Wednesday, September 11, 2024

कुण्डलिनी जागरण !! सप्त चक्र , सप्त चक्र भेदन !!! आत्म साक्षात्कार की प्राप्ति !!!!

 कुंडलिनी शक्ति!

कुण्डलिनी जागरण !!

सप्त चक्र , सप्त चक्र भेदन !!!

आत्म साक्षात्कार की प्राप्ति !!!!


कुण्डलिनी शक्ति

कुंडलिनी शक्ति भारतीय योग और तंत्र परंपरा में आध्यात्मिक ऊर्जा का एक रूप है, जिसे हमारे शरीर के अंदर सोई हुई शक्ति के रूप में माना जाता है। यह शक्ति "सर्पिणी" के रूप में रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से में स्थित होती है, जिसे "मूलाधार चक्र" कहा जाता है। कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने से व्यक्ति गहरे आध्यात्मिक अनुभव और आत्म-साक्षात्कार की स्थिति में प्रवेश कर सकता है।


कुण्डलिनी जागरण कैसे होता है?

कुंडलिनी जागरण कई आध्यात्मिक प्रथाओं के माध्यम से किया जा सकता है। इनमें योग, प्राणायाम, ध्यान, मंत्र जप, और गुरु कृपा शामिल हैं। कुंडलिनी जागरण का मुख्य उद्देश्य चेतना को उच्च चक्रों तक उठाना है, जो आत्म-साक्षात्कार और आध्यात्मिक विकास की ओर ले जाता है।


कुंडलिनी जागरण के मुख्य उपाय:


योगासन: 

कुछ विशेष आसनों जैसे कि भुजंगासन, पद्मासन, शलभासन कुंडलिनी जागरण में सहायक होते हैं।


प्राणायाम: 

ब्रीदिंग तकनीक जैसे कि कपालभाति, अनुलोम-विलोम और भस्त्रिका कुंडलिनी को जागृत करने में मदद करते हैं।


ध्यान: 

ध्यान के माध्यम से मन को शुद्ध कर व्यक्ति अपनी आंतरिक ऊर्जा को महसूस कर सकता है।


मंत्र जप: "ॐ" या अन्य विशेष मंत्रों का जप करके कुंडलिनी शक्ति को उत्तेजित किया जा सकता है।


गुरु कृपा:

एक योग्य गुरु की कृपा से भी कुंडलिनी जागरण की प्रक्रिया संभव हो सकती है।


सप्त चक्र क्या हैं?

कुंडलिनी योग में शरीर के अंदर सात मुख्य ऊर्जा केंद्र माने जाते हैं, जिन्हें सप्त चक्र कहा जाता है। ये चक्र कुंडलिनी के जागरण के दौरान मुख्य भूमिका निभाते हैं। 

ये सात चक्र निम्नलिखित हैं:


मूलाधार चक्र:

यह चक्र रीढ़ की हड्डी के सबसे निचले हिस्से में स्थित होता है और धरती तत्व से जुड़ा होता है।


स्वाधिष्ठान चक्र: 

यह नाभि के पास स्थित होता है और जल तत्व से संबंधित होता है।


मणिपुर चक्र: 

यह पेट के ऊपरी भाग में स्थित होता है और अग्नि तत्व से जुड़ा होता है।


अनाहत चक्र: 

यह हृदय के पास स्थित होता है और वायु तत्व से संबंधित होता है।


विशुद्धि चक्र: 

यह गले में स्थित होता है और आकाश तत्व से संबंधित होता है।


आज्ञा चक्र:

यह माथे के बीचों-बीच स्थित होता है और इसका संबंध अंतर्ज्ञान और मानसिक शक्ति से होता है।


सहस्रार चक्र: 

यह सिर के ऊपर स्थित होता है और यह आध्यात्मिकता का उच्चतम स्तर माना जाता है।


सप्त चक्र भेदन कैसे होता है?

सप्त चक्र भेदन का अर्थ है कुंडलिनी शक्ति को मूलाधार चक्र से सहस्रार चक्र तक उठाना। इसके लिए कई प्रथाएँ हैं, जिनमें ध्यान, प्राणायाम, आसन, और बंधों (शरीर के अंगों की कसावट) का अभ्यास शामिल है। प्रत्येक चक्र को जागृत करने के लिए कुछ विशेष ध्यान, मुद्राएं और मंत्र होते हैं। जैसे-जैसे कुंडलिनी ऊंचे चक्रों की ओर बढ़ती है, व्यक्ति गहरे आध्यात्मिक अनुभव और आत्म-जागृति की अवस्था में प्रवेश करता है।


आत्म-साक्षात्कार कैसे प्राप्त होता है?

आत्म-साक्षात्कार का अर्थ है स्वयं की सच्ची प्रकृति को जानना और अपने भीतर के दिव्य स्वरूप का अनुभव करना। इसे प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित प्रथाओं का पालन किया जाता है:


स्वयं का अवलोकन: 

ध्यान के माध्यम से व्यक्ति अपने विचारों, भावनाओं और इच्छाओं को देखता है और उनसे अलग हो जाता है।


वैराग्य और भक्ति: 

सांसारिक इच्छाओं से वैराग्य और ईश्वर के प्रति भक्ति आत्म-साक्षात्कार की दिशा में मार्ग प्रशस्त करते हैं।


योग और साधना: 

योगासन, प्राणायाम, और ध्यान की नियमित साधना आत्मा की गहराइयों को समझने में मदद करती है।


गुरु मार्गदर्शन: एक योग्य गुरु की सहायता आत्म-साक्षात्कार के मार्ग में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है।

ज्ञान योग: इस मार्ग में व्यक्ति अपने वास्तविक स्वरूप का बोध प्राप्त करने के लिए वेदांत और शास्त्रों का अध्ययन करता है।

आत्म-साक्षात्कार का अंतिम लक्ष्य यह है कि व्यक्ति को अपनी दिव्यता और विश्व-ब्रह्मांड के साथ अपनी एकता का अनुभव हो, जिससे जीवन का उद्देश्य पूर्णता की ओर अग्रसर हो जाता है।

Friday, September 6, 2024

कुंडलिनी जागरण के शारीरिक मानसिक आध्यात्मिक स्वास्थ्य लाभ

 कुंडलिनी शक्ति जागरण !

कुंडलिनी जागरण के शारीरिक मानसिक आध्यात्मिक स्वास्थ्य लाभ 


कुंडलिनी शक्ति जागरण एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है जो योग और ध्यान के माध्यम से की जाती है। कुंडलिनी ऊर्जा को शरीर में एक सुप्त अवस्था में माना जाता है, जो हमारी रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से में, मूलाधार चक्र में स्थित होती है। जब यह शक्ति जागृत होती है, तो यह एक सर्प की तरह ऊपर की ओर चढ़ती है और शरीर के सात मुख्य चक्रों (ऊर्जा केंद्रों) से गुजरती है। कुंडलिनी जागरण का मुख्य उद्देश्य आत्म-साक्षात्कार और उच्चतर चेतना प्राप्त करना है।


कुंडलिनी जागरण के शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक लाभ:

1. शारीरिक लाभ:

ऊर्जा का संचार: कुंडलिनी जागरण से शरीर में प्रचुर मात्रा में ऊर्जा का संचार होता है, जिससे थकान, सुस्ती, और आलस्य कम होता है।


स्वास्थ्य में सुधार: कुंडलिनी जागरण के साथ शरीर का संतुलन और ऊर्जा का प्रवाह सही हो जाता है, जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और स्वास्थ्य में सुधार होता है।


मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र का सशक्तिकरण: कुंडलिनी जागरण से मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र को सशक्त बनाया जा सकता है, जिससे स्मरण शक्ति और एकाग्रता बढ़ती है।

आंतरिक अंगों का पुनर्निर्माण: कुंडलिनी ऊर्जा शरीर के आंतरिक अंगों और प्रणालियों को सशक्त बनाती है, जिससे पाचन तंत्र, श्वसन तंत्र और हृदय प्रणाली को मजबूती मिलती है।


2. मानसिक लाभ:

मानसिक स्पष्टता: कुंडलिनी जागरण से मानसिक स्पष्टता आती है, जिससे व्यक्ति जटिल विचारों को सुलझा सकता है और विचारों में एकाग्रता आती है।


तनाव और चिंता से मुक्ति: कुंडलिनी जागरण के दौरान ध्यान और योग से मानसिक शांति और स्थिरता मिलती है, जिससे तनाव और चिंता दूर होती है।


भावनात्मक संतुलन: कुंडलिनी जागरण से व्यक्ति की भावनाओं पर नियंत्रण बढ़ता है, जिससे क्रोध, दुःख, और असंतोष जैसी नकारात्मक भावनाओं का नाश होता है और भावनात्मक संतुलन प्राप्त होता है।


रचनात्मकता का विकास: कुंडलिनी जागरण से मस्तिष्क के रचनात्मक हिस्से को सक्रिय किया जा सकता है, जिससे व्यक्ति में नवाचार और कला की भावना का विकास होता है।


3. आध्यात्मिक लाभ:

आत्म-साक्षात्कार: कुंडलिनी जागरण का सबसे प्रमुख लाभ आत्म-साक्षात्कार है, जहाँ व्यक्ति अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानता है और "मैं" की भावना से ऊपर उठता है।

चेतना का विस्तार: जागृत कुंडलिनी से व्यक्ति की चेतना उच्चतर स्तर पर पहुँचती है, जिससे वह ब्रह्मांडीय ज्ञान, सत्य, और आध्यात्मिक अनुभवों का अनुभव करता है।


आध्यात्मिक मार्गदर्शन: कुंडलिनी जागरण से व्यक्ति को अदृश्य मार्गदर्शकों और ऊर्जा की उपस्थिति का अनुभव हो सकता है, जो उसे आत्मिक विकास की दिशा में प्रेरित करती है।


सात चक्रों का शुद्धिकरण: कुंडलिनी जागरण के दौरान शरीर के सात चक्रों को जागृत और शुद्ध किया जाता है, जिससे व्यक्ति शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से सशक्त होता है।


सहज ज्ञान: कुंडलिनी जागरण से व्यक्ति के भीतर सहज ज्ञान और अंतर्ज्ञान का विकास होता है, जिससे उसे जीवन के विभिन्न पहलुओं में गहरी समझ प्राप्त होती है।

कुंडलिनी जागरण की प्रक्रिया:


योग और प्राणायाम: कुंडलिनी जागरण में प्रमुख रूप से योग और प्राणायाम का अभ्यास किया जाता है। खासकर "कपालभाति", "भस्त्रिका", और "नाड़ी शोधन" जैसे प्राणायाम कुंडलिनी जागरण के लिए उपयोगी होते हैं।


ध्यान और मंत्र जप: ध्यान और मंत्र जप कुंडलिनी जागरण का एक अनिवार्य हिस्सा है। "ओम" जैसे बीज मंत्रों का उच्चारण कुंडलिनी ऊर्जा को जागृत करने में सहायक होता है।


चक्र ध्यान: ध्यान के माध्यम से व्यक्ति को अपने शरीर के सात चक्रों पर ध्यान केंद्रित करना होता है। इससे कुंडलिनी ऊर्जा को ऊपर उठने में मदद मिलती है।


संभावित चुनौतियाँ:

कुंडलिनी जागरण की प्रक्रिया बेहद शक्तिशाली होती है, इसलिए इसे एक प्रशिक्षित और अनुभवी योग गुरु के मार्गदर्शन में किया जाना चाहिए।

इस प्रक्रिया के दौरान कुछ मानसिक और शारीरिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जैसे ऊर्जा की अधिकता, भावनात्मक उथल-पुथल, या शारीरिक असुविधा।

कुंडलिनी जागरण का सही और संयमित अभ्यास व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक रूप से एक उच्चतर स्तर पर पहुँचाता है, जिससे वह जीवन में संतुलन और शांति प्राप्त कर सकता है।

अधिक विस्तृत जानकारी मार्गदर्शन और स्वास्थय देखभाल परामर्श हेतु संपर्क करें 

डॉक्टर सुरेंद्र सिंह विरहे 

मनोदैहिक स्वास्थ्य आरोग्य विशेषज्ञ आध्यात्मिक योग चिकित्सक लाईफ कोच डिवाइन लाईफ सॉल्युशंस 

098260 42177

Sunday, September 1, 2024

हमारे जीवन की सबसे बड़ी चुनौती !

हमारे जीवन की सबसे बड़ी चुनौती !

जिंदगी में समाधान डिवाइन लाईफ सॉल्युशंस द्वारा 

जिंदगी की चुनौतियों को स्वीकार करने और उनका सही समाधान करने की युक्तियां और मार्गदर्शन प्रस्तुत किया गया है । आइए जानते हैं अपने जीवन में विजयी होने के लिए कृत संकल्पित होकर अपने सपनों को साकार करें।


मनुष्य के जीवन की सबसे बड़ी चुनौती जिंदगी को सही मायने में समझना और उसे संतुलित रूप से जीना है। यह चुनौती कई स्तरों पर होती है, जिसमें बाहरी और आंतरिक संघर्ष दोनों शामिल होते हैं।


सबसे पहले स्वयं की पहचान और आत्मज्ञान होना अत्यंत महत्वपूर्ण है:


मनुष्य के लिए सबसे बड़ी चुनौती अपने आप को पहचानना है। यह समझना कि हम कौन हैं, हमारे उद्देश्य क्या हैं, और हमें किस दिशा में जाना चाहिए, एक जटिल प्रक्रिया है। आत्म-ज्ञान प्राप्त करना जीवनभर की यात्रा होती है और इस प्रक्रिया में व्यक्ति को कई बार आत्म-संशय, असुरक्षा, और भ्रम का सामना करना पड़ता है।

जीवन में हमेशा संतुलन बनाए रखना:

जीवन में संतुलन बनाए रखना एक और महत्वपूर्ण चुनौती है। यह संतुलन व्यक्तिगत जीवन, पेशेवर जीवन, सामाजिक संबंधों और आध्यात्मिकता के बीच होता है। अक्सर लोग किसी एक क्षेत्र में इतना उलझ जाते हैं कि दूसरे क्षेत्रों की उपेक्षा हो जाती है, जिससे जीवन में असंतुलन पैदा हो जाता है।


परिवर्तन के साथ तालमेल सहज स्वीकार भाव:

समय के साथ, दुनिया में, समाज में, और स्वयं के भीतर परिवर्तन होते रहते हैं। इन परिवर्तनों के साथ तालमेल बैठाना और उन्हें सकारात्मक रूप में स्वीकार करना एक बड़ी चुनौती है। कई बार लोग परिवर्तन का विरोध करते हैं, जिससे वे तनाव और निराशा का अनुभव करते हैं।


अप्रत्याशित और अनिश्चितता का सामना:


जीवन में बहुत सी चीजें अनिश्चित होती हैं, जैसे भविष्य में क्या होगा, यह कोई नहीं जानता। इस अनिश्चितता के बावजूद, जीवन को पूरी तरह जीने की कला में माहिर होना एक कठिन चुनौती है। यह विश्वास बनाए रखना कि चाहे जो भी हो, हम सही रास्ते पर हैं, बहुत ही कठिन हो सकता है।


जिंदगी के संघर्ष और दुःख को स्वीकारना:


जीवन में दुःख, संघर्ष, और पीड़ा का सामना हर किसी को करना पड़ता है। इन परिस्थितियों को स्वीकार करना और उनसे सीख लेकर आगे बढ़ना एक बड़ी चुनौती होती है। बहुत से लोग इनसे भागने का प्रयास करते हैं, लेकिन यह जीवन का हिस्सा है और इसे समझकर ही व्यक्ति आगे बढ़ सकता है।


आपसी संबंधों को बनाए रखना:


रिश्ते और संबंध जीवन का अहम हिस्सा होते हैं, लेकिन इन्हें सही रूप में बनाए रखना भी एक चुनौती है। हर व्यक्ति की अलग-अलग अपेक्षाएं, स्वभाव, और प्राथमिकताएं होती हैं। इन भिन्नताओं के बावजूद, एक-दूसरे के साथ समझदारी और सम्मान के साथ संबंध बनाए रखना जीवन की कठिन चुनौतियों में से एक है।


आत्म संतोष और कृतज्ञता:


मनुष्य की प्रवृत्ति हमेशा अधिक पाने की होती है। लेकिन जीवन में संतोष और कृतज्ञता का भाव बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है। अधिक पाने की चाहत अक्सर व्यक्ति को असंतुष्ट और बेचैन कर देती है, जबकि कृतज्ञता से मन की शांति और संतोष की भावना विकसित होती है।


अटल शाश्वत मृत्यु का सामना:

अंततः, जीवन की सबसे बड़ी और अंतिम चुनौती मृत्यु का सामना करना होता है। यह सच है कि हर किसी को एक दिन इस संसार से विदा लेना है, लेकिन इस सच्चाई को स्वीकार करना और उसके अनुसार जीवन जीना एक गहन और चुनौतीपूर्ण कार्य है।

इन सब चुनौतियों का सामना करने के लिए मनुष्य को धैर्य, साहस, और सकारात्मक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। जीवन की इन चुनौतियों को समझकर और उन्हें स्वीकार करके ही व्यक्ति एक पूर्ण और संतुलित जीवन जी सकता है।

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डा सुरेन्द्र सिंह विरहे 

मनोदैहिक आरोग्य स्वास्थ्य विशेषज्ञ आध्यात्मिक योग चिकित्सक लाईफ कोच डिवाइन लाईफ सॉल्युशंस 

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 Surendra Singh Virhe 


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