझें जैसा वह है, तो हम किसी भी चीज़ को लेकर अधिकतम अपेक्षाएं नहीं बनाते, जिससे निराशा कम होती है। यह दृष्टिकोण हमें मानसिक संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।


2. जीवन के प्रति संतुलित दृष्टिकोण (Balanced Perspective)

वास्तविकता और उम्मीदों के बीच संतुलन: जीवन को यथार्थ रूप में देखने का मतलब यह नहीं है कि हम उम्मीदें छोड़ दें। उम्मीदें रखना स्वाभाविक है, लेकिन उन्हें यथार्थ की सीमाओं में रखना ज़रूरी है।

संवेदनशीलता का महत्व: जीवन के प्रति एक संवेदनशील दृष्टिकोण रखने से हम दूसरों की भावनाओं और स्थितियों को बेहतर समझ सकते हैं। यह जीवन को एक मानवीय दृष्टिकोण से देखने की शक्ति देता है।


3. आध्यात्मिक और दार्शनिक दृष्टिकोण (Spiritual and Philosophical Approach)

जीवन का सत्य: कई आध्यात्मिक और दार्शनिक परंपराएँ कहती हैं कि जीवन को वैसा ही समझना चाहिए जैसा वह है, क्योंकि यही सत्य है। किसी भी भ्रम या झूठ में जीने के बजाय, सत्य का सामना करना और उसे स्वीकार करना हमें मुक्त करता है।

अप्रमत्त जीवन: कुछ दार्शनिक दृष्टिकोण जैसे अस्तित्ववाद (Existentialism), यह मानते हैं कि जीवन का कोई पूर्व निर्धारित अर्थ नहीं है, बल्कि व्यक्ति को खुद अपना अर्थ खोजना होता है। जीवन को जैसा है वैसा समझने का मतलब है कि हम इसे अपनी समझ और अनुभवों के आधार पर स्वीकारें।


4. व्यक्तिगत विकास और परिपक्वता (Personal Growth and Maturity)

असली अनुभवों से सीखना: जीवन को वैसा ही समझने का मतलब है कि हम अपने अनुभवों से वास्तविकता की सच्चाई को सीखते हैं। यह हमें परिपक्वता और समझदारी की ओर ले जाता है।


मुक्ति और शांति: जब हम जीवन की सच्चाइयों को स्वीकार करते हैं, तो हम आंतरिक शांति और मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं। यह स्वीकृति हमें जीवन में सामंजस्य और मानसिक शांति की दिशा में ले जाती है।


5. आधुनिक समय में व्यावहारिकता (Practicality in Modern Times)

तथ्यात्मक दृष्टिकोण: जीवन के प्रति यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाने से हम कठिनाइयों को बेहतर तरीके से संभाल सकते हैं और ठोस निर्णय ले सकते हैं। यह दृष्टिकोण व्यावहारिकता और तर्क पर आधारित होता है।


सकारात्मकता बनाए रखना: जीवन को यथार्थ रूप में समझने के साथ ही, सकारात्मक दृष्टिकोण रखना भी ज़रूरी है। यह संतुलन हमें न केवल वास्तविकता से जुड़ने में मदद करता है, बल्कि हमें आगे बढ़ने की ऊर्जा भी देता है।


जीवन को वैसा ही समझने का मतलब है कि हम उसे बिना किसी भ्रम, आडंबर या अत्यधिक अपेक्षाओं के स्वीकारें। यह दृष्टिकोण हमें अधिक संतुलित, वास्तविक और शांतिपूर्ण जीवन जीने में मदद करता है।

 हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि हमें जीवन में बदलाव की इच्छा नहीं रखनी चाहिए या अपने सपनों का पीछा नहीं करना चाहिए। यह दृष्टिकोण सिर्फ़ यह सिखाता है कि जीवन की सच्चाइयों को स्वीकारना और उन्हें समझदारी से संभालना महत्वपूर्ण है।

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 Surendra Singh Virhe

Saturday, August 24, 2024

मनोदशा की अभिव्यक्ति की रीडिंग अर्थात माइंड रीडिंग !

 जागृत अवस्था और मनोदशा की अभिव्यक्ति की रीडिंग 

अर्थात माइंड रीडिंग !


माइंड रीडिंग, जिसे "मानसिकता पठन" या "सोच पढ़ना" भी कहा जाता है, का मतलब यह समझना है कि कोई व्यक्ति क्या सोच रहा है या उसकी मानसिक स्थिति क्या है। यह विज्ञान, मनोविज्ञान और परामनोविज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में अध्ययन का विषय है।


हालांकि, यह पूरी तरह से सटीक और प्रत्यक्ष नहीं हो सकता, फिर भी कुछ तरीके हैं जिनसे हम किसी की मनोदशा या मानसिक स्थिति को समझ सकते हैं:


1. शारीरिक संकेत (Body Language):

शारीरिक भाषा जैसे कि चेहरे के हाव-भाव, आँखों की गति, हाथों की गतिविधियां, और शरीर की मुद्रा मानसिक अवस्था को दर्शाती हैं। उदाहरण के लिए, जब कोई व्यक्ति चिंतित होता है, तो उसके हाथ काँप सकते हैं या वह बार-बार अपने चेहरे को छू सकता है।


2. बातचीत की शैली (Speech Patterns):


किसी व्यक्ति की बातचीत की शैली, उसकी आवाज़ का उतार-चढ़ाव, और बोलने का तरीका उसकी मानसिक स्थिति के बारे में संकेत दे सकता है। उदाहरण के लिए, धीमी और कमजोर आवाज़ उदासी या थकान को दर्शा सकती है, जबकि तेज़ और जोर से बोलना उत्तेजना या गुस्से को इंगित कर सकता है।


3. आँखों का संपर्क (Eye Contact):

किसी व्यक्ति की आँखों का संपर्क बनाए रखने या उससे बचने का तरीका भी उसकी मनोदशा को समझने में सहायक हो सकता है। लगातार आँखों का संपर्क आत्मविश्वास का संकेत है, जबकि आँखों का संपर्क न करना शर्मिंदगी, झूठ बोलने, या असुविधा को दर्शा सकता है।


4. व्यवहारिक पैटर्न (Behavioral Patterns):

किसी व्यक्ति का सामान्य व्यवहार और आदतें भी उसकी मानसिक स्थिति को दर्शा सकती हैं। यदि कोई व्यक्ति अचानक से अपने सामान्य व्यवहार से विपरीत तरीके से व्यवहार करने लगे, तो यह उसकी मानसिक स्थिति में बदलाव का संकेत हो सकता है।


5. मनोवैज्ञानिक परीक्षण (Psychological Tests):

मनोवैज्ञानिक परीक्षण, जैसे कि व्यक्तित्व परीक्षण, IQ परीक्षण, या अन्य मानसिकता विश्लेषण उपकरण, मानसिक स्थिति और सोचने के तरीके का गहराई से विश्लेषण कर सकते हैं।


6. प्रेरणा और भावनाओं का विश्लेषण (Motivation and Emotional Analysis):

किसी व्यक्ति की मानसिकता को समझने के लिए उसके उद्देश्यों, इच्छाओं, और भावनाओं का विश्लेषण करना महत्वपूर्ण हो सकता है। यह पता लगाने की कोशिश करें कि वह व्यक्ति क्या चाहता है या उससे क्या डरता है।


7. पारस्परिक संबंध (Interpersonal Relationships):

व्यक्ति के साथ उसके रिश्तों और संपर्कों का विश्लेषण भी उसकी मानसिकता को समझने में सहायक हो सकता है। वह दूसरों के साथ कैसे व्यवहार करता है, इससे उसकी मानसिकता का पता चल सकता है।


8. मनोविज्ञान और न्यूरोसाइंस का अध्ययन (Psychology and Neuroscience):

आधुनिक न्यूरोसाइंस और मनोविज्ञान ने मस्तिष्क की गतिविधियों और मानसिक अवस्थाओं को समझने के लिए उन्नत तकनीकों को विकसित किया है, जैसे कि FMRI, EEG आदि।


इन सब माध्यमों के द्वारा हम किसी व्यक्ति की मानसिक स्थिति को समझ सकते हैं। हालांकि, यह हमेशा सटीक नहीं होता और इसे सही ढंग से समझने के लिए अनुभव और अभ्यास की आवश्यकता होती है।


आपको यदि माइंड रीडिंग में दक्षता प्राप्त करना है तो जिंदगी में समाधान डिवाइन लाईफ सॉल्युशंस के माइंड पावर तकनीक माईंड रीडिंग इंप्रूवमेंट एडवांस कोर्स को ज्वाइन करना चाहिए।


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कुण्डलिनी जागरण !! सप्त चक्र , सप्त चक्र भेदन !!! आत्म साक्षात्कार की प्राप्ति !!!!

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